Month: फरवरी 2020

निकट के पड़ोसी

सोशल मीडिया हमारे पड़ोसियों और मित्रों और हमारे शहर और यहाँ तक कि दुनिया भर के लोगों से जुड़ने का एक सशक्त साथन बन गया है l बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के दौरान, यह भोजन, कपड़े और अन्य आवश्यक वस्तुओं के श्रोत का पता लगाने के लिए संसाधन बन गया है l इन्टरनेट की शक्ति का लाभ उठाकर, एक दूसरे के निकट रहने वाले लोग उन तरीकों से फिर से जुड़ रहे हैं जो आज की तेजी से भागते संसार में अक्सर खो जाते हैं l 

उन लोगों के साथ सम्बंधित होना जो निकट रहते हैं बहुत पहले राजा सुलैमान के दिनों में भी महत्वपूर्ण थे l जबकि पारिवारिक रिश्ते वास्तव में महत्वपूर्ण हैं और महान समर्थन का श्रोत हो सकते हैं, सुलैमान इंगित करता है कि एक मित्र की भूमिका महत्वपूर्ण है – खासकर “विपत्ति के दिनों” में (नीतिवचन 27:10) l सम्बन्धी अपने परिवार के सदस्यों और ऐसी परिस्थितयों में मदद की इच्छा के लिये गहराई से देखभाल कर सकते हैं l लेकिन अगर वे बहुत दूर हैं, तो उन क्षणों में बहुत कम कर सकते हैं जब विपत्ति आती है l हालाँकि, पड़ोसी, क्योंकि वे निकट हैं, जल्दी से ज़रूरत के बारे में पता करके अधिक आसानी से सहायता कर सकते हैं l 

क्योंकि तकनीक ने संसार भर में प्रियजनों के साथ जुड़े रहने के लिए पहले से कहीं अधिक आसान बना दिया है, हमें आस-पास रहने वाले लोगों को अनदेखा करने का प्रलोभन हो सकता है l यीशु, हमारे आसपास के लोगों के साथ संबंधों में निवेश करने में हमारी मदद करें!

साथ में

1994 में दो महीने की अवधि के दौरान, हुतु जनजाति के सदस्यों द्वारा अपने साथी देशवासियों को मारने पर तुला रवांडा में दस लाख तुत्सी(नस्ली जाति) मारे गए थे l इस भयावह नरसंहार के मद्देनज़र, बिशप जेफ़री रुबुसिसी ने अपनी पत्नी से उन महिलाओं तक पहुँचने के बारे में संपर्क किया, जिनके प्रियजन मारे गए थे l मेरी का जवाब था, “मैं केवल रोना चाहती हूँ l” उसने भी अपने परिवार के सदस्यों को खोया था l बिशप की प्रतिक्रिया एक बुद्धिमान अगुआ और देखभाल करनेवाले पति की थी : “मेरी, महिलाओं को एक साथ इकठ्ठा करो और उनके साथ रोओ l” उन्हें पता था कि उनकी पत्नी के दर्द ने उन्हें दूसरों के दर्द में विशिष्ट रूप से भागीदारी करने के लिए तैयार किया था l 

कलीसिया, परमेश्वर का परिवार है, जहाँ जीवन की सभी बातें साझा की जा सकती हैं – अच्छी और जो बहुत अच्छी नहीं हैं l नए नियम का शब्द “परस्पर” का उपयोग एक दूसरे पर हमारी निर्भरता को हथियाने के लिए किया गया है l “भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे से स्नेह रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो . . . आपस में एक सा मन रखो” (रोमियों 12:10, 16) l हमारी संयुक्तता की सीमा पद 15 में व्यक्त की गयी है : “आनंद करनेवालों के साथ आनंद करो, और रोनेवालों के साथ रोओ l”

जबकि नरसंहार से प्रभावित लोगों की तुलना में हमारे दर्द की गहराई और गुंजाइश कम हो सकती है, फिर भी यह व्यक्तिगत और वास्तविक है l और, जैसा कि मेरी के दर्द के साथ था, इसलिए कि परमेश्वर ने हमारे लिए जो किया है उसे गले लगाया जा सकता है और दूसरों के दिलासा और भलाई के लिए साझा किया जा सकता है l 

