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Articles by लिन्डा वाशिंगटन

एक बुद्धिमान निर्माता

सोजर्नर ट्रूथ, जिसका जन्म का नाम इसाबेला बौम्फ्री था, का जन्म 1797 में न्यूयॉर्क में एक दासी के रूप में हुआ था l यद्यपि, लगभग उसके सभी बच्चे दास के रूप में बेचे गये थे, वह 1826 में एक बेटी के साथ भाग कर स्वतंत्र हुई और एक परिवार के साथ रही जो उसकी स्वतंत्रता के लिए पैसा चुकाए थे । अपने परिवार को अलग रखने के अन्यायपूर्ण व्यवस्था में सहमति की जगह, उसने अपने छोटे बेटे पीटर को फिर से हासिल करने के लिए कानूनी कार्यवाई की──उन दिनों में एक अफ़्रीकी अमेरिकी महिला के लिए एक अद्भुत साहसिक कार्य l यह जानते हुए कि वह अपने बच्चों की परवरिश परमेश्वर के मदद के बिना नहीं कर सकती थी, वह मसीह में एक विश्वासी बन गयी और बाद में उसने अपना नाम सोजर्नर ट्रूथ रखा । यह दिखाने के लिए कि उसके जीवन की नींव परमेश्वर की सच्चाई पर बनी थी ।

राजा सुलैमान, नीतिवचन 14 का लेखक, कहता है कि “हर बुद्धिमान स्त्री अपने घर को बनाती है” (पद.1), इसके विपरीत, एक बुद्धिहीन स्त्री “ढा देती है ।“ यह निर्माण का रूपक परमेश्वर द्वारा सुनने के लिए इच्छुक लोगों को दी गयी बुद्धि को दर्शाता है । कोई अपना घर बुद्धि से कैसे बनाता है? ऐसा करने के द्वारा “जो [दूसरों की] उन्नति के लिए उत्तम हो” (इफिसियों 4:29; 1 थिस्सलुनीकियों 5:11 भी देखें) कोई कैसे ढा देता है? नीतिवचन 14 उत्तर देता है, “मूढ़ के मुँह में गर्व का अंकुर [होता है]” (पद.3) l

सोजर्नर के पास अशांत समय में दृढ़ “शरणस्थान” (पद.26) था, परमेश्वर की बुद्धिमत्ता के लिए धन्यवाद । शायद आपको कभी अपने बच्चों को अन्याय से छुड़ाना न पड़े । परन्तु आप अपना घर उसी नींव पर बना सकते हैं जिस पर सोजर्नर ने बनाया──परमेश्वर की बुद्धिमत्ता l

निर्बलों को बचाओ

आप क्या चुनेंगे - स्विट्जरलैंड में छुट्टी या प्राग में बच्चों को खतरे से बचाना? निकोलस विंटन, जो एक साधारण आदमी था, ने  बाद वाला चुना l 1938 में चेकोस्लोवाकिया और जर्मनी के बीच युद्ध क्षितिज पर लग रहा था l निकोलस ने प्राग में शरणार्थी शिविरों का दौरा करने के बाद, जहां कई यहूदी नागरिक भयानक परिस्थितियों में रहते थे, उसने मदद करने की योजना बनाने के लिए विवश हुआ l उसने द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत से पहले ब्रिटिश परिवारों द्वारा देखभाल के लिए प्राग से ग्रेट ब्रिटेन तक सुरक्षित रूप से सैकड़ों बच्चों को पहुंचाने के लिए धन जुटाया l

उसके कार्यों ने भजन 82 में उन लोगों के बारे में उदाहरण प्रस्तुत किया जो “कंगाल और निर्धन का न्याय [चुकाते] है” (पद.3) l इस भजन का लेखक आसफ,  अपने लोगों को इस कारण के लिए प्रवीण बनाना चाहते थे : “कंगाल और निर्धन को बचा लो; दुष्टों के हाथ से उन्हें छुड़ाओ” (पद.4) l जैसे बच्चों को बचाने के लिए निकोलस ने अथक प्रयास किया,  भजनकार ने उन लोगों के लिए बोला जो खुद के लिए नहीं बोल सकते थे - गरीब और विधवा जिन्हें न्याय और सुरक्षा की आवश्यकता थी l

