नीली रेखाएं
डाउनहिल स्कीइंग(बर्फ के ढलान पर स्की से फिसलना) के बर्फीले क्षेत्र की सतह अक्सर नीली रंग की पट्टी से चिन्हित होती है l मोटे घुमावदार निशान दर्शकों के लिए विकर्षण हो सकते हैं परन्तु प्रतियोगियों की सफलता और सुरक्षा दोनों के लिए ज़रूरी हैं l ये निशान प्रतियोगियों के लिए पहाड़ी से नीचे तक सबसे तेज़ पट्टी पहचानने के लिए मार्गदर्शिका है l इसके अलावा, बर्फ के विपरीत यह रंग पट्टी प्रतियोगियों के लिए गहन अभिज्ञता है, जो उनके उच्च गति से स्की करते समय उनकी सुरक्षा के लिए अत्यंत ज़रूरी है l
सुलैमान जीवन की दौड़ के मैदान में अपने पुत्रों को सुरक्षित रखने की आशा से उनसे बुद्धिमत्ता ढूँढने का आग्रह करता है l वह कहता है, “उन नीली रेखाओं की तरह, बुद्धिमत्ता, उन्हें “सिधाई के पथ पर [चलाएगी]’ और वे “ठोकर न [खाएंगे]” (नीतिवचन 4:11-12) l एक पिता होने के नाते अपने पुत्रों के लिए उसकी सबसे गहरी आशा है कि वे परमेश्वर की बुद्धिमत्ता से दूर रहने के हानिकारक प्रभाव से विमुक्त रहकर समृद्ध जीवन का आनंद उठाएं l
हमारे प्रेमी पिता के रूप में, परमेश्वर, हमें बाइबल में “नीली-रेखा” मार्गदर्शन देता है l जबकि उसने हमें अपने मन के अनुसार कहीं भी “स्की” करने की स्वतंत्रता दी है, वह जो बुद्धिमत्ता बाइबल में प्रस्तावित करता है, दौड़ के मैदान में चिन्हकों की तरह वे “जिनको . . . प्राप्त होती हैं, वे उनके जीवित रहने का . . . कारण होती हैं” (पद.22) l जब हम बुराई से फिरकर उसकी जगह उसके साथ चलते है, हमारा पथ उसकी धार्मिकता से प्रकाशित रहेगा और हमारे पाँव ठोकर नहीं खाएंगे और प्रतिदिन हमें मार्गदर्शन प्राप्त होगा (पद.12, 18) l
उल्टा चलना
ब्रिटिश समाचार फिल्म कर्मीदल के एक फिल्म के हिस्से पर मैं चौंक गया जिन्होनें 1932 में छः वर्ष की फ्लानरी ओकोन्नोर के जीवन पर उन्हीं के पारिवारिक फार्म में फिल्म बनायी l फ्लानरी, जो आगे चलकर ख्याति प्राप्त अमरीकी लेखिका बननेवाली थी, ने कर्मीदल के कुतूहलता को आकर्षित किया क्योंकि उसने एक चूजे को उल्टा चलना सिखाया था l इस नयी कमाल की बात के अलावा, मैंने सोचा कि यह झलक इतिहास का एक पूर्ण रूपक था l अपने साहित्यिक बोध और आत्मिक दृढ़ निश्चय, दोनों ही कारण से फ्लानरी ने, अपने जीवन के उन्तीस वर्ष वास्तव में उल्टा चलने में बिताया अर्थात् संस्कृति के तरीकों के विपरीत विचार करते और लिखते हुए l प्रकाशक और पाठक पूरी तौर से चकित थे कि किस तरह उसके बाइबल सम्बन्धी मुद्दे उनके अपेक्षित धार्मिक विचारों के विरुद्ध थे l
