परमेश्वर द्वारा आच्छादित
बचपन में मेरे बच्चे, हमारे गीले इंग्लिश बगीचे में खेलकर जल्द ही गंदे हो जाते थे l उनकी और मेरे फर्श की भलाई के लिए मैं उनके कपड़े बाहर उतरवाकर उनको तौलिये में लपेटकर नहाने ले जाती थी l वे साबुन, जल, और दुलार से जल्द साफ़ हो जाते थे l
जकर्याह को प्राप्त एक दर्शन में, हम एक महायाजक, यहोशु को मैले वस्त्र पहने हुए देखते हैं, जो पाप और दुराचार का प्रतीक है (जकर्याह 3:3) l किन्तु परमेश्वर उसके मैले कपड़े उतारकर उसे साफ़ कर उसे सुन्दर वस्त्र पहनाता है (3:5) l शुद्ध पगड़ी और वस्त्र प्रगट करते हैं कि प्रभु ने उसके पाप उससे दूर किये हैं l
यीशु के उद्धारक कार्य द्वारा परमेश्वर की शिफा से हम अपने दुराचार से स्वतंत्र होते हैं l उसके क्रूसित मृत्यु के परिणामस्वरूप, हमें परमेश्वर के संतानों का वस्त्र मिलता है l अब हम अपने बुरे कार्यों (चाहे झूठ, बकवाद, लालच, अथवा कुछ और) द्वारा परिभाषित नहीं होते हैं, किन्तु परमेश्वर अपने प्रेम करनेवालों को पुनरस्थापित, नया किया हुआ, स्वच्छ, स्वतंत्र, नाम देता है, जीनका हम दावा कर सकते हैं l
परमेश्वर से वे सारे गंदे कपड़े हटाने को कहें जो आपने पहन रखें हैं ताकि आप उसके द्वारा आपके लिए तैयार वस्त्र धारण कर सकें l
सलाहकार
मैं हवाई जहाज़ से घर से हजारों मील दूर एक शहर में अध्ययन करने हेतु जाते समय घबराई हुई और अकेली महसूस कर रही थी l किन्तु हवाई जहाज़ में मुझे यीशु के अपने शिष्यों को दी गई पवित्र आत्मा की शांतिदायक उपस्थिति की प्रतिज्ञा याद आई l
“मेरा जाना तुम्हारे लिए अच्छा है” (यूहन्ना 16:7), यीशु के मित्र उसके इस कथन से चकित हुए होंगे l किस तरह वे उसके आश्चर्यकर्मों की साक्षी और उसकी शिक्षा से सीखकर उसके बिना अच्छे रहेंगे? किन्तु यीशु ने उनसे कहा कि उसका उनसे अलग होने के बाद, सहायक-पवित्र आत्मा-आएगा l
यीशु संसार से अपने प्रस्थान के अंतिम घंटों से पूर्व अपने शिष्यों को अपनी मृत्यु और स्वर्गारोहण समझने में सहायता की (यूहन्ना 14-17 में), जिसे आज “अंतिम संवाद” कहा जाता है l इस संवाद का केंद्र उनके साथ रहनेवाला, पवित्र आत्मा था (14:16-17), एक सहायक जो उनके साथ रहकर (14:16-17), उनको सिखाएगा (15:15), गवाही देगा (पद.26), और उनका मार्गदर्शन करेगा (16:13) l
हम जिन्होंने परमेश्वर के नए जीवन की पेशकश को स्वीकारा है, में उसका आत्मा निवास करता है l उससे हम बहुत पाते हैं : वह हमें पाप के प्रति निरुत्तर करके हमें पश्चाताप तक पहुंचता है l वह हमारे दुःख में सान्त्वना, कठिनाई सहने में सामर्थ, परमेश्वर की बातें समझने में बुद्धिमत्ता, भरोसा करने में आशा और विश्वास, और बांटने में प्रेम देता है l