आज हम हर जगह देखते हैं कि हम युद्ध, तूफान और अन्य कठिनाइयों के कारण लोगों को जरूरत को देखते हैं l हालाँकि हम हर समस्या का समाधान नहीं कर सकते हैं,  हम प्रार्थनापूर्वक विचार कर सकते हैं कि हम उन परिस्थितियों में मदद करने के लिए क्या कर सकते हैं जो परमेश्वर हमारे जीवन में लाता है l

अग्नि में परिस्कृत

चौबीस कैरेट सोना कुछ अशुद्धियों के साथ लगभग 100 प्रतिशत सोना है l लेकिन उस प्रतिशत को हासिल करना मुश्किल है l परिस्कृत करनेवाले(refiner) शोधन प्रक्रिया के लिए आमतौर पर दो तरीकों में से एक का उपयोग करते हैं l मिलर(Miller) प्रक्रिया सबसे तेज और कम खर्चीली है, लेकिन परिणामस्वरूप सोना केवल 99.95 फीसदी शुद्ध होता है l वोलविल(Wohlwill) प्रक्रिया में थोड़ा अधिक समय लगता है और लागत अधिक होती है,  लेकिन उत्पादित सोना 99.99 फीसदी शुद्ध होता है l

बाइबल के समय में,  परिस्कृत करने वाले(refiner) सोने के शोधक के रूप में आग का इस्तेमाल करते थे l आग से अशुद्धियाँ सतह पर आ जाती थीं जिसे आसानी से हटाया जा सकता था l पूरे एशिया माइनर (उत्तरी तुर्की) में यीशु के विश्वासियों को लिखे गए अपने पहले पत्र में  प्रेरित पतरस ने एक विश्वासी के जीवन में जिस तरह से आज़माइश काम करता है,  उसके लिए एक रूपक के रूप में सोने की शोधन प्रक्रिया का उपयोग किया l उस समय,  कई विश्वासियों को मसीह में उनके विश्वास के लिए रोमी लोगों द्वारा सताया जा रहा था l पतरस जानता था कि वह प्रत्यक्ष रूप से कैसा हो सकता था l लेकिन सताव, पतरस समझाता है, कि [हमारे] विश्वास को “बहुमूल्य” बनाता है (1 पतरस 1:7) l

शायद आप ऐसा महसूस करते हैं कि आप परिस्कृत करनेवाले(refiner) की आग में हैं – असफलता, बीमारी, या अन्य चुनौतियों का तपन महसूस कर रहे हैं l लेकिन कठिनाई अक्सर वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा परमेश्वर हमारे विश्वास के सोने को शुद्ध करता है l अपनी पीड़ा में हम ईश्वर से भीख माँग सकते हैं कि वह इस प्रक्रिया को जल्दी समाप्त कर दे,  लेकिन वह जानता है कि जीवन में पीड़ा होने के बावजूद भी, हमारे लिए सबसे अच्छा क्या है l उद्धारकर्ता से जुड़े रहें, उसके सुख और शांति की तलाश करें l

राजसी भूमिका

एक शाही परिवार में कोई व्यक्ति सिंहासन के जितना करीब होता है, उतना ही जनता उसके बारे में सुनती है l दूसरों को लगभग भुला दिया जाता है l शाही परिवार के पास उत्तराधिकार की एक पंक्ति है जिसमें लगभग साठ लोग शामिल हैं l उनमें से एक लॉर्ड फ्रेडरिक विंडसर हैं, जो सिंहासन के लिए चालीसवें स्थान पर हैं l सुर्ख़ियों में रहने के बजाय, वह चुपचाप अपना जीवन जीते हैं l यद्यपि वह एक वित्तीय विश्लेषक के रूप में काम करते हैं, उन्हें “शाही काम करनेवाला” नहीं माना जाता है – परिवार के एक महत्वपूर्ण सदस्य जिन्हें परिवार का प्रतिनिधित्व करने के लिए भुगतान किया जाता है l

