आमने-सामने
यद्यपि संसार आज इलेक्ट्रानिक तरीके से जिस तरह जुड़ा है, पूर्व में कभी नहीं था, व्यक्तिक रूप से बिताया गया समय सर्वोत्तम है l हम सहभागिता और खिलखिलाहट द्वारा-लगभग अनजाने में-अगले व्यक्ति के चेहरे की गत्विधियों को देखकर उसकी भावनाएं जान जाते हैं l जो आपस में प्रेम करते हैं, चाहे परिवार या मित्र, आमने-सामने संगति करना चाहते हैं l
हम इस तरह का आमने-सामने का सम्बन्ध परमेश्वर और उसके लोगों की अगुवाई करने वाले, मूसा के मध्य देखते हैं l मूसा परमेश्वर का अनुसरण करता गया, और लोगों के अक्खड़पन और मूर्तिपूजा के बावजूद उसका अनुसरण करता रहा l लोगों द्वारा प्रभु के बदले सोने के बछड़े की उपासना करने के बाद (देखें निर्ग. 32), मूसा ने परमेश्वर से मुलाकात करने हेतु एक तम्बू लगाया, जबकि लोग दूर ही से देख सकते थे (33:7-11) l जब परमेश्वर की उपस्थिति बादल के खम्बे में तम्बू पर आकर ठहरता था, मूसा उनका प्रतिनिधि होकर बातें करता था l परमेश्वर ने उनके साथ अपनी उपस्थिति का वादा किया (पद.14) l
यीशु की क्रूसित मृत्यु और पुनरुत्थान के कारण, हमें परमेश्वर से बातें करने के लिए मूसा की तरह व्यक्ति नहीं चाहिए l इसके बदले, शिष्यों के सामने यीशु की पेशकस की तरह, हम मसीह द्वारा परमेश्वर के साथ मित्रता कर सकते हैं (यूहन्ना 15:15) l हम भी उससे मुलाकात कर सकते हैं, प्रभु के साथ मित्र की तरह बातें कर सकते हैं l
विश्राम दिवस
एक रविवार को, मैं एक कलकल नदी के निकट खड़ी थी जो हमारी उत्तरी लन्दन आबादी क्षेत्र की ओर मुड़कर अपनी ख़ूबसूरती भिन्न प्रकार से बसे क्षेत्र को प्रदान करती है l जलप्रपात को देखकर और चिड़ियों की चहचाहट सुनकर मुझे आराम मिला l मैंने रुककर प्रभु को हमारी आत्माओं को विश्राम देने के लिए धन्यवाद दिया l
प्रभु ने सब्त का दिन स्थापित किया-विश्राम और नवीनीकरण का दिन-अपने लोगों के लिए प्राचीन निकट पूर्व क्योंकि उसकी इच्छा थी कि वे जीवित रहें l जैसे कि हम निर्गमन में पाते हैं, वह उनको छः वर्ष खेती करने को और सातवें वर्ष विश्राम करने को कहता है l इसी तरह छः दिन काम और सातवें दिन विश्राम l उसके तरीके ने इस्राएलियों को अन्य राष्ट्रों से अलग किया, क्योंकि केवल वे ही नहीं किन्तु विदेशी और उनके घर के दासों को भी उनके तरीके मानना अनुमत था l
हम विश्राम दिवस में अपेक्षा और रचनात्मकता के साथ उपासना करके अपनी आत्माओं को पोषित कर सकते हैं, जो हमारे चुनावों के अनुसार भिन्न होगा l कोई खेल खेलना पसंद करेंगे; कोई बगीचे में काम; कोई मित्रों और परिजनों के साथ भोजन करेंगे; कोई दोपहर में आराम करेंगे l
हम किस तरह विश्राम दिवस की खूबसूरती और भरपूरी को पुनः खोजेंगे, यदि वह हमारे जीवनों में नहीं है?
