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Articles by मोनिका ब्रांड्स

“स्लो फैशन” (मंद गति) वालाअनुग्रह

क्या आपने #स्लो फैशन (slow fashion) के बारे में सुना है? हैशटैग "फ़ास्ट फैशन" (fast fashion) का विरोध करने पर केंद्रित एक आंदोलन को दर्शाता है - एक ऐसा उद्योग जिसमें सस्ते में बनाए जाने वाले और जल्दी से बेचे जाने वाले कपड़ों का वर्चस्व है। फ़ास्ट फैशन में, कपड़े लगभग उतनी ही तेजी से फैशन से बाहर हो जाते हैं जितनी जल्दी वे दुकानों में होते हैं - कुछ ब्रांड हर साल बड़ी मात्रा में अपने उत्पादों को बेचा करते हैं।

स्लो फैशन आंदोलन लोगों को धीमा होने और एक अलग दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। हमेशा नई  लुक की आवश्यकता से प्रेरित होने के बजाय, स्लो फैशन हमें अच्छी तरह से बनाई गई और नैतिक रूप से तैयार की गई कम वस्तुओं का चयन करने के लिए प्रोत्साहित करता है जो लंबे समय तक चल सकें।

जैसे मैंने #स्लोफ़ैशन के निमंत्रण पर विचार किया, तो मैं हैरान रह गयी कि मैं किस तरह अन्य तरीकों से "फास्ट फ़ैशन" की सोच में पड़ जाती हूँ - हमेशा नवीनतम प्रवृत्ति (latest trend) में संतुष्टि की तलाश में रहती हूँ। हालाँकि, कुलुस्सियों 3 में, पौलुस कहते है कि यीशु में सच्चा परिवर्तन खोजना कोई जल्दी से होने वाला काम (quick fix) या सिद्धांत(fad) नहीं है। बल्कि यह मसीह में शांत, धीरे-धीरे परिवर्तन का जीवनकाल है।

दुनिया के नवीनतम प्रतिष्ठा के प्रतीक (status symbol) को पहनने की आवश्यकता के बजाय हम उसके बदले में आत्मा के "करुणा, भलाई, दीनता, नम्रता, और सहनशीलता" के परिधान को पहनने का प्रयास कर सकते हैं (पद.12)। मसीह द्वारा हमारे हृदयों को बदलने की धीमी यात्रा पर हम एक-दूसरे के साथ धैर्य रखना सीख सकते हैं - एक ऐसी यात्रा जो स्थायी शांति की ओर ले जाती है (पद-15)।

मैं कोई नहीं हूँ! तुम कौन हो?

“मैं कोई नहीं हूँ! तुम कौन हो?” से आरम्भ होने वाली एक कविता में,?" एमिली डिकिंसन लोगों द्वारा "कोई" बनने के लिए किए जाने वाले सभी प्रयासों को चंचलतापूर्वक चुनौती देती है। वह आनंदमय गुमनामी की आनंदमय स्वतंत्रता का समर्थन करती है। “कितना नीरस है के लिये- कोई होना ! कितना सार्वजनिक - एक मेंढक की तरह - / किसी का नाम बताने के लिए - जीवंत जून / एक प्रशंसनीय बोग के लिए!”( For”How dreary-to be-Somebody! How public-like a Frog-/ To tell one’s name-the livelong June/To an admiring Bog!”)

कुछ मायनों में “कोई” होने की आवश्यकता को छोड़ देने में स्वतंत्रता खोज पाना प्रेरित पौलुस की गवाही को प्रतिध्वनित करता है। मसीह से आमना-सामना होने से पहले, पौलुस के पास प्रभावशाली धार्मिक प्रमाणों की एक लम्बी सूची थी, जो स्पष्ट रूप से “शरीर पर भरोसा रखने के विचार” थे (फिलिप्पियों 3:4)।

