Month: नवम्बर 2016

आप मोल क्या है?

एक कहानी के अनुसार ईसा पूर्व 75 में एक अमीर रोमी युवक, जुलियस सीज़र समुद्री डकैतों द्वारा अगवा कर फिरौती हेतु बंधक बनाया गया l जब उन्होंने फिरौती में चाँदी के 20 तोड़े मांगे (आज लगभग 600,000 डॉलर), सीज़र हंसकर बोला शायद उनको नहीं पता वह कौन है l उसने उनसे फरौती की रकम को 50 तोड़े करने को कहा! क्यों? क्योंकि उसे भरोसा था उसका मूल्य 20 तोड़ों से अधिक है l

सीज़र के अपने अभिमानी मूल्य और हमारे ऊपर परमेश्वर द्वारा ठहराए हुए मूल्य के बीच कितना बड़ा अंतर है l हमारी कीमत पैसे से नहीं किन्तु हमारे एवज़ में परमेश्वर द्वारा किए हुए कार्य से आंकी जाती है l

हमें बचाने के लिए उसे क्या फिरौती देनी पड़ी? पिता ने हमें हमारे पापों से हमें बचाने के लिए क्रूस पर अपने एकलौते पुत्र की मृत्यु द्वारा कीमत चुकायी l “तुम्हारा निकम्मा चाल-चलन जो बापदादों से चला आता है, तुम्हारा छुटकारा चाँदी-सोने अर्थात् नाशवान वस्तुओं के द्वारा नहीं हुआ; पर निर्दोष और निष्कलंक मेमने, अर्थात् मसीह के बहुमूल्य लहू के द्वारा हुआ” (1 पतरस 1:18-19) l

परमेश्वर हमसे इतना प्रेम किया कि उसने हमारी फिरौती और छुटकारे के लिए अपने पुत्र को मरने और पुनरुत्थित होने दिया l उसके लिए आपकी कीमत इतनी बड़ी है l

मैं धनी हूँ!

शायद आपने वह टीवी विज्ञापन देखा है जिसमें एक व्यक्ति दरवाजे में एक बड़ा चेक प्राप्त करता है l तब प्राप्तकर्ता चिल्लाने, नाचने, कूदने, और सभों को गले लगाता है l “मैं जीत गया! मुझे विश्वास नहीं है! मेरी समस्याएँ हल हो गई हैं!” समृद्धि अत्याधिक भावनात्मक प्रतिउत्तर जगाता है l

बाइबिल के सबसे लम्बे अध्याय भजन119 में हम यह उललेखनीय कथन पढ़ते हैं : “मैं तेरी चितौनियों के मार्ग से, मानो सब प्रकार के धन से हर्षित हुआ हूँ” (पद.14) l गज़ब की  तुलना! परमेश्वर के निर्देश मानना धन प्राप्ति की तरह हर्षित करता है! पद 16 इन शब्दों को दोहराते हुए भजनकार प्रभु की आज्ञाओं के लिए कृतज्ञ आनंद प्रकट करता है l “मैं तेरी विधियों से सुख पाऊंगा; और तेरे वचन को न भूलूंगा l”

किन्तु यदि हम ऐसा अहसास नहीं करते हैं तो? किस तरह परमेश्वर की आज्ञाओं में आनंदित होना धन प्राप्ति के बराबर आनंददायक है? यह सब धन्यवाद से आरंभ होता है, जो आचरण और चुनाव है l हम उस पर ध्यान देते हैं जिसको हम महत्व देते हैं, इसलिए हम परमेश्वर के उन उपहारों के लिए धन्यवाद दें जिससे हमारी आत्माएं तृप्त होती हैं l हम उसके वचन में बुद्धिमत्ता, ज्ञान, और शांति का भण्डार देखने हेतु हमारी आँखों को खोलने का कहें l

जब प्रतिदिन यीशु के लिए हमारा प्रेम बढ़ेगा, हम वास्तव में धनी बनेंगे!

