जो मायने रखता है उसके लिए दौड़ना
युक्रेन की घिरी हुयी राजधानी कीव में अपना घर छोड़ने के कुछ ही दिनों बाद 2022 में पोस्ट किया गया, मेरी सहेली इरा के स्टेटस अपडेट पर आँसू न आना असंभव था l उसने एक दौड़ प्रतियोगिता(running event) पूरा करने के बाद अपने देश का झंडा उठाते हुए खुद की एक पुरानी तस्वीर साझा की l उसने लिखा, “हम सभी अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमताओं के साथ दौड़ रहे हैं जिसे जीवन कहा जाता है l चलिए इसे इन दिनों उससे भी बेहतर दौड़ते हैं l ऐसी चीज़ के साथ जो हमारे दिलों में कभी नहीं मरती l” बाद के दिनों में, मैंने देखा कि मेरी सहेली ने कई तरीकों से उस दौड़ को दौड़ना जारी रखा, क्योंकि उसने हमें अपने देश में पीड़ित लोगों के लिए प्रार्थना करने और उनका समर्थन करने के बारे में अपडेट रखाl (हालात की ताज़ा जानकारी से अवगत कराये रखा)
इरा के शब्दों ने इब्रानियों 12 में विश्वासियों को “धीरज से दौड़ने” (पद.1) की बुलाहट में नयी गहराई दी l यह बुलाहट अध्याय 11 के मार्मिक विवरण के बाद है विश्वास के नायकों,“गवाहों का बड़ा बादल” (12:1) जो साहसी,निरंतर विश्वास के साथ जीते थे—यहाँ तक कि अपने जीवन को जोखिम में डालकर भीI(11:33-38)हालाँकि उन्होंने “सिर्फ दूर से देखा ....और [परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं] को दूर से मान लिया” (पद.13) वे उस अनंत वस्तु के लिए जी रहे थे, जो कभी नहीं मिटती है l
यीशु में सभी विश्वासियों को उसी तरह जीने के लिए बुलाया गया है l क्योंकि शालोम—परमेश्वर के राज्य की शांति का फलना-फूलना—हमारा सब कुछ उसके लिए देने के लायक है l और यह मसीह का उदाहरण और सामर्थ्य ही है जो हमें संभालता है (12:2-3)
एक नई शुरुआत
यूजीन पीटरसन ने भजन संहिता 120 पर अपने शक्तिशाली चिन्तन में लिखा, “मसीही जागृति (जानकारी) एक दुखभरे अहसास में शुरू होती है कि हमने जो सच मान लिया था वह वास्तव में एक झूठ है।” भजन संहिता 120 चढ़ाई के भजन में से पहला है (भजन संहिता 120–134), तीर्थयात्रियों द्वारा यरूशलेम जाते समय गाया जाता था। और जैसा कि पीटरसन ने ए लांग ओबीडियन्स इन द सेम डायरैक्शन में इसकी खोज की, ये भजन हमें ईश्वर की ओर आत्मिक यात्रा की एक तस्वीर भी प्रस्तुत करते हैं।
वह यात्रा केवल कुछ अलग करने की हमारी आवश्यकता की गहरी जागरूकता के साथ शुरू हो सकती है। जैसा कि पीटरसन कहते हैं, “मसीही मार्ग पर चलने की प्रेरणा पाने के लिए जिस तरह से चीजें हैं, उससे एक व्यक्ति को पूरी तरह से निराश होना पड़ता है।” इससे पहले कि कोई अनुग्रह की दुनिया के लिए रुचि प्राप्त करे, उसे दुनिया के तरीकों से तंग आना पड़ता है।
अपने आस पास की दुनिया में हम जो टूट–फूट और निराशा देखते हैं, उससे निराश होना आसान है; हमारी संस्कृति के व्यापक तरीके अक्सर दूसरों को होने वाले नुकसान के लिए कठोर उपेक्षा दिखाते हैं। भजन संहिता 120 इस पर ईमानदारी से अफसोस जताता है: “मैं तो मेल चाहता हूँ, परन्तु मेरे बोलते ही वे लड़ना चाहते हैं!” (पद 7)। लेकिन यह महसूस करने में चंगाई और स्वतंत्रता है कि हमारा दर्द हमें हमारी एकमात्र मदद के जरिये एक नई शुरुआत के लिए भी जगा सकता है, उद्धारकर्ता जो हमें विनाशकारी झूठ से शांति निकालकर पूर्णता के पथ में हमारा मार्गदर्शन कर सकता है (121:2)। जब हम इस नए साल में प्रवेश करते हैं, तो आइये हम उसे और उसके मार्गों की तलाश करें।