परन्तु यीशु से आमना-सामना होने से सब कुछ बदल गया। जब पौलुस ने देखा कि मसीह के बलिदानी प्रेम के आलोक में उसकी धार्मिक उपलब्धियाँ कितनी खोखली हैं, तो उसने इस बात का अंगीकार किया कि “मैं अपने प्रभु मसीह यीशु की पहचान की उत्तमता के कारण सब बातों को हानि समझता हूँ... और उन्हें कूड़ा समझता हूँ, ताकि मैं मसीह को प्राप्त करूँ” (पद 8)। “ताकि मैं उसको और उसके पुनरुत्थान की सामर्थ्य को, और उसके साथ दुःखों में सहभागी होने के मर्म को जानूँ, और उसकी मृत्यु की समानता को प्राप्त करूँ” उसकी एकमात्र शेष महत्वाकांक्षा यही थी (पद 10)।

वास्तव में, अपने दम पर “कोई” बनने का प्रयास करना नीरस होता है। परन्तु, यीशु को जानना और उसके आत्म-बलिदानी प्रेम और जीवन में अपने आप को खो देना ही, अंत में स्वतंत्र और सम्पूर्ण रूप से अपने आप को फिर से प्राप्त करना है (पद 9)।

खुले दिल से उदारता

यह कहते हुए कभी कोई नहीं मरा, “मैं आत्म-केन्द्रित, स्वयंसेवी, एवं आत्म-रक्षक जीवन जीकर बहुत खुश हूँ,” लेखक पार्कर पामर ने एक आरंभिक संबोधन में कहते हुए, स्नातकों से “खुले हृदय से उदारता के साथ [खुद को] संसार की सेवा में पेश करने” का आग्रह किया l

लेकिन, पार्कर ने जारी रखा, इस तरह जीने का अर्थ सीखना भी होगा कि “आप कितना कम जानते हैं और असफल होना कितना सरल है l” खुद को संसार की सेवा में पेश करने के लिए “शुरू करनेवाले मस्तिष्क” विकसित करने की ज़रूरत हैं जो “सीधे अपने अनजाने में चले, और बार-बार असफल होने का जोखिम उठाए—उसके बाद सीखने के लिए बार-बार उठ खड़ा हो l”

जब हमारा जीवन अनुग्रह की नींव पर निर्मित होगा तब ही “खुले दिल की उदारता” के ऐसे जीवन को चुनने का साहस पा सकते हैं l जैसा कि पौलुस ने अपने शिष्य तीमुथियुस को समझाया, हम आत्मविश्वास से “प्रज्वलित कर” सकते हैं (2 तीमुथियुस 1:6) और परमेश्वर के उपहार पर जीवित रह सकते हैं जब हम याद करते हैं कि यह परमेश्वर का अनुग्रह है जो हमें बचाता है और हमें एक उद्देश्यपूर्ण जीवन के लिए बुलाता है (पद. 9) l यह उसकी शक्ति है जो हमें आत्मा की “सामर्थ्य और प्रेम और संयम” (पद.7) के बदले कायर जीवन जीने के प्रलोभन का विरोध करने का साहस देती है l और यह उसका अनुग्रह है जो हमें तब उठाता है जब हम गिरते हैं, ताकि अपने जीवन को उसके प्रेम में स्थापित करने की आजीवन यात्रा जारी रख सकें (पद.13-14) l

हर दुःख

उन्नीसवीं शताब्दी के कवि एमिली डिकिन्सन ने लिखा, "मैं मिलने वाले हर दुःख को मापता हूं," "संकीर्ण, जांच करने वाली, आँखों के साथ - / मैं आश्चर्य करता हूँ कि क्या इसका वजन मेरे जैसा है- / या इसका आकार आसान है।" डिकिंसन ने अपने  एकमात्र सांत्वना के साथ, लगभग हिचकिचाहट के साथ निष्कर्ष निकाला: कलवरी में अपने स्वयं के घावों को देखने का "छेदनेवाला आराम" उद्धारकर्ता के घावों में प्रतिबिंबित होता है: "अभी भी अनुमान लगाने के लिए मोहित / कि कुछ - मेरे अपने जैसे हैं -।"

प्रकाशितवाक्य का पुस्तक यीशु का वर्णन करता है... मानो एक वध किया हुआ मेम्‍ना ..(5:6,12), उसके घाव अभी भी दिख रहे हैं। अपने लोगों के पाप और निराशा को अपने ऊपर लेने के द्वारा अर्जित किया गया घाव (1 पतरस 2:24-25), ताकि उन्हें नया जीवन और आशा मिले।

