ज़ोर से बंद आँखें
वह जानता था कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए थाl मैं स्पष्ट देख पा रहा था कि वह जानता था कि यह गलत था: यह उसके चिहरे पर साफ़ लिखा था! जब मैं उसके साथ उसकी गलती के बारे में बात करने के लिए बैठा तो मेरे भतीजे ने तुरन्त अपनी आखें ज़ोर से बंद कर लींl वह बैठा सोच रहा था और उसका तीन वर्षीय अबोध मन विचार कर रहा था कि यदि वह मुझे नहीं देख रहा था तो इसका मतलब था कि वह मेरी दृष्टि से ओझल थाl और सोच रहा था कि यदि वह मुझसे अदृश्य था तो वह बात करने से और अपने किए से (और इसके परिणामों से) बच सकता थाl
मुझे बहुत ख़ुशी है कि मैं उस समय उसे देख पा रहा थाl जो उसने किया था मैं उससे सहमत नहीं था और हमें इसके बारे में बात करने की आवश्यकता थी, इसलिए मैं बिलकुल नहीं चाहता था कि कोई चीज़ हमारे बीच में आएl मैं चाहता था कि वह सीधा मेरे चिहरे की ओर देखे और जाने कि मैं उससे कितना प्यार करता हूँ और उसे क्षमा करने के लिए उत्सुक हूँ! उसी पल मुझे विचार आया कि जब आदम और हवा ने अदन की बाटिका में परमेश्वर के भरोसे को तोड़ा तो उस समय उसे कैसा महसूस हुआ होगाl अपने अपराधबोध को महसूस करते हुए उन्होंने परमेश्वर से छिपने का प्रयास किया (उत्पत्ति 3:10), जो उन्हें उतना ही साफ़ साफ़ “देख” पा रहा था जितना कि मैं अपने भतीजे को देख रहा थाl
जब हमें अहसास होता है कि हमने कुछ गलती की है तो अक्सर हम परिणामों से बचना चाहते हैंl हम अपनी गलती से भागते हैं, इसे छिपाते हैं, या सत्य के प्रती अपनी आँखों को बंद कर लेते हैंl परमेश्वर हमें अपने धर्मी मापदंड के हिसाब से निश्चित रूप से ज़िम्मेदार ठहरता है, लेकिन वह हमें देखता है (हमें खोजता है!) क्योंकि वह हमसे प्रेम करता है और यीशु मसीह के द्वारा क्षमा प्रदान करता हैl
अधिकता में या दुःख में
ऐन वोस्कईम्प की पुस्तक वन थाउजेंड गिफ्ट्स पाठकों को प्रभु ने उनके लिए क्या किया है, प्रतिदिन खोजने के लिए उत्साहित करती है l उसमें, वह रोजाना बड़ी और छोटी दोनों उपहारों में परमेश्वर की प्रचुर उदारता, जिसमें बरतन धोने वाले सिंक में साधारण बुलबुलों से लेकर पापियों के (और बाकी हम सब!) के अतुलनीय उद्धार की बात करती है l ऐन का तर्क है कि धन्यवाद ही वह कुंजी है जो जीवन के सबसे अशांत क्षणों में भी परमेश्वर को देखती है l
अय्यूब ऐसे “अशांत क्षणों” के जीवन के लिए लोकप्रिय है l वास्तव में, उसकी हानि गहरी और बहुत थी l अपने सभी पशुओं को खोने के कुछ ही क्षण बाद, उसे उसी समय अपने दसों बच्चों की मृत्यु का समाचार मिलता है l अय्यूब का अत्यधिक दुःख उसके प्रतिउत्तर में दिखाई देता है : वह “बागा फाड़, सिर [मुड़वाता है]” (1:20) l उसके दर्द भरे शब्द मुझे सोचने पर मजबूर करते हैं कि अय्यूब कृतज्ञता के अभ्यास को जानता था, क्योंकि वह स्वीकार करता है कि परमेश्वर ने उसे वह सब कुछ दिया था जो वह खो चुका था (पद.21) l इस तरह के अपमानजनक दुःख के बीच में वह और किस प्रकार उपासना कर सकता था?