व्यवहारिक विश्वास
किराने की दूकान जाते समय मेरी सहेली को लगा जैसे सड़क किनारे जाती स्त्री को अपने कार में बैठा लूँ l कार में बैठाने के बाद, उसने जाना कि पैसे नहीं होने के कारण वह गर्म और आर्द्र वातावरण में अनेक मील पैदल चलकर वापस अपने घर जा रही थी l केवल वह पैदल लम्बी यात्रा करके घर ही नहीं जा रही थी किन्तु उसी दिन अनेक घंटे चलकर प्रातः 4 बजे अपने काम पर भी पहुंची थी l
उस स्त्री को अपनी कार में बैठाकर मेरी सहेली ने आज के सन्दर्भ में याकूब के मसीहियों को अपने कार्यों द्वारा अपने विश्वास को प्रगट करने का निर्देश पूरा किया : “विश्वास भी, यदि कर्म सहित न हो तो अपने स्वभाव में मरा हुआ है” (पद.17) l उसकी चिंता थी कि कलीसिया विधवाओं और अनाथों की देखभाल करें (याकूब 1:27), किन्तु वह यह भी चाहता था कि वे मात्र शब्दों पर नहीं किन्तु विश्ववास पर चलकर प्रेम के कार्य करें l
हम अपने कर्मों से नहीं विश्वास से बचाए गए हैं, किन्तु हम दूसरों से प्रेम करके और उनकी ज़रूरतों को पूरा करके विश्वास को प्रगट करते हैं l इस जीवन में साथ चलते हुए, काश हम भी, मेरी सहेली की तरह, ज़रुरतमंदों के प्रति सजग रहें जिन्हें हमारी मदद चाहिए l
शांति का मेल
एक विषय पर विचारों में अंतर होने पर मैंने ई-मेल द्वारा अपनी सहेली का सामना किया किन्तु उसने उत्तर नहीं दिया l क्या मैंने हद पार कर दी थी? मैं उसको परेशान करके स्थिति को और बदतर नहीं बनाना चाहती थी, और उसकी विदेश यात्रा से पूर्व समस्या का समाधान चाहती थी l आनेवाले कुछ दिनों तक उसकी याद आने पर, मैंने आगे की बातें न जानते हुए भी उसके लिए प्रार्थना की l तब एक दिन स्थानीय पार्क में घूमते हुए मैंने उसे देखा l जब उसने मुझे देखा उसके चेहरे पर दर्द था l “प्रभु धन्यवाद, कि मैं उससे बातें कर सकती हूँ, मैं धीरे से बोलकर इच्छित हृदय से उसकी ओर बढ़ी l हम दोनों खुलकर बातें किये और समस्याएँ सुलझ गयीं l
कभी-कभी हमारे संबंधों में जब तकलीफ और खामोशी आ जाती है, उनको ठीक करना हमारे नियंत्रण से बाहर महसूस होता है l किन्तु जिस तरह प्रेरित पौलुस इफिसुस की कलीसिया को लिखता है, कि हमें अपने संबंधों में परमेश्वर की चंगाई को ढूंढते हुए, परमेश्वर की आत्मा द्वारा शांति और एकता के लिए, दीनता, नम्रता, और धीरज को धारण करने के लिए बुलाया गया है l प्रभु हममें एकता चाहता है, और उसकी आत्मा द्वारा वह अपने लोगों को एक कर सकता है-अनपेक्षित रूप से भी जब हम पार्क में घूमने जाते हैं l
सम्पूर्ण शांति
एक सहेली ने मुझे बताया कि वर्षों तक वह शांति और संतोष खोजती रही l वह और उसके पति ने एक बड़ा व्यापार स्थापित करके एक बड़ा घर, सुन्दर कपड़े, और कीमती गहने खरीदे l किन्तु इन संपत्तियों के साथ प्रभावशाली लोगों से मित्रता ने भी शांति की उसकी आन्तरिक इच्छा को सनुष्ट न कर सके l तब एक दिन जब वह उदास और परेशान थी, एक सहेली ने उसे यीशु का सुसमाचार सुनाया l वहाँ उसने शांति के राजकुमार को खोज लिया, और सच्ची शांति और संतोष के विषय उसकी समझ हमेशा के लिए बदल गयी l