भलाई

दो किशोरियों की कल्पना करें l एक मजबूत और स्वस्थ्य है l दूसरी असहाय l वह अपने व्हीलचेयर में जीवन की सामान्य भावनात्मक चुनौतियों के साथ अनेक शारीरिक तकलीफ और संघर्ष से भी जूझती है l 

किन्तु दोनों परस्पर संगति का आनंद लेती हुई खुश हैं l दो खुबसूरत किशोरियाँ-प्रत्येक दूसरे में मित्रता का खज़ाना देखती हैं l

यीशु ने अपना अधिक समय और ध्यान ऐसे लोगों में लगाया जो व्हीलचेयर में लड़की की तरह थे l आजीवन असक्तता अथवा शारीरिक विकलांगता वाले लोगों के साथ जिनको विभिन्न कारणों से नीचा देखा जाता था l वास्तव में, यीशु ने धार्मिक अगुओं की घृणा के पात्र “उनमें से” एक को उसे अभियंजित करने दिया (लूका 7:39) l  एक और अवसर पर, जब एक स्त्री ने समान क्रिया द्वारा प्रेम दर्शाया, यीशु ने उसके आलोचक से कहा, “उसे छोड़ दो; ..उस ने तो मेरे साथ भलाई की है” (मरकुस 14:6) l

परमेश्वर सबको समान महत्व देता है; उसकी नज़रों में सब बराबर हैं l वास्तव में, हम सभों को मसीह के प्रेम और क्षमा की घोर आवश्यकता है l उसके प्रेम ने उसे हमारे लिए क्रूस पर मरने को विवश किया l

हम भी यीशु की तरह प्रत्येक को देखें : और परमेश्वर के स्वरुप में रचित और उसके प्रेम के योग्य l मसीह के समान हम सब के साथ बराबरी का व्यवहार करें और उसकी तरह भलाई देखें l

लाल शिखा/कलगी

अनेक वर्ष पूर्व, मैं ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी के एक यूनानी लेखक के मछली पकड़ने के ज्ञान सम्बन्धी एक लेख के कुछ अंश से चकित हुआ l “बोरोका और थिस्सलुनीके के बीच एस्त्राकस नदी है, जिसमें चितकबरी त्वचा वाली ट्राउट मछलियाँ हैं l” फिर वह “मछलियों के लिए फंदा, जिससे उनको अच्छी और अधिक मछलियाँ मिलती हैं, बताता है l वे दो पंखों के साथ सुर्ख लाल ऊन एक कांटे में लगाते हैं l फिर वे अपने फंदे को पानी में फेंकते हैं, और मछलियाँ रंग से आकर्षित होकर ऊपर आकर खाना चाहती हैं” (ऑन द नेचर ऑफ़ एनिमल्स) l

मछुआरे आज भी यह आकर्षण उपयोग करते हैं l इसे लाल शिखा/कलगी कहते हैं l 2,200 वर्ष पूर्व उपयोगी फंदा “अधिक ट्राउट मछलियाँ पकड़ने में” आज भी उपयोगी है l

उस प्राचीन लेख को पढ़कर मैंने सोचा : समस्त पुरानी बातें अप्रचलित नहीं हुई गईं हैं-विशेषकर लोग l यदि संतुष्ट और आनंदित वृद्धावस्था द्वारा हम परमेश्वर की परिपूर्णता और गहराई दर्शाते हैं, हम अपने जीवन के अंत तक उपयोगी रहेंगे l वृद्धावस्था गिरते स्वास्थ्य, पूर्व अवस्था पर केन्द्रित हों ज़रूरी नहीं है l यह परमेश्वर के साथ वृद्ध होनेवालों का फल अर्थात् शांतचित्तता और आनंद और साहस और दयालुता से भरपूर हो सकता है l

“वे यहोवा के भवन में रोपे जाकर, ... पुराने होने पर भी फलते रहेंगे, और रस भरे और लहलहाते रहेंगे” (भजन 92:13-14) l

न भेजें

ई-मेल भेजकर क्या आपने अचानक जाना कि वह गलत व्यक्ति तक पहुँच गया या उसमें हानिकारक, कठोर शब्द थे? काश आप बटन दबाकर उसे रोक सकते l वाह, अब संभव है l अनेक कंपनियां अब एक फीचर देती हैं जिससे आप अल्प समय में ई-मेल को जाने से रोक सकते हैं l उसके बाद, ई-मेल एक उच्चारित शब्द की तरह हो जाता है जो अनकहा नहीं हो सकता l इसे सर्वरोगहारी देखने की बजाए, एक “भेजा नहीं” फीचर हमें स्मरण दिलाए कि हमें अपने शब्दों पर लगाम लगाना होगा l

