अपने शत्रुओं से प्रेम
अमेरिकी गृहयुद्ध ने कई कड़वी भावनाओं को जन्म दिया, अब्राहम लिंकन ने दक्षिण के बारे में एक दयालु शब्द बोलना उचित समझा l एक हैरान दर्शक ने पूछा कि वह ऐसा कैसे कर सकता है l उन्होंने उत्तर दिया, “महोदया, क्या मैं अपने शत्रुओं को मित्र बनाकर उन्हें नष्ट नहीं कर देता हूँ?” एक शताब्दी के बाद उन शब्दों पर विचार करते हुए, मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने टिप्पणी की, “यह मुक्तिदायक प्रेम की शक्ति है l”
यीशु मसीह के शिष्यों को अपने शत्रुओं से प्रेम करने के लिए बुलाते समय, किंग ने यीशु की शिक्षाओं पर ध्यान दिया l उन्होंने कहा कि यद्यपि विश्वासियों को उन्हें सताने वालों से प्यार करने में कठिनाई हो सकती है, यह प्यार “परमेश्वर के प्रति निरंतर और पूर्ण समर्पण” से बढ़ता है l किंग ने कहा, “जब हम इस तरह से प्यार करते हैं, हम परमेश्वर को जानेंगे और उसकी पवित्रता की सुन्दरता का अनुभव करेंगे l”
किंग ने यीशु के पहाड़ी उपदेश का सन्दर्भ दिया जिसमें उन्होंने कहा था, “अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिए प्रार्थना करो, जिस से तुम अपने स्वर्गीय पिता की संतान ठहरोगे: (मत्ती 5:44-45) l यीशु ने अपने पड़ोसियों से प्रेम और अपने शत्रुओं से घृणा करने के उस समय के पारंपरिक ज्ञान के विरुद्ध सलाह दी l बल्कि, पिता परमेश्वर अपने बच्चों को विरोध करनेवालों से प्रेम करने की सामर्थ्य देता है l
अपने शत्रुओं से प्यार करना असंभव लग सकता है, लेकिन जब हम मदद के लिए ईश्वर की ओर देखते हैं, तो वह हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देगा l वह इस कठिन पद्धति को अपनाने का साहस देता है, क्योंकि जैसा कि यीशु ने कहा था, “परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है” (19:26) l
मैंने परमेश्वर की विश्वासयोग्यता देखी है
ब्रिटेन के शासक के रूप में अपने ऐतिहासिक सत्तर वर्षों के दौरान, महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय ने व्यक्तिगत प्रस्तावना के साथ अपने जीवन के बारे में केवल एक आत्मकथा का समर्थन किया, द सर्वेंट क्वीन एंड द किंग शी सर्वस(The Servant Queen and the King She Serves) l उनके नब्बेवें जन्मदिन के उपलक्ष्य में जारी की गयी यह पुस्तक बताती है कि कैसे उनके विश्वास ने उन्हें अपने देश की सेवा करते समय मार्गदर्शन किया l प्रस्तावना में, महारानी एलिज़ाबेथ ने सभी प्रार्थना करनेवालों के प्रति आभार व्यक्त किया, और परमेश्वर को उनके दृढ़ प्रेम के लिए धन्यवाद दिया l उन्होंने निष्कर्ष निकाला, “मैंने वास्तव में उसकी विश्वासयोग्यता देखी है l”