दाऊद का बेटा नातान (2 शमूएल 5:14) एक और शाही व्यक्ति है जो सुर्ख़ियों से बाहर रहता था l उसके बारे में बहुत कम जानकारी है l लेकिन जब मत्ती में यीशु की वंशावली में उसके बेटे सुलैमान का उल्लेख आया है (युसूफ की वंशावली को देखते हुए, मत्ती 1:6), लूका की वंशावली, जो कई विद्वानो का मानना है कि मरियम की पारिवारिक वंशावली है, में नातान का उल्लेख है (लूका 3:31) l हालाँकि नातान ने राजदंड नहीं थामा था, फिर भी परमेश्वर की हमेशा की भूमिका में उसकी भूमिका थी l

मसीह में विश्वासी होने के कारण, हम भी राजसी हैं l प्रेरित यूहन्ना ने लिखा है कि परमेश्वर ने हमें “परमेश्वर की संतान होने का अधिकार दिया [है]” (यूहन्ना 1:12) l हालाँकि, हम सुर्ख़ियों में नहीं हो सकते हैं ! परमेश्वर हममें से प्रत्येक को पृथ्वी पर उसका प्रतिनिधत्व करने के लिए महत्वपूर्ण मानता है और एक दिन उसके साथ राज्य करने के लिए (2 तीमुथियुस 2:11-13) l नातान की तरह, हम एक सांसारिक मुकुट नहीं पहन सकते हैं, लेकिन हमारे पास अभी भी परमेश्वर के राज्य में भूमिका निभाने का हिस्सा होगा l 

दुःख पराजित हुआ

एक अंग्रेजी फिल्म भेड़ियों की भावनाओं और व्यवहार को दर्शाती है l जब वे खुश होते हैं, वे अपनी पूँछ हिलाते हैं और उछल-कूद करते हैं l लेकिन झुण्ड के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद, वे हफ़्तों तक दुःख मनाते हैं l वे उस स्थान पर जाते हैं जहाँ पर झुण्ड के सदस्य की मृत्यु हुई थी, और अपनी लटकीपुंछ और दुखभरेरुदन के द्वारा अपना दुःख प्रगट करते हैं l

दुःख एक शक्तिशाली भावना है जिसे हम सब अनुभव करते हैं, विशेष रूप से किसी प्रियजन की मृत्यु के समय या कीमती आशा पर l मरियम मगदलीनीने इसका अनुभव किया l वह मसीह के समर्थकों से सम्बन्ध रखती थी और उनके और उनके शिष्यों के साथ यात्रा करती थी (लूका 8:1-3) l लेकिन क्रूस पर उसकी क्रूर मृत्यु ने अब उनको अलग कर दिया था l मरियम के पास यीशु के लिए करने हेतु केवल एक बात बची थी और वह थी उसके देह के दफ़न किये जाने के लिए उसको अभ्यंजित करना – एक कार्य जिसे सब्त के दिन ने बाधित किया था l लेकिन कल्पना कीजिए कि मरियम ने कब्र पर पहुँचकर बेजान, टूटा शरीर नहीं लेकिन एक जीवित उद्धारकर्ता को पाकर कैसा अनुभव की होगी! यद्यपि पहले पहल वह अपने सामने खड़े व्यक्ति को पहचान नहीं पायी थी, उस व्यक्ति द्वारा उसके नाम का उच्चारण उसे बता दिया कि वह कौन था – यीशु! तुरंत, शोक ख़ुशी में बदल गया l मरियम के पास अब खुशखबरी थी : “मैंने प्रभु को देखा [है]” (यूहन्ना 20:18) l 

यीशु स्वतंत्रता और जीवन देने के लिए हमारे अँधेरे संसार में प्रवेश किया l उसका पुनरुत्थान इस सच्चाई का उत्सव है कि जो वह करने को निकला था उसे पूरा किया l मरियम की तरह, हम मसीह के पुनरुत्थान का उत्सव माना सकते हैं और खुशखबरी साझा कर सकते हैं कि वह जीवित है! हल्लेल्युयाह!