यीशु का अनुकरण करनेवालों के लिए मानक के विरुद्ध चलने वाला जीवन वास्तव में अपरिहार्य है l फिलिप्पियों की पत्री हमें बताती है कि यीशु, “परमेश्वर के स्वरुप में [होने के बावजूद],” हमारी अपेक्षा के अनुकूल प्रत्याशित कदम नहीं बढ़ाया (पद.6) l उसने अपनी सामर्थ्य को “अपने वश में रखने की वस्तु न समझा, वरन् अपने को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरुप धारण किया” (पद.6-7) l सृष्टि का प्रभु, मसीह ने, प्रेम के कारण मृत्यु सही l उसने प्रतिष्ठा को नहीं परन्तु दीनता को गले लगाया l उसने अधिकार को नहीं छीना परन्तु इख्तियार को त्याग दिया l सारांश में, यीशु, संसार द्वारा प्रेरित तरीकों के विपरीत उल्टा चला l
बाइबल हमें ऐसा ही करने को कहती है (पद.5) l यीशु की तरह, हम हावी होने के बदले सेवा करते हैं l हम ख्याति के बदले दीनता की ओर बढ़ते हैं l हम लेने के बदले देते हैं l यीशु की सामर्थ्य में, हम उल्टा चलते हैं l
अवश्य
शर्ली एक लम्बे दिन के पश्चात् अपनी आराम कुर्सी पर बैठ गयी l उसने खिड़की के बाहर उससे भी वृद्ध पति-पत्नी को एक बाड़े को खींचते हुए देखा जो एक अहाते में पड़ा था और जिसपर लिखा था “मुफ्त है l” शर्ली अपने पति के साथ उनकी मदद करने दौड़ गयी l चारों ने मिलकर मेहनत की और बाड़े के एक हिस्से को एक ठेले में लादकर शहर के सड़क से होते हुए उस दम्पति के घर के निकट ले आये – पूरे समय हँसते हुए कि वे तमाशा बन गए थे l जब वे बाड़े के दूसरे हिस्से को लेने गए, उस महिला ने शर्ली से पुछा, “तुम्हें मेरी सहेली बनना चाहिए?” “हाँ, अवश्य,” उसने उत्तर दिया l शर्ली को बाद में पता चला कि उसकी नयी वियतनामी सहेली थोड़ी अंग्रेजी जानती थी और अकेली थी क्योंकि उसके व्यस्क बच्चे उनसे बहुत दूर रहने चले गए थे l
लैव्यव्यवस्था की पुस्तक में, परमेश्वर ने इस्राएलियों को याद दिलाया कि वे परदेशी होने का अनुभव जानते थे (19:34) और दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए (पद.9-18) l परमेश्वर ने उनको अपना राष्ट्र बनाने के लिए अलग किया था, और इसके बदले में उन्हें अपने “पड़ोसियों” से अपने समान प्रेम करके उन्हें आशीष देना था l परमेश्वर की ओर से सभी राष्ट्रों के लिए महानतम आशीष, यीशु ने, बाद में अपने पिता के शब्दों को दोहराया और उनको हम तक पहुँचाया : “तू परमेश्वर अपने प्रभु से . . . और . . . अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख” (मत्ती 22:37-39) l
हमारे अन्दर मसीह की आत्मा के निवास करने के द्वारा, हम परमेश्वर से और दूसरों से प्रेम कर सकते हैं क्योंकि उसने पहले हमसे प्रेम किया है (गलातियों 5:22-23; 1 युहन्ना 4:19) l क्या हम शर्ली के साथ कह सकते हैं, “हाँ, अवश्य”?
