हमारा मार्गदर्शक प्रकाश
एक संग्रहालय में, मैं प्राचीन दीपों/चिरागों के प्रदर्शनी के निकट ठहर गया l एक संकेत ने दर्शाया कि वे इस्राएल के हैं l नक्काशीदार डिजाइनों से सजे, इन अंडाकार आकर के मिटटी के बर्तनों में दो छिद्र थे – एक ईंधन के लिए, और एक बाती के लिए l हालाँकि इस्राएली आमतौर पर उन्हें दीवार के आलों(alcove) में इस्तेमाल करते थे, लेकिन काफी छोटा होने के कारण वह किसी व्यक्ति के हाथ की हथेली में फिट हो जाता था l
शायद इस तरह के छोटे प्रकाश ने राजा दाऊद को एक प्रशंसा गीत लिखने के लिए प्रेरित किया जिसमें उसने कहा, “हे यहोवा, तू ही मेरा दीपक है, और यहोवा मेरे अंधियारे को दूर करके उजियाला कर देता है” (2 शमूएल 22:29) l दाऊद ने इन शब्दों को परमेश्वर द्वारा युद्ध में विजय देने के बाद गाया l अपने ही देश के अन्दर और बाहर दोनों के प्रतिरोधियों ने छिपकर उसे मारने का इरादा किया था l परमेश्वर के साथ अपने सम्बन्ध के कारण, दाऊद अँधेरे में दुबका नहीं l वह उस भरोसे के साथ शत्रु के साथ मुकाबले में आगे बढ़ा जो परमेश्वर की उपस्थिति से आता है l परमेश्वर की सहायता के साथ, वह उन चीजों को स्पष्ट रूप से देख सकता था ताकि वह अपने लिए, अपने सैनिकों के लिए और अपने राष्ट्र के लिए अच्छे निर्णय ले सके l
दाऊद ने अपने गीत में जिस अन्धकार का वर्णन किया है, उसमें दुर्बलता, पराजय और मृत्यु का डर था l हममें से बहुत से लोग उसी प्रकार की चिंताओं के साथ जीते हैं, जो घबराहट और तनाव पैदा करते हैं l जब अँधेरा हम पर दबाव डालता है, हम शांति पाते हैं कि परमेश्वर हमारे साथ भी है l जब तक हम यीशु से आमने सामने नहीं मिलेंगे, तब तक पवित्र आत्मा की दिव्य ज्योंति हमारे मार्ग को रोशन करने के लिए हमारे अंदर रहती है l
खतरनाक सामग्री
साईरन की आवाज़ बढ़कर कानों को चुभने वाली आवाज़ तक बढ़ गयी जब एक आपातकालीन वाहन गति से मेरे कार के निकट से निकली l उसकी चमकती रोशनी ने मेरे कार की विंडशील्ड(कार का हवारोधी शीशा) से होकर चमकते हुए, ट्रक के किनारे पर छपे हुए “खतरनाक सामग्री” शब्दों को प्रकाशित कर दी l बाद में मुझे पता चला कि यह किसी विज्ञान प्रयोगशाला की ओर गति से जा रहा था जहाँ 400 गैलन सल्फ्यूरिक एसिड का कंटेनर(container) रिसना शुरू हो गया था l आपातकालीन श्रमिकों को इसे तुरंत रोकना था क्योंकि यह अपने संपर्क में आनेवाले किसी भी चीज को क्षति पहुँचा सकता था l
जैसे ही मैंने इस समाचार पर विचार किया, मैंने सोचा कि मेरे मुँह से कठोर या आलोचनात्मक शब्द “रिसने” पर यदि हर समय साईरन की तेज़ आवाज़ सुनाई देती है तो क्या हो सकता है? दुर्भाग्यवश, यह हमारे घर के चारों ओर कोलाहलपूर्ण हो सकता था l
नबी यशायाह ने अपने पाप के विषय जागरूकता की इस भावना को साझा किया l जब उसने एक दर्शन में परमेश्वर की महिमा देखी, वह अपनी अयोग्यता से अभिभूत हो गया l उसने पहचान लिया कि वह “अशुद्ध होंठवाला मनुष्य” था और उसी समस्या को साझा करने वाले लोगों के साथ रहता था (यशायाह 6:5) l उसके आगे जो हुआ मुझे आशा देती है l एक स्वर्गदूत ने एक अंगारे से उसके होंठों को छूकर समझाया, “तेरा अधर्म दूर हो गया और तेरे पाप क्षमा हो गए” (पद.7) l
हम पल पल अपने शब्दों के विषय निर्णय कर सकते हैं – लिखित या उच्चारित दोनों l क्या वो “खतरनाक” सामग्री होगी, या हम परमेश्वर की महिमा को हमें दोषी ठहराने देंगे और उसके अनुग्रह को हमें चंगा करने देंगे ताकि हम जो भी व्यक्त करते हैं उसके द्वारा उसकी महिमा हो?