निराशा की तस्वीर

हाल के वर्षों में, एक फोटोग्राफर ने एक किसान की दिल दहला देने वाली तस्वीर ली जिसमें वह उदास और अकेले अपने बर्बाद, सूखे खेत में बैठा था l सूखा और फसल खराब होने के मद्देनज़र किसानों और उनके परिवारों की हताश दुर्दशा से लोगों को अवगत कराने के लिए इस तस्वीर को कई प्रथम पन्नों पर छापा गया था l 

विलापगीत की पुस्तक निराशा की एक और तस्वीर प्रस्तुत करती है – यरूशलेम के विनाश के परिणामस्वरूप यहूदा की l इससे पूर्व कि नबूकदनेस्सर की सेना शहर में घुसकर उसको बर्बाद करती, लोग भुखमरी के कारण पीड़ित थे एक घेराबंदी के लिए धन्यवाद (2 राजा 24:10-11) l यद्यपि उनका कष्ट वर्षों तक परमेश्वर की अवज्ञा का परिणाम था, लेकिन विलापगीत के लेखक ने अपने लोगों की ओर से परमेश्वर को पुकारा (विलापगीत 2:11-12) l 

जबकि भजन 107 का लेखक भी इस्राएल के इतिहास में एक निराशाजनक समय का वर्णन करता है (जंगल में इस्राएल के भटकने के दौरान, पद.4-5), केंद्र-बिंदु कठिन समय में उठाए गए कदम की ओर खिसक जाता है : “तब उन्होंने संकट में यहोवा की दोहाई दी” (पद.6) l और क्या ही अद्भुत परिणाम : “और उसने उनको सकेती से छुड़ाया l”

निराशा में हैं? चुप न रहें l परमेश्वर को पुकारें l वह सुनता है और आपकी आशा को बहाल करने के लिए इंतज़ार करता है l हालांकि वह हमेशा हमें कठिन परिस्थितियों से बाहर नहीं निकालता, लेकिन वह हमेशा हमारे साथ रहने की प्रतिज्ञा करता है l 

दृढ़ता के लिए विश्वास

अर्नेस्ट शेकलटन (1874-1922) ने 1914 में अंटार्टिका को पार करने के लिए एक असफल अभियान का नेतृत्व किया l जब उनका जहाज, जिसे अंत में एंड्यूरेन्स (Endurance) अर्थात् धीरज नाम दिया गया था, वेडेल सागर में भारी बर्फ में फंस गया, यह जीवित रहने के लिए धीरज की एक दौड़ बन गया l दुनिया के बाकी हिस्सों के साथ संवाद करने का कोई साधन नहीं होने के कारण, शेकलटन और उनके दल ने निकटतम तट – एलेफेंट द्वीप - तक यात्रा करने के लिए जीवनरक्षक नौकाओं का उपयोग किया l जबकि अधिकांश चालक दल द्वीप पर पीछे रह गए, शेकलटन और चालाक दल के पांच लोगों ने द्वीप पर छूटे हुए लोगों के लिए मदद पाने के लिए दो सप्ताह तक दक्षिण जॉर्जिया की ओर 800 मील की समुद्री यात्रा की l “असफल” अभियान इतिहास की पुस्तकों में एक विजयी प्रविष्टि बन गया जब शेकलटन के सभी लोग अपने साहस और धीरज की बदौलत बच गए l 

प्रेरित पौलुस जानता था कि इसका क्या अर्थ है l रोम में एक तूफानी समुद्री यात्रा के दौरान यीशु में अपने विश्वास के लिए जांच का सामना करने के लिए, पौलुस ने परमेश्वर के एक दूत से जाना कि जहाज डूब जाएगा l लिकिन प्रेरित ने जहाज पर सभी लोगों को उत्साहित किया, परमेश्वर की प्रतिज्ञा के लिए धन्यवाद कि जहाज की हानि के बावजूद, सभी लोग बच जाएंगे (प्रेरितों 27:23-24) l 

जब आपदा आती है, तो हम चाहते हैं कि परमेश्वर तुरंत सब कुछ बेहतर के दे l लेकिन परमेश्वर हमें सहने और बढ़ने का विश्वास देता है l जैसा कि पौलुस ने रोमियों को लिखा, “क्लेश से धीरज उत्पन्न [होता है]” (रोमियों 5:3) l यह जानते हुए कि, हम कठिन समय में परमेश्वर पर भरोसा रखने के लिए एक-दूसरे को उत्साहित कर सकते हैं l 

