Month: अक्टूबर 2017

दिव्य रुकावटें

विशेषज्ञ यह मानते हैं कि प्रतिदिन ख़ासा समय रुकावाटों में नष्ट हो जाता है l कार्य हो अथवा घर, एक फ़ोन कॉल अथवा किसी से अनपेक्षित मुलाकात हमें सरलता से हमारे मुख्य उद्देश्य से भटका देती हैं l

हममें से अनेक अपने जीवनों में रुकावटें पसंद नहीं करते, विशेषकर जब वे परेशानी उत्पन्न करते हैं अथवा हमारी योजनाओं को बदल देते हैं l किन्तु जो रुकावटें महसूस होती हैं उनके साथ यीशु भिन्न तरीके से पेश आया l बार-बार सुसमाचारों में, हम प्रभु को रूककर ज़रुरतमंदों की सहायता करते पाते हैं l

यीशु का यरूशलेम जाते समय जहाँ उसे क्रूसित होना था, सड़क किनारे बैठा एक अंधे व्यक्ति ने उसे पुकारा, “हे यीशु, दाऊद की संतान, मुझ पर दया कर!” (लूका 18:35-38) l भीड़ में से कुछ लोगों ने उसे शांत रहने को कहा, किन्तु वह यीशु को पुकारता रहा l यीशु ने रुककर उससे पूछा, “ ‘तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ?’  ‘हे प्रभु, यह कि मैं देखने लगूँ,’ उसने कहा l यीशु ने उससे कहा, ‘देखने लग; तेरे विश्वास ने तुझे अच्छा कर दिया है’ “ (पद.41-42) l

जब एक असली ज़रूरतमंद द्वारा आपकी योजना बाधित होती है, हम उससे करुणा सहित व्यवहार करने के लिए प्रभु से बुद्धि मांगे l जिसे हम रूकावट कहते हैं वह उस दिन के लिए प्रभु की ओर से एक दिव्य सुअवसर हो सकता है l

संकट में कल्पना की गई

मार्क को वह क्षण याद है जब उसके पिता ने परिवार को बुलाया l कार ख़राब थी, महीने के अंत तक परिवार के पास पैसे नहीं होते l पिता ने प्रार्थना करके परिवार को परमेश्वर पर आशा रखने को कहा l  

आज मार्क को परमेश्वर की अद्भुत सहायता याद है l एक मित्र ने कार मरम्मत करवा दी; अनपेक्षित चेक आ गए; घर में भोजन पहुँच गया l परमेश्वर की स्तुति सरल थी l किन्तु परिवार की कृतज्ञता संकट की भट्टी में विकसित हुई थी l

आराधना गीतों को भजन 57 से अत्यधिक प्रेरणा मिली है l जब दाऊद ने कहा, “तू स्वर्ग के ऊपर महान है” (पद.11), हम उसे मध्य पूर्व के अद्भुत रात में आसमान की ओर टकटकी लगाए, अथवा मंदिर की आराधना में गाते हुए कल्पना कर सकते हैं l किन्तु वास्तव में भयभीत दाऊद एक गुफा में छिपा था l

“मेरा प्राण सिंहों के बीच में है,” दाऊद कहता है l ये “मनुष्य” हैं जिनके “दांत बर्छी और तीर” हैं (पद.4) l दाऊद की प्रशंसा संकट से निकली l यद्यपि वह उसकी मृत्यु चाहनेवाले शत्रुओं से घिरा था, दाऊद ने ये अद्भुत शब्द लिखे : “हे परमेश्वर, मेरा मन स्थिर है ... मैं गाऊंगा वरन् भजन कीर्तन करूँगा” (पद.7) l

आज हम हर संकट में, परमेश्वर से मदद प्राप्त कर सकते हैं l तब हम आशा से, उसकी अनंत देखभाल में उसकी बाट जोह सकते हैं l