अपने मित्रों के साथ आखिरी भोज खाने के बाद उसने इस तरह की ही शांति के शब्द कहे (यूहन्ना 14), जब उसने उनको आनेवाली घटनाओं-उसकी मृत्यु, पुनरुत्थान, और पवित्र आत्मा का अवतरण-के विषय तैयार किया, जो संसार देने में असमर्थ था l वह उनको कठिनाई के मध्य सुख के भाव प्राप्त करना सिखाना चाहता था l
बाद में, पुनरुत्थित प्रभु अपनी मृत्यु के बाद भयातुर शिष्यों के सामने प्रकट होकर, उनका अभिवादन किया, “तुम्हें शांति मिले!” (यूहन्ना 20:19) l अब वह उनको और हमें अपने किये हुए कार्य में विश्राम की एक नयी समझ दे सकता है l ऐसा करके हम हमेशा परिवर्तनशील भावनाओं के मध्य एक अति गहरा भरोसा प्राप्त कर सकते हैं l
परमेश्वर द्वारा आच्छादित
बचपन में मेरे बच्चे, हमारे गीले इंग्लिश बगीचे में खेलकर जल्द ही गंदे हो जाते थे l उनकी और मेरे फर्श की भलाई के लिए मैं उनके कपड़े बाहर उतरवाकर उनको तौलिये में लपेटकर नहाने ले जाती थी l वे साबुन, जल, और दुलार से जल्द साफ़ हो जाते थे l
जकर्याह को प्राप्त एक दर्शन में, हम एक महायाजक, यहोशु को मैले वस्त्र पहने हुए देखते हैं, जो पाप और दुराचार का प्रतीक है (जकर्याह 3:3) l किन्तु परमेश्वर उसके मैले कपड़े उतारकर उसे साफ़ कर उसे सुन्दर वस्त्र पहनाता है (3:5) l शुद्ध पगड़ी और वस्त्र प्रगट करते हैं कि प्रभु ने उसके पाप उससे दूर किये हैं l
यीशु के उद्धारक कार्य द्वारा परमेश्वर की शिफा से हम अपने दुराचार से स्वतंत्र होते हैं l उसके क्रूसित मृत्यु के परिणामस्वरूप, हमें परमेश्वर के संतानों का वस्त्र मिलता है l अब हम अपने बुरे कार्यों (चाहे झूठ, बकवाद, लालच, अथवा कुछ और) द्वारा परिभाषित नहीं होते हैं, किन्तु परमेश्वर अपने प्रेम करनेवालों को पुनरस्थापित, नया किया हुआ, स्वच्छ, स्वतंत्र, नाम देता है, जीनका हम दावा कर सकते हैं l
परमेश्वर से वे सारे गंदे कपड़े हटाने को कहें जो आपने पहन रखें हैं ताकि आप उसके द्वारा आपके लिए तैयार वस्त्र धारण कर सकें l
सलाहकार
मैं हवाई जहाज़ से घर से हजारों मील दूर एक शहर में अध्ययन करने हेतु जाते समय घबराई हुई और अकेली महसूस कर रही थी l किन्तु हवाई जहाज़ में मुझे यीशु के अपने शिष्यों को दी गई पवित्र आत्मा की शांतिदायक उपस्थिति की प्रतिज्ञा याद आई l
“मेरा जाना तुम्हारे लिए अच्छा है” (यूहन्ना 16:7), यीशु के मित्र उसके इस कथन से चकित हुए होंगे l किस तरह वे उसके आश्चर्यकर्मों की साक्षी और उसकी शिक्षा से सीखकर उसके बिना अच्छे रहेंगे? किन्तु यीशु ने उनसे कहा कि उसका उनसे अलग होने के बाद, सहायक-पवित्र आत्मा-आएगा l
यीशु संसार से अपने प्रस्थान के अंतिम घंटों से पूर्व अपने शिष्यों को अपनी मृत्यु और स्वर्गारोहण समझने में सहायता की (यूहन्ना 14-17 में), जिसे आज “अंतिम संवाद” कहा जाता है l इस संवाद का केंद्र उनके साथ रहनेवाला, पवित्र आत्मा था (14:16-17), एक सहायक जो उनके साथ रहकर (14:16-17), उनको सिखाएगा (15:15), गवाही देगा (पद.26), और उनका मार्गदर्शन करेगा (16:13) l
