Month: अप्रैल 2020

परमेश्वर को ढूँढ़ना

जबकि यह ईमानदारी से कुछ सांसारिक मूल्य की तलाश करने के लिए अच्छा हो सअपने सपनों का पीछा करने में लोगों के जुनून और समर्पण को देखना प्रेरणादायक है l एक युवा महिला ने जिसे मैं जानता हूँ हाल ही में अपनी पी.एच.डी. एक वर्ष में पूरी कर ली – एक कार्य जिसने सम्पूर्ण समर्पण ले लिया l एक मित्र एक विशेष कार चाहता था, तो उसने अपने लक्ष्य तक पहुँचने तक केक बेक करके उन्हें बेचने का काम किया l एक और व्यक्ति जो बिक्री(sales) के व्यवसाय में है प्रति सप्ताह सौ नए लोगों से मिलने की इच्छा रखता है l 

कता है, वहाँ एक और अधिक महत्वपूर्ण प्रकार की तलाश है जिसे हमें विचार करना चाहिए l 

हताशा में, मरुभूमि में संघर्ष करते हुए, राजा दाऊद ने लिखा, “हे परमेश्वर, तू मेरा परमेश्वर है, मैं तुझे यत्न से ढूँढूँगा” (भजन 63:1) l जब दाऊद ने उसे पुकारा, परमेश्वर उस थके हुए राजा के निकट आया l परमेश्वर के लिए दाऊद की गहरी आत्मिक प्यास उसकी उपस्थिति में ही संतुष्ट हो सकती थी l राजा ने परमेश्वर से उसके “पवित्रस्थान” में मुलाकात को याद किया (पद.2), उसके सम्पूर्ण विजय देनेवाले प्रेम का अनुभव किया (पद.3), और दिन-प्रतिदिन उसकी प्रशंसा करना – उसी में सच्ची संतुष्टि पाना जो एक पूर्ण और संतोषजनक भोजन का आनंद लेने के विपरीत नहीं है (पद.4-5) l रात में भी उसने परमेश्वर की महानता पर विचार किया, उसकी सहायता और सुरक्षा को पहचाना (पद.6-7) l 

आज पवित्र आत्मा हमें परमेश्वर को ईमानदारी से खोजने के लिए विवश करता है l जब हम उससे लिपटे रहते हैं, परमेश्वर सामर्थ्य और प्रेम में अपने शक्तिशाली दाहिने हाथ से हमें ऊपर थामे रहता है l आत्मा की अगुवाई द्वारा, हम सभी अच्छी चीजों के निर्माता के करीब आएँ l 

दुःख पराजित हुआ

एक अंग्रेजी फिल्म भेड़ियों की भावनाओं और व्यवहार को दर्शाती है l जब वे खुश होते हैं, वे अपनी पूँछ हिलाते हैं और उछल-कूद करते हैं l लेकिन झुण्ड के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद, वे हफ़्तों तक दुःख मनाते हैं l वे उस स्थान पर जाते हैं जहाँ पर झुण्ड के सदस्य की मृत्यु हुई थी, और अपनी लटकीपुंछ और दुखभरेरुदन के द्वारा अपना दुःख प्रगट करते हैं l

दुःख एक शक्तिशाली भावना है जिसे हम सब अनुभव करते हैं, विशेष रूप से किसी प्रियजन की मृत्यु के समय या कीमती आशा पर l मरियम मगदलीनीने इसका अनुभव किया l वह मसीह के समर्थकों से सम्बन्ध रखती थी और उनके और उनके शिष्यों के साथ यात्रा करती थी (लूका 8:1-3) l लेकिन क्रूस पर उसकी क्रूर मृत्यु ने अब उनको अलग कर दिया था l मरियम के पास यीशु के लिए करने हेतु केवल एक बात बची थी और वह थी उसके देह के दफ़न किये जाने के लिए उसको अभ्यंजित करना – एक कार्य जिसे सब्त के दिन ने बाधित किया था l लेकिन कल्पना कीजिए कि मरियम ने कब्र पर पहुँचकर बेजान, टूटा शरीर नहीं लेकिन एक जीवित उद्धारकर्ता को पाकर कैसा अनुभव की होगी! यद्यपि पहले पहल वह अपने सामने खड़े व्यक्ति को पहचान नहीं पायी थी, उस व्यक्ति द्वारा उसके नाम का उच्चारण उसे बता दिया कि वह कौन था – यीशु! तुरंत, शोक ख़ुशी में बदल गया l मरियम के पास अब खुशखबरी थी : “मैंने प्रभु को देखा [है]” (यूहन्ना 20:18) l 

यीशु स्वतंत्रता और जीवन देने के लिए हमारे अँधेरे संसार में प्रवेश किया l उसका पुनरुत्थान इस सच्चाई का उत्सव है कि जो वह करने को निकला था उसे पूरा किया l मरियम की तरह, हम मसीह के पुनरुत्थान का उत्सव माना सकते हैं और खुशखबरी साझा कर सकते हैं कि वह जीवित है! हल्लेल्युयाह!

