लाइट्स ऑन करके जीवन जीना
एक कार्य के लिए मुझे और मेरे सहकर्मी को 250 किलोमीटर की यात्रा पर जाना पड़ा, और रात हो चुकी थी जब हम ने घर लौटने के लिए यात्रा आरम्भ की। बूढ़ा होता हुआ शरीर और बूढ़ी आँखें मुझे रात को गाड़ी चलाने में परेशान करती हैं; परन्तु फिर भी मैंने पहले गाड़ी चलाने को चुना। मेरे हाथों ने स्टियरिंग पकड़ लिया और मेरी आँखों ने धुंधली सड़कों को गौर से देखा। गाड़ी चलाते हुए मैंने पाया कि जब मेरे पीछे से आने वाले वाहन मेरे आगे सड़क पर रोशनी डालते थे, तब मैं और अच्छे से देख पाता था। मुझे आखिरकार बहुत आराम मिला, जब मेरे दोस्त ने चलाने के लिए गाड़ी मुझ से ले ली। तब उसे पता चला कि मैं तो बड़ी लाइट्स के साथ नहीं बल्कि छोटी लाइट्स जला कर गाड़ी चला रहा था!
भजन संहिता 119 ऐसे व्यक्ति की कुशल रचना है जो यह समझ गया कि परमेश्वर का वचन हमें प्रतिदिन जीने के लिए रोशनी प्रदान करता है (पद 105) । फिर भी, प्राय: कितनी बार हम अपने आप को मेरी तरह उस दिन हाईवे की रात जैसी असुखद स्थितियों में पाते हैं? हम देखने के लिए इतना जोर देते हैं जिसकी जरूरत नहीं है और कई बार हम सुखद मार्गों से भटक जाते हैं, क्योंकि हम परमेश्वर के वचन की रोशनी का प्रयोग करना भूल जाते हैं। भजन संहिता 119 हमें “बटन को ऑन” करने के बारे में इच्छित रहने के लिए प्रोत्साहित करता है। क्या होता है जब हम ऐसा करते हैं? हम पवित्रता के लिए बुद्धि प्राप्त करते हैं (पद 9-11); हम भटकने से बचने के लिए ताज़ा प्रेरणा और प्रोत्साहन प्राप्त करते हैं (101-102) । और जब हम लाइट्स ऑन करके जीवन जीते हैं, तो भजनकार की स्तुति हमारी स्तुति बन जाती है: “आहा! मैं तेरी व्यवस्था से कैसी प्रीति रखता हूँ! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है” (पद 97)।
अपनी वास्तविक पहचान को खोजना
मैं कौन हूँ? यह एक प्रश्न है जो मिक इंकपेन द्वारा लिखित बच्चों की एक पुस्तक नथिंग में एक दुखी जानवर पूछता है। एक धूल-धूसरित कोने में छिपा हुआ यह जानवर आने जाने को उसे “नथिंग” कहकर पुकारते हुए सुनता है और सोचता है उसका नाम ही “नथिंग” है।
दूसरे जानवरों से सामना होने पर उसकी याद वापस आती है। नथिंग को याद आता है कि उसकी भी एक पूँछ, मूछें और धारियाँ थीं। परन्तु इसका कोई लाभ नहीं हुआ जब तक उसकी भेंट एक बिल्ली से नहीं हुई, जिसने उसकी सही ओर जाने में और नथिंग को यह याद दिलाने में सहायता की कि वह वास्तव में है कौन: टोबी नामक एक स्टफड कैट। उसके मालिक ने बड़े ही प्रेम के साथ उसे ठीक किया, उसके नए कान, पूँछ, मूछें और धारियाँ सिलीं।
मैं जब कभी भी यह पुस्तक पढ़ती हूँ, तो मैं अपनी पहचान के बारे में सोचने लगती हूँ। मैं कौन हूँ? यूहन्ना, विश्वासियों को लिखते हुए कहता है कि परमेश्वर ने हमें अपनी सन्तान कहा है (1 यूहन्ना 3:1) । हम उस पहचान को पूरी तरह से नहीं समझते, परन्तु जब हम यीशु को देखते हैं, तो हम उसके समान बन जाएँगे (पद 2) । ठीक उस टोबी नामक बिल्ली के समान, हमें उस पहचान में पुनर्स्थापित कर दिया जाएगा, जिसकी इच्छा हमारे लिए रखी गई है, वह पहचान पाप के द्वारा बिगाड़ दी गई थी। अभी हम उस पहचान को आधे हिस्से को समझ सकते हैं और हम एक-दूसरे में परमेश्वर के स्वरूप को पहचान सकते हैं। परन्तु एक दिन, जब हम यीशु को देखेंगे, हम उस पहचान में पूरी तरह से पुनर्स्थापित कर दिए जाएँगे, जिसकी इच्छा परमेश्वर हमारे लिए रखता है। हमें नया बना दिया जाएगा।