महारानी एलिज़ाबेथ का सरल कथन पूरे इतिहास में उन लोगों साक्षी को दोहराता है जिन्होंने अपने जीवन में ईश्वर की व्यक्तिगत, विश्वासयोग्य देखभाल का अनुभव किया है l यह वह विषय है जो राजा दाऊद द्वारा अपने जीवन पर चिंतन करते हुए लिखे गए एक सुन्दर गीत में ख़ास है l 2 शमुएल 22 में लिखित, यह गीत दाऊद की रक्षा करने, उसका भरण-पोषण करने और यहाँ तक कि जब उसका जीवन खतरे में था तब उसे बचाने में परमेश्वर की विश्वासयोग्यता की बात करता है (पद.3-4, 44) l परमेश्वर की विश्वासयोग्यता के अपने अनुभव के जवाब में, दाऊद ने लिखा, “मैं . . . तेरे नाम का भजन गाऊँगा” (पद.50) l
हालाँकि जब परमेश्वर की विश्वासयोग्यता लम्बे जीवनकाल में देखी जाती है तो इसमें अतिरिक्त सुन्दरता होती है, हमें अपने जीवन में उसकी देखभाल का वर्णन करने के लिए इंतज़ार नहीं करना पड़ता है l जब हम पहचानते हैं कि यह हमारी अपनी क्षमताएं नहीं हैं जो हमें जीवन भर आगे बढ़ाती हैं, बल्कि एक प्यारे पिता की विश्वासयोग्य देखभाल है तो हम कृतज्ञता और प्रशंसा की ओर प्रेरित होते हैं l
परमेश्वर का परिवर्तनकारी वचन
जब क्रिस्टिन अपने चीनी पति के लिए एक विशेष पुस्तक खरीदना चाहती थी, तो उसे चीनी भाषा में केवल एक बाइबल ही मिली l हलाकि उनमें से कोई भी मसीह में विश्वास करने वाला नहीं था, फिर भी उसे उम्मीद थी कि वह उपहार की सराहना करेगा l बाइबल को पहली नज़र में देखकर वह क्रोधित हो गया, लेकिन अंततः उसने इसे समझ लिया l जैसे-जैसे उसने पढ़ा, वह इसके पन्नों की सच्चाई से विवश हो गया l इस अप्रत्याशित घटनाक्रम से परेशान होकर, क्रिस्टिन ने उसका खंडन करने के लिए धर्मग्रंथ पढ़ना आरम्भ कर दिया l उसे आश्चर्य हुआ, उसने जो पढ़ा उससे आश्वस्त होकर उसे भी यीशु पर विश्वास हो गया l
प्रेरित पौलुस पवित्रशास्त्र की बदलती प्रकृति को जानता था l रोम की जेल से लिखते हुए, उसने तीमुथियुस से, जिसका उन्होंने मार्गदर्शन किया था, आग्रह किया कि “तू उन बातों पर जो तू ने सीखीं हैं . . . दृढ़ रह” क्योंकि “बचपन से पवित्रशास्त्र तेरा जाना हुआ है” (2 तीमुथियुस 3:14-15) l मूल भाषा, यूनानी में “दृढ़ रह” का अर्थ बाइबल में बताई गयी बातों में “बने रहना” है l यह जानते हुए कि तीमुथियुस को विरोध और उत्पीड़न का सामना करना पड़ेगा, पौलुस चाहता था कि वह चुनौतियों के लिए तैयार रहे; उसका मानना था कि उसके शिष्य को बाइबल में ताकत और ज्ञान मिलेगा क्योंकि उसने इसकी सच्चाई पर विचार करने में समय बिताया था l
परमेश्वर अपनी आत्मा के द्वारा पवित्रात्मा को हमारे लिए जीवित करता है l जैसे ही हम उसमें निवास करते हैं, वह हमें उसके जैसा बनाने के लिए बदल देता है l जैसा कि उन्होंने सियो-हू और क्रिस्टिन के साथ किया था l
परमेश्वर का महान प्रेम चक्र
तीस वर्ष की उम्र में यीशु में एक नए विश्वासी के रूप में, अपना जीवन उन्हें समर्पित करने के बाद मेरे पास बहुत सारे प्रश्न थे l जब मैंने बाइबल पढ़ना आरम्भ किया, तो मेरे पास और भी अधिक प्रश्न थे l मैं एक सहेली के पास गयी l “मैं संभवतः : परमेश्वर की सभी आज्ञाओं का पालन कैसे कर सकती हूँ? मैं आज सुबह ही अपने पति पर चिल्लायी!”