एक बंधन में बंधे हुए
एक सहेली ने मुझे एक घर के अन्दर लगानेवाला एक पौधा दी जो चालीस वर्षों से अधिक समय से उसके पास था l वह पौधा मेरी ऊंचाई का था, और उसके अलग-अलग कमजोर तनों से बड़े पत्ते निकलते थे l समय के साथ, पत्तों के वजन ने पौधे के तीनों तनों को भूमि की ओर नीचे झुका दिए थे l उसके तनों को सीधा करने के लिए, मैंने उस गमले के नीचे से खूंटा से सहारा देकर पौधे को खिड़की के निकट रख दिया ताकि सूर्य के किरणों से उसके पत्ते सीधे हो जाएँ और पौधे की ख़राब स्थिति ठीक हो जाए l
उस पौधे को प्राप्त करने के शीघ्र बाद, मैंने एक स्थानीय व्यवसायिक केंद्र के प्रतीक्षालय में उसी प्रकार का एक पौधा देखा l वह भी तीन पतले तनों से उगा था, परन्तु उनको मजबूती देने के लिए उन्हें एक साथ बाँध कर, उनके भीतरी भाग को और अधिक मजबूत कर दिया गया था l यह पौधा बिना किसी सहायता के सीधा खड़ा था l
कोई भी दो व्यक्ति एक ही “गमले” में वर्षों तक रह सकते हैं, फिर भी अलग अलग बढ़ सकते हैं और परमेश्वर की आशीषों में से कुछ ही का आनंद प्राप्त कर सकते हैं l जब परमेश्वर के साथ उनके जीवन मिल जाते हैं, हालाँकि, अब स्थायित्व और निकटता का बहुत बड़ा भाव है l सम्बन्ध और अधिक मजबूत हो जाएगा l “जो डोरी तीन धागों से बटी हो वह जल्दी नहीं टूटती” (सभोपदेशक 4:12) l
घरेलु पौधे की तरह, विवाह और मित्रता को पोषण की ज़रूरत होती है l इन संबंधों की देखभाल में आत्मिक रूप से एक होना ज़रूरी है ताकि हर एक विशेष बंधन के मध्य में परमेश्वर उपस्थित है l वह प्रेम और अनुग्रह का अनंत श्रोत है – चीजें जिनकी हमें परस्पर जुड़कर आनंदित रहने के लिए सबसे अधिक ज़रूरत है l
परमेश्वर की दृष्टि में योग्य
एक तकनीक-परामर्शी कंपनी ने मुझे कॉलेज के बाद नौकरी पर लगा ली यद्यपि मैं कंप्यूटर कोड की एक पंक्ति भी नहीं लिख पाती थी और मेरे पास व्यवसाय सम्बंधित बहुत कम ज्ञान था l मेरे साक्षात्कार के दौरान, मेरे प्रवेश-स्तर ओहदे के लिए, मुझे पता चला कि वह कंपनी कार्य अनुभव को उच्च महत्त्व नहीं देती थी l इसके बदले, व्यक्तिगत गुण जैसे रचनात्मक तौर से समस्याएँ हल करने की योग्यता, सही न्याय करना, और टीम के साथ अच्छे से काम करना अधिक महत्वपूर्ण बातें थीं l कंपनी का अनुमान था कि नए कर्मचारियों को अनिवार्य कौशल सिखाया जा सकता था अगर वे उस प्रकार के लोग थे जैसा कंपनी ढूंढ रही थी l
नूह के पास जहाज़ बनाने के काम के लिए सही बायोडाटा नहीं था – वह नाव बनाने वाला नहीं था या एक बढ़ई भी नहीं l नूह एक किसान था, वह व्यक्ति जो वस्त्र पर मिट्टी और हाथ में हल से सुखद महसूस करता था l फिर भी जब परमेश्वर ने उस समय संसार में बुराई को समाप्त करने के तरीके का निर्णय किया, नूह अव्वल दिखाई दिया क्योंकि वह “परमेश्वर ही के साथ साथ चलता [था]” उत्पत्ति 6:9) l परमेश्वर ने नूह के सीखने वाले हृदय को महत्त्व दिया – अपने चारों ओर के नैतिक पतन का सामना करने और उचित करने की सामर्थ्य l