दैनिक कृतज्ञता का अभ्यास हानि के मौसम में महसूस किये जानेवाले दुःख के परिणाम को मिटा नहीं सकता है l जिस तरह पुस्तक वर्णन करता है अय्यूब अपने दुःख में होकर प्रश्न और सामना करता रहा l किन्तु अपने लिए परमेश्वर की भलाइयाँ पहचानने पर - यहाँ तक कि छोटे तरीकों में भी – हम जीवन के अंधकारमय समयों में भी शक्तिशाली परमेश्वर के सामने उपासना में घुटना टेकने के लिए तैयार होते हैं l
मदद
हमारे बच्चों ने इदाहो की ठंडी सर्दियों में पीछे के आँगन में आइस-स्केटिंग दौड़ के रोमांच का आनंद उठाया है l बचपन में, स्केटिंग सीखना उनके लिए चुनौती थी : बर्फ के कठोर सतह पर जानबूझ कर पैर रखने के लिए उन्हें विवश करना कठिन था क्योंकि वे गिरने की पीड़ा जानते थे l हर समय उनके पैर फिसलने पर, हम दोनों पति-पत्नी उनको पैर पर सीधे खड़े होने औरउनके शरीर को सीधा करने में सहायता करते थे l
गिरने पर हमें उठानेवाले सहयोगी हाथ एक वरदान है जो सभोपदेशक की पुस्तक में दिखाई देता है l दूसरे के साथ मिलकर काम करना हमारे कार्य को और मधुर और अधिक प्रभावशाली बना देता है (4:9), और मित्र हमारे जीवनों को स्नेही बनाते हैं l चुनौतियों का सामना करते समय, किसी की व्यवहारिक और भावनात्मक सहायता से मदद मिलती है l ऐसे सम्बन्ध हमें शक्ति, उद्देश्य, और आराम देते हैं l
जब हम जीवन की कठिनायों के ठन्डे बर्फ पर खुद को पराजित पाते हैं, क्या कोई सहायता करनेवाला हाथ आपके निकट होता है? यदि हाँ, तो यह परमेश्वर की ओर से है l या जब किसी और को मित्र की ज़रूरत हो, क्या हम उनको उठाने के लिए परमेश्वर की ओर से उत्तर हैं? सहचर बनकर, हमें भी अक्सर सहयोगी मिल जाता है l यदि हमें उठाने वाला कोई नहीं है, हम इस बात में विश्राम पाते हैं कि परमेश्वर हमारा अति सहज से मिलनेवाला सहायक है (भजन 46:1) l जब हम उसे पुकारते हैं, वह अपनी मजबूत पकड़ से हमें थाम लेता है l
जो हमारे पास है
मेरी सहेली अपने परिवार और मित्रों को अपने घर पर एक उत्सव अवकाश समारोह के लिए इकठ्ठा करने हेतु उत्सुक थी l संगति में प्रत्येक अतिथि इकठ्ठा होने को तैयार था और भोजन खर्च में योगदान करके खर्च कम करना चाहता था l कुछ लोग रोटी, दूसरे लोग सलाद या कोई और प्रकार का भोजन लाने वाले थे l हालाँकि, एक अतिथि आर्थिक रूप से अत्यधिक तंग थी l वह शाम को प्रिय लोगों की संगति में शामिल होने की इच्छा रखते हुए भी, कोई भी भोजन लाने में असमर्थ थी l इसलिए, इसके बदले, उसने अपने मेजबान के घर को साफ़ करने का प्रस्ताव रखकर अपना योगदान दिया l