अंतिम शब्द
उसका नाम सारालिन था, और स्कूल में साथ पढ़ते समय मैं उसका दीवाना था l उसकी मुस्कराहट अद्भुत थी l मुझे नहीं मालूम कि वह उसके प्रति मेरी दीवानगी के विषय जानती थी, परन्तु मुझे शक है कि वह जानती थी l स्नातक की पढ़ाई के बाद मुझे नहीं मालूम वह कहाँ चली गयी l हम दोनों का जीवन अलग- अलग रास्ते पर चल दिया जैसा कि जीवनों के साथ होता है l
मैं कुछ ऑनलाइन मंचों(forum) के माध्यम से अपने स्नातक कक्षा के साथ सम्बन्ध रखता हूँ, और मैं सारलिन की मृत्यु के विषय सुनकर अत्यंत दुखित हुआ l मैं सोचता रहा कि इन बीते वर्षों में उसके जीवन ने कौन सी दिशा ली थी l मेरी उम्र बढ़ने के साथ ऐसी बातें और भी अधिक हो रही हैं, मित्रों और परिवार को खोने का अनुभव l परन्तु हममें से अनेक इसके विषय बात नहीं करना चाहते हैं l
जबकि हम अभी भी दुखित होते हैं, पौलुस जिस आशा के विषय बात करता है वह यह है कि मृत्यु अंत नहीं है (1 कुरिन्थियों 15:54-55) l कुछ है जो उसके बाद आने वाला है, एक अन्य शब्द : पुनरुत्थान l पौलुस उस आशा को मसीह के पुनरुत्थान की सच्चाई में स्थापित करता है (पद.12), और कहता है “और यदि मसीह नहीं जी उठा, तो हमारा प्रचार करना भी व्यर्थ है, और तुम्हारा विश्वास भी व्यर्थ है” (पद.14) l यदि विश्वासी के रूप में हमारी आशा केवल इसी संसार तक सिमित है, तो यह केवल दुर्गति है (पद.19) l
“जो मसीह में सो गए हैं” (पद.18) हम उन्हें एक दिन फिर देखेंगे – दादा-दादी, नाना-नानी और माता-पिता, मित्र और पड़ोसी, या शायद स्कूल के मित्र जिनसे हम प्रेम करते थे l
मृत्यु के पास अंतिम अधिकार नहीं है l पुनरुत्थान के पास है l
मार्गदर्शक प्रकाश
वह रेस्टोरेंट एकांत में था परन्तु अँधेरा l हर एक मेज़ पर केवल एक छोटी मोमबत्ती टिमटिमा रही थी l प्रकाश लाने के लिए, भोजन करनेवाले अपनी व्यंजन-सूची पढ़ने के लिए अपने स्मार्टफोन्स का उपयोग कर रहे थे, अपने साथ भोजन करनेवालों की ओर देखते थे और यह भी कि वे क्या खा रहे थे l
आख़िरकार, एक ग्राहक अपनी कुर्सी पीछे खिसकाकर उठा, वेटर के पास गया, और एक साधारण प्रश्न पुछा l “क्या आप बत्तियां जला सकते हैं?” तुरंत, ऊँचाई पर की एक तेज़ बत्ती जल गयी और कमरे में उच्च प्रशंसा ध्वनि सुनाई दी l परन्तु हंसी भी l और उल्लासपूर्ण बातचीत भी l और ढेर सारे धन्यवाद l मेरी सहेली के पति ने अपना फोन बंद कर दिया, अपने बरतनों को उठाया, और हममें से हर एक के लिए बोला l “और उजियाला हो! अब, हम भोजन करना आरम्भ करें!”
हमारी सूनी शाम स्विच के दबाने से उत्सव में बदल गयी l परन्तु सच्ची ज्योति के वास्तविक श्रोत को जानना कितना अधिक महत्वपूर्ण है l परमेश्वर स्वयं ही सृष्टि को बनाते समय पहले दिन चौकानेवाले शब्द उच्चारित किये, “उजियाला हो,” तो उजियाला हो गया (उत्पत्ति 1:3) l उसके बाद “परमेश्वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा है” (पद.4) l
प्रकाश हमारे लिए परमेश्वर के महान प्रेम को दर्शाता है l उसका प्रकाश हमें “जगत की ज्योति” यीशु की ओर इशारा करता है (युहन्ना 8:12), जो पाप के अंधकार से निकलने में हमारा मर्क्दर्शन करता है l प्रकाश में चलने से, हमें उसके पुत्र को महिमान्वित करनेवाला, जीवन का प्रकाशमान पथ मिलता है l वह संसार का सबसे प्रकाशमान उपहार है l जब वह चमकता है, हम उसके मार्ग पर चल सकें l