बढ़ते हुए! अडिग
“रेस्ट/विश्राम(Rest)” नामक कविता में, कवि धीरे-धीरे “फुरसत” के समय को “काम” से अलग करने की हमारी प्रवृत्ति को चुनौति देता हुआ पूछता है, “क्या सच्ची फुरसत / सच्चा परिश्रम एक नहीं है?” यदि आप जीवन के कर्तव्यों से दूर रहकर उसके स्थान पर सच्ची फुरसत का अनुभव करना चाहते हैं, तो लेखक आग्रह करता है, “फिर भी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करें; उसका उपयोग करें, उसे व्यर्थ न गवाएँ ——/ अन्यथा वह आराम नहीं है l /क्या सुन्दरता निहारना चाहेंगे/ अपने निकट? चारों-ओर? / केवल कर्तव्य है / ऐसी ही स्थिति है l”
कवि इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि सच्चा विश्राम और आनंद दोनों ही प्रेम और सेवा से मिलते हैं—एक विचार जो थिस्सलुनीकियों के लिए पौलुस का प्रोत्साहन याद दिलाता है l अपनी बुलाहट के वर्णन के द्वारा विश्वासियों को प्रोत्साहित करते हुए कि “उनका चाल-चलन परमेश्वर के योग्य हो” (1 थिस्सलुनीकियों 2:12) प्रेरित और अधिक निश्चित विवरण देता है l
और ऐसे जीवन का चित्र जो वह बनाता है वह शांत सत्यनिष्ठा, प्रेम और सेवा का है l पौलुस प्रार्थना करता है कि परमेश्वर “ऐसा करें कि . . . आपका प्रेम एक दूसरे के प्रति और सब के प्रति बढ़ता और उमड़ता रहे’” (3:12) और वह यीशु में विश्वासियों से आग्रह करता है कि “चुपचाप रहने और अपना-अपना काम काज करने और अपने अपने हाथों से कमाने का प्रयत्न [करें]” (4:11) l यह उस तरह का जीवन है, जिस तरह से परमेश्वर ने हमें सक्षम बनाया है, चुपचाप प्रेम और सेवा करना, जो दूसरों के समक्ष विश्वास के जीवन की सुन्दरता को प्रकट करता हैI (पद.12)
अथवा, जैसे वह लेखक लिखता है, सच्चा आनंद “प्रेम करने और सेवा करने/ सबसे ऊंचा और सर्वोत्तम;/ आगे बढ़ने वाला! अडिग—/और यही सच्चा विश्राम है l”
परमेश्वर का कोमल अनुग्रह
कवि एमिली डिकिंसन ने लिखा, “सब सच बोलो, लेकिन तिरछा बोलो,” यह सुझाव देते हुए कि, परमेश्वर की सच्चाई और महिमा कमजोर मनुष्य-जाति को एक ही बार में इसे पूरी रीति से समझने या ग्रहण करने के लिए “अति उज्ज्वल” है, हमारे लिए ये उत्तम है कि हम परमेश्वर के अनुग्रह और सच्चाई को ग्रहण करे और “तिरछी”—कोमल, अप्रत्यक्ष—तरीकों में साझा करें। क्योंकि "सत्य को धीरे-धीरे चकाचौंध करना चाहिए / या हर आदमी अंधा हो जाएगा।"प्रेरित पौलुस ने इफिसियों 4 में इसी तरह का तर्क दिया जब उसने विश्वासियों को “पूरी रीति से दीन और नम्र” होने और “धैर्य रखने और प्रेम से एक दूसरे की सहने” के लिए आग्रह किया (पद 2)। पौलुस ने समझाया, विश्वासियों की नींव एक दूसरे के साथ नम्रता और अनुग्रह, मसीह के साथ हमारा अनुग्रहपूर्ण तरीका है। उसके देहधारण में (पद 9-10), यीशु ने अपने आप को शांत, सौम्य तरीकों से प्रकट किया जो लोगों को उस पर भरोसा करने और उसे ग्रहण करने के लिए आवश्यकता थी।
