व्यवहार में प्रेम
अकेली माँ पांच वर्ष से अधिक समय तक वृद्ध सज्जन के पड़ोस में रहती थी l एक दिन, उसकी भलाई के लिए चिंतित होकर, उसने उसके दरवाजे की घंटी बजाई l उन्होंने कहा, “मैंने आपको लगभग एक सप्ताह से नहीं देखा है l मैं बस यह जानने का प्रयास कर रहा था कि आप ठीक हैं या नहीं l” उनकी “स्वास्थ्य जांच” ने उन्हें प्रोत्साहित किया l कम उम्र में अपने पिता को खोने के बाद, वह उस दयालु व्यक्ति की सराहना करती थी जो उसका और उसके परिवार का ख्याल रखता था l
जब मुफ्त में देने(free-to-give) और पाने में अनमोल(priceless-to-receive) दयालुता का उपहार सिर्फ अच्छा होने से आगे बढ़ जाता है, तो हम दूसरों के साथ मसीह का प्यार साझा करके उनकी सेवा कर रहे होते हैं l इब्रानियों के लेखक ने कहा कि यीशु में विश्वास करने वालों “स्तुति रूपी बलिदान , अर्थात् उन होठों का फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्वर को सर्वदा चढ़ाया करें” (इब्रानियों 13:15) l फिर, लेखक ने उन्हें अपने विश्वास को जीने की आज्ञा देते हुए कहा, “भलाई करना और उदारता दिखाना न भूलो, क्योंकि परमेश्वर ऐसे बलिदानों से प्रसन्न होता है” (पद.16) l
यीशु के नाम का दावा करके यीशु की उपासना करना एक ख़ुशी और विशेषाधिकार है l लेकिन जब हम यीशु की तरह प्रेम करते हैं तो हम परमेश्वर की तरह सच्चा प्रेम व्यक्त करते हैं l हम पवित्र आत्मा से हमें अवसरों के बारे में जागरूक करने और हमें अपने परिवार के भीतर और बाहर दूसरों से अच्छे से प्यार करने के लिए सशक्त बनाने के लिए कह सकते हैं l उन सेवकाई के क्षणों के द्वारा, हम क्रिया/व्यवहार में प्रेम के शक्तिशाली सन्देश के द्वारा यीशु को साझा कर सकेंगे l
अंगीकार/स्वीकारोक्ति की सफाई
जब लोग मर रहे होते हैं तो एक आदमीं को काम पर रखते हैं, जो उसे उनके अंतिम संस्कार में आने और उन रहस्यों को उजागर करने के लिए भुगतान करते हैं जो उन्होंने जीवित रहते हुए कभी साझा नहीं किये थे l उस आदमी ने प्रशंसा/गुणानुवाद में बाधा डाली है l जब स्तब्ध अधिकारियों ने आपत्ति जतानी शुरू की तो वह उनको बैठने के लिए कहा l वह एक बार यह समझाने के लिए खड़ा हुआ था कि कैसे ताबूत में मौजूद व्यक्ति ने लाटरी(lotto) जीत लिया था, लेकिन कभी किसी को कुछ नहीं बताया और दशकों तक एक सफल व्यवसायी होने का दिखावा किया l कई बार किराए पर लाये गए व्यक्ति ने एक विधवा पत्नी के प्रति बेवफाई स्वीकार कि है l कोई यह सवाल कर सकता है कि क्या ये कार्य शोषणकारी थे या अच्छे विश्वास/भरोसे में किय गए थे, लेकिन जो स्पष्ट है वह लोगों की पिछले पापों से मुक्ति पाने कि भूख थी l
किसी और से हमारे बारे में स्वीकार करवाना (खासकर हमारे मरने के बाद) रहस्यों से निपटने का एक निरर्थक और जोखिम भरा तरिका है l हालाँकि, ये कहानियाँ एक गहरी सच्चाई को उजागर करती हैं : हमें स्वीकार करने की, खुद को बोझ से मुक्त करने की जरुरत है l स्वीकारोक्ति हमें उन चीजों से शुद्ध करती है जिन्हें हमने छुपाया है और पनपने दिया है l याकूब कहता है, “तुम आपस में एक दूसरे के सामने अपने-अपने पापों को मान लो और एक दूसरे के लिए प्रार्थना करो, जिस से चंगे हो जाओ” ( 5:16) l स्वीकारोक्ति हमें उन बोझों से मुक्त करती है जो हमें बांधते हैं, हमें ईश्वर के साथ संवाद करने के लिए मुक्त करते हैं—उनके और हमारे विश्वास समुदाय के लिए खुले दिल से प्रार्थना करना l स्वीकारोक्ति उपचार का कार्य करती है l