प्रेम और शान्ति
यह मुझे सर्वदा ही आश्चर्यचकित करता है कि शान्ति-सामर्थी और समझाई न जा सकने योग्य शान्ति (फिलिप्पियों 4:7)-हमारे गहनतम दुःख में भी हमारे हृदयों को आपूर्त कर सकती है। मैंने यह हाल ही में अपने) पिता की मेमोरियल सर्विस में अनुभव किया। सांत्वना देने वाले लोगों की लम्बी कतार में अपनी हाई स्कूल के एक मित्र को देखकर मुझे बहुत आराम मिला। बिना कुछ कहे उसने मुझे जोर से गले लगा लिया। उस संकट भरे दिन के दुःख में उसकी मूक समझ ने मुझे लबालब भर दिया, इस सशक्त याद दिलाने वाले अहसास ने मुझे याद दिलाया कि मैं उतनी अकेली भी नहीं थी, जितना मुझे लग रहा था।
जैसे भजन संहिता 16 में दाऊद उल्लेख करता है, कि जिस प्रकार की शान्ति और आनन्द परमेश्वर हमारे जीवनों में ले कर आता है यह कठिन समयों में पीड़ा को भावहीन ढंग (से) दबाने के लिए एक चुनाव के द्वारा नहीं आया है; परन्तु यह तो एक उपहार के समान है, जिसमें हम कुछ नहीं कर सकते, परन्तु हम इसे तभी अनुभव कर सकते हैं, जब हम अपने भले परमेश्वर में शरण लेते हैं (पद 1-2) ।
हम उस पीड़ा को जवाब दे सकते हैं जो मृत्यु हमें पथभ्रष्ट करने के द्वारा ले कर आती है, शायद यह सोचकर कि इन अन्य “ईश्वरों” की ओर मुड़ जाना पीड़ा को दूर रखेगा। परन्तु जल्द ही या थोड़े समय बाद हम पाएँगे कि दुःख से बचना तो बस हमारे लिए और गहन पीड़ा ही ले कर आता है (पद 4) ।
या हम परमेश्वर की ओर मुड़ सकते हैं, यह भरोसा करते हुए कि जब हम यह नहीं समझ सकते, कि जो जीवन वह हमें पहले से ही दे चुका है-इसकी पीड़ा में भी-वह खुबसूरत और भला है (पद 6-8) । और हम अपने आप को उसकी प्रेम से भरी बाँहों के अधीन कर सकते हैं जो हमारी पीड़ा से आराम के साथ हमें एक शान्ति और आनन्द में ले जाती हैं, जिसे मृत्यु भी कभी कम नहीं कर सकती है (पद 11) ।
तैयार भले काम
विदेश की एक गली में जब एक हट्टा-कट्टा अजनबी जब मेरी और मेरी पत्नी की ओर आया, तो हम भय के मारे पीछे हट गए। हमारी छुट्टियाँ बहुत ही बुरी बीत रही थीं; हम पर चिल्लाया गया था, हमारे साथ धोखेबाज़ी हुई थी और अनेक बार ज़बरदस्ती हमारी चीज़ें छीन ली गई थीं। क्या हमें अब दुबारा कोई झटका मिलने वाला था? हम आश्चर्यचकित हुए, कि वह तो हमें बस यह दिखाना चाहता कि उसके नगर का सबसे अच्छा दृश्य कहाँ से देखा जा सकता था। उसके बाद उसने हमें एक चॉकलेट दी, मुस्कुराया और चला गया। उसे छोटी सी घटना ने हमारे दिन को खुशनुमा बना दिया-और जैसे कि पूरी ट्रिप को ही अच्छा बना दिया। इस घटना ने हमें खुश करने के लिए हमें परमेश्वर और उस व्यक्ति, दोनों का कृतज्ञ बना दिया।
उस व्यक्ति को हम दो अजनबियों तक पहुँचने के लिए किसने बाध्य किया था? क्या वह सारा दिन उस चॉकलेट के साथ किसी को खुश करने के लिए घूमता रहा था?