हम जिन्होंने परमेश्वर के नए जीवन की पेशकश को स्वीकारा है, में उसका आत्मा निवास करता है l उससे हम बहुत पाते हैं : वह हमें पाप के प्रति निरुत्तर करके हमें पश्चाताप तक पहुंचता है l वह हमारे दुःख में सान्त्वना, कठिनाई सहने में सामर्थ, परमेश्वर की बातें समझने में बुद्धिमत्ता, भरोसा करने में आशा और विश्वास, और बांटने में प्रेम देता है l
यीशु के साथ घर में
“घर से अच्छी जगह कोई नहीं l” यह वाक्यांश एक विश्राम स्थान, उसमें रहने, और अपने घर के लिए हमारे अन्दर की गहरी चाह दर्शाता है l यीशु ने अपने शिष्यों के साथ अंतिम भोज खाने के बाद, अपनी भावी मृत्यु और पुनरुत्थान के विषय बोलते समय, इस बुनियादी ज़रूरत की इच्छा को संबोधित किया l उसकी प्रतिज्ञा थी कि यद्यपि वह चला जाएगा, वह फिर उनके लिए आएगा l और वह उनके लिए जगह तैयार करेगा l एक निवास स्थान l एक घर l
उसने यह स्थान परमेश्वर की व्यवस्था की अनिवार्यता को पूरा करते हुए निर्दोष मनुष्य होकर क्रूस पर अपनी जान देकर उनके और हमारे लिए तैयार किया l उसने शिष्यों को आश्वस्त किया कि यदि वह इस घर को बनाने हेतु कष्ट उठाता है, तो वह अवश्य ही उनके लिए लौटेगा और उनको अकेला नहीं छोड़ेगा l उन्हें अपने जीवन के विषय डरने और चिंता करने की ज़रूरत नहीं, चाहे पृथ्वी पर अथवा स्वर्ग में l
हमारा विश्वास है कि यीशु हमारे लिए घर बना रहा है; कि वह हमारे अन्दर अपना घर बनाता है (देखें यूहन्ना 14:23), और वह हमसे पहले हमारा स्वर्गिक घर बनाने गया है, हम उसके शब्दों से शांति और निश्चयता पाते हैं l हम किसी तरह के भौतिक घर में रहते हों, हम यीशु के हैं, उसका प्रेम हमें थामें है और हम उसकी शांति से घिरे हैं l उसके साथ, घर से अच्छी जगह कोई नहीं l
प्रेम की कीमत
हमारे अपने माता-पिता को अलविदा कहते समय मेरी बेटी रोने लगी l नाना-नानी इंग्लैंड में हमलोगों से मिलकर अपने घर अमरीका जानेवाले थे l मैं नहीं चाहती वे जाएँ,” उसने कहा l मेरे उसको शांत करने पर, मेरे पति ने कहा, “मुझे डर है कि यही प्रेम की कीमत है l”
हम अपने प्रेमियों से अलगाव का दर्द महसूस कर सकते हैं, किन्तु क्रूस पर प्रेम की कीमत चुकाते समय यीशु ने चरम अलगाव महसूस किया l जो मानव और परमेश्वर दोनों ही था, यशायाह द्वारा 700 वर्ष पूर्व दी गई नबूवत को पूरा किया जब “उसने अपना प्राण मृत्यु के लिए उंडेल दिया” (यशायाह 53:12) l इस अध्याय में हम यीशु को दुखी पुरुष दर्शाने वाले सुस्पष्ट संकेतक पाते हैं, जैसे जब वह “हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया” (पद.5), जो क्रूस पर उसके साथ हुआ और जब सिपाहियों ने उसके पंजर में भाला भोंका (यूहन्ना 19:34), और कि “उसके कोड़े खाने से हम लोग चंगे हो गए” (यशा.53:5) l
प्रेम के कारण, यीशु संसार में आया और बालक के रूप में जन्म लिया l प्रेम के कारण, उसने व्यवस्था के शिक्षक, भीड़, और सिपाहियों का दुर्व्यवहार सहा l प्रेम के कारण उसने दुःख उठाया और सिद्ध बलिदान के रूप में मरकर, पिता के समक्ष हमारे स्थान पर खड़ा हुआ l हम प्रेम के कारण जीते हैं l