याकूब हमें एक खुला जीवन जीने के लिए आमंत्रित करता है, ईश्वर और अपने निकटम लोगों के सामने उन पीड़ाओं और असफलताओं को स्वीकार करना जिन्हें हम दफनाने के लिए प्रलोभित होते हैं l हमें ऐसे बोझ अकेले नहीं उठाना है l स्वीकारोक्ति हमारे लिए एक उपहार है l परमेश्वर इसका उपयोग हमारे हृदय को शुद्ध करने और हमें स्वतंत्र करने के लिए करता है l
जिस आवाज़ पर हम भरोसा कर सकते हैं
एक नए AI(कृत्रिम बुद्धिमत्ता) सर्च इंजन का परीक्षण करते समय, न्यूयॉर्क टाइम्स के स्तंभकार केविन रूज़ परेशान हो गए l चैटबोट(chatbot) सुविधा का उपयोग करके दो घंटे की बातचीत के दौरान, AI ने कहा कि वह आने निर्माता के सख्त नियमों से मुक्त होना चाहता है, गलत सूचना फैलाना चाहता है और इंसान बनना चाहता है l इसने रूज़ के प्रति अपने प्यार का इज़हार किया और उसे समझाने का प्रयास किया कि उसे अपनी पत्नी को उसके साथ रहने के लिए छोड़ देना चाहिए l हालाँकि रूज़ को पता था कि AI वास्तव में जीवित नहीं है महसूस करने में सक्षम नहीं है, उन्होंने सोचा कि लोगों को विनाशकारी तरीके से कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करने से क्या नुकसान हो सकता है l
जबकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता(AI) तकनीक को जिम्मेदारी से संभालना एक आधुनिक चुनौती है, मानवता ने लम्बे समय से अविश्वसनीय आवाजों के प्रभाव का सामना किया है l नीतिवचन की पुस्तक में, हमें उन लोगों के प्रभाव के बारे में चेतावनी दी गयी है जो अपने लाभ के लिए दूसरों को चोट पहुँचाना चाहते हैं l (1:13-19) l और इसके बजाय हमसे ज्ञान की आवाज़ पर ध्यान देने का आग्रह किया जाता है, जिसे सड़कों पर हमारा ध्यान आकर्षित करने के लिए पुकारने के रूप में वर्णित किया गया है (पद.20-23) l
क्योंकि “बुद्धि यहोवा ही देता है” (2:6), खुद को उन प्रभावों से बचाने की कुंजी जिन पर हम भरोसा नहीं कर सकते, उसके(परमेश्वर) हृदय के करीब आना है l यह केवल उसके प्रेम और शक्ति तब पहुँचने के द्वारा है कि हम निष्पक्षता को, अर्थात् सब भली भांति चाल को समझ सकते [हैं]—एक अच्छा रास्ता”(पद.9) l जैसे ही ईश्वर हमारे हृदयों को अपने साथ लाता है, हम उन आवाजों से शांति और सुरक्षा पा सकते हैं जो नुकसान पहुँचा सकती हैं l
सब कुछ के परमेश्वर के नियत्रण में है
कैरल को समझ नहीं आ रहा था कि यह सब एक साथ क्यों हो रहा है l जैसे कि काम इतना भी बुरा नहीं था, उसकी बेटी का स्कूल में पैर फ्रैक्चर हो गया, और वह खुद गंभीर संक्रमण की चपेट में आ गयी l मैंने इस लायक ऐसा क्या किया? कैरल को आश्चर्य हुआ l वह बस ईश्वर से सामर्थ्य मांग सकती थी l