हम मिट्टी हैं

युवा पिता थक चुका था l आइसक्रीम! आइसक्रीम! उसका छोटा बच्चा चिल्लाया l भीड़-भाड़ वाले मॉल के बीच में संकट ने आसपास के दुकानदारों का ध्यान खींचना शुरू कर दिया l “ठीक है, लेकिन हमें पहले मम्मी के लिए कुछ करने की ज़रूरत है, ठीक?” पिता ने कहा l “नहीं! आइसक्रीम!” और फिर वह उनके पास आई : एक छोटी, अच्छी पोषक वाली महिला जिसकी जूती और हैंडबैग मैच कर रहे थे l पिता ने कहा, “वह बहुत तड़क रहा है l” महिला ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “वास्तव में, ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आपका बेटा इस बड़े तड़क का सामना कर रहा है l वह इतना छोटा है न भूलें l उसको आपके धैर्य और आपकी निकटता की ज़रूरत है l” स्थिति ने जादुई तरीके से अपना हल नहीं निकाली, लेकिन पिता और बेटे को एक ख़ास ठहराव की ज़रूरत थी, जो इस समय ज़रूरी था l 

भजन 103 में उस बुद्धिमान स्त्री के शब्दों की गूंज सुनाई देती है l दाऊद हमारे परमेश्वर के बारे में लिखता है, जो “दयालु, और अनुग्रहकारी, विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करुणामय है” (पद.8) l वह तब एक सांसारिक पिता की छवि का आह्वान करते हुए आगे कहता है, जो “अपने बालकों पर दया करता है,” और इससे भी अधिक “यहोवा अपने डरवैयों पर दया करता है” (पद.13) l हमारा परमेश्वर पिता “हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही है” (पद.14) l वह जानता है कि हम छोटे और नाजुक हैं l 

हम अक्सर असफल होते हैं और यह बड़ा संसार जो हमें देता है उससे अभिभूत होते है l परमेश्वर का धीरजवंत, सर्वदा उपस्थित, प्रचुर प्रेम को जानना अद्भुत निश्चयता है l 

स्तुति करें

जो नक़्शे के मध्य में स्थित है, आप आम तौर पर उसके द्वारा यह बता सकेंगे कि उसको  कहाँ खींचा गया था l हम सोचते हैं कि हमारा घर दुनिया का केंद्र है, इसलिए हम बीच में एक बिंदु डालते हैं और वहाँ से बाहर की ओर बढ़ते हैं l आसपास के शहर उत्तर से पचास मील की दूरी पर हो सकते हैं या दक्षिण में आधे दिन की ड्राइव पर, लेकिन इन सब का वर्णन हम कहाँ हैं के अनुसार किया जाता है l भजन पुराने नियम में परमेश्वर के सांसारिक घर से अपना “नक्शा” बनाते हैं, इसलिए बाइबल के भूगोल का केंद्र यरूशलेम है l 

भजन 48 यरूशलेम की प्रशंसा करने वाले कई भजनों में से एक है l यह “हमारे परमेश्वर” का “नगर” है . . . “ऊँचाई में सुन्दर और सारी पृथ्वी के हर्ष का कारण है” (पद.1-2) l क्योंकि “उसके महलों में परमेश्वर ऊंचा गढ़ . . . है,” वह “उसको सदा दृढ़ और स्थिर रखेगा” (पद.3,8) l परमेश्वर की ख्याति यरूशलेम के मंदिर में शुरू होती है और उसकी “स्तुति पृथ्वी की छोर तक होती है” (पद.9-10) l 

जब तक आप इसे यरूशलेम में नहीं पढ़ रहे हैं, आपका घर बाइबल के संसार के केंद्र में नहीं है l फिर भी आपका क्षेत्र बेहद मायने रखता है, क्योंकि जब तक उसकी स्तुति “पृथ्वी के छोर” (पद.10) तक नहीं पहुँच जाती, तब तक परमेश्वर आराम नहीं करेगा l क्या आप परमेश्वर के अपने लक्ष्य तक पहुँचने के तरीके का हिस्सा बनना चाहेंगे? प्रत्येक सप्ताह परमेश्वर के लोगों के साथ आराधना करें, और प्रत्येक दिन उसकी महिमा के लिए खुले तौर पर जीएँ l परमेश्वर का नाम “पृथ्वी की छोर तक” होता है जब हम जो हैं और जो हमारे पास है उसको समर्पित करते हैं l