उसका स्वागत खाली हाथ आने पर भी हुआ होता l फिर उसने जो उससे हो सकता था देने की इच्छा प्रगट की - उसका समय और कौशल - और पूरे मन से उस संगति में आयी l मेरे विचार से 2 कुरिन्थियों 8 में पौलुस के शब्दों के भाव यही थे l विश्वासी कुछ साथी मसीहियों की सहायता करने के लिए उत्सुक थे, और पौलुस ने उन प्रयासों का पालन करने का आग्रह किया l उसने उनकी अभिलाषा और उनकी इच्छा को यह कहते हुए सराहा, कि देने की उनकी प्रेरणा ही किसी भी माप के उपहार या राशि को स्वीकार्य बनाता है (पद.12) l
हम अक्सर अपने दान की तुलना दूसरों की दान से करने में जल्दबाजी करते हैं, विशेषकर उस समय जब हमारे संसाधन उस माप की बराबरी नहीं करते जो हम देने की इच्छा रखते हैं l किन्तु परमेश्वर हमारे देने को भिन्न दृष्टिकोण से देखता है : जो हमारे पास है उसे देने की हमारी इच्छा ही से वह प्रेम करता है l
प्रोत्साहित करने के लिए बाध्य
स्टीवन थॉम्पसन सेंटीपीड किसी अन्य के विपरीत एक क्रॉस-कंट्री प्रतियोगिता है l सात सदस्यों की प्रत्येक टीम एक इकाई के रूप में तीन मील की दौड़ की पहली दो मील एक रस्सी को पकड़कर दौड़ती है l दो मील के निशान पर टीम, रस्सी को छोड़ देती है और दौड़ को अलग-अलग ख़त्म करती है l इसलिए, प्रत्येक व्यक्ति का समय, टीम की गति और उसकी अपनी गति का मेल होता है l
इस साल, मेरी बेटी की टीम ने ऐसी रणनीति का चयन किया जिसे मैंने पहले नहीं देखा था : उन्होंने सबसे तेज धावक को सबसे आगे और सबसे धीमे को उसके पीछे रखा l उन्होंने समझाया कि उनका लक्ष्य सबसे मजबूत धावक का सबसे धीमा धावक के निकट रहकर उसे उत्साहित करना था l
उनकी योजनाओं ने मुझे इब्रानियों की किताब से एक वाक्य दिखाया l लेखक हमसे "आशा के अंगीकार को दृढ़ता से थामे" (इब्रानियों 10:23) रहने को कहता है जब "प्रेम और भले कामों में उसकाने के लिए हम एक दूसरे की चिंता" करते हैं (पद.24) l इसे पूरा करने के निश्चित रूप से कई तरीके हैं, लेकिन लेखक ने एक को हाईलाइट किया : "एक दूसरे के साथ इकठ्ठा होना न छोड़े, जैसे कि कितनों की रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहें (पद.25) l जैसा कि हम सक्षम हैं, अन्य विश्वासियों के साथ इकठ्ठा होना विश्वास के जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलु है l
जीवन की दौड़ कभी-कभी हमारे संभालने से अधिक महसूस होती है, और हम निराशा में रस्सी छोड़ने हेतु प्रेरित हो सकते हैं l हम साथ में दौड़ते समय, एक दूसरे को मजबूती से दौड़ने के लिए उत्साहित करें!