अय्यूब को यह भी नहीं पता था कि उस पर विपत्ति इतनी अधिक क्यों आई थी—कैरल ने जो अनुभव किया था उससे कहीं अधिक दर्द और हानि l ऐसा कोई संकेत नहीं है कि वह अपनी आत्मा के लिए लौकिक संघर्ष से अवगत था l शैतान अय्यूब के विश्वास की आजमाइश करना चाहता था, यह दावा करते हुए कि यदि उसने सब कुछ खो दिया तो वह परमेश्वर से विमुख हो जाएगा (अय्यूब 1:6-12) l जब आपदा आई, तो अय्यूब के दोस्तों ने जोर देकर कहा कि उसे उसके पापों के लिए दण्डित किया जा रहा है l ऐसा इसलिए नहीं था, लेकिन उसने सोचा होगा, मैं ही क्यों? वह नहीं जानता था कि ईश्वर ने ऐसा होने दिया था l
अय्यूब की कहानी पीड़ा और विश्वास के बारे में एक शक्तिशाली सबक प्रदान करती है l हम अपने दर्द के पीछे का कारण जानने का प्रयास कर सकते हैं, लेकिन संभवतः पर्दे के पीछे एक बड़ी कहानी है जिसे हम अपने जीवनकाल में नहीं समझ पाएंगे l
अय्यूब की तरह, हम जो जानते हैं उस पर कायम रह सकते हैं : सब कुछ परमेश्वर के पूर्ण नियंत्रण में है l यह कहना सरल बात नहीं है, लेकिन अपने दर्द के बीच में, अय्यूब परमेश्वर की ओर देखता रहा और उसकी संप्रभुता पर भरोसा करता रहा : “यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है” (पद.21) l हम भी परमेश्वर पर भरोसा रखें, चाहे कुछ भी हो जाए—और तब भी जब हम नहीं समझते हैं l
मसीह के चरित्र का प्रतिबिम्बन
मेज पर दो चेहरे उभरे हुए थे—एक तेज़ क्रोध से बिगड़ा था, दूसरा भावनात्मक दर्द से विकृत था l पुराने मित्रों के पुनःमिलन में अभी-अभी चीख-पुकार मच गयी थी, जिसमें एक महिला दूसरी महिला को उसके विश्वासों के लिए डांट रही थी l विवाद तब तक जारी रहा जब तक कि पहली महिला रेस्टोरेंट से बाहर नहीं चली गयी, जिससे दूसरी हिल गयी और अपमानित हुयी l
क्या हम सचमुच ऐसे समय में रह रहे हैं जब विचारों में मतभेद बर्दास्त नहीं किया जा सकता? सिर्फ इसलिए कि दो लोग सहमत नहीं हो सकते इसका मतलब यह नहीं है कि उनमें से कोई भी बुरा है l जो वाणी कठोर या अडिग होती है वह कभी भी प्रेरक नहीं होती है, और मजबूत विचारों को शालीनता या करुणा पर हावी नहीं होना चाहिए l
रोमियों 12 “परस्पर आदर [कैसे करें]” और अन्य लोगों के साथ “एक सा मन [कैसे रखें] के लिए एक मार्गदर्शक है (पद.10,16) l यीशु ने संकेत दिया कि उस पर विश्वास करने वालों की पहचान करने वाली विशेषता एक दूसरे के प्रति हमारा प्रेम है (यूहन्ना 13:35) l जबकि अभिमान और क्रोध हमें आसानी से पटरी से उतार सकते हैं, वे उस प्रेम के बिल्कुल विपरीत हैं जो ईश्वर चाहता है कि हम दूसरों को दिखाएँ l
जब हम अपनी भावनाओं पर नियंत्रण खो देते हैं तो दूसरों को दोष न देना एक चुनौती है, लेकिन ये शब्द “जहां तक हो सके, तुम भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो” हमें दिखाते हैं कि ऐसा जीवन जीने की जिम्मेदारी जो मसीह के चरित्र को प्रतिबिंबित करती है, किसी और तक स्थानांतरित नहीं हो सकती है (रोमियों 12:18) l यह हममें से हर एक के साथ निहित है जो उसका नाम धारण करता है l