जब हमारे समक्ष परमेश्वर की सेवा करने के अवसर हों, हम खुद को उस कार्य के योग्य महसूस नहीं करेंगे l धन्यवाद हो, ज़रूरी नहीं कि परमेश्वर हमारे कौशल भाव के विषय चिंतित है l वह हमारे चरित्र को, उसके लिए प्रेम को, और उसपर भरोसा करने को महत्त्व देता है l जब पवित्र आत्मा द्वारा हमारे अन्दर इन योग्यताओं का विकास होता है, वह इस पृथ्वी पर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए हमें बड़े या छोटे रूप में उपयोग कर सकता है l
अविनाशी प्रेम
जब हमनें अपने पीछे के आँगन में पानी की धारा देखी, वह गर्मियों की दिनों में चट्टानों के अन्दर से केवल एक पतली रिसाव थी l लकड़ी के भारी तख्तों के सहारे हम सरलता से आना-जाना कर लेते थे l महीनों बाद, हमारे क्षेत्र में अनेक दिनों तक मूसलाधार बारिश हुयी l हमारी छोटी सी नियंत्रित जलधारा चार फीट गहरी और दस फीट चौड़ी तेज़ बहनेवाली बड़ी नदी बन गई! प्रबल जल प्रवाह ने तख्तों को बहाकर अनेक फीट दूर टिका दिया l
तेज़ जलधारा अपने मार्ग में आनेवाली लगभग सभी वस्तुओं पर प्रबल हो जाती है l फिर भी कुछ है जो बाढ़ अथवा अन्य ताकतों के सामने अविनाशी है जो उसे नष्ट करना चाहती है – प्रेम l “पानी की बाढ़ से भी प्रेम नहीं बुझ सकता , और न महानदों से डूब सकता है” (श्रेष्ठगीत 8:7) l आमतौर पर रोमांटिक संबंधों में प्रेम की दृढ़ शक्ति और तीव्रता उपस्थित होती है, परन्तु केवल उसी प्रेम में पूरी तौर से अभिव्यक्त है जो परमेश्वर अपने पुत्र, यीशु मसीह में आपने लोगों के लिए रखता है l
जब वे बातें मिट जाती हैं जिन्हें हम मजबूत और भरोसेमंद मानते हैं, हमारी निराशाएं हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम की एक नयी समझ का द्वार खोल देती हैं l उसका प्यार इस पृथ्वी पर की किसी भी बात से ऊंचा और गहरा और ताकतवर और टिकाऊ है l हम जिसका भी सामना करते हैं, हम उसके साथ करते हैं जो हमारे निकट है – हमें थामें हुए है, मिलकर सहायता करता है, और याद दिलाता है कि हमें प्रेम किया जाता है l
सेवाकालीन प्रशिक्षण
ब्राज़ील की एक कंपनी की एक प्रबंधक ने अपने ऑफिस के अभिरक्षकों से एक लिखित रिपोर्ट मांगी l प्रतिदिन वह जानना चाहती थी प्रत्येक कमरे को किसने साफ़ किया, कौन से कमरे छूट गए, और कर्मचारियों ने प्रत्येक कमरे में कितना समय लगाया l पहला “दैनिक रिपोर्ट” एक सप्ताह बाद आया, जो अधूरा था l
जब प्रबंधक ने इस पर ध्यान दिया, उन्होंने पाया कि अधिकतर कर्मचारी असाक्षर थे l वह उनको कार्य मुक्त कर सकती थी, परन्तु उन्होंने उनके लिए साक्षरता कक्षाएं आरंभ करवायीं l पांच महीनों के भीतर, सभी लोग बुनियादी स्तर पर पढ़ना सीख गए थे और उन्होंने अपना काम जारी रखा l