और प्रकाशितवाक्य एक भविष्य दिन का वर्णन करता है जब उद्धारकर्ता अपने बच्चों के “..आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा; ...” (21:4)। यीशु उनका दुःख कम नहीं करेगा, बल्कि वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति के अद्वितीय दुःख को देखेगा और देखभाल करेगा -- उन्हें अपने राज्य में जीवन की नई, चंगाई की वास्तविकताओं में आमंत्रित करते हुए, जहाँ “मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी;” जहाँ चंगा करने वाला पानी बहेगा “जीवन के जल के सोते में से सेंत-मेंत” (पद 6; 22:2)पिलाएगा।

क्योंकि हमारे उद्धारकर्ता ने हमारा हर दुःख उठाया है, हम उसके राज्य में विश्राम और चंगाई पा सकते हैं।

हमारी सुरक्षा का स्थान

सेवानिवृत्त शिक्षिका डेबी स्टीफेंस ब्राउनर अधिक से अधिक लोगों को पेड़ लगाने के लिए राजी करने के मिशन पर हैं। और इसका कारण क्या है? गर्मी है । संयुक्त राज्य अमेरिका में अत्यधिक गर्मी, मौसम सम्बन्धी मृत्यु होने का नम्बर एक कारण है। इसके उत्तर में वह कहती हैं, “मैं पेड़ों से आरम्भ कर रही हूँ।” समुदायों की रक्षा करने का एक महत्वपूर्ण तरीका गर्मी  से बचाव का एक आवरण है जो पेड़ प्रदान करते हैं।   "यह केवल समुदाय को सुंदर बनाने के बारे में नहीं है । यह जीवन या मृत्यु है।  "

सच्चाई यह है कि छाया न केवल ताज़ा करती है, बल्कि संभावित रूप से जीवन रक्षक भी है, जिसके विषय में उस भजनकार को अच्छी रीति से मालूम होगा जिसने भजन संहिता 121 अध्याय लिखा था; मध्य पूर्व में लू लगने का खतरा लगातार बना रहता है। यह वास्तविकता हमारी सुरक्षा के निश्चित स्थान के रूप में परमेश्वर के उस भजन के स्पष्ट वर्णन में गहराई को जोड़ती है, जिसकी देखभाल में “न तो दिन को धूप से, और न रात को चाँदनी से [हमारी] कुछ हानि होगी” (पद 6)।

इस वचन का अर्थ यह नहीं हो सकता कि यीशु पर विश्वास करने वाले लोग इस जीवन में पीड़ा या नुकसान से किसी भी रीति से मुक्त हैं (या उनके लिए गर्मी खतरनाक नहीं है!)। आखिरकार, मसीह स्वयं ही हमसे कहता है,“इस संसार में तुम्हें क्लेश होता है” (यूहन्ना 16:33)। परन्तु हमारी छाया के रूप में परमेश्वर का यह रूपक हमें जीवंतता से इस बात के लिए आश्वस्त करता है कि जो कुछ भी हमारे मार्ग में आता है, उससे हमारे जीवन परमेश्वर की चौकस देखभाल की सुरक्षा में रखे जाते हैं (भजन संहिता 121:7-8)। वहाँ हम उस पर भरोसा करने के द्वारा विश्राम पा सकते हैं, यह जानते हुए कि कोई भी वस्तु हमें उसके प्रेम से अलग नहीं कर सकती है (यूहन्ना 10:28; रोमियों 8:39)।

सपना नहीं

यह एक सपने में रहने जैसा है जिससे आप जाग नहीं सकते। जो लोग कभी-कभी "अ-प्रतीति " या "प्रतिरूपण" कहे जाने वाले संघर्ष से जूझते हैं, वे अक्सर ऐसा महसूस करते हैं कि उनके आसपास कुछ भी वास्तविक नहीं है। जबकि जिन लोगों में यह भावना लंबे समय से है, उन्हें एक विकार का निदान किया जा सकता है, यह एक सामान्य मानसिक स्वास्थ्य संघर्ष माना जाता है, विशेष रूप से तनावपूर्ण समय के दौरान। लेकिन कभी-कभी जीवन अच्छा लगने पर भी भावना बनी रहती है। ऐसा लगता है जैसे हमारा दिमाग भरोसा नहीं कर सकता कि अच्छी चीजें वास्तव में हो रही हैं।