और वह अपने आप को ऐसे कोमल, प्रेमपूर्ण तरीकों से प्रकट करना जारी रखता है—अपने लोगों को उसी तरह के दान और शक्ति प्रदान करता है जिस तरह से उन्हें विकसित होने और परिपक्व होने के लिए आवश्यक है—“...मसीह की देह उन्नति पाए, ... जब तक कि हम सब के सब विश्वास और परमेश्वर के पुत्र की पहचान में एक न हो जाए। ..और मसीह के पूरे डील-डौल तक न बढ़ जाएँ (पद 12-13)। जैसे-जैसे हम बढ़ते और परिपक्व्व होते हैं, हम आशा के लिए कहीं और देखने के प्रति कम संवेदनशील हो जाते हैं (पद 14) और यीशु के कोमल प्रेम के उदाहरण का अनुसरण करने में अधिक आश्वस्त होते हैं (पद 15-16)।
हमारे भविष्य के लिए परमेश्वर का मदद
मनोवैज्ञानिक मेग जे के अनुसार, हमारा दिमाग अपने भविष्य के बारे में उसी तरह सोचता है जैसे हम पूर्ण अजनबियों के बारे में सोचते हैं। क्यों? यह शायद उस कारण से है जिसे कभी-कभी "सहानुभूति अंतराल" कहा जाता है। जिन लोगों को हम व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते उन्हें सहानुभूति देना और देखभाल करना कठिन हो सकता है-- यहां तक कि खुद के भविष्य के संस्करण भी। इसलिए अपने काम में, जे(Jay) युवाओं को अपने भविष्य की कल्पना करने में मदद करने की कोशिश करती है, और उनकी देखभाल करने के लिए कदम उठाती है। इसमें कार्यवाही योग्य योजनाओं पर काम करना भी शामिल है जो वे एक दिन होंगे पर --उनके सपनों को साकार करने और आगे बढ़ते रहने का मार्ग प्रशस्त करता है।
भजन 90 में, हम अपने जीवनों को देखने के लिए आमंत्रित किए गए है न केवल वर्तमान में, बल्कि लेकिन समग्र रूप में—परमेश्वर को हमें “हम को अपने दिन गिनने की समझ दे कि हम बुद्धिमान हो जाएँ” (12) में मदद करने के लिए। यह याद रखते हुए की पृथ्वी पर हमारा समय सिमित है हमें परमेश्वर पर भरोसा करने की हमारी सख्त जरूरत की याद दिला सकता है। हमें संतुष्टि और आनंद पाना सिखने के लिए उसकी मदद की जरूरत है—न केवल अभी, बल्कि “जीवन भर” (14)। हमें न केवल अपने बारे में बल्कि, भविष्य के पीढियों के लिए सोचना सिखने के लिए हमें उसकी मदद की जरूरत है (16)। जैसे वह हमारे मनोरथों और हाथों के कामों को दृढ करता है--जो समय हमें दिया गया है उसके द्वारा हमें उनकी सेवा करने के लिए उनकी मदद की जरूरत है (17)।
नम्रता सत्यता है
एक दिन इस बात पर विचार करते हुए कि परमेश्वर नम्रता को इतना अधिक महत्व क्यों देता है, सोलहवीं शताब्दी की अविला की टेरेसा नामक एक विश्वासी ने अचानक इसके उत्तर को महसूस किया: "ऐसा इसलिए है क्योंकि ईश्वर सर्वोच्च सत्यता है, और नम्रता सत्यता है। . . .हममें कुछ भी भला हमारे कारण से नहीं उत्पन होता। बल्कि, यह अनुग्रह के जल से आता है, जिसके समीप आत्मा रहती है, जैसे नदी के किनारे लगाए गए पेड़, और उस सूर्य से जो हमारे कार्यों को जीवन देता है।” टेरेसा ने निष्कर्ष निकाला कि यह प्रार्थना के द्वारा है कि हम स्वयं को उस वास्तविकता में स्थिर करते हैं, क्योंकि "प्रार्थना की संपूर्ण नींव नम्रता है। जितना अधिक हम प्रार्थना में स्वयं को नम्र करेंगे, उतना ही अधिक परमेश्वर हमें ऊपर उठायेगा।”