कद्दू में धन
एक युवा माँ होकर, मैंने अपनी बेटी के पहले साल का सनद(document) रखा l हर महीने, मैंने उसमें बदलाव और विकास देखने के लिए उसके फोटो खींचे l एक पसंदीदा फोटो में वह स्थानीय किसान से ख़रीदे गए कद्दू में जो खोखला किया गया था बैठी खिलखिलाती दिखाई दे रही थी l मेरा जिगर का टुकड़ा उस बड़े कद्दू में बैठी हुयी थी l वह कद्दू बाद में सूख कर ख़त्म हो गया, किन्तु मेरी बेटी निरंतर उन्नति करती और बढ़ती गयी l
जिस प्रकार पौलुस यीशु कौन है की सच्चाई जानने का वर्णन करता है, उससे मैं उस फोटो को याद करती हूँ l वह यीशु का हमारे हृदय में वास करने को मिट्टी के बरतन में रखे धन से तुलना करता है l हमारे लिए यीशु के कार्य का स्मरण “चारों ओर से क्लेश . . . भोगने” (2 कुरिन्थियों 4:8) की स्थिति के बावजूद हमें संघर्षों में धीरज धरने में साहस और सामर्थ्य देता है l हमारे जीवनों में परमेश्वर की सामर्थ्य के कारण, जब हम “गिराए . . . जाते हैं, पर नष्ट नहीं होते हैं,” हम यीशु का जीवन प्रगट करते हैं (पद.9) l
उस कद्दू की तरह जो नष्ट हो गया, हम अपने संघर्षों में टूट-फूट महसूस करेंगे l किन्तु उन चुनौतियों के बावजूद यीशु में हमारा आनंद बढ़ता जाएगा l हमारा उसका जानना अर्थात् हमारे जीवनों में उसकी सामर्थ्य का कार्य वह धन है जो हमारे दुर्बल मिट्टी के शरीरों में है l हम कठिनाई में उन्नति कर सकते हैं क्योंकि उसकी सामर्थ्य हमारे अन्दर कार्य करती है l
अपने नावें ले आओ
2017में तूफ़ान हार्वे(Hurricane Harvey) के कारण पूर्वी टेक्सास में विनाशकारी बाढ़ आ गयी l बारिश से हजारों लोग अपने घरों में घिर गए, और बाढ़ के पानी से भाग नहीं सके l “टेक्सास नेवी” नाम से अनेक साधारण नागरिकों ने राज्य और राष्ट्र के दूसरे भाग से नाव लाकर घिरे हुए लोगों को निकालने में मदद की l
इन बहादुर, दयालु पुरुष और महिलाएँ नीतिवचन 3:27 का उत्साह याद दिलाते हुए सीख देते हैं कि जब भी अवसर मिले हम दूसरों की मदद करें l उनके पास आवश्यक्तामंद लोगों के लिए अपनी नावों को लाकर मदद करने की ताकत थी l और उन्होंने ऐसा किया l उनकी क्रियाएँ दर्शाती हैं कि वे अपने संसाधन दूसरों के लाभ के लिए उपयोग करना चाहते थे l
जो कार्य हाथ में है उसे करने में हम अपने को हमेशा सक्षम नहीं पाते हैं; अक्सर हम दूसरों की मदद करने में खुद में कौशल, अनुभव, साधन, या समय की कमी महसूस करते हैं l ऐसे समय में, हम जल्दी ही अपने साधनों को जो दूसरों की मदद कर सकता है, नज़रंदाज़ करते हुए अपने को किनारे कर लेते हैं l टेक्सास नेवी बाढ़ के बढ़ते पानी को रोक नहीं सकते थे, और न ही सरकारी मदद के लिए कानून बना सकते थे l किन्तु उन्होंने अपने पड़ोसियों की गंभीर ज़रूरतों में अपनी सामर्थ्य की सीमा में अपने साधनों का अर्थात् नाव का उपयोग किया l काश हम सब भी अपनी “नावें” लाकर लोगों को ऊँची भूमि पर ले जा सकें l
सही समय