पवित्रशास्त्र समय-समय पर परमेश्वर के लोगों के ऐसे ही संघर्ष का वर्णन करता है जो उनकी सामर्थ्य और छुटकारे को वास्तविकता के रूप में अनुभव करता है, न कि केवल एक स्वप्न के रूप में। प्रेरितों के काम 12 में, जब एक स्वर्गदूत पतरस को कैद से छुड़ाता है — और संभव मृत्युदण्ड (पद. 2, 4) — तो प्रेरित को विस्मय में होने के रूप में वर्णित किया गया है, यकीन नहीं होता कि यह वास्तव में हो रहा था (पद. 9-10) । जब स्वर्गदूत ने उसे जेल के बाहर छोड़ दिया, तो पतरस अंततः "होश में आया" और महसूस किया कि यह सब वास्तविक था (पद. 11)।

बुरे और अच्छे दोनों समयों में, कभी-कभी पूरी तरह से विश्वास करना या अनुभव करना कठिन हो सकता है कि परमेश्वर वास्तव में हमारे जीवन में काम कर रहा है। लेकिन हम भरोसा कर सकते हैं कि जब हम उसकी बाट जोहते हैं, उसकी पुनरुत्थान की शक्ति एक दिन निर्विवाद रूप से, आश्चर्यजनक रूप से वास्तविक हो जाएगी। परमेश्वर का प्रकाश हमें हमारी नींद से उसके साथ जीवन की वास्तविकता में जगाएगा (इफिसियों 5:14)।

बढ़ते हुए! अडिग

“रेस्ट/विश्राम(Rest)” नामक कविता में, कवि धीरे-धीरे “फुरसत” के समय को “काम” से अलग करने की हमारी प्रवृत्ति को चुनौति देता हुआ पूछता है, “क्या सच्ची फुरसत / सच्चा परिश्रम एक नहीं है?” यदि आप जीवन के कर्तव्यों से दूर रहकर उसके स्थान पर सच्ची फुरसत का अनुभव करना चाहते हैं, तो लेखक आग्रह करता है, “फिर भी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करें; उसका उपयोग करें, उसे व्यर्थ न गवाएँ ——/ अन्यथा वह आराम नहीं है l /क्या सुन्दरता निहारना चाहेंगे/ अपने निकट? चारों-ओर? / केवल कर्तव्य है / ऐसी ही स्थिति है l”

कवि इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि सच्चा विश्राम और आनंद दोनों ही प्रेम और सेवा से मिलते हैं—एक विचार जो थिस्सलुनीकियों के लिए पौलुस का प्रोत्साहन याद दिलाता है l अपनी बुलाहट के वर्णन के द्वारा विश्वासियों को प्रोत्साहित करते हुए कि “उनका चाल-चलन परमेश्वर के योग्य हो” (1 थिस्सलुनीकियों 2:12) प्रेरित और अधिक निश्चित विवरण देता है l 

और ऐसे जीवन का चित्र जो वह बनाता है वह शांत सत्यनिष्ठा, प्रेम और सेवा का है l पौलुस प्रार्थना करता है कि परमेश्वर “ऐसा करें कि . . . आपका प्रेम एक दूसरे के प्रति और सब के प्रति बढ़ता और उमड़ता रहे’” (3:12) और वह यीशु में विश्वासियों से आग्रह करता है कि “चुपचाप रहने और अपना-अपना काम काज करने और अपने अपने हाथों से कमाने का प्रयत्न [करें]” (4:11) l यह उस तरह का जीवन है, जिस तरह से परमेश्वर ने हमें सक्षम बनाया है, चुपचाप प्रेम और सेवा करना, जो दूसरों के समक्ष विश्वास के जीवन की सुन्दरता को प्रकट करता हैI (पद.12)  

अथवा, जैसे वह लेखक लिखता है, सच्चा आनंद “प्रेम करने और सेवा करने/ सबसे ऊंचा और सर्वोत्तम;/ आगे बढ़ने वाला! अडिग—/और यही सच्चा विश्राम है l”