नम्रता के बारे में टेरेसा के शब्द याकूब ४ में पवित्रशास्त्र की भाषा को प्रतिध्वनित करते हैं, जहां याकूब ने घमड़ और स्वार्थी महत्वाकांक्षा के आत्म-विनाशकारी स्वभाव के बारे में चेतावनी दी थी, जो परमेश्वर की दया पर निर्भर होकर जीने वाले जीवन के विपरीत है (पद १-६)। उसने जोर देकर कहा कि लालच, निराशा और निरंतर संघर्ष के जीवन का एकमात्र समाधान परमेश्वर की दया के बदले अपने घमड़ से पश्चाताप करना है। या, दूसरे शब्दों में, "अपने आप को प्रभु के सामने दीन" करने के लिए, इस आश्वासन के साथ कि "वह तुम्हें शिरोमणि बनाएगा" (पद १०)।
केवल जब हम अनुग्रह के जल में निहित होते हैं तो हम स्वयं को "स्वर्ग से आने वाले ज्ञान" से पोषित पाते हैं (३:१७)। केवल उसी में हम स्वयं को सत्य के द्वारा ऊपर उठा पाते हैं।
कुंजी
थॉमस कीटिंग ने अपनी क्लासिक किताब द ह्यूमन कंडीशन में इस यादगार कहानी को साझा किया है। एक शिक्षक, अपने घर की चाबी खो जाने के बाद, अपने हाथों और घुटनों पर, घास में अपनी चाबी खोजता है। जब उनके शिष्यों ने उन्हें खोजते हुए देखा, तो वे भी चाबी ढूंढ़ने में शामिल हो गए, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। अंत में, अधिक बुद्धिमान शिष्यों में से एक पूछता है, “गुरु! क्या आपको पता है कि आपने चाबी कहाँ खो दी होगी?” उनके शिक्षक जवाब देते हैं, “बिल्कुल। मैंने इसे घर में खो दिया।” वह कहता है, “तो हम इसे यहाँ क्यों ढूंढ रहे हैं?” वह जवाब देता है, “क्या यह स्पष्ट नहीं है कि यहाँ रोशनी अधिक है।”
कीटिंग निष्कर्ष निकालता है कि — “हमने परमेश्वर के साथ घनिष्ठता, परमेश्वर की प्रेममय उपस्थिति के अनुभव की कुंजी खो दी है। उस अनुभव के बिना, और कुछ भी पूरी तरह से काम नहीं करता है पर इसके साथ, लगभग कुछ भी काम करता है।”
यह भूलना कितना आसान है कि जीवन के उतार–चढ़ाव में भी, परमेश्वर हमारी गहरी लालसाओं की कुंजी है। लेकिन जब हम सभी गलत जगहों को देखना बंद करने के लिए तैयार होते हैं, तो परमेश्वर वहां होते हैं, जो हमें सच्चा विश्राम दिखाने के लिए तैयार होते हैं। मत्ती 11 में, यीशु “बुद्धिमान और विद्वान” के लिए नहीं, “बल्कि छोटे बच्चों” के लिए अपने तरीके प्रकट करने के लिए पिता की प्रशंसा करता है (पद 25)। फिर वह आप सभी को “जो थके हुए और बोझ से दबे हुए हैं” (पद 28) को उसके पास विश्राम के लिए आने के लिए आमंत्रित करता है।
छोटे बच्चों की तरह, हम सच्चा आराम पा सकते हैं जब हम अपने शिक्षक (गुरु) के तौर–तरीकों को सीखते हैं, जो नम्र और मन में दीन है (पद 29)। परमेश्वर हैं, घर में हमारा स्वागत करने के लिए उत्सुक हैं।
विश्वासयोग्य प्रेम
क्यों मैं इसके बारे में सोचना बंद नहीं कर रही? मेरी भावनाएँ उदासी, अपराधबोध, क्रोध और भ्रम से उलझी हुई थीं।