कल मैंने अपनी बड़ी बेटी के लिए जो कॉलेज जानेवाली थी, हवाई जहाज़ का टिकट खरीदा l मुझे आश्चर्य हुआ कि हवाई यात्रा का टिकट चुनने की प्रक्रिया में मेरे बहते आंसुओं से मेरे कंप्यूटर का कीबोर्ड भीग जाने के बावजूद वह काम कर रहा था l मैंने अपनी बेटी के साथ अठारह वर्षों तक दैनिक जीवन का आनंद उठाया है, इस कारण मैं उसके जाने की बात से दुखी हूँ l यह जानकार भी कि वह मुझसे दूर हो जाएगी, मैं उसे उसके भावी जीवन के अवसर से वंचित नहीं कर सकती l उसके जीवन के इस मुकाम पर, उसके लिए वयस्कता को समझना और देश के एक दूसरे भाग को जानने के लिए नयी यात्रा पर जाना उचित है l
जबकि बेटी की परवरिश का मेरा समय समाप्त हो रहा है, एक और समय आरम्भ हो रहा है l उसमें अवश्य ही चुनौतियां और खुशियाँ दोनों होंगी l इस्राएल का तीसरा राजा, सुलैमान, लिखता है कि परमेश्वर “हर एक बात का एक अवसर, और प्रत्येक काम का, जो आकाश के नीचे होता है, एक समय” नियुक्त किया है (सभोपदेशक 3:1) l हम मनुष्यों का अपने जीवन की घटनाओं पर बहुत कम नियंत्रण है – चाहे हम उन घटनाओं को अपने पक्ष में देखें या नहीं l किन्तु परमेश्वर, अपनी महान सामर्थ्य में, “सब कुछ ऐसा [बनाता है] कि अपने अपने समय पर वे सुन्दर होते हैं” (पद.11) l
मानसिक व्यथा के समयों में, हम भरोसा करते हैं कि परमेश्वर समय पर उससे कुछ भलाई उत्पन्न करेगा l हमारे सुख और आनंद आ सकते हैं और जा सकते हैं, किन्तु परमेश्वर का काम “सदा स्थिर रहेगा” (पद.14) l हम सभी समयों को पसंद नहीं करेंगे – उनमें से कुछ बहुत दुःख भरे होंगे – फिर भी वह उन सब को खुबसूरत बना सकता है l
ताकत लगाना
शरीर को गठीला बनानेवाले प्रतिस्पर्धी खुद को कठोर प्रशिक्षण क्रम से गुजरने देते हैं l पहले के कुछ महीनों में, वे आकार और ताकत बढ़ाने में लगाते हैं l जैसे-जैसे प्रतिस्पर्धा निकट आता हैं, वे अपना ध्यान शरीर के अतिरिक्त चर्बी को कम करने में लगाते हैं जिससे उनकी मांश पेशियाँ दिखाई दे सकें l प्रतिस्पर्धा से पहले अंतिम कुछ दिनों में, मांश पेशियों के स्पष्ट दिखाई देने के लिए वे कम पानी पीते हैं l पोषण कम लेने के कारण, प्रतिस्पर्धा के दिन ताकतवर दिखाई देने के बावजूद, प्रतिस्पर्धी अपने सबसे बलहीन अवस्था में होते हैं l
2 इतिहास 20 में, हम विपरीत सच्चाई देखते हैं : परमेश्वर की सामर्थ्य का अनुभव करने के लिए अपनी बलहीनता को पहचानना l “लोगों ने यहोशापात से कहा, “एक बड़ी सेना आपके विरुद्ध आक्रमण करने आ रही है l” इस कारण उसने खुद को और अपने सारे लोगों को पोषण/भोजन से वंचित करके “पूरे यहूदा में उपवास का प्रचार करवाया” (पद.3) l उसके बाद उन्होंने परमेश्वर से सहायता मांगी l अंत में अपनी सेना को इकठ्ठा करने के बाद, यहोशापात ने गायकों को नियुक्त किया जो उसकी सेना के आगे-आगे परमेश्वर की प्रशंसा करते थे (पद.21) l जब वे गाकर स्तुति करने लगे, प्रभु ने “लोगों पर जो यहूदा के विरुद्ध आ रहे थे, घातकों को बैठा दिया और वे मारे गए” (पद.22) l
यहोशापात का निर्णय परमेश्वर में उसके गहरे भरोसे को प्रगट कर रहा था l उसने जानबूझकर मनुष्य और सेना के कौशल पर भरोसा नहीं करने का चुनाव किया किन्तु इसके बदले परमेश्वर पर भरोसा किया l अपने संघर्षों/परीक्षाओं में खुद पर भरोसा न करके, हम उसकी ओर फिरें और उसे अपनी ताकत बनने दें l