उन्हें भूल जाओ और आगे बढ़ो
मुझे एक बुद्धिमत्ता पूर्ण परामर्श स्मरण आया, जो मुझे एक रेडियो प्रस्तुतकर्ता मित्र ने दिया था। अपने पेशे के आरम्भ में जब मेरे मित्र ने इस बात में संघर्ष किया कि आलोचना और प्रशंसा का सामना कैसे करना है, उसे महसूस हुआ कि परमेश्वर चाहता है कि वह उन दोनों को भूल जाए। जो बात उसने दिल में रख ली उसका सार यह है। आलोचना से जो कुछ भी मिले सीख लो और प्रशंसा को स्वीकार करो। उसके पश्चात दोनों को भूल जाओ और परमेश्वर के अनुग्रह और सामर्थ में आगे बढ़ जाओ।
आलोचना और प्रशंसा हम में प्रबल भावनाएँ उत्पन्न करते हैं, यदि इन पर ध्यान न दिया जाए तो यह हमें या तो स्वयं से घृणा या अत्यधिक घमण्ड की ओर ले जा सकते हैं। नीतिवचन में हम प्रोत्साहन और बुद्धिमत्तापूर्ण परामर्श के लाभ पढ़ते हैं: “अच्छे समाचार से हड्डियाँ पुष्ट होती हैं। जो जीवनदायी डाँट कान लगाकर सुनता है, वह बुद्धिमानों के संग ठिकाना पाता है। जो शिक्षा को सुनी-अनसुनी करता, वह अपने प्राण को तुच्छ जानता है, परन्तु जो डाँट को सुनता, वह बुद्धि प्राप्त करता है” (15:30-32)
यदि हमारी अत्यधिक आलोचना हो रही है तो प्रभु करे कि हम उसके द्वारा प्रखर होने को चुनें। नीतिवचन की पुस्तक बताती है: “जो जीवनदायी डाँट कान लगाकर सुनता है,
वह बुद्धिमानों के संग ठिकाना पाता है (पद 31)।
और यदि हमें प्रशंसा के शब्दों की आशीष प्राप्त होती है, तो प्रभु कर कि हम तरोताजा हो जाएँ और धन्यवाद से भर जाएँ। जब हम दीनता से परमेश्वर के साथ चलते हैं, तो वह हमें आलोचना और प्रशंसा, दोनों, से सीख लेने, उन्हें भूल जाने और फिर उसमें आगे बढ़ जाने में सहायता करता है (पद 33) ।
प्रार्थना करना और बढ़ना
जब मेरे मित्र डेविड की पत्नी को अल्जाइमर हुआ तो यह उसके जीवन में जो बदलाव लाया इसने उसे चिड़चिड़ा बना दिया। उनकी देखभाल करने के लिए उसे सेवानिवृत्त होना पड़ा और जब वह रोग बढ़ा, तब उनकी पत्नी को और देखभाल की जरूरत पड़ी।
“मैं परमेश्वर से बहुत नाराज़ था” उसने मुझे बताया। “परन्तु जितना मैंने इसके लिए प्रार्थना की, उतना ही उन्होंने मुझे मेरा हृदय दिखाया, कि मैं हमारे वैवाहिक सम्बन्ध में कितना स्वार्थी रहा था। ” जब उसने अंगीकार किया तो उसकी आँखों से आँसू बहने लगे, “वह दस वर्षों से बीमार है, परन्तु परमेश्वर ने मुझे चीज़ों को भिन्न रूप से देखने में सहायता की है। अब जो कुछ मैं करता हूँ वह उसके लिए मेरे प्रेम के कारण करता हूँ, मैं वह यीशु के लिए भी करता हूँ। उसकी देखभाल करना मेरे जीवन की सबसे बड़ी आशीष बन गया है।”