प्रेरित पतरस ने अपनी पहली पत्री में यीशु के अनुगामियों से कहा, “बुराई के बदले बुराई मत करो और न गाली के बदले गाली दो; पर इसके विपरीत आशीष ही दो ... जो कोई जीवन की इच्छा रखता है, और अच्छे दिन देखना चाहता है, वह अपनी जीभ को बुराई से, और अपने होंठों को छल की बातें करने से रोके रहे l वह बुराई का साथ छोड़ें, और भलाई ही करे; वह मेल मिलाप को ढूंढ़ें, और उसके यत्न में रहे” (1 पतरस 3:9-11) l

भजनकार दाऊद ने लिखा, “हे यहोवा, मेरे मुख पर पहरा बैठा, मेरे होठों के द्वार की रखवाली कर” (भजन 141:3) l यह शब्दों द्वारा प्रहार की इच्छा के आरंभ में और प्रत्येक स्थिति में एक महान प्रार्थना है l

प्रभु, आज हमारे शब्दों की रखवाली कर जिससे हम हानि न करें l

सर्वदा सर्वोत्तम सौदा

कितना पर्याप्त है? हम उस दिन यह प्रश्न पूछ सकते हैं जब अनेक विकसित देश खरीददारी में बिताते हैं l अमरीकी धन्यवाद अवकाश दिन के बाद, काला शुक्रवार, में अनेक दूकान सबेरे खुल जाते हैं और सस्ते में सौदा करते हैं; यह दिन दूसरे देशों में फ़ैल गया है l कुछ ग्राहक सिमित श्रोत के कारण सस्ते में खरीदना चाहते हैं l किन्तु दुर्भाग्यवश, दूसरों के लिए यह लालच ही प्रेरणा है और मोल-तोल हिंसक हो जाती है l

“उपदेशक” (सभो. 1:1) के रूप में पुराने नियम की बुद्धिमत्ता का लेखक उपभोगतावाद की सनक जिसका सामना हम दूकानों में–और अपने हृदयों में करते हैं, का उपचार बताता है l उसके अनुसार, धन प्रेमियों के पास कभी भी प्रयाप्त नहीं होगा और धन उन पर शासन करेगा l  और फिर भी, वे धन विहीन मरेंगे : “जैसा वह माँ के पेट से निकला वैसा ही लौट जाएगा” (5:15) l प्रेरित पौलुस तीमुथियुस की पत्री में उपदेशक की बात दोहराता है, रूपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, और कि हमें “संतोष सहित भक्ति” (1 तीमु. 6:6-10) का पीछा करना चाहिए है l

बहुतायत अथवा अभाव में, हम अपने परमेश्वर द्वारा आकार दिए हुए अपने हृदयों को अस्वास्थ्यकर वस्तुओं से भरने के तरीके खोज सकते हैं l किन्तु शांति और स्वास्थ्य हेतु प्रभु को देखने पर, वह इसे भलाई और प्रेम से भर देगा l

धन्यवाद का खेल

कोर्नरस्टोन यूनिवर्सिटी में हम प्रत्येक शरद ऋटू में एक शानदार धन्यवादी भोज आयोजित करते हैं l विद्यार्थी को पसंद है l पिछले वर्ष एक विद्यार्थी समूह ने एक खेल खेला l उन्होंने तीन सेकंड या उससे कम में परस्पर चुनौती दिया कि वे किस लिए धन्यवादित थे-और उन्हें दूसरे की कही हुई बात दोहरानी भी नहीं थी l चुप रहनेवाला खेल से बाहर होता था l

विद्यार्थी जांच, निर्धारित तिथियाँ, नियम, और कॉलेज के प्रकार की बातों के विषय शिकायत कर सकते हैं l किन्तु इन विद्यार्थियों ने धन्यवाद देने का चुनाव किया l यदि शिकायत का चुनाव करते तो इसकी तुलना में मेरा अनुमान है कि इस खेल के पश्चात उन्होंने बेहतर महसूस किया l