सफ़ेद बर्फ का जादू

सत्रहवीं शताब्दी में, सर आइजक न्यूटन ने प्रिज्म का उपयोग यह अध्ययन करने के लिए किया था कि प्रकाश हमें विभिन्न रंगों को देखने में कैसे मदद करता है l उन्होंने पाया कि जब प्रकाश किसी वस्तु से गुजरता है, तो वस्तु एक विशिष्ट रंग की होती है l जबकि एकल बर्फ क्रिस्टल पारभासी दिखता है, बर्फ कई बर्फ के क्रिस्टलों से मिलकर बनता है l जब प्रकाश सभी क्रिस्टल से गुजरता है तो बर्फ सफ़ेद दिखाई देता है l 

बाइबल कुछ और का उल्लेख करती है जिसमें एक निश्चित रंग है – पाप l यशायाह नबी के द्वारा, परमेश्वर ने यहूदा के लोगों के पापों का सामना किया और उनके पाप को “लाल रंग की तरह” और “अर्गवानी रंग” के रूप में वर्णित किया, लेकिन परमेश्वर ने वादा किया कि वे “बर्फ की तरह सफ़ेद” होंगे (यशायाह 1:18) l कैसे? यहूदा को गलत कामों से दूर रहने और परमेश्वर की क्षमा मांगने की ज़रूरत थी l 

यीशु को धन्यवाद, हमारे पास परमेश्वर की क्षमा तक स्थायी पहुँच है l यीशु ने खुद को “जगत की ज्योति” संबोधित किया और कहा कि जो कोई भी उसका अनुसरण करता है “वह अंधकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा” (युहन्ना 8:12) l जब हम अपने पापों का अंगीकार करते हैं, परमेश्वर हमें क्षमा करता है और हम क्रूस पर मसीह के बलिदान के प्रकाश के माध्यम से देखे जाते हैं l इसका अर्थ यह है कि परमेश्वर हमें देखता है जैसे वह यीशु को देखता है अर्थात् निर्दोष l 

हमने जो कुछ भी गलत किया है, उसके लिए हमें अपराधबोध और लज्जा की स्थिति में नहीं रहना पड़ेगा l इसके बजाय, हम परमेश्वर की क्षमा के सत्य को थाम सकते हैं, जो हमें बर्फ के समान सफ़ेद” बनाता है l 

कमजोर को बलवन्त देना

जब मैं छोटी लड़की थी, मैंने “उसने मेरी गलती के परे देखा और मेरी ज़रूरत को देखा(He Looked Beyond My Fault and Saw My Need)” गीत सुनी l यह गीत 1967 में अमेरिकी गायिका डॉटी रेम्बो द्वारा लिखी गयी थी l  मैंने इस गीत का गहरा अर्थ तब तक नहीं समझ पायी थी जब तक मैंने जाना नहीं कि डॉटी ने अपने भाई एडी के विशवास के उत्तर में कि वह गलत चीजों के करने के कारण अप्रीतिकर था, परमेश्वर के शर्तहीन प्रेम के बारे में गीत लिखा था l गायिका ने उसे आश्वास्त किया कि परमेश्वर ने उसकी कमजोरी देखी है, लेकिन वह फिर भी उससे प्रेम करता था l 

इस्राएल और यहूदा के लोगों के कई कमजोर क्षणों में परमेश्वर का बिना शर्त प्यार स्पष्ट है l उसने यशायाह जैसे नबियों को अपने निरंकुश लोगों के लिए संदेशों के साथ भेजा l यशायाह 35 में, नबी परमेश्वर की नवीनीकरण की आशा साझा करता है l प्रोत्साहन जो आशा को गले लगाने के परिणामस्वरूप आएगा “ढीले हाथों को दृढ़ करो और थरथराते हुए घुटनों को स्थिर करो” (पद.3) l उन्हें मिले प्रोत्साहन के माध्यम से, परमेश्वर के लोग दूसरों को प्रोत्साहित करने के योग्य होंगे l यही कारण है कि यशायाह ने पद.4 में निर्देश दिया है, “हियाव बांधो, और मत डरो l”

कमजोर महसूस कर रहे हैं? अपने स्वर्गिक पिता से बातें करें l वह पवित्रशास्त्र की सच्चाई और अपनी उपस्थिति की सामर्थ्य से कमजोर को बल देता है l तब आप दूसरों को प्रोत्साहित कर सकेंगे l