स्टीमर के चलते ही, मेरी बेटी की तबियत खराब होने लगी l वह पानी के जहाज में यात्रा के समय होने वाली पीड़ा(मतली) से प्रभावित होने लगी थी l मेरी तबियत भी खराब होने लगी थी l मैंने स्वयं को याद दिलाया, “क्षितिज की ओर टकटकी लगाए रहो l” नाविकों के अनुसार यह दृष्टिकोण की अनुभूति पुनः प्राप्त करने में सयायता करता है l

क्षितिज का रचयिता(अय्यूब 26:10) जानता है कि हम जीवन में कभी कभी भयभीत और बेचैन हो सकते हैं l हम दुरस्थ किन्तु अपने गंतव्य के स्थिर बिंदु की ओर टकटकी लगाकर पुनः दृष्टिकोण प्राप्त कर सकते हैं l

इब्रानियों का लेखक यह बात समझ चुका था l उसे अपने पाठकों में निराशा दिखाई दी l सताव ने अनेक को उनके घर से बेघर कर दिया था l इसलिए उसने उनको याद दिलाया कि दूसरे विश्वासी अत्यधिक पीड़ा सहते हुए बेघर हो गए थे l उन्होंने सब कुछ सह लिए क्योंकि वे कुछ बेहतर की आशा कर रहे थे l

निर्वासितों की तरह, ये पाठक भी उस नगर को, जिसका रचयिता परमेश्वर है, स्वर्गीय देश को, परमेश्वर जो नगर उनके लिए बनाया था, उसको  निहार सकते थे (इब्रानियों 11:10,14,16) l इस प्रकार अपने अंतिम संबोधन में, लेखक अपने पाठकों से परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं की ओर देखने को कहता है l “क्योंकि यहाँ हमारा कोई स्थायी नगर नहीं, वरन् हम एक आनेवाले नगर की खोज में हैं” (13:14) l

हमारे वर्तमान की समस्याएँ अस्थायी हैं l हम “पृथ्वी पर परदेशी और बाहरी हैं”(11:13), किन्तु परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं की क्षितिज को ताकने से हमें मापदण्ड मिल जाता है l