आभासी उपस्थिति
जैसा कि नॉवेल(नया) कोरोनवायरस ने दुनिया भर में बढ़ गया, स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने प्रसार को धीमा करने के साधन के रूप में लोगों के बीच शारीरिक दूरी बढ़ाने की सलाह दी। कई देशों ने अपने नागरिकों को खुद को क्वारंटाइन या खास स्थानों में आश्रय लेने के लिए कहा। संगठनों ने कर्मचारियों को दूर से काम करने के लिए घर भेज दिया यदि वे कर सकते थे, जबकि अन्य को आर्थिक रूप से कमजोर रोजगार का नुकसान उठाना पड़ा। दूसरों की तरह, मैंने डिजिटल प्लेटफॉर्म(मंच) के माध्यम से चर्च और छोटे-समूह की बैठकों में भाग लिया। एक दुनिया के रूप में, हमने शारीरिक रूप से असम्बद्ध होने के बावजूद एक साथ रहने के नए रूपों का अभ्यास किया।
यह सिर्फ इंटरनेट नहीं है जो हमें संपर्क की भावना बनाए रखने देता है। हम आत्मा के माध्यम से मसीह के शरीर के सदस्यों के रूप में एक दूसरे से जुड़ते हैं। पौलुस ने इस धारणा को सदियों पहले कुलुस्सियों को लिखी अपनी पत्री में व्यक्त किया था। हालाँकि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से उनके चर्च की स्थापना नहीं की थी, लेकिन उन्होंने उनकी और उनके विश्वास की गहराई से परवाह की। और यद्यपि पौलुस व्यक्तिगत रूप से उनके साथ नहीं हो सकता था, उसने उन्हें याद दिलाया कि वह "आत्मा में [उनके] साथ था" (कुलुस्सियों 2:5)।
हम हमेशा उन लोगों के साथ नहीं रह सकते जिन्हें हम वित्तीय, स्वास्थ्य या अन्य व्यावहारिक कारणों से प्यार करते हैं, और तकनीक, उस अंतर को भरने में मदद कर सकती है। फिर भी किसी भी प्रकार का आभासी संबंध उस "एकजुटता" की तुलना में फीका पड़ जाता है जिसे हम मसीह के शरीर के साथी सदस्यों के रूप में अनुभव कर सकते हैं (1 कुरिन्थियों 12:27)। ऐसे क्षणों में, हम, पौलुस की तरह, एक दूसरे के विश्वास की दृढ़ता में आनन्दित हो सकते हैं और प्रार्थना के माध्यम से, एक दूसरे को "परमेश्वर अर्थात् मसीह के भेद को पूरी तरह से जानने" के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं (कुलुस्सियों 2:2)।
मुझे रहने दें!
जब वे कार की ओर जा रहे थे, दर्शन ने अपनी माँ के बाहों को छुड़ा कर चर्च के दरवाजों की ओर पागल की तरह दौड़ लगाया । वह छोड़ना नहीं चाहता था! उसकी माँ उसके पीछे दौड़ी और प्यार से अपने बेटे को सहलाने की कोशिश की ताकि वे जा सकें । जब उसकी माँ ने आखिरकार चार साल के दर्शन को फिर से गोद में ले लिया, और वे जाने लगे तो वह रोने लगा और उनके कंधे पर झुककर ललक के साथ चर्च की ओर जाना चाहा ।
दर्शन महज ही चर्च में अपने मित्रों के साथ खेलने का आनंद लिया होगा, लेकिन उसकी उत्सुकता दाऊद की परमेश्वर की आराधना करने की एक तस्वीर है । यद्यपि उसने परमेश्वर से अपने आराम और सुरक्षा के लिए उसके शत्रुओं को विफल करने को कहा होगा, लेकिन दाऊद शांति का राज्य चाहता था ताकि उसके स्थान पर वह “जीवन भर यहोवा के भवन में रहने [पाए], जिससे यहोवा की मनोहरता पर दृष्टि लगाए” (भजन 27:4) । उसकी हार्दिक इच्छा परमेश्वर के साथ रहना था──जहाँ वह था──और उसकी उपस्थिति का आनंद लेना था । इस्राएल का महानतम राजा और सेनानायक शांति के समय का उपयोग “जयजयकार के साथ . . . भजन” गाने में करना चाहता था (पद.6) ।
