अविनाशी प्रेम
जब हमनें अपने पीछे के आँगन में पानी की धारा देखी, वह गर्मियों की दिनों में चट्टानों के अन्दर से केवल एक पतली रिसाव थी l लकड़ी के भारी तख्तों के सहारे हम सरलता से आना-जाना कर लेते थे l महीनों बाद, हमारे क्षेत्र में अनेक दिनों तक मूसलाधार बारिश हुयी l हमारी छोटी सी नियंत्रित जलधारा चार फीट गहरी और दस फीट चौड़ी तेज़ बहनेवाली बड़ी नदी बन गई! प्रबल जल प्रवाह ने तख्तों को बहाकर अनेक फीट दूर टिका दिया l
तेज़ जलधारा अपने मार्ग में आनेवाली लगभग सभी वस्तुओं पर प्रबल हो जाती है l फिर भी कुछ है जो बाढ़ अथवा अन्य ताकतों के सामने अविनाशी है जो उसे नष्ट करना चाहती है – प्रेम l “पानी की बाढ़ से भी प्रेम नहीं बुझ सकता , और न महानदों से डूब सकता है” (श्रेष्ठगीत 8:7) l आमतौर पर रोमांटिक संबंधों में प्रेम की दृढ़ शक्ति और तीव्रता उपस्थित होती है, परन्तु केवल उसी प्रेम में पूरी तौर से अभिव्यक्त है जो परमेश्वर अपने पुत्र, यीशु मसीह में आपने लोगों के लिए रखता है l
जब वे बातें मिट जाती हैं जिन्हें हम मजबूत और भरोसेमंद मानते हैं, हमारी निराशाएं हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम की एक नयी समझ का द्वार खोल देती हैं l उसका प्यार इस पृथ्वी पर की किसी भी बात से ऊंचा और गहरा और ताकतवर और टिकाऊ है l हम जिसका भी सामना करते हैं, हम उसके साथ करते हैं जो हमारे निकट है – हमें थामें हुए है, मिलकर सहायता करता है, और याद दिलाता है कि हमें प्रेम किया जाता है l
विशवास की विरासत
निर्णायक क्षण से बहुत पहले जब बिली ग्रैहम सोलह वर्ष की उम्र में मसीह में विश्वास में आए, यीशु के प्रति उनके माता-पिता की भक्ति प्रगट थी l वे दोनों विश्वासियों के एक परिवार में विशवास किये थे और उनका पालन पोषण भी वहीं हुआ था l बिली के माता-पिता ने अपने विवाह के बाद, प्रेमपूर्वक अपने बच्चों का पालन-पोषण करने के द्वारा उस विरासत को जारी रखा, जिसमें प्रार्थना और बाइबल पठन और बच्चों के साथ विश्वासयोग्यता से चर्च जाना शामिल था l ग्रैहम के माता-पिता द्वारा बिली के लिए दृढ़ बुनियाद रखना ही वह मिटटी थी जिसे परमेश्वर ने उसे विश्वास में लाने के लिए उपयोग किया और, अंततः, एक दृढ़ सुसमाचार प्रचारक की उसकी बुलाहट भी l
प्रेरित पौलुस का युवा शागिर्द तीमुथियुस भी एक मजबूत आत्मिक बुनियाद से फायदा उठाया था l पौलुस ने लिखा, “मुझे तेरे उस निष्कपट विश्वास की सुधि आती है, जो पहले तेरी नानी लोइस और तेरी माता युनिके में था” (2 तीमुथियुस 1:5) l इस विरासत ने तीमुथियुस को तैयार किया और उसके हृदय को मसीह में विश्वास करने की ओर ले चला l
अब पौलुस तीमुथियुस को अपने विशवास की परम्परा को आगे ले चलने का आग्रह करता है (पद.5), “परमेश्वर के . . . वरदान को . . . [पवित्र आत्मा द्वारा जो] “सामर्थ्य” [देता है, अपने अन्दर] प्रज्वलित कर दे” (पद.6-7) l आत्मा की सामर्थ्य के कारण, तीमुथियुस निर्भय होकर सुसमाचार के लिए जी सकता था (पद.8) l एक मजबूत आत्मिक विरासत गारन्टी नहीं देता है कि हम विश्वास में आ जाएंगे, परन्तु दूसरों का नमूना और सलाह मार्ग प्रशस्त करने में सहायता कर सकता है l और हमारे यीशु को उद्धारकर्ता ग्रहण करने के बाद, आत्मा सेवा में, उसके साथ जीवन जीने में, और दूसरों के विश्वास को पोषित करने में भी हमारी अगुवाई करेगा l
पुनः युद्ध में
बचपन में उसने अपने माता-पिता को निन्दीय शब्द कहे थे l वह नहीं जानती थी कि वे शब्द उनके साथ उसका अंतिम संवाद होगा l इस समय, वर्षों की सलाह के बाद, वह अपने को माफ़ नहीं कर पा रही है l दोष भावना और पछतावा उसके जीवन को पंगु बना दिए हैं l
हम सब दोष भावना के साथ जीते हैं – उनमें से कुछ बहुत भयानक हैं l परन्तु बाइबल हमें दोष से निकलने का एक मार्ग बताती है l आइए हम एक उदाहरण देखें l
जो राजा दाऊद ने किया उसपर चाशनी नहीं लगी हुयी है l यह वह समय था जब “राजा लोग युद्ध करने को निकला करते [थे]” परन्तु “दाऊद यरूशलेम में रह गया” (2 शमूएल 11:1) l युद्ध से दूर, उसने दूसरे व्यक्ति की पत्नी को चुराया और हत्या के द्वारा इस कृत्य को छिपाने की कोशिश की (पद.2-5, 14-15) l परमेश्वर ने दाऊद के अधोमुखी पतन को रोक दिया (12:1-13), परन्तु राजा अपने पाप के बोध के साथ अपना बाकी जीवन जीने वाला था l
जब दाऊद राख से उठ रहा था, उसका सेनापति, योआब उस युद्द को जीत रहा था जिसका नेत्रित्व दाऊद को करना चाहिए था (12:26) l योआब ने दाऊद को चुनौती दी, “अब रहे हुए लोगों को इकठ्ठा करके नगर के विरुद्ध छावनी डालकर उसे भी ले ले”(पद.28) l दाऊद आख़िरकार परमेश्वर द्वारा नियुक्त स्थान राष्ट्र और अपनी सेना का अगुवा बन गया (पद.29) l
हम अपने अतीत को हमें कुचलने देकर, परिणामस्वरूप परमेश्वर से कह रहे होते हैं कि उसका अनुग्रह पर्याप्त नहीं है l हमने क्या किया है की बजाए, हमारा पिता हमें अपनी सम्पूर्ण क्षमा देता है l दाऊद की तरह, हम भी युद्ध में पुनः वापसी के लिए प्रयाप्त अनुग्रह प्राप्त कर सकते हैं l
क्या आप लौटेंगे?