यीशु के साथ घर में
“घर से अच्छी जगह कोई नहीं l” यह वाक्यांश एक विश्राम स्थान, उसमें रहने, और अपने घर के लिए हमारे अन्दर की गहरी चाह दर्शाता है l यीशु ने अपने शिष्यों के साथ अंतिम भोज खाने के बाद, अपनी भावी मृत्यु और पुनरुत्थान के विषय बोलते समय, इस बुनियादी ज़रूरत की इच्छा को संबोधित किया l उसकी प्रतिज्ञा थी कि यद्यपि वह चला जाएगा, वह फिर उनके लिए आएगा l और वह उनके लिए जगह तैयार करेगा l एक निवास स्थान l एक घर l
उसने यह स्थान परमेश्वर की व्यवस्था की अनिवार्यता को पूरा करते हुए निर्दोष मनुष्य होकर क्रूस पर अपनी जान देकर उनके और हमारे लिए तैयार किया l उसने शिष्यों को आश्वस्त किया कि यदि वह इस घर को बनाने हेतु कष्ट उठाता है, तो वह अवश्य ही उनके लिए लौटेगा और उनको अकेला नहीं छोड़ेगा l उन्हें अपने जीवन के विषय डरने और चिंता करने की ज़रूरत नहीं, चाहे पृथ्वी पर अथवा स्वर्ग में l
हमारा विश्वास है कि यीशु हमारे लिए घर बना रहा है; कि वह हमारे अन्दर अपना घर बनाता है (देखें यूहन्ना 14:23), और वह हमसे पहले हमारा स्वर्गिक घर बनाने गया है, हम उसके शब्दों से शांति और निश्चयता पाते हैं l हम किसी तरह के भौतिक घर में रहते हों, हम यीशु के हैं, उसका प्रेम हमें थामें है और हम उसकी शांति से घिरे हैं l उसके साथ, घर से अच्छी जगह कोई नहीं l
प्रेम की कीमत
हमारे अपने माता-पिता को अलविदा कहते समय मेरी बेटी रोने लगी l नाना-नानी इंग्लैंड में हमलोगों से मिलकर अपने घर अमरीका जानेवाले थे l मैं नहीं चाहती वे जाएँ,” उसने कहा l मेरे उसको शांत करने पर, मेरे पति ने कहा, “मुझे डर है कि यही प्रेम की कीमत है l”
हम अपने प्रेमियों से अलगाव का दर्द महसूस कर सकते हैं, किन्तु क्रूस पर प्रेम की कीमत चुकाते समय यीशु ने चरम अलगाव महसूस किया l जो मानव और परमेश्वर दोनों ही था, यशायाह द्वारा 700 वर्ष पूर्व दी गई नबूवत को पूरा किया जब “उसने अपना प्राण मृत्यु के लिए उंडेल दिया” (यशायाह 53:12) l इस अध्याय में हम यीशु को दुखी पुरुष दर्शाने वाले सुस्पष्ट संकेतक पाते हैं, जैसे जब वह “हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया” (पद.5), जो क्रूस पर उसके साथ हुआ और जब सिपाहियों ने उसके पंजर में भाला भोंका (यूहन्ना 19:34), और कि “उसके कोड़े खाने से हम लोग चंगे हो गए” (यशा.53:5) l
प्रेम के कारण, यीशु संसार में आया और बालक के रूप में जन्म लिया l प्रेम के कारण, उसने व्यवस्था के शिक्षक, भीड़, और सिपाहियों का दुर्व्यवहार सहा l प्रेम के कारण उसने दुःख उठाया और सिद्ध बलिदान के रूप में मरकर, पिता के समक्ष हमारे स्थान पर खड़ा हुआ l हम प्रेम के कारण जीते हैं l
क्यों क्षमा की जाएँ?