हम स्वतंत्र रूप से कहीं भी परमेश्वर की आराधना कर सकते हैं, क्योंकि वह विश्वास के द्वारा पवित्र आत्मा के व्यक्तित्व में हमारे अन्दर निवास करता है (1 कुरिन्थियों 3:16; इफिसियो 3:17) । हम उसकी उपस्थिति में अपने दिन गुज़ारने की चाह रखें और दूसरे विश्वासियों के साथ सामूहिक रूप से उपासना करने के लिए इकट्ठे हों । परमेश्वर में──इमारत की दीवारें नहीं──हम अपनी सुरक्षा और अपना सबसे बड़ा आनंद पाते हैं ।
घंटी बजाइए
विकिरण(radiation) उपचार के चौंका देनेवाले तीस चक्कर के बाद, रीमा को कैंसर मुक्त घोषित कर दिया गया । हॉस्पिटल की परंपरा के एक हिस्से के रूप में, वह “कैंसर-मुक्त घंटी” बजाने के लिए उत्सुक थी जिसने उसके इलाज के अंत को चिन्हित किया और आधिकारिक रूप से घोषित उसके अच्छे स्वास्थ्य का जश्न मनाया । रीमा अपने उत्सव की घंटी बजाने में इतनी उत्साही और जोरदार थी कि रस्सी वास्तव में घंटी से अलग हो गयी! आनंदपूर्ण हंसी के ढेर लग गए ।
रीमा की कहानी मेरे चेहरे पर मुस्कान लाती है और मुझे इस बात का एहसास दिलाती है कि जब भजनकार ने इस्राएली लोगों को उनके जीवन में ईश्वर के कार्य का जश्न मनाने के लिए आमंत्रित किया तो उसने क्या कल्पना की होगी । लेखक ने उन्हें “तालियाँ [बजाने],” और “जयजयकार [करने],” और “भजन [गाने]” के लिए उत्साहित किया क्योंकि परमेश्वर ने उनके शत्रुओं को भगा दिया था और इस्राएलियों को अपने प्रिय लोगों के रूप में चुन लिया था (भजन 47:1,6) ।
परमेश्वर हमेशा हमें इस जीवन में हमारे संघर्षों पर विजय नहीं देता है, चाहे वह स्वास्थ्य सम्बन्धी हो या वित्तीय या संबंधपरक । वह उन परिस्थितियों में भी हमारी आराधना और प्रशंसा के योग्य है क्योंकि हम विश्वास कर सकते हैं कि वह अभी भी “अपने सिंहासन पर विराजमान है” (पद. 8) । जब वह हमें वास्तव में चंगाई की जगह पर लाता है──तो कम से कम एक तरह से हम इस सांसारिक जीवन में पहचानते हैं──यह महान उत्सव का कारण होता है । हमारे पास बजाने के लिए शायद एक भौतिक घंटी न हो, लेकिन जैसे रीमा ने दिखाया हम उसी तरह की अतिशयोक्ति के साथ हमारे साथ जो भलाई हुई है उसका जश्न मना सकते हैं ।
युवा विश्वास
किशोर उम्र कभी-कभी जीवन में सबसे अधिक दुखदायी कालों में से होती है──माता-पिता और बच्चे दोनों की लिए l मेरी माँ से एक “अलग पहचान” बनाने का मेरा प्रयास में, मैंने खुलकर उनके आदर्शों का इनकार किया और उनके नियमों के विरुद्ध विद्रोह किया, इस शक में कि उनका उद्देश्य केवल मुझको और दुखी बनाना था l यद्यपि हम अब उन विषयों पर सहमत हैं, हमारे रिश्तों में वह समय तनाव से भरपूर था l कोई शक नहीं कि माँ के निर्देशों की गंभीरता का मेरे द्वारा इंकार करना उन्हें दुखित करता था, यह जानते हुए कि वे मुझे व्यर्थ भावनात्मक और भौतिक पीड़ा से बचा सकती थीं l
परमेश्वर के पास अपनी संतान, इस्राएल के लिए उसी तरह का हृदय था l जिसे हम दस आज्ञाओं के रूप में जानते हैं उसमें जीने के लिए परमेश्वर ने अपनी बुद्धि प्रदान की (व्यवस्थाविवरण 5:7-21) l यद्यपि उन्हें नियमों की सूची के रूप में देखा जा सकता है, परमेश्वर की मनसा मूसा को दिए गए उसके शब्दों से प्रगट है : “जिससे उनकी और उनके वंश की सदैव भलाई होती रहे” (पद.29) l मूसा ने यह कहते हुए परमेश्वर की इच्छा पहचान लिया, कि आज्ञा मानना प्रतिज्ञात देश में उनके साथ उसकी निरंतर उपस्थिति के आनंद में परिणित होगा (पद.33) l