कई बार परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर हमें वह न देने के द्वारा देते हैं, जो हम चाहते हैं, परन्तु वह हमें बदलने की चुनौती देने के द्वारा उत्तर देते हैं। जब नबी योना क्रोधित था, क्योंकि परमेश्वर ने दुष्ट नगर नीनवे को विनाश से बचा लिया था, उतप्त सूर्य से उसे बचाने के लिए परमेश्वर ने एक पौधा उगाया (योना 4:6) । फिर उसने इसे सुखा दिया। जब योना ने शिकायत की, परमेश्वर ने उत्तर दिया, “तेरा क्रोध, जो रेंड़ के पेड़ के कारण भड़का है, क्या वह उचित है?” (पद 7-9) । योना ने बस अपने ऊपर ध्यान दिया, और इसी की जिद्द की। परन्तु परमेश्वर ने उसे दूसरों का ध्यान देने और उनपर दया करने की चुनौती दी।
कई बार परमेश्वर हमें सीखने और बढ़ने में हमारी सहायता करने के लिए हमारी प्रार्थनाओं का प्रयोग करता है। यही वह बदलाव है जिसका हम खुले दिल से स्वागत कर सकते हैं, क्योंकि वह अपने प्रेम के द्वारा हमें बदलना चाहता है।
प्रोत्साहन का वातावरण
हर बार जब मैं मेरे घर के फिटनेस सेंटर जाता हूँ, तो मैं प्रोत्साहित हो जाता हूँ। उस व्यस्त स्थान में मैं उन अन्य लोगों से घिरा होता हूँ, जो अपने शारीरिक स्वास्थ्य और सामर्थ को बेहतर बनाने के लिए कठिन परिश्रम कर रहे होते हैं। वहाँ लगे हुए पोस्टर हमें एक-दूसरे को न जाँचना स्मरण कराते रहते हैं, परन्तु उन शब्दों और कार्यों का सर्वदा स्वागत किया जाता है, जो दूसरों की परिस्थिति में सहायता को प्रदर्शित करते हैं।
जीवन के आत्मिक क्षेत्र में चीज़ें किस प्रकार होनी चाहिए, यह उसकी एक सटीक तस्वीर है! हम में से वे, जो आत्मिक रूप से “स्वस्थ” होने, अपने विशवास में बढ़ने के लिए कठिन परिश्रम कर रहे हैं, कईबार महसूस कर सकते, कि उनका इस क्षेत्र से कोई सम्बन्ध नहीं है, क्योंकि हम आत्मिक रूप से मसीह के साथ हमारे चाल-चलन में उतने परिपक्व और उतने स्वस्थ नहीं हैं, जितने दूसरे हैं।
पौलुस हमें छोटा परन्तु सीधा सुझाव देता है: “इस कारण एक दूसरे को शान्ति दो और एक दूसरे की उन्नति का कारण बनो” ( 1 थिस्सलुनीकियों 5:11) । और रोम के विश्वासियों के लिए उसने लिखा: हम में से हर एक अपने पड़ोसी को उसकी भलाई के लिये प्रसन्न करे कि उसकी उन्नति हो” (रोमियों 15:2)। यह पहचानना कि हमारा पिता हमारे ऊपर बहुत ही स्नेह के साथ अनुग्रहकारी है, इसलिए आइए हम दूसरे लोगों को प्रोत्साहन के शब्दों और कार्यों के साथ परमेश्वर का अनुग्रह दिखाएँ।
जब हम “एक दूसरे को स्वीकार” (पद 7) करते हैं, आइए हम अपनी आत्मिक उन्नति के लिए परमेश्वर-पवित्र आत्मा के कार्य पर आधारित हों। और जब हम प्रतिदिन उसके पीछे चलना खोजते हैं, तो हम यीशु में हमारे भाइयों और बहनों को प्रोत्साहन का एक वातावरण बनाएँ, जब वे अपने विशवास में बढ़ते हैं।
दया के कार्य
“एस्तेरा, तुम्हें हमारी मित्र हैलन से एक उपहार मिला है!” मेरी माँ ने मुझे बताया जब वह अपने कार्य से घर लौटी। बचपन में हमारे पास ज्यादा कुछ नहीं था, इसलिए डाक से एक उपहार प्राप्त करना क्रिसमस जैसी ख़ुशी के समान था। इस अद्भुत महिला के द्वारा मुझे परमेश्वर के द्वारा प्रेम किए जाने, स्मरण रखे जाने और मेरे एक मूल्य की अनुभूति हुई।
