आशा हमारी रणनीति
मेरे यह लिखते समय मेरी पसंदीदा फुटबॉल टीम लगातार आठ मैच हार चुकी थी l हर एक हार के साथ, उनका इस मौसम में जीत पाने की आशा क्षीण होती दिखाई दे रही थी l कोच ने हर सप्ताह परिवर्तन किये किन्तु यह जीत में परिवर्तित नहीं हो सकी l अपने सहयोगियों के साथ बातचीत करते हुए मैंने मज़ाक किया कि केवल एक भिन्न परिणाम की आशा गारंटी नहीं है l “आशा एक रणनीति नहीं है,” मैंने ताना मारा l
यह फुटबॉल में सही है l लेकिन हमारे आत्मिक जीवनों में, यह बिलकुल विपरीत है l परमेश्वर में आशा उत्पन्न करना एक रणनीति ही नहीं है, किन्तु विश्वास और भरोसे में उससे लिपटे रहना ही एकमात्र रणनीति है l संसार अक्सर हमें निराश करता है, किन्तु परमेश्वर की सच्चाई में आशा हमारी लंगर और अशांत समय में सामर्थ्य है l
मीका ने इस सच्चाई को समझ लिया था l इस्राएल के परमेश्वर से मुह मोड़ लेने के कारण मीका का हृदय टूट चुका था l “हाय मुझ पर ! . . . भक्त लोग पृथ्वी पर से नष्ट हो गए हैं, और मनुष्यों में एक भी सीधा जन नहीं रहा” (7:1-2) l लेकिन उसी समय वह सच्ची आशा पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है : “परन्तु मैं यहोवा की ओर ताकता रहूँगा, मैं अपने उद्धारकर्ता परमेश्वर की बात जोहता रहूँगा; मेरा परमेश्वर मेरी सुनेगा” (पद.7) l
कठिन समय में आशा किस तरह स्थिर रखी जा सकती है? मीका हमें दिखाता है : बाट जोहकर l इंतज़ार करके l प्रार्थना करके l याद करके l अभिभूत करनेवाली हमारी परिस्थितियों में भी परमेश्वर सुनता है l इन क्षणों में, परमेश्वर में अपनी आशा में लिपटे रहना और उसके प्रतिउत्तर में काम करना ही हमारी रणनीति है, केवल एक रणनीति जो जीवन के तूफानों को शांत कर सकता है l
डरो मत!
लगभग हर वक्त जब बाइबल में एक स्वर्गदूत प्रगट होता है, उसके प्रथम शब्द होते हैं “डरो मत!” छोटा आश्चर्य l जब अलौकिक, ग्रह पृथ्वी से संपर्क करता है, देखनेवाले मानव भय के मारे अपने मुहं के बल होते हैं l किन्तु लूका परमेश्वर का प्रगटन इस रूप में बताता है जो भयभीत नहीं करता l यीशु में, जो पशुओं के बीच जन्म लिया और जिसे चरनी में लिटाया गया, परमेश्वर ऐसे प्रवेश करता है जहाँ हमें डरने की ज़रूरत नहीं है l क्या एक नवजात शिशु से कम भयभीत करनेवाला कोई हो सकता है?
पृथ्वी पर यीशु परमेश्वर और मनुष्य दोनों ही है l परमेश्वर होकर, वह आश्चर्यकर्म कर सकता है, पाप क्षमा कर सकता है, मृत्यु को पराजित कर सकता है, और भविष्य बता सकता है l किन्तु यहूदियों के लिए जो परमेश्वर को एक चमकीला बादल या एक अग्नि स्तम्भ की छवि के रूप में देखने के आदि थे, यीशु गड़बड़ी भी पैदा करता है l बैतलहम का एक शिशु, एक बढ़ई का बेटा, नासरत का एक मनुष्य परमेश्वर की ओर से एक उद्धारकर्ता कैसे हो सकता है?
परमेश्वर मानव रूप क्यों लिया? मंदिर में रब्बियों के साथ चर्चा करनेवाला बारह वर्ष का यीशु हमें एक सुराग देता है l “जितने उसके सुन रहे थे, वे सब उसकी समझ और उसके उत्तरों से चकित थे” लूका कहता है (2:47) l पहली बार, साधारण लोग प्रत्यक्ष रूप में परमेश्वर के साथ बातचीत कर पा रहे थे l
यीशु किसी से भी बताए बिना बातचीत कर सकता था-अपने मातापिता से, एक रब्बी से, एक निर्धन विधवा से l “डरो मत!” यीशु में परमेश्वर निकट आ गया l
आप किस ओर जा रहे हैं?