परमेश्वर का कोमल अनुग्रह

कवि एमिली डिकिंसन ने लिखा, “सब सच बोलो, लेकिन तिरछा बोलो,” यह सुझाव देते हुए कि, परमेश्वर की सच्चाई और महिमा कमजोर मनुष्य-जाति को एक ही बार में इसे पूरी रीति से समझने या ग्रहण करने के लिए “अति उज्ज्वल” है, हमारे लिए ये उत्तम है कि हम परमेश्वर के अनुग्रह और सच्चाई को ग्रहण करे और “तिरछी”—कोमल, अप्रत्यक्ष—तरीकों में साझा करें। क्योंकि "सत्य को धीरे-धीरे चकाचौंध करना चाहिए / या हर आदमी अंधा हो जाएगा।"प्रेरित पौलुस ने इफिसियों 4 में इसी तरह का तर्क दिया जब उसने विश्वासियों को “पूरी रीति से दीन और नम्र” होने और “धैर्य रखने और प्रेम से एक दूसरे की सहने” के लिए आग्रह किया (पद 2)। पौलुस ने समझाया, विश्वासियों की नींव एक दूसरे के साथ नम्रता और अनुग्रह, मसीह के साथ हमारा अनुग्रहपूर्ण तरीका है। उसके देहधारण में (पद 9-10), यीशु ने अपने आप को शांत, सौम्य तरीकों से प्रकट किया जो लोगों को उस पर भरोसा करने और उसे ग्रहण करने के लिए आवश्यकता थी।

और वह अपने आप को ऐसे कोमल, प्रेमपूर्ण तरीकों से प्रकट करना जारी रखता है—अपने लोगों को उसी तरह के दान और शक्ति प्रदान करता है जिस तरह से उन्हें विकसित होने और परिपक्व होने के लिए आवश्यक है—“...मसीह की देह उन्नति पाए, ... जब तक कि हम सब के सब विश्वास और परमेश्वर के पुत्र की पहचान में एक न हो जाए। ..और मसीह के पूरे डील-डौल तक न बढ़ जाएँ (पद 12-13)। जैसे-जैसे हम बढ़ते और परिपक्व्व होते हैं, हम आशा के लिए कहीं और देखने के प्रति कम संवेदनशील हो जाते हैं (पद 14) और यीशु के कोमल प्रेम के उदाहरण का अनुसरण करने में अधिक आश्वस्त होते हैं (पद 15-16)।

हमारे भविष्य के लिए परमेश्वर का मदद

मनोवैज्ञानिक मेग जे के अनुसार, हमारा दिमाग अपने भविष्य के बारे में उसी तरह सोचता है जैसे हम पूर्ण अजनबियों के बारे में सोचते हैं। क्यों? यह शायद उस कारण से है जिसे कभी-कभी "सहानुभूति अंतराल" कहा जाता है। जिन लोगों को हम व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते उन्हें सहानुभूति देना और देखभाल करना कठिन हो सकता है-- यहां तक ​​कि खुद के भविष्य के संस्करण भी। इसलिए अपने काम में, जे(Jay) युवाओं को अपने भविष्य की कल्पना करने में मदद करने की कोशिश करती है, और उनकी देखभाल करने के लिए कदम उठाती है। इसमें कार्यवाही योग्य योजनाओं पर काम करना भी शामिल है जो वे एक दिन होंगे पर --उनके सपनों को साकार करने और आगे बढ़ते रहने का मार्ग प्रशस्त करता है।  

भजन 90 में, हम अपने जीवनों को देखने के लिए आमंत्रित किए गए है न केवल वर्तमान में, बल्कि लेकिन समग्र रूप में—परमेश्वर को हमें “हम को अपने दिन गिनने की समझ दे कि हम बुद्धिमान हो जाएँ” (12) में मदद करने के लिए। यह याद रखते हुए की पृथ्वी पर हमारा समय सिमित है हमें परमेश्वर पर भरोसा करने की हमारी सख्त जरूरत की याद दिला सकता है। हमें संतुष्टि और आनंद पाना सिखने के लिए उसकी मदद की जरूरत है—न केवल अभी, बल्कि “जीवन भर” (14)। हमें न केवल अपने बारे में बल्कि, भविष्य के पीढियों के लिए सोचना सिखने के लिए हमें उसकी मदद की जरूरत है (16)। जैसे वह हमारे मनोरथों और हाथों के कामों को दृढ करता है--जो समय हमें दिया गया है उसके द्वारा हमें उनकी सेवा करने के लिए उनकी मदद की जरूरत है (17)।