वर्षों पहले, मैंने अपने किसी करीबी के साथ संबंधों को मिटाने का दर्दनाक निर्णय लिया था, कई प्रयासों के बाद जो उस गहराई से चोट पहुंचाने वाले व्यव्हार को संबोधित करने के लिए किये गए जिनका सामना केवल बरख़ास्तगी और इनकार से हुआ था। आज, यह सुनने के बाद कि वह शहर में आयी है, मेरे विचार उलझन और अतीत को फिर से याद करने में बढ़ गए थे।
जैसे ही मैं अपने विचारों को शांत करने के लिए संघर्ष कर रही थी, मैंने रेडियो पर एक गाना बजते हुए सुना। गीत ने न केवल विश्वासघात की पीड़ा को व्यक्त किया, बल्कि उस व्यक्ति में परिवर्तन और सुधार की गहरी लालसा भी व्यक्त करी जिसने नुकसान पहुंचाया। मेरी आंखों में आँसू आ गए जब मैं दस्तक देते हुए उस कथागीत में भीग गयी जो मेरी स्वयं की गहरी लालसा को आवाज़ दे रहा था।
प्रेरित पौलुस ने रोमियों 12:9 में लिखा, “प्रेम निष्कपट हो,” यह याद दिलाते हुए कि ज़रूरी नहीं सब कुछ जो प्रेम से हो वो सच्चा हो। फिर भी हमारे दिल की सबसे गहरी लालसा वास्तविक प्रेम को जानने की है - ऐसा प्रेम जो आत्म-सेवा या जोड़-तोड़ नहीं है, बल्कि दयालु और आत्म-दान है। प्रेम जो भय से प्रेरित नहीं है जिस पर नियंत्रित होना आवश्यक है परन्तु एक दूसरे की भलाई के लिए एक हर्षित प्रतिबद्धता है (पद 10-13)।
और वह अच्छी खबर है, सुसमाचार। यीशु के कारण, हम अंततः उस प्रेम को जान और साझा कर सकते हैं जिस पर हम भरोसा कर सकते हैं — ऐसा प्रेम जो हमें कभी नुकसान नहीं पहुँचाएगा (13:10)। उसके प्रेम में जीना स्वतंत्र होना है।
खोदा गया दुख
एक दुर्लभ और लाइलाज मस्तिष्क कैंसर का विनाशकारी निदान प्राप्त करने के बाद,एक अनूठी सेवा प्रदान करने के माध्यम से कैरोलिन ने नई आशा और उद्देश्य पाया —गंभीर रूप से बीमार बच्चों और उनके परिवारों के लिए स्वयंसेवी फोटोग्राफी सेवाएं। इस सेवा के माध्यम से परिवार अपने बच्चों के साथ साझा किए गए अनमोल पलों को कैद कर सकते हैं, दुख में और अनुग्रह और सुंदरता के क्षण, जो हम मानते हैं कि उन हताश स्थानों में मौजूद नहीं हैं। उसने देखा कि कठिनतम क्षणों में जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है, उन परिवारों ने इन सब के बावजूद भी प्यार करना चुना ।
दुख की सच्चाई को पकड़ना अकथनीय रूप से शक्तिशाली है – इसकी विनाशकारी वास्तविकता और इसके बीच में हम जिस तरह से सुंदरता और आशा का अनुभव करते हैं, दोनों।
अय्यूब की अधिकांश पुस्तक शोक की तस्वीर की तरह है– विनाशकारी नुकसान के माध्यम से अय्यूब की यात्रा को ईमानदारी से दिखाना (1:18.19)। अय्यूब के साथ कई दिनों तक बैठने के बादए उसके मित्र उसके दुःख से थक गए, और इसे कम से कम करने या इसे परमेश्वर के निर्णय के रूप में समझाने का सहारा लेने लगे। परन्तु अय्यूब ने जोर देकर कहा कि वह जिस चीज से गुजर रहा था, वह मायने रखती है, और इच्छा प्रकट करी कि उसके अनुभव की गवाही चट्टान में हमेशा के लिए खुदी हुई होती! (19:24)।
अय्यूब की पुस्तक के माध्यम से इसे खोदा गया था– एक तरह से जो हमें हमारे दुःख में जीवित परमेश्वर (पद 26–27) की ओर ले जाता है जो हमें हमारे दुख में मिलता है, हमें मृत्यु के माध्यम से पुनरुत्थान जीवन में ले जाता है।