जीवन में हमारी दिशा कौन निर्धारित करता है? एकबार मैंने एक आश्चर्यजनक स्थान: मोटरसाईकिल प्रशिक्षण कोर्स, पर इस प्रश्न का उत्तर सुना। मेरे कुछ मित्र और मैं मोटरसाईकिल चलाना चाहते थे, इसलिए यह सीखने के लिए कि यह कैसे करते हैं हम ने एक क्लास ली। हमारे प्रशिक्षण के एक हिस्से को लक्ष्य निर्धारित करना कहते थे।
“आखिरकार” हमारे निर्देशक ने कहा, “आप एक अनपेक्षित बाधा का सामना करोगे। यदि आप इसकी ओर देखते रहोगे-यदि तुम ने लक्ष्य निर्धारित किया है-तो तुम ठीक उसकी ओर जाओगे। परन्तु यदि आप ऊपर या इससे दूर देखोगे, जहाँ तुम्हें जाना है, तो तुम समान्यत: इससे बच सकते हो।” इसके बाद उसने कहा, “जिस दिशा की ओर आप देख रहे हो आप उसी ओर जाओगे।”
वह साधारण परन्तु प्रगाढ़ सिद्धांत हमारे आत्मिक जीवन पर भी लागू होता है। जब हम एक लक्ष्य को निर्धारित करते हैं-अपनी समस्याओं या संघर्षों पर केन्द्रित हो जाते हैं-तो हम अपने जीवनों को लगभग उन्हीं के चारों ओर घुमाते रहते हैं।
परन्तु पवित्रशास्त्र हमें अपनी कठिनाइयों से दूर उस व्यक्ति की ओर देखने के लिए प्रोत्साहित करता है, जो उनमें हमारी सहायता कर सकता है। भजन संहिता 121:1 में हम पढ़ते हैं, “मैं अपनी आँखें पर्वतों की ओर लगाऊंगा, मुझे सहायता कहाँ से मिलेगी?” फिर भजन संहिता उत्तर देती है: “मुझे सहायता यहोवा की ओर से मिलती है, जो आकाश और पृथ्वी का कर्ता है...यहोवा आने जाने में तेरी रक्षा अब से लेकर सदा तक करता रहेगा” (पद 2, 8)।
कई बार हमारी बाधाएँ अजेय प्रतीत होती हैं। परन्तु परमेश्वर हमें हमारी कठिनाइयों को हमारे नजरिये पर अधिकार रखने के स्थान पर उनसे दूर देखने में हमारी सहायता करने के लिए आमन्त्रित करता है।
अगुआ का अनुसरण
हमारे घर के ऊपर आसमान में तीन लड़ाकू जेट विमान शोर करते है – तीनों इतने निकट हैं कि एक दिखाई देते हैं l “वाह,” मैं अपने पति, डैन से बोली l वह मुझसे सहमत हुआ, “प्रभावशाली l” हम एक एयर फ़ोर्स बेस के निकट रहते हैं और ऐसे दृश्य सामान्य हैं l
हर समय जेट विमानों के उड़ने पर, हालाँकि, मेरे पास एक ही प्रश्न होता है : कैसे वे इतने निकट उड़ते हुए भी नियंत्रण में रहते हैं? एक स्पष्ट कारण, दीनता है l इस बात पर भरोसा करके कि लीड पायलट सही गति और प्रक्षेपवक्र पर उड़ रहा रहा है, विंग पायलट निर्देशों को बदलने या अपने अगुआ के पथ पर सवाल करने की इच्छा को लीड पायलट की इच्छा के आधीन करते हैं l इसके बदले वे विन्यास में रहकर निकट से अनुसरण करते हैं l परिणाम? एक और शक्तिशाली टीम l
यीशु के अनुयायियों के लिए भिन्न बात नहीं है l वह कहता है, “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आपे से इन्कार करे और प्रतिदिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले” (लूका 9:23) l
उसका मार्ग आत्म-समर्पण और पीड़ा उठाना था, जिसका अनुसरण करना कठिन हो सकता है l किन्तु उसके प्रभावशाली अनुयायी होने के लिए, हमें भी अपनी स्वार्थी इच्छाएँ अलग करने और प्रतिदिन आत्मिक बोझ उठाने के लिए नेवता दिया गया है अर्थात् खुद से अधिक दूसरों की सेवा, जैसे – जब हम निकटता से उसका अनुसरण करते हैं l
यह बहुत अच्छा दृश्य है , दीन होकर, परमेश्वर के साथ चलना है l उसके नेतृत्व में चलना, और निकट रहना, हम यीशु के साथ एक दिखाई दे सकते हैं l तब दूसरे हमें नहीं देख सकेंगे, वे उसे देखेंगे l इस प्रकार के दृश्य के लिए यह सरल शब्द है : “वाह!”