एक सहेली के मुझे धोखा देने के बाद, मुझे मालूम था कि मुझे उसे क्षमा करना है, किन्तु मैं आश्वस्त नहीं थी कि मैं कर पाऊँगी l उसके शब्द मुझको चुभ गए थे, और मैं दर्द और क्रोध से भरी हुयी थी l यद्यपि हमनें इसके विषय बातें कीं और मैंने उससे कहा कि मैं क्षमा कर चुकी हूँ, बहुत समय तक उसे देखने पर मैंने चोट का दर्द महसूस किया, इसलिए मैं जानती थी कि मेरे अन्दर कुछ नाराज़गी थी l एक दिन, हालाँकि, परमेश्वर ने मेरी प्रार्थना सुन ली और मुझे उसे छोड़ने की ताकत दी l आखिरकार मैं स्वतंत्र थी l
हमारे उद्धारकर्ता के साथ जो क्रूस पर मरते वक्त भी क्षमा दिया, क्षमा मसीही विश्वास का केंद्र है l यीशु ने उनको क्षमा किया जिन्होंने उसे क्रूसित किया, और पिता से उन्हें क्षमा करने को कहा l उसके अन्दर कड़वाहट अथवा क्रोध नहीं था, किन्तु उसने उसे दुःख पहुँचानेवालों पर अनुग्रह दिखाया और उनसे प्रेम किया l
यीशु के आदर्श का अनुसरण करते हुए अपने प्रभु के समक्ष किसी को भी जिन्होंने आपको चोट पहुँचाया है, क्षमा करने और उसका प्रेम दिखाने का यह ठीक समय है l जब हम परमेश्वर से उसकी आत्मा द्वारा क्षमा करने की मदद मांगेंगे, वह हमारी सहायता करेगा-चाहे हम क्षमा करने में अधिक समय लगाने की सोचते हैं l हमारे ऐसा करने पर, हम नहीं क्षमा करने के कैद से छूट जाएंगे l
जीवन और मृत्यु
मैं अपनी सहेली के भाई की मृत्यु के समय उसके खाट के निकट बैठना नहीं भूल सकती; साधारण से असाधारण की मुलाकात का दृश्य l हम तीनों बैठे थे जब हमने रिचर्ड को कठिनाई से श्वास लेते देखा l हम उसके चारों ओर खड़े होकर, देखते और इंतज़ार करते हुए प्रार्थना करते रहे l जब उसने अंतिम श्वास ली, पवित्र क्षण सा महसूस हुआ; एक चालीस वर्ष के एक अद्भुत व्यक्ति की मृत्यु के समय परमेश्वर की उपस्थिति ने हमें हमारे दुःख में घेर लिया l
हमारे विश्वास के अनेक नायकों ने अपनी मृत्यु के समय परमेश्वर की विश्वासयोग्यता का अनुभव किया l जैसे, याकूब ने कहा कि वह जल्द ही “अपने लोगों के साथ मिलने पर” है (उत्प. 49:29-33) l याकूब का पुत्र युसूफ भी अपने भाइयों को अपनी निकट मृत्यु बताया : “मैं तो मरने पर हूँ,” और उनसे अपने विश्वास में दृढ़ रहने को कहा l उसने शांति का अनुभय किया, फिर भी अपने भाइयों से प्रभु पर भरोसा रखने को कहा (50:24) l
हममें से कोई भी अपनी मृत्यु का समय अथवा कारण नहीं जानते हैं, किन्तु उसके हमारे साथ रहने के लिए मदद और भरोसा रखें l हम यीशु की प्रतिज्ञा पर विश्वास करें कि वह पिता के घर में हमारे लिए रहने का एक स्थान तैयार करेगा (यूहन्ना 14:2-3) l
तरोराजा बसंती वर्षा
अवकाश चाहिए, मैं निकट के पार्क में टहलने गयी l आगे बढ़ने पर ढेर सारी हरियाली ने मुझे आकर्षित किया l मिट्टी से जीवन की कोपलें निकलीं जो कुछ ही सप्ताहों में सुन्दर डैफोडिल फूल बनकर बसंत और गर्माहट की घोषणा कर रहीं थीं l सर्दी का एक और मौसम बीत चुका था l
होशे की पुस्तक पढ़ते समय, कहीं-कहीं कठोर सर्दी दिखाई देती है l इस्राएली लोगों के प्रति सृष्टिकर्ता के प्रेम को दर्शाने के लिए प्रभु ने नबी को एक विश्वासघाती स्त्री से विवाह करने का अपरिहार्य कार्य दिया (1:2-3) l होशे की पत्नी, गोमेर, के विवाह प्रतिज्ञा तोड़ने के बाद भी होशे ने उसे यह चाहते हुए वापस बुलाया कि वह उससे समर्पित प्रेम करेगी (3:1-3) l इसी तरह परमेश्वर की इच्छा है कि हम शक्ति और समर्पण के साथ उससे प्रेम करें जो सुबह की ओस की तरह गायब न हो जाए l
हम परमेश्वर के साथ कैसा सम्बन्ध रखते हैं? क्या हम उसे केवल संकट में खोजते हैं, दुःख में उत्तर चाहते हैं किन्तु हमारे आनंद के समय उसकी अवहेलना करते हैं? किन्तु हम इस्राएलियों की तरह हैं, अपने समय के मूर्तियों के प्रभाव में चले जाते हैं, जिसमें व्यस्ततता, सफलता, और प्रभाव शामिल है?