पर्दा डालना

जब मेरी उड़ान सामान्य गति पर पहुँची, उड़ान परिचारक ने प्रथम श्रेणी को अलग करनेवाला पर्दा हटा दिया, और मुझे हवाई जहाज़ पर क्षेत्रों के बीच के मतभेदों की एक चौंकानेवाली याद दिला दी l कुछ यात्रियों को पहले प्रवेश मिलता है, बैठने के लिए पर्याप्त स्थान के साथ पैरों को रखने के लिए अतिरिक्त स्थान और व्यक्तिगत सेवा का आनंद मिलता है l पर्दा उन अनुलाभों(Perks) से मेरे अलगाव का नम्र याद दिलाता है l 

लोगों के समूहों के बीच बहिष्करण अंतर पूरे इतिहास में दिखाई देता है, जिसमें एक तरह से, यहाँ तक कि यरूशलेम में परमेश्वर का मंदिर भी शामिल है, यद्यपि अधिक भुगतान करने की क्षमता के कारण नहीं l गैर-यहूदियों को केवल बाहरी आँगन में आराधना करने की अनुमति थी l इसके बाद महिलाओं का आँगन, और उससे और निकट, पुरुषों के लिए निर्धारित क्षेत्र l आखिर में, महा पवित्र स्थान, जिसे एक परदे के पीछे छिपाया गया था, उस स्थान के रूप में देखा जाता था जहाँ परमेश्वर स्वयं को विशिष्ट रूप से प्रकट करता था, और प्रत्येक वर्ष केवल एक अभिषिक्त याजक उसमें प्रवेश कर सकता था (इब्रानियों 9:1-10) l 

लेकिन, आश्चर्यजनक रूप से, यह अलगाव अब मौजूद नहीं है l यीशु ने उन सभी अवरोधों को पूरी तरह से समाप्त कर दिया, जो किसी को भी परमेश्वर तक पहुँचने में बाधा डाल सकती है – यहाँ तक कि हमारे पाप भी (10:17) l जिस तरह मसीह की मृत्यु के समय मंदिर का पर्दा दो भागों में फटा था (मत्ती 2:50-51), उसके क्रूस पर चढ़े शरीर ने परमेश्वर की उपस्थिति के लिए सभी अवरोधों को दूर कर दिया l ऐसा कोई अवरोध नहीं है जो किसी भी विश्वासी को जीवित परमेश्वर की महिमा और प्रेम का अनुभव करने के लिए अलग करने की आवश्यकता हो l 

दृढ़ रहना

जिस देश में वे रहते हैं, एड्रियन और उसका परिवार यीशु में अपने विश्वास के लिए उत्पीड़न झेलते हैं l फिर भी, इन सब के माध्यम से, वे मसीह के प्रेम को प्रदर्शित करते हैं l अपने चर्च के आँगन में खड़े होकर, जिसे गोलियों से उड़ा दिया गया था जब आतंकवादियों ने इसे प्रशिक्षण ने मैदान के रूप में इस्तेमाल किया था, उसने कहा, “आज गुड फ्राइडे है l हमें याद है कि यीशु क्रूस पर हमारे लिए दुःख उठाया l” उसने आगे कहा, और पीड़ा, कुछ ऐसा है जो वहाँ के विश्वासियों को समझ में आता है l लेकिन उसके परिवार ने वहाँ रहने का चुनाव किया : “हम अभी भी यहाँ है, अभी भी दृढ़ हैं l”

ये विश्वासी उन महिलाओं के उदाहरण का अनुसरण करते हैं जो यीशु को मरते हुए देखीं  थीं (मरकुस 15:40) l वे – जिनमें मरियम मगदलीनी, याकूब की माता मरियम और यूसुफ, और सलोमी सहित – वहाँ खड़े रहने में बहादुर थे, क्योंकि राज्य के एक दुश्मन के मित्र और परिवार के सदस्यों का उपहास और उन्हें दण्डित किया जा सकता था l फिर भी महिलाओं ने उसके साथ अपनी उपस्थिति के द्वारा यीशु के लिए अपना प्रेम दिखाया l यहाँ तक कि जब वे गलील में (पद.41) “उसके पीछे हो लेती थीं और उसकी सेवाताहल किया करती थीं,” वे उसकी सबसे गहरी ज़रूरत के समय उसके साथ खड़ी थीं l 

इस दिन जब हम अपने उद्धारकर्ता का सबसे बड़ा उपहार याद करते हैं, क्रूस पर उसकी मृत्यु, एक क्षण लेकर विचार करें कि हम यीशु के लिए कैसे खड़े रह सकते हैं जब हम कई प्रकार की आजमाइशों का सामना करते हैं (देखें याकूब 1:2-4) l संसार भर के साथी विश्वासियों के बारे में भी सोचें जो अपने विश्वास के लिए पीड़ित हैं l जैसा कि एड्रियन ने पूछा, “क्या आप अपनी प्रार्थना में हमारे साथ खड़े रह सकते हैं?”