क्रिसमस पत्र
हर क्रिसमस, मेरा एक दोस्त साल की घटनाओं की समीक्षा करते हुए अपनी पत्नी को एक लम्बा पत्र लिखता है, और भविष्य के बारे में सपना देखता है l वह हमेशा उसे कहता है वह उससे कितना प्यार करता है, और क्यों l वह अपनी प्रत्येक बेटी को भी पत्र लिखता है l प्यार के उसके शब्द एक विस्मरणीय उपहार बन जाता है l
हम कह सकते हैं कि मूल क्रिसमस प्रेम पत्र यीशु था, देहधारित वचन l यूहन्ना अपने सुसमाचार में इस सच्चाई को उजागर करता है : “आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था” (यूहन्ना 1:1) l प्राचीन दर्शनशास्त्र में, यूनानी शब्द, लोगोस (logos), का अर्थ सच्चाई को मिलाने वाला एक दिव्य मस्तिस्क या व्यवस्था थी, किन्तु यूहन्ना ने उस परिभाषा को एक व्यक्ति के रूप में प्रगट किया : यीशु, परमेश्वर का पुत्र जो “आदि से परमेश्वर के साथ था” (पद.2) l वचन, पिता का “एकलौता पुत्र,” “देहधारी होकर हमारे बीच निवास किया” (पद.14) l वचन जो यीशु था के द्वारा, परमेश्वर ने पूर्ण रूप से खुद को प्रगट किया l
धर्मविज्ञानिकों ने सदियों से इस खूबसूरत सहस्य के साथ सामना किया है l हालाँकि जितना भी हो हम नहीं समझेंगे, हम इस बात से निश्चित हैं कि यीश वचन होकर हमारे अन्धकार संसार को ज्योति देता है (पद.9) यदि हम उसमें विश्वास करते हैं, हम परमेश्वर के प्रिय बच्चे होने के उपहार का अनुभव करेंगे (पद.12) l
यीशु, हमारे लिए परमेश्वर का पत्र, आकर हमारे बीच में निवास किया l तो यह एक अद्भुत क्रिसमस उपहार है!
महान जागरूकता
जब मेरे बच्चे छोटे थे मैं परिवार, मित्रगण के साथ उन समारोहों की यादें संजोए रखा हूँ l व्यस्क देर रात तक बातचीत करते थे; हमारे बच्चे खेल से थके हुए सिकुड़ कर सोफे या कुर्सी पर सो जाते थे l
जब जाने का समय होता था मैं अपनी बाहों में अपने बेटों को उठाकर अपनी कार के पीछे वाली सीट पर लेटाकर घर ले जाता था l घर पहुँचकर, मैं उनको उठाता, उनके बिस्तर बनाता और चूमकर उन्हें शुभ रात्रि बोलकर और बित्तियाँ बुझाकर उन्हें सुला देता था l सुबह उनकी नींद घर में खुलती थी l
मेरे लिए यह रात का बहुत अच्छा रूपक बन गया है जब हम “यीशु में सो जाएंगे” (1 थिस्स.4:14) l हम गहरी नींद में सो जाते हैं . . . और अपने अनंत घर में जागते हैं, ऐसा घर जो हमारे थकान को मिटा देगा जो हमारे जीवन के दिनों को चिन्हित करता था l
पिछले दिनों मेरे सामने पुराना नियम का एक भाग आया जिससे मैं चकित हो गया – व्यवस्थाविवरण की समापन टिप्पणी : “तब यहोवा के कहने के अनुसार . . . मूसा वहीं मोआब के देश में मर गया” (34:5) l इब्री भाषा में इसका शब्दशः अर्थ है, “मूसा . . . परमेश्वर के मुँह के साथ मरा,” प्राचीन रब्बियों द्वारा अनुदित एक वाक्यांश, अर्थात, “परमेश्वर के चूमने से l”
क्या यह कल्पना करना अधिक है कि परमेश्वर पृथ्वी पर की हमारी अंतिम रात को हम लोगों पर झुका हुआ है, हमें सुला रहा है और चूमकर शुभ रात्रि कहता है? तब, जिस प्रकार जॉन डॉन ने जोरदार तरीके से कहता है, “एक छोटी सी नींद जो बीत गयी है, हम अनंत में जागेंगे l”