मैं लेखन को परमेश्वर की आराधना और सेवा मानती हूँ, जबकि इससे अधिक कि अब मेरा स्वास्थ्य मेरा चलना-फिरना सीमित कर दिया है l इसलिए, जब एक परिचित को मेरा लेखन महत्वहीन लगा, मैं निराश हुयी l मैंने परमेश्वर के लिए अपने छोटे भेंट के महत्त्व पर शक किया l

प्रार्थना, वचन अध्ययन, और मेरे पति, परिवार, और मित्रों के प्रोत्साहन द्वारा ही, प्रभु पुष्टि करता है कि केवल वह-दूसरों के दृष्टिकोण नहीं-एक उपासक के रूप में हमारी मंशा और उसके प्रति हमारी भेंट का मूल्य तय करता है l मैंने सर्वोत्तम दाता से अपने कौशल को विकसित करने और प्राप्त श्रोतों को बांटने हेतु अवसर देने को कहा l

यीशु ने हमारे देने के मापदंड का विरोध किया (मरकुस 12:41-44) l जब धनी लोग मंदिर के खजाने में बहुत अधिक पैसे डाल रहे थे, एक विधवा ने “दो दमड़ियाँ …डाली” (पद.42) l प्रभु ने उसके दान को श्रेष्ठ माना (पद.43), यद्यपि उसका सहयोग उसके चारों ओर के लोगों से महत्वहीन दिखाई दिया (पद.44) l

यद्यपि विधवा की कहानी पैसे के दान पर केन्द्रित है, देने का हर कार्य आराधना और प्रेममय आज्ञाकारिता का एक ढंग हो सकता है l विधवा की तरह, हम परमेश्वर के दिए हुए में से जानबूझकर, उदार, और बलिदानी दान द्वारा उसका आदर करते हैं l हम परमेश्वर के प्रेम से प्रेरित हृदयों द्वारा अपना सर्वोत्तम समय, और योग्यताएँ देकर, उसे अमूल्य आराधना का भेंट चढ़ाते हैं l