हम सब परमेश्वर के साथ “युवा” काल से होकर निकलते हैं, भरोसा किये बिना कि जीवन के लिए उसकी मार्गदर्शिका वास्तव में हमारी भलाई के लिए है l हम इस अनुभूति में बढ़ते जाएँ कि वह हमारे लिए सर्वोत्तम चाहता है और उसके द्वारा प्रस्तावित बुद्धि पर चलना सीखें l उसके मार्गदर्शन का उद्देश्य हमें आत्मिक परिपक्वता में ले चलना है जब हम और भी यीशु के समान बनते जाते हैं (भजन 119:97-104; इफिसियों 4:15; 2 पतरस 3:18) l
बाइबल की वह बड़ी कहानी
जब कॉलिन ने रंगीन कांच के टुकड़ों का वह डिब्बा खोला जो उसने ख़रीदा था, उसको वे टुकड़े नहीं मिले जो उसने प्रोजेक्ट के लिए आदेश किया था, उसे अखंड खिड़कियाँ मिलीं l उसने उन मूल खिडकियों के विषय पता किया और जाना कि उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध की बमबारी से बचाने के एक चर्च इमारत से निकला गया था l कॉलिन उसके कार्य की गुणवत्ता पर आचम्भित हुआ और किस तरह “टुकड़ों” से एक सुन्दर तस्वीर बनी थी l
यदि मैं इमानदारी से कहूँ, तो कई बार मैं बाइबल के ख़ास परिच्छेदों को खोलता हूँ──अध्याय जैसे जिसमें वंशावलियों की सूचियाँ हैं──और मैं तुरंत देख नहीं पाता हूँ कि किस तरह वे पवित्रशास्त्र की बड़ी तस्वीर में ठीक बैठती हैं l ऐसा ही उत्पत्ति 11 के साथ है──एक अध्याय जिसमें अपरिचित नामों और उनके परिवारों को दोहराया गया है, जैसे शेम, शेलह, एबेर, नाहोर, और तेरह (पद.10-32) l मैं इन भागों को हल्का लेने और उस भाग पर जाने के लिए प्रवृत्त होता हूँ जिसमें कुछ ऐसा है जो परिचित महसूस होता है और बाइबल के वृतांत की मेरी समझ “खिड़की” में आसानी से अनुकूल बैठती है l
इसलिए कि “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और , , , लाभदायक है(2 तीमुथियुस 3:16), पवित्र आत्मा हमें समझने में बेहतर मदद कर सकता है कि कैसे एक टुकड़ा पूरे में अनुकूल बैठता है, और देखने के लिए हमारी आँखें खोलता है, उदाहरण के लिए, किस तरह शेलह अब्राम से सम्बंधित है (उत्पत्ति 11:12-26), दाऊद का पूर्वज और──अधिक महत्वपूर्ण तरीके से──यीशु (मत्ती 1:2,6,16) l वह हमें एक अखंडित खिड़की की निधि से चकित करने में आनंदित होता है जहाँ छोटे हिस्से भी परमेश्वर के मिशन/उद्देश्य की कहानी को सम्पूर्ण बाइबल में प्रगट करते हैं l
दूसरों तक अनुग्रह फैलाना
हमारा बेटा अपने जीवन का आरंभिक काल एक बालाश्रम में बिताया इससे पूर्व कि हम उसे दत्तक लेते l साथ में घर जाते समय जीर्ण-शीर्ण ईमारत को छोड़ने से पहले हमने उससे अपने समान इकठ्ठा करने को कहा l दुःख की बात है कि उसके पास कुछ नहीं था l हमने उसके पहने हुए कपड़ों की जगह उसे नए पहनाए जो हम उसके लिए लाए थे और कुछ कपड़े दूसरे बच्चों के लिए छोड़ दिये l यद्यपि मुझे इस बात का दुःख था कि उसके पास कितना कम था, मैं आनंदित थी कि अब हम उसकी भौतिक और भावनात्मक ज़रूरतों को पूरा करने में मदद कर सकेंगे l