शिकायत करने की बातें हमेशा रहेंगी, किन्तु ध्यान से देखें तो धन्यवाद की आशीषें हमेशा रहेंगी l मसीह में हमारी नवीनता का वर्णन करते समय पौलुस ने, “धन्यवाद” का वर्णन एक से अधिक बार है l वास्तव में तीन बार l “धन्यवादी बने रहो,” उसने कुलुस्सियों 3:15 में कहा l “अपने अपने मन में अनुग्रह[धन्यवाद] के साथ” परमेश्वर के लिए ... आत्मिक गीत गाओ (पद.16) l जो कुछ भी करो ... उसके द्वारा परमेश्वर पिता का धन्यवाद करो l (पद.17) l धन्यवाद देने का पौलुस का निर्देश चकित करता है जब हम विचारते हैं कि उसने यह पत्री कैद से लिखी l

आज, हम धन्यवाद का मनोभाव रखने का चुनाव करें l

व्यर्थ नहीं

मेरा परिचित एक वित्तीय सलाहकार इस तरह पैसा निवेश की सच्चाई का वर्णन करता है, “सर्वोत्तम की आशा करें और सबसे अधिक नुक्सान के लिए तैयार रहें l” जीवन में हमारे प्रत्येक निर्णय में परिणाम के विषय अनिश्चितता है l फिर भी हम एक मार्ग का अनुसरण हर परिस्थिति में कर सकते हैं, हम जानते हैं कि हमारी मेहनत व्यर्थ नहीं होगी l

नैतिक भ्रष्टाचार के लिए प्रसिद्ध शहर, कुरिन्थुस में, प्रेरित पौलुस, यीशु के अनुयायियों के संग एक वर्ष बिताया l अपने जाने के बाद, कार्य की निरंतरता में उसने उनको लिखा कि  वे  न निराश हों और न ही मसीह के लिए अपनी साक्षी को व्यर्थ समझें l उसने उनको आश्वस्त किया कि एक दिन आनेवाला है जब प्रभु आएगा और मृत्यु  भी जय द्वारा पराजित होगी (1 कुरिन्थियों 15:52-55) l

यीशु के प्रति ईमानदार रहना, कठिन, निराश करनेवाला, और खतरनाक भी हो सकता है, किन्तु यह व्यर्थ और बेकार नहीं है l प्रभु के संग चलकर उसकी उपस्थिति और सामर्थ्य का साक्षी बनकर, हमारे जीवन व्यर्थ नहीं हैं! हम इससे आश्वस्त हों l

प्रसिद्धि और विनम्रता

हममें से कितने प्रसिद्धि से आसक्त हैं-या तो खुद की प्रसिद्धि से अथवा प्रसिद्ध लोगों के जीवनों के विषय प्रत्येक जानकारी रखकर l अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक या फ़िल्मी दौरे l देर-रात्रि कार्यक्रम में उपस्थिति l ट्विटर पर लाखों प्रसंशक l

अमरीका में एक हाल ही के अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने इन्टरनेट पर छाए हुए एक विशेष विधि द्वारा प्रसिद्ध व्यक्तियों को श्रेणीबद्ध किया l यीशु इतिहास के सबसे प्रसिद्ध व्यक्ति के रूप में सर्वोत्तम रहा l

फिर भी यीशु में प्रसिद्धि की चिंता कभी नहीं थी l उसने पृथ्वी पर रहते हुए प्रसिद्धि नहीं चाही (मत्ती 9:30; यूहन्ना 6:5)-यद्यपि प्रसिद्धि ने उसको ढूंढ लिया जब गलील के क्षेत्र में उसके विषय खबर फ़ैल गई (मरकुस 1:28; लूका 4:37) l

जहाँ भी यीशु गया भीड़ उसके चारों ओर थी l उसके आश्चर्यकर्मों ने लोगों को उसकी ओर खींचा l किन्तु लोंगों द्वारा उसको राजा बनाने की अवस्था में, वह वहाँ से चला गया (यूहन्ना 6:15) l अपने पिता से संयुक्त उद्देश्य में, वह निरंतर पिता की इच्छा और समय की ओर उन्मुख हुआ (4:34; 8:29; 12:23) l “[वह] यहाँ तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु, हाँ, क्रूस की मृत्यु भी सह ली” (फ़िलि. 2:8) l

प्रसिद्धि यीशु का लक्ष्य नहीं था l उसका उद्देश्य सरल था l परमेश्वर पुत्र के रूप में, वह विनम्रता, आज्ञाकारिता, और खुद से हमारे पापों के लिए अपने को बलिदान किया l