परमेश्वर अक्सर हमारे संघर्षों को उसके लिए काम करते रहने के लिए अवसर के रूप में उपयोग करता है l पतरस का जीवन अनुभवहीनता और गलतियों से चिन्हित था l पानी पर चलने की कोशिश करते समय उसका विश्वास डगमगा गया l यीशु को मंदिर का कर देना चाहिए या नहीं वह इसके विषय अनिश्चित था (मत्ती 17:24-27) l उसने क्रूसीकरण और पुनरुत्थान सम्बंधित मसीह की भविष्यवाणी का भी इनकार किया (16:21-23) l हर एक मामले के द्वारा यीशु ने पतरस को अपने विषय सिखाया वह कौन था – प्रतिज्ञात मसीह (पद.16) l पतरस ने सुना और सीखा जो उसे आरंभिक कलीसिया की स्थापना में जानना ज़रूरी था (पद.18) l
यदि आज आप किसी पराजय से हतोत्साहित हैं, तो याद रखें कि यीशु उसका उपयोग आपको सिखाने और अपनी सेवा में आगे ले जाने के लिए कर सकता है l वह पतरस की कमज़ोरियों के बावजूद उसके साथ कार्य करता रहा, और वह हमें भी अपने द्वितीय आगमन तक अपने राज्य को बनाने में लगातार उपयोग करता रहेगा l
जब शार्क काटते नहीं
मेरे बच्चे उत्साहित थे, परन्तु मैं असहज थी l छुट्टियों में, हम एक्वेरियम(मछलीघर) धूमने गए जहां लोग एक विशेष टैंक में रखे छोटे शार्कों को दुलार सकते थे l जब मैंने अटेंडेंट(सहायक) से पूछा कि क्या कभी इन प्राणियों ने ऊंगलियों को काता है, उसने कहा कि शार्कों को अभी खिलाया गया है और उसके बाद अतिरिक्त भोजन दिया गया है l वे काटेंगे नहीं क्योंकि वे भूखे नहीं हैं l
जो मैंने शार्कों को दुलारने के विषय सीखा नीतिवचन के अनुसार अर्थपूर्ण है : “संतुष्ट होने पर मधु का छत्ता भी फीका लगता है परन्तु भूखे को सब कड़वी वस्तुएं भी मीठी जान पड़ती हैं” (नीतिवचन 27:7) l भूख – आन्तरिक खालीपन का भाव – हमारे निर्णय करने के समय निर्णय करने की शक्ति को कमजोर करता है l यह हमें भरोसा देता है कि कुछ भी जो हमें भरता है ठीक है, चाहे यह हमें किसी दूसरे को काट खाने को ही विवश क्यों न करे l
परमेश्वर हमें हमारी भूख/इच्छा के रहम पर जीवन जीने से कहीं अधिक हमारे लिए चाहता है l वह चाहता है हम मसीह के प्रेम से भर जाएँ ताकि जो भी हम करें वह उसके प्रबंध की शांति और स्थिरता से प्रवाहित हो l निरंतर अभिज्ञता कि हमसे शर्तहीन प्रेम किया गया है हमें भरोसा देता है l यह हमें चयनात्मक बनाता है जब हम जीवन में “मीठी/अच्छी” वस्तुओं – उपलब्धियां, सम्पति, और सम्बन्ध - के विषय विचार करते हैं l
केवल यीशु के साथ सम्बन्ध ही सच्ची संतुष्टि देती है l काश हम अपने लिए उसके अद्वितीय प्रेम को समझ लें ताकि हम अपने लिए – और दूसरों के लिए “परमेश्वर की सारी भरपूरी तक परिपूर्ण हो [जाएँ]” (इफिसियों 3:19) l
एक दयालु आलोचक
परिदृश्य चित्रकारी कक्षा में, शिक्षक ने, जो एक उच्च अनुभवी व्यवसायिक कलाकार थे, मेरे प्रथम नियत कार्य की जांच की l वे अपनी ठुड्डी के नीचे हाथ रखकर, चित्रकारी के सामने खड़े हो गए l ये रहा, मैंने सोचा l वे शायद कहनेवाले हैं यह बेकार है l
किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं कहा l
उन्होंने कहा उनको रंगों की पद्धति और स्पष्टता की भावना अच्छी लगी l तब उन्होंने उल्लिखित किया कि दूर के वृक्षों में अधिक हल्के रंग भरे जा सकते थे l घासपात के गुच्छों को सोम्य किनारा चाहिए थी l उनके पास परिदृश्य और रंग के नियमों पर आधारित मेरे काम की आलोचना करने का अधिकार था, फिर भी उनकी आलोचना ईमानदार ओर हितकर थी l