कुछ वर्षों के बाद, हमने एक व्यक्ति को ज़रूरतमंद परिवारों के लिए दान मांगते देखा l मेरा बेटा उसे अपने स्टफ्ड एनिमल्स(stuffed animals) और कुछ सिक्के देने को इच्छुक था l उसकी पृष्ठ्भूमि को देखते हुए, हो सकता है कि वह अपने सामानों को कसकर पकड़ने के लिए (संभवतः) अधिक प्रवृत्त रहा हो l
मुझे लगता है कि उसके उदार प्रत्युत्तर का कारण शुरूआती चर्च के समान था : “सब पर बड़ा अनुग्रह था, जिससे उनके बीच कोई भी ज़रूरतमंद नहीं था (प्रेरितों 4:33-34) l लोग अपनी इच्छा से अपनी संपत्ति बेचकर एक दूसरे की ज़रूरतों का प्रबंध करते थे l
जब हम दूसरों की ज़रूरतों के विषय जागरूक हो जाते हैं, भौतिक या अमूर्त, परमेश्वर का अनुग्रह बहुत सामर्थ्य से हममें काम करे ताकि हम उसी तरह प्रत्युत्तर दें जैसे उन्होंने दिया था, ज़रुरतमन्दों को अपनी इच्छा से देना l यह हमें यीशु में “एक चित्त और एक मन” के विश्वासियों के रूप में परमेश्वर के अनुग्रह का माध्यम बनाता है, (पद.32) l
हमारे विश्वास की साझेदारी में “क्या”
महेश सार्वजनिक रूप से बोलने के डर से निपटने के लिए मेरे पास सलाह लेने आया । दूसरों की तरह, उसका दिल भी तीव्रता से धड़कने लगता था, उसका मुंह चिपचिपा और सुखा लगता था, और उसका चेहरा सुर्ख लाल हो जाता था । लोगों में ग्लोसोफोबिया/भाषणभीति (Glossophobia) सबसे आम सामाजिक डर में से एक है──बहुत से लोग मजाक भी करते हैं कि वे मरने की तुलना में सार्वजनिक रूप से बोलने से अधिक डरते हैं! महेश को अच्छा “प्रदर्शन” न करने के अपने डर पर विजय पाने में मदद करने के लिए, मैंने सुझाव दिया कि वह अपने सन्देश के सार पर ध्यान दे, बजाय इसके कि वह इसे कितनी अच्छी तरह पेश करेगा l
क्या साझा किया जाएगा उस पर अपना ध्यान केन्द्रित करना, इसे साझा करने की क्षमता के बजाय, दूसरों को परमेश्वर की ओर इशारा करना पौलुस की दृष्टिकोण के समान है l जब उसने कुरिन्थुस की कलीसिया को लिखा, उसने टिप्पणी की कि उसका संदेश और प्रचार “ज्ञान और लुभानेवाली बातें नहीं [थीं]” (1 कुरिन्थियों 2:4) l उसके बजाय उसने पूरी तरह से यीशु मसीह वरन् क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह पर ध्यान केन्द्रित करने की ठान ली थी (पद.2), अपने शब्दों को सशक्त बनाने के लिए पवित्र आत्मा पर भरोसा करना न कि एक वक्ता के रूप में उसकी वाक्पटुता ।
जब हमनें परमेश्वर को व्यक्तिगत् तौर से जान लिया है, तो हम अपने आस पास के लोगों के साथ उसके बारे में साझा करना चाहेंगे l फिर भी हम कभी-कभी उससे कतराते है क्योंकि हम उसे अच्छी तरह से प्रदर्शित करने से डरते हैं──“सही” या भाषणपटु शब्दों के साथ । “क्या” पर ध्यान केन्द्रित करके──परमेश्वर कौन है का सच और उसके अद्भुत कार्य पर──पौलुस की तरह, हम अपने शब्दों को सशक्त करने और भय या अनिच्छा के बिना साझा करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं l
आत्मिक सिद्धता की ओर बढ़ना
हाल ही में एक सर्वेक्षण ने उत्तर देनेवालों से उस उम्र की पहचान करने को कहा, जब उन्हें विश्वास हुआ कि वे सयाने हो गए l जिन्होंने खुद को सयाना समझा उन्होंने विशेष व्यवहार को अपनी स्थिति के प्रमाण के रूप में इंगित किया । एक बजट होना और एक घर खरीदना “सयाना होना” की सूची में सबसे शीर्ष स्थान पर रहा । सयानेपन की अन्य गतिविधियों में खाना बनाना और अपने खुद के चिकित्सकीय नियोजन भेंट का निर्धारण करना और सबसे ज्यादा हास्यपूर्ण रात के भोजन में स्नैक्स खाना या उतेजना में रात को अकेले बाहर जाने का चुनाव था l