आज, पुनः हम स्वयं को प्रभु को समर्पित करें, जो बंसंत के खिलने वाली कलियों की तरह प्रेम करता है l
स्वागत का उपहार
जो भोज हमनें पाँच देशों के परिवारों के लिए आयोजित किया था एक अद्भुत यादगार है l पता नहीं क्यों बातचीत दो भागों में नहीं बँटा, किन्तु हम सब ने लन्दन के जीवन पर एक चर्चा में विश्व के विभिन्न भागों के दृष्टिकोण प्रस्तुत किये l शाम के अंत में, हम दोनों पति-पत्नी ने विचारा कि हमने देने से अधिक पाया, जिसमें नए मित्र बनाने और भिन्न संस्कृतियों से सीखने के वे स्नेही अहसास शामिल थे l
इब्रानियों के लेखक ने सामाजिक जीवन के लिए कुछ प्रोत्साहन में अपने पाठकों से आतिथ्य जारी रखने को कहा l ऐसा करने से, “कुछ लोगों ने अनजाने में स्वर्गदूतों का आदर-सत्कार किया है” (13:2) l संभवतः वह अब्राहम और सारा का सन्दर्भ दे रहा होगा, जिन्हें हम उत्पति 18:1-12 में अपरिचितों का स्वागत करते हुए, उनके लिए उदारता से भोज खिलाते देखते हैं, जैसे कि बाइबिल के दिनों में प्रथा थी l उन्हें पता नहीं था कि वे स्वर्गदूतों का खातिर कर रहे थे, जो उनके लिए आशीष का सन्देश लेकर आए थे l
हम लोगों से कुछ पाने के लिए उनको अपने घर आमंत्रित नहीं करते हैं, किन्तु देने से अधिक पाते हैं l उसके नाम से दूसरों का स्वागत करते समय परमेश्वर हमारे द्वारा अपना प्रेम फैलाए l
ज्योतिस्तंभ
रुवान्डा में सेवा केंद्र “लाइट हाउस” अपने अस्तित्व से ही छुटकारा को दर्शाता है l यह उस भूमि पर स्थित है जहाँ 1994 में हुए जातिसंहार के दौरान देश के राष्ट्रपति का भव्य मकान था l नया भवन, हालाँकि, मसीहियों ने ज्योति और आशा के ज्योतिस्तंभ के रूप में बनाया है l वहां नयी पीढ़ी के मसीही अगुए तैयार करने के लिए एक बाइबिल संस्थान के साथ एक होटल, रेस्टोरेंट, और समाज के लिए अन्य सेवाएँ उपलब्ध हैं l राख में से नया जीवन आया l “लाइट हाउस” को बनानेवाले यीशु को अपनी आशा और छुटकारे का श्रोत मानते हैं l
यीशु जब सब्त के दिन नासरत के आराधनालय में गया, उसने यशायाह की पुस्तक पढ़कर घोषणा की कि प्रभु की प्रसन्नता की घोषणा करने वाला अभिषिक्त वही है (देखें लूका 4:14-21) l वह ही कुचलों को छुड़ाने और छुटकारा और क्षमा देने आया l यीशु में हम राख से सुन्दरता निकलते देखते हैं (यशा. 61:3) l
हम रुवान्डा के जातिसंहार की क्रूरता देखते हैं, जब जनजातियों के बीच लड़ाई में पाँच लाख से अधिक लोग मारे गए, भयानक और खौफनाक, और हम इसके विषय कुछ नहीं कह सकते l फिर भी हमें ज्ञात है कि प्रभु क्रूरता से छुटकारा दे सकता है-इस पृथ्वी पर या स्वर्ग में l विलाप के बदले हर्ष का तेल देनेवाला हमें अंधकारमय स्थितियों के मध्य आशा देता है l