रॉन और नैन्सी का विवाह शीघ्रता से बिगड़ रहा था l उसका सम्बन्ध किसी और से था, परन्तु कुछ समय बाद उसने परमेश्वर के सामने अपना पाप मान लिया था l वह जानती थी वह क्या चाहता था वह करे, परन्तु यह कठिन था l उसने रॉन के साथ सच्चाई को साझा किया l तलाक मांगने की बजाए, रॉन ने नैन्सी को यह दिखाकर कि वह बदल गयी थी उसका भरोसा जीतने का अवसर दिया l आश्चर्यचकित रूप से परमेश्वर ने उनके विवाह को पुनः ठीक कर दिया l
रॉन की क्रिया परमेश्वर के प्रेम और क्षमा की तस्वीर है जो उसने आपके और मेरे समान पापियों के प्रति दिखाया है l नबी होशे ने इसे भलीभांति समझ लिया था l परमेश्वर ने इस्राएल को उसके सामने अविश्वासयोग्यता की उसकी हालत दिखाने के लिए होशे को एक अविश्वासयोग्य स्त्री से विवाह करने की आज्ञा दी (होशे 1) l यदि वह बहुत अधिक दिल दुखाने वाला नहीं था, जब होशे की पत्नी ने उसे त्याग दिया, परमेश्वर ने उससे कहा कि वह अपनी पत्नी को लौटने के लिए कहे l उसने कहा, “अब जाकर एक ऐसी स्त्री से प्रीति कर, जो व्यभिचारिणी होने पर भी अपने प्रिय की प्यारी हो” (3:1) l उसकी सारी अनाज्ञाकारिता के बाद भी, परमेश्वर अपने लोगों के साथ निकट सम्बन्ध रखने की इच्छा रखता था l जिस प्रकार होशे अपनी अविश्वासयोग्य पत्नी से प्रेम करता था, उसको पाने की कोशिश करता है, और उसके लिए त्याग करता है, उसी प्रकार परमेश्वर ने अपने लोगों से प्रेम किया l उसका पवित्र क्रोध और इर्ष्या उस महान प्रेम से प्रेरित था l
वही परमेश्वर आज हमें अपने निकट चाहता है l जब हम विश्वास से उसके पास आते हैं, हम भरोसा कर सकते हैं कि हम उसमें पूरी तौर से तृप्त होंगे l
रोटी और मछली
एक युवक चर्च से घर पहुंचकर बड़ी उत्तेजना के साथ बोला कि आज का पाठ एक युवा के विषय था जो “पूरे दिन इधर उधर घूमा और मछली पकड़ा l” निसन्देह, वह, उस छोटे लड़के के विषय सोच रहा था जिसने यीशु को रोटी और मछली दी थी l
यीशु पूरे दिन भीड़ को शिक्षा दे रहा था, और शिष्यों की राय थी कि वह उन्हें रोटी खरीदने के लिए गाँव में भेज दे l यीशु ने उत्तर दिया, “तुम ही इन्हें खाने को दो” (मत्ती 14:16) l शिष्य घबरा गए क्योंकि 5,000 से भी अधिक लोगों को भोजन खिलाने की बात थी!
आप बाकी कहानी जानते होंगे : एक लड़के ने अपना भोजन दिया – पांच छोटी रोटियाँ और दो मछली – और यीशु ने उससे भीड़ को खिला दिया (पद.13-21) l एक विचार के अनुसार लड़के ने उदारता दिखाकर सरलता से भीड़ में अन्य लोगों को अपना भोजन साझा करने को प्रेरित किया, परन्तु मत्ती चाहता है कि हम समझें कि वह एक आश्चर्यक्रम था, और यह कहानी चारों सुसमाचारों में मिलती है l
हम क्या सीख सकते हैं? परिवार, पड़ोसी, मित्रगन, सहयोगी, और दूसरे हमारे चारों ओर विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं में होते हैं l क्या हम उनको अपनी योग्यता से बड़े लोगों के पास भेज दें? बिलकुल, कुछ लोगों की ज़रूरतें हमारी सहायता करने की योग्यता से अधिक हैं, लेकिन हमेशा नहीं l जो भी आपके पास है – सीने से लगाना, एक दयालु शब्द, सुनने वाला कान, छोटी प्रार्थना, कुछ बुद्धिमत्ता जो आपके पास है – यीशु को दे दें और देखें वह क्या कर सकता है l