बाइबल कहती है, कि हमें आत्मिक सिद्धता की तरफ भी बढ़ना है । पौलुस ने इफिसुस की कलीसिया के लोगों से यह आग्रह करते हुए लिखा “सिद्ध मनुष्य बन जाएँ और मसीह के पूरे डील-डौल तक . . . बढ़ जाएँ” (इफिसियों 4:13) l जब तक हम अपने विश्वास में “युवा” हैं हम “उपदेश के हर एक झोंके” (पद.14), के सामने असुरक्षित हैं, जो अक्सर हमारे बीच विभाजन में परिणित होता है l इसके बदले, जैसे हम सत्य की अपनी समझ में सिद्ध होते है, हम “उसमें जो सिर है, अर्थात् मसीह” के अधीन संयुक्त देह की तरह काम करते है (पद.15) l
परमेश्वर ने हमें वह कौन है की पूरी समझ में बढ़ने में मदद करने के लिए अपनी आत्मा दिया है (यूहन्ना 14:26), और वह पासवानों और शिक्षकों को हमारे विश्वास की परिपक्वता की ओर निर्देशित करने और अगुवाई करने के लिए सज्जित करता है (इफिसियों 4:11-12) l जैसे कि कुछ विशेषताएँ शारीरिक परिपक्वता के सबूत हैं, उसके शरीर के रूप में हमारी एकता हमारे आत्मिक विकास का सबूत है ।
इंद्रधनुष प्रभामंडल
पहाड़ों में पैदल यात्रा के दौरान, एड्रियन ने खुद को बादलों के ऊपर पाया जो सामान्य से नीचे स्तर पर थे l अपने पीछे सूरज के साथ, एड्रियन ने नीचे देखा और न केवल अपनी छाया देखी, बल्कि एक चमकदार प्रदर्शन जिसे ब्रोकेन स्पेक्टर(Broken Spectre) के रूप में जाना जाता है l यह घटना एक इंद्रधनुष प्रभामंडल के सदृश होता है, जो व्यक्ति की छाया को घेरे रहता है l यह तब होता है जब सूरज की रोशनी नीचे के बादलों से दूर वापस प्रतिबिंबित होती है l एड्रियन ने इसे एक “जादुई” पल के रूप में वर्णित किया’ जिसने उसे बहुत खुशी दी l
हम अंदाजा लगा सकते हैं कि उसी प्रकार नूह के लिए पहली बार इंद्रधनुष को देखना कितनी चौंकाने वाली बात रही होगी l उसकी आंखों के लिए एक खुशी से अधिक, मुड़ा हुआ प्रकाश और उससे निकले हुए रंग परमेश्वर की ओर से एक प्रतिज्ञा के साथ आए l विनाशकारी बाढ़ के बाद, परमेश्वर ने नूह और सभी ‘जीवित शरीरधारी प्राणियों” को आश्वासन दिया, जो तब से जीवित हैं, कि “ऐसा जल प्रलय फिर न होगा जिससे सब प्राणियों का विनाश हो” (उत्पत्ति 9:15) l
हमारी पृथ्वी अभी भी बाढ़ और अन्य भयावह मौसम का अनुभव करती है जिसके परिणामस्वरूप दु:खद नुकसान होता है, लेकिन इंद्रधनुष एक प्रतिज्ञा है कि परमेश्वर कभी भी संसार का न्याय विश्वव्यापी जल प्रलय से नहीं करेगा l उसकी विश्वासयोग्यता की यह प्रतिज्ञा हमें याद दिला सकती है कि यद्यपि हम व्यक्तिगत रूप से इस धरती पर व्यक्तिगत नुकसान और शारीरिक मृत्यु का अनुभव करेंगे─चाहे बीमारी, प्राकृतिक आपदा, गलत काम, या बढ़ती उम्र के कारण─परमेश्वर हमें उन कठिनाइयों के दौरान अपने प्यार और उपस्थिति से संभालता है l जल में होकर धूप का प्रतिबिंबित होना उन लोगों से पृथ्वी को भरना जो उसकी छवि को धारण किये हुए हैं और दूसरों को उसकी महिमा को प्रतिबिंबित करते हैं की एक ताकीद है l