“बस अपनी बाइबल पढ़ती रहो,” उसने का, “और पवित्र आत्मा से तुम्हें सहायता करने के लिए कहो जैसे यीशु तुमसे प्यार करता है l
परमेश्वर की संतान के रूप में बीस वर्षों से अधिक जीवन जीने के बाद, वह सरल लेकिन गहन सत्य अभी भी मुझे उनके महान प्रेम चक्र में तीन चरणों को अपनाने में मदद करता है : सबसे पहले, प्रेरित पौलुस ने पुष्टि की कि प्रेम यीशु में विश्वास करने वाले के जीवन में प्रमुख है l दूसरा, “एक दूसरे से प्रेम करने का ऋण” चुकाते रहने से, मसीह के अनुयायी आज्ञाकारिता में चलेंगे, “क्योंकि जो दूसरे से प्रेम रखता है, उसी ने व्यवस्था पूरी की है” (रोमियों 13:8) l अंत में, हम व्यवस्था को पूरी करते हैं क्योंकि “प्रेम पड़ोसी की कुछ बुराई नहीं करता” (पद.10) l
जब हम अपने प्रति परमेश्वर के प्रेम की गहराई का अनुभव करते हैं, जिसे क्रूस पर मसीह के बलिदान के माध्यम से सर्वोत्तम रूप से प्रदर्शित किया गया है, हम कृतज्ञता के साथ प्रतिक्रिया दे सकते हैं l यीशु के प्रति हमारी कृतज्ञ भक्ति हमें अपने शब्दों, कार्यों और व्यवहारों से दूसरों से प्रेम करने की ओर ले जाती है l सच्चा प्रेम एक सच्चे ईश्वर से प्रवाहित होता है जो प्रेम है (1 यूहन्ना 4:16,19) l
प्रिय परमेश्वर, हमें आपके महान प्रेम चक्र में जकड़ जाने में सहायता करें!
विनम्र किया गया
अहंकार पहले आता है और अक्सर अपमान की ओर ले जाता है—कुछ ऐसा जो नॉर्वे के एक व्यक्ति को पता चला l यहाँ तक कि दौड़ने वाले कपड़े के बगैर भी, उस व्यक्ति ने अहंकारपूर्वक 400 मीटर बाधा दौड़ में विश्व रिकॉर्ड धारक कस्टर्न वारहोम, को दौड़ में चुनौती दी l वारहोम, एक इनडोर सार्वजनिक सुविधा/facility में प्रशिक्षण लेते हुए, चुनौती देने वाले से आगे निकल गए l समापन रेखा पर, दो बार का विश्व चैंपियन मुस्कुराया जब उस व्यक्ति ने ज़ोर देकर कहा कि उसका आरम्भ ख़राब रहा है और वह फिर से दौड़ लगाना चाहता है!
नीतिवचन 29:23 में हम पढ़ते हैं, “मनुष्य को गर्व के कारण नीचा देखना पड़ता है, परन्तु नम्र आत्मावाला महिमा का अधिकारी होता है l अभिमानियों के साथ परमेश्वर का व्यवहार इस पुस्तक में सुलैमान के पसंदीदा विषयों में से एक है (1:2; 16:18; 18:12) l इन पदों में अभिमान या अहंकार शब्द का अर्थ है “सूजन” या “फूला हुआ”—जो उचित रूप से ईश्वर का है उसका श्रेय लेना l जब हम अहंकार से भर जाते हैं, तो हम अपने बारे में जरुरत से ज्यादा सोचते हैं l यीशु ने एक बार कहा था, “जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा : और जो कोई अपने आपको छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा” (मत्ती 23:12) l वह और सुलेमान दोनों हमें नम्रता और दीनता का अनुसरण करने के लिए निर्देशित करते हैं l यह झूठी विनम्रता नहीं है, बल्कि स्वयं को अधिकार देना और यह स्वीकार करना है कि हमारे पास जो कुछ भी है वह ईश्वर से आया है l यह बुद्धिमानी है और अहंकारपूर्वक “बातें करने में उतावली” नहीं करना है (नीतिवचन 29:) l
आइए परमेश्वर से प्रार्थना करें कि वह हमें खुद को विनम्र बनाकर उसका सम्मान करने और अपमान से बचने के लिए हृदय और बुद्धि दे l