गरीब विधवा तबीता (दोरकास) ने वस्त्र बनाए, उसने भी ऐसा ही अनुभव किया होगा। वह यीशु की एक अनुयायी थी और याफा में रहती थी, जो अपने दया के कार्यों के लिए प्रसिद्ध थी। वह सर्वदा “बहुत से भले-भले काम और दान किया करती थी” (प्रेरितों के काम 9:36)। वह बीमार हो कर मर गई। उसी समय, पतरस एक पास ही के नगर में था, अत: दो विश्वासी पतरस के पास गए और उससे याफा आने की विनती की।
जब पतरस पहुँचा, तो विधवाओं ने उसे उसकी दया के प्रमाणों को दिखाया-“और जो कुरते और कपड़े दोरकास ने उनके साथ बनाए थे” (पद 39) । हम नहीं जानते कि उन्होंने उसे हस्तक्षेप करने के लिए कहा या नहीं, परन्तु पवित्र आत्मा से अगुवाई पाकर पतरस ने प्रार्थना की और परमेश्वर ने दोरकास को पुनर्जीवित किया! परमेश्वर की दया का यह परिणाम था कि “यह बात सारे याफा में फैल गई और बहुतेरों ने प्रभु पर विश्वास किया” (पद 42) ।
जब हम अपने आस-पास वालों के प्रति दया दिखाते हैं, तो प्रभु करे कि वे अपने विचार परमेश्वर की और करें और उसके द्वारा उनका मूल्य समझे जाने का अहसास करें।
अनुग्रह में डूबना
अंततः, जनवरी 8, 1964 में सत्रह साल के रैंडी गार्डनर (ने) वह किया जो उसने ग्यारह दिन और पच्चीस मिनट से नहीं किया था : वह सो गया। वह गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड का रिकार्ड तोड़ना चाहता था कि मानव शरीर कितने समय तक जागता रह सकता है। सॉफ्ट ड्रिंक्स पीने और बास्केटबाल कोर्ट में खेलने और बॉलिंग ऐली- एक विशेष प्रकार का खेल खेलने के द्वारा नींद को डेढ़ सप्ताह तक रोक दिया था। आखिरकार (एकाएक) गिरने से पहले, उसके चखने, सूँघने और सुनने की सम्वेदना गड़बड़ा गई थीं। दशकों बाद, वेवह) अनेक बार अनिद्रा रोग से पीड़ित हुआ। उसने रिकॉर्ड तो बना दिया था परन्तु यह साफ़ कर दिया: नींद बहुत जरूरी है।
हम में से अनेक रात के अच्छे आराम के लिए संघर्ष करते हैं। गार्डनर से हटकर, जिसने जानबूझकर स्वयं को नीदं से वंचित किया, हम भी कुछ कारणों से अनिद्रा से पीड़ित हो सकते हैं-जिसमें चिन्ताओं के पहाड़, जो हम प्राप्त करना चाहते हैं (उसका भय), दूसरों की अपेक्षाओं का भय और उन्मत्त हो कर जीने की कठिनाई शामिल है। कई बार हमारे लिए भय को छोड़ देना और आराम से रहना कठिन हो जाता है।
भजनकार हमें बताता है कि “यदि घर को यहोवा न बनाए,” तो हम व्यर्थ में ही परिश्रम करते हैं (भजन संहिता 127:1)। यदि जो कुछ हमें चाहिए, परमेश्वर उपलब्ध न करवाए, तो हमारा परिश्रम और हमारे भरसक प्रयास व्यर्थ हैं। धन्यवादित हों, कि परमेश्वर वह उपलब्ध करवाता है, जिसकी हमें आवश्यकता होती है। “वह अपने प्रियों को योंही नींद प्रदान करता है” (पद 2) । और परमेश्वर का प्रेम हम सभी के लिए है। वह हमें अपनी चिन्ताओं को उस पर डाल देने और उसके विश्राम और उसके अनुग्रह में डूब जाने का आमन्त्रण देता है।