यह एक अद्भुत सी बात है कि एक छोटा सा काम बहुत बड़ी मुस्कुराहट ला सकता है-या शायद किसी का परमेश्वर की ओर मार्गदर्शन कर सकता है। बाइबल भले काम करने के महत्व पर बल देती है (याकूब 2:17,24) । यदि वह चुनौतीपूर्ण लगता है, तो हमारे पास यह आश्वासन है कि परमेश्वर हमें न केवल ये कार्य करने के योग्य बनाता है, परन्तु उन्हें “पहले से ही हमारे करने के लिए तैयार किया है (इफिसियों 2:10) ।
शायद परमेश्वर ने हमारा किसी से “टकराने” का प्रबन्ध किया हो, कोई ऐसा व्यक्ति जिसे प्रोत्साहन के एक शब्द की ज़रूरत हो या उसने हमें आज किसी की सहायता करने का सुअवसर प्रदान किया हो। हमें तो बस आज्ञाकारिता में जवाब देना है।
प्रेम हमें बदलता है
मेरे यीशु से मिलने से पहले, मुझे इतनी गहरी चोट लगी थी कि मैं और आहत होने के भय से घनिष्ठ सम्बन्ध रखने से बचती थी। मेरी माँ मेरी सबसे घनिष्ठ मित्र रही, जब तक मैंने ऐलन से विवाह नहीं कर लिया। सात साल बाद और तलाक के कगार पर मैंने कलीसिया की एक सभा में मेरे किंडरगार्टनर, ज़ेवियर, से सहायता माँगनी चाही। मैं बाहर जाने के दरवाज़े के निकट बैठ गई, मैं किसी पर भरोसा करने के लिए डरी हुई थी, परन्तु मैं सहायता के लिए बेचैन भी थी।
मैं धन्यवाद देती हूँ कि विश्वासी लोग आगे आए और हमारे परिवार के लिए प्रार्थना की और मुझे सिखाया कि प्रार्थना और बाइबल अध्ययन के साथ परमेश्वर के साथ एक सम्बन्ध कैसे कायम करना है। समय के साथ-साथ मसीह और उसके अनुगामियों के प्रेम ने मुझे बदल दिया।
कलीसिया की उस पहली सभा के दो साल बाद ऐलन, ज़ेवियर और मैंने कुछ समय के बाद बपतिस्मा लेने के लिए कहा, हमारी हफ्ते में होने वाली एक वार्तालाप के दौरान मेरी माँ ने पूछा, “तुम अलग सी लग रही हो। मुझे यीशु के बारे में और बताओ।” कुछ महीने बीत गए और उन्होंने भी मसीह को अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार कर लिया।
यीशु जीवनों को रूपान्तरित करता है...शाऊल जैसे जीवनों को, जिससे कलीसिया के उत्पीड़कों में सबसे अधिक भय रखा गया था, जब तक उसकी मुठभेड़ मसीह के साथ नहीं हुई थी (प्रेरितों के काम 9:1-5) । दूसरे लोगों ने शाऊल की यीशु के बारे में और सीखने में सहायता की (पद 17-19) । उसके प्रबल रूपांतरण ने उसकी आत्मा की सामर्थ से भरी हुई शिक्षा को और निखार दिया (पद 20-22) ।
मसीह के साथ हमारी भेंट शाऊल जैसी नाटकीय नहीं हो सकती। हमारे जीवन का रूपांतरण उतना तीव्र और प्रबल भी नहीं हो सकता। फिर भी, जब लोग ध्यान देते हैं कि समय के साथ-साथ मसीह का प्रेम हमें किस प्रकार बदल रहा है, तब हमारे पास दूसरों को यह बताने का सुअवसर होता है कि उसने हमारे लिए क्या किया है।