यीशु, जो लोगों को उनके पाप के कारण दोषी ठहराने में पूर्णरूपेण योग्य था, एक सामरी स्त्री को जिससे उसने प्राचीन कुँए पर मुलाकात की, दोषी ठहराने के लिए दस आज्ञा का उपयोग नहीं किया l उसने केवल थोड़े से शब्दों का उपयोग करके कोमलता से उसके जीवन की समीक्षा की l परिणाम यह निकला कि उसने महसूस किया कैसे संतुष्टता के लिए उसकी खोज उसे पाप में ले गयी थी l इस अभिज्ञता पर बल देते हुए, यीशु ने खुद को अनंत संतुष्टता का एकमात्र श्रोत बताते हुए प्रगट किया (युहाना 4:10-13) l
इस परिस्थिति में यीशु द्वारा उपयोग किया गया अनुग्रह और सच्चाई का मेल ही है जिसका अनुभव हम उसके साथ हमारे सम्बन्ध में करते हैं (1:17) l उसका अनुग्रह हमें हमारे पाप के द्वारा अभिभूत होने से रोकता है, और उसकी सच्चाई हमें यह सोचने से रोकती है कि यह एक गंभीर विषय नहीं है l
क्या हम यीशु को हमारे जीवनों में उन क्षेत्रों को दर्शाने के लिए आमंत्रित करेंगे जहाँ हमें उन्नति की ज़रूरत है ताकि हम उसके समान और अधिक बन सकें l
वह कौन है?
जब एक व्यक्ति ने अपने घर के बाहर एक सुरक्षा कैमरा लगवाया, उसने यह निश्चित करने के लिए कि प्रणाली ठीक से काम कर रहा है विडियो की विशेषता की जांच की l वह अहाते में गहरे रंग के कपड़े पहने चौड़े कंधे वाले किसी व्यक्ति को देखकर चौंक गया l उसने ध्यान से देखा वह व्यक्ति क्या करना चाहता है l हालाँकि, अनधिकार प्रवेश करनेवाला परिचित दिखाई दिया l आखिरकार उसने जान लिया कि वह किसी अपरिचित को अपनी संपत्ति में फिरते हुए नहीं देख रहा है, किन्तु अपने अहाते में खुद की ही एक रिकॉर्डिंग देख रहा था!
हम क्या देखते होते यदि हम अपने खुद से निकल सकते और दूसरी स्थितियों में खुद पर ध्यान देते? जब दाऊद का हृदय कठोर हो गया और बतशेबा के साथ उसके सम्बन्ध के विषय उसे बाहरी परिप्रेक्ष्य– एक ईश्वरीय परिप्रेक्ष्य - की ज़रूरत पड़ी, परमेश्वर ने नातान को बचाव के लिए भेजा (2 शमूएल 12) l
नातान ने दाऊद को एक धनी व्यक्ति की कहानी बताई जिसने एक निर्धन व्यक्ति की एकलौती भेड़ छीन ली थी l यद्यपि धनी व्यक्ति के पास बहुत सी भेड़ें थीं, उसने निर्धन व्यक्ति की एकलौती भेड़ को मार कर भोजन तैयार किया l जब नातान ने यह प्रगट किया कि कहानी दाऊद के कृत्य को दर्शाता है, दाऊद ने महसूस किया कि उसने ऊरिय्याह को किस प्रकार हानि पहुंचाई थी l नातान ने उसके परिणाम को समझाया, किन्तु इससे भी प्रमुख उसने दाऊद को निश्चित किया, “परमेश्वर ने तेरे पाप को दूर किया है” (पद.13) l
यदि परमेश्वर हमारे जीवनों में पाप को दर्शाता है, उसका अंतिम उद्देश्य हमसे नफ़रत करना नहीं है, किन्तु हमें पुनःस्थापित करना और उनके साथ मेल करने में हमारी मदद करना जिनको हमने हानि पहुँचायी है l पश्चाताप परमेश्वर के साथ उसकी क्षमा और अनुग्रह के सामर्थ्य में नवीकृत निकटता का मार्ग बनाता है l