सही प्रार्थना सहयोगी

आपसे प्रेम और आपके लिए प्रार्थना करनेवाले की आवाज़ सुनना मधुर है l किसी मित्र का आपके लिए करुणा और परमेश्वर द्वारा प्रदत्त अंतर्दृष्टि से प्रार्थना करते सुनना स्वर्ग का पृथ्वी को स्पर्श करने जैसा है l 

यह जानना कितना अच्छा है कि हमारे प्रति परमेश्वर की भलाई के कारण हमारी प्रार्थनाएँ स्वर्ग को भी स्पर्श कर सकती हैं l कभी-कभी प्रार्थना करते समय हम शब्दाभाव और अयोग्यता महसूस करते हैं, किन्तु यीशु ने अपने अनुगामियों को सिखाया कि हमें “ [सदा] प्रार्थना  करना [चाहिए] और हियाव न[हीं] छोड़ना चाहिए” (लूका 18:1) l परमेश्वर का वचन हमें दिखाता है कि ऐसा संभव है, क्योंकि “मसीह ... हमारे लिए निवेदन भी करता है” (रोमियों 8:34) l

हम कभी भी अकेले प्रार्थना नहीं करते, क्योंकि यीशु हमारे साथ प्रार्थना करता है l वह हमें प्रार्थना करते हुए सुनकर हमारे पक्ष में पिता से बातें करता है l हमें अपने वाक्पटुता की चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यीशु की तरह हमें कोई नहीं समझता l वह हर प्रकार से हमारी मदद करके हमारी ज़रूरतें परमेश्वर के समक्ष प्रस्तुत करता है l वह सिद्ध बुद्धिमत्ता और प्रेम के साथ हमारे प्रत्येक निवेदन का सही उत्तर सही समय पर देना जानता है l

यीशु सही प्रार्थना सहयोगी है-मित्र जो हमारे लिए असीमित दया के साथ विनती करता है l हमारे लिए उसकी प्रार्थना का हम ब्यान नहीं कर सकते, और इसलिए हम धन्यवादी होकर प्रार्थना करने का उत्साह प्राप्त करें l

बढ़ने में समय

अपने शिशु कक्षा में प्रथम दिन, छोटी चारलोट से खुद को बनाने को कहा गया l उसकी तस्वीर में शरीर के लिए एक सरल गोला, एक अंडाकार सिर, और आँखें दो गोले थे l फिर अंतिम दिन उससे अपनी तस्वीर बनाने को कहा गया l इसमें रंगीन वस्त्र, एक मुस्कराते चेहरे के साथ स्पष्ट मुखाकृति, सुन्दर लाल रंग के लहराते बाल थे l स्कूल ने एक सरल कार्य द्वारा दर्शा दिया कि समय परिपक्वता के  स्तर में अंतर लाता है l

जबकि हम स्वीकार करते हैं कि बच्चों के परिपक्वता में समय लगता है, हम खुद के साथ अथवा सह विश्वासियों के धीमी आत्मिक विकास से अधीर हो जाते हैं l हम “आत्मा के फल” (गला. 5:22-23), देखकर आनंदित होते हैं, किन्तु पापमय चुनाव देखकर दुखित होते हैं l इब्रानियों का लेखक कलीसिया को लिखते हुए यह बात प्रगट करता है : “समय के विचार से तो तुम्हें गुरु हो जाना चाहिए था, तौभी यह आवश्यक हो गया है कि कोई तुम्हें परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा फिर से सिखाए” (इब्रा. 5:12) l

जब हम स्वयं यीशु के साथ निकटता में आगे बढ़ते हैं, हम परस्पर प्रार्थना करते हुए धीरज से परमेश्वर से प्रेम करनेवालों के साथ हो लें जो आत्मिक उन्नत्ति के लिए संघर्षरत हैं l “प्रेम में सच्चाई से चलते हुए,” हम परस्पर उत्साहित करें, ताकि हम साथ मिलकर “चलते हुए सब बातों में उसमें जो सिर है, अर्थात् मसीह में बढ़ते जाएँ (इफि.4:15) l