परमेश्वर के संसार को उन्नत करना
“पापा, आपको काम पर क्यों जाना है?” मेरी किशोरी पुत्री का सवाल मेरे साथ उसके खेलने की उसकी इच्छा से प्रेरित था l मैं काम को छोड़कर उसके साथ समय बिताना पसंद करता, लेकिन काम की लम्बी बढ़ती सूची थी जिन पर मुझे ध्यान देना ज़रूरी था l सवाल, फिर भी, अच्छा है l हम काम क्यों करते हैं? क्या ये केवल अपने लिए और अपने प्रियजनों के लिए प्रबंध करना है? उस श्रम के विषय क्या जो अवैतनिक है – हम ऐसा क्यों करते हैं?
उत्पत्ति 2 हमें बताता है कि परमेश्वर ने पहले मानव को वाटिका में इसलिए रखा कि वह “उसमें काम करे और उसकी रक्षा करे” (पद.15) l मेरे ससुर एक किसान हैं, और वह अक्सर मुझसे भूमि और पशुधन के प्रति अपने सच्चे प्यार के विषय बताते हैं l यह सुन्दर है, लेकिन यह उनके लिए अनवरत सवाल छोड़ देता है जो अपने काम से प्यार नहीं करते हैं l क्यों परमेश्वर ने हमें एक ख़ास स्थान पर एक ख़ास काम के साथ रखा है?
उत्पत्ति 1 हमें उत्तर देता है l हमें परमेश्वर के स्वरुप में रचा गया है कि हम उसके द्वारा बनाए गयी सृष्टि की सावधानी से रखवाली करें (पद.26) l सृष्टि की रचना की गैर-मसीही कहानियाँ बताती हैं कि ‘कथित ईश्वरों” ने मनुष्यों को अपने दास होने के लिए बनाया है l उत्पत्ति घोषणा करती है कि एकमात्र सच्चे परमेश्वर ने मनुष्यों को अपना प्रतिनिधि बनाया है – उसके पक्ष में उसकी सृष्टि की देखभाल करने के लिए l काश हम सब उसकी बुद्धिमान और प्रेमी व्यवस्था को इस संसार में प्रतिबिंबित करें l काम परमेश्वर के संसार में उसकी महिमा के लिए उसे उन्नत करने की एक बुलाहट है l
धोखा दिया
2019 में, दुनिया भर के कला प्रदर्शनियों ने लियोनार्डो डा विन्ची(Leonardo da Vinchi) का 500वाँ वर्षगाँठ मनाया l जबकि उनके कई चित्रों और वैज्ञानिक खोजों का प्रदर्शन किया गया था, सार्जनिक रूप से द लास्ट सपर(The Last Supper) सहित केवल पांच सौ पेंटिंग्स के लिए ही डा विन्ची को श्रेय दिया गया l
यह जटिल भित्ति-चित्र यूहन्ना के सुसमाचार में वर्णित अंतिम भोज को दर्शाता है जो यीशु ने अपने शिष्यों के साथ खाया l पेंटिंग यीशु के कथन पर शिष्यों के भ्रम को अधिकार में लेती है, “तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा” (यूहन्ना 13:21) l हैरान, शिष्यों ने चर्चा की कि विश्वासघात करने वाला कौन हो सकता है – जबकि यहूदा चुपचाप रात में अपने शिक्षक और मित्र के ठिकाने के विषय अधिकारियों को सचेत करने के लिए बाहर चला गया l
धोखा दिया l यहूदा के विशवासघात का दर्द यीशु के शब्दों में स्पष्ट है, “जो मेरी रोटी खाता है, उसने मुझ पर लात उठाई” (पद.18) l एक निकट मित्र जो भोजन को साझा करता था ने इस सम्बन्ध का उपयोग यीशु को हानि पहुँचाने के लिए किया l
हममें से प्रत्येक ने एक मित्र के विश्वासघात का अनुभव किया है l हम इस तरह के दर्द का जबाब कैसे दे सकते हैं? भजन 41:9, जिसका उपयोग यीशु ने साझा भोजन (यूहन्ना 13:18) के समय विश्वासघात करनेवाले की उपस्थिति को इंगित करने के लिए उद्धृत किया था, आशा प्रदान करता है l दाऊद ने एक करीबी दोस्त के छल पर अपनी पीड़ा व्यक्त करने के बाद, उसने परमेश्वर के प्यार और उपस्थिति में ढाढ़स प्राप्त किया जो उसे हमेशा परमेश्वर की उपस्थिति में बनाए रखनेवाला था और उसे स्थापित करने वाला था (भजन 41:11-12) l
जब मित्र निरास करते हैं, तो हम परमेश्वर के निरंतर प्यार को जानकार आराम पा सकते हैं और उनकी सशक्त उपस्थिति हमारे साथ होगी जो हमें सबसे विनाशकारी दर्द को भी सहन करने में मदद करेगी l
निरंतर परिश्रम!
परमेश्वर उन लोगों को उपयोग करना पसंद करता है जिन्हें दुनिया अनदेखा कर सकती है l विलियम कैरी की परवरिश 1700 के दशक में एक छोटे से गाँव में हुई थी और उनकी औपचारिक शिक्षा बहुत कम थी l उन्हें अपने चुने हुए धंधे में सीमित सफलता मिली और उन्हेंने गरीबी में जीवन व्यतीत किया l लेकिन परमेश्वर ने उसे खुशखबरी सुनाने की चाहत दी और उसे मिशनरी होने के लिए बुलाया l कैरी ने यूनानी(Greek), इब्री(Hebrew), लतीनी(Latin) भाषा सीखी और अंततः बंगाली भाषा में पहले नए नियम का अनुवाद किया l आज उन्हें “आधुनिक मिशनों का जनक” माना जाता है, लेकिन अपने भतीजे को लिखे पत्र में उन्होंने अपने क्षमताओं का यह विनम्र आंकलन किया : “मैं निरंतर परिश्रम कर सकता हूँ l मैं डटा रह सकता हूँ l”
जब परमेश्वर हमें किसी कार्य के लिए बुलाता है, तो वह हमें हमारी सीमाओं की परवाह किये बिना इसे पूरा करने की शक्ति भी देता है l न्यायियों 6:12 में प्रभु का दूत गिदोन को दिखाई दिया और कहा, “हे शूरवीर सूरमा, यहोवा तेरे संग है l” तब स्वर्गदूत ने उसे बताया कि वह इस्राएलियों को उन मिद्यानियों से छुड़ाएगा जो उसके कस्बों और फसलों पर हमला कर रहे थे l लेकिन गिदोन, जिसने “शूरवीर सूरमा” की उपाधि प्राप्त नहीं की थी, ने विनम्रतापूर्वक जबाब दिया, “मेरा कुल मनश्शे में सब से कंगाल है, फिर मैं अपने पिता के घराने में सब से छोटा हूँ” (पद.15) l फिर भी, परमेश्वर ने अपने लोगों को छुटकारा देने के लिए गिदोन का इस्तेमाल किया l
गिदोन की सफलता की कुंजी इन शब्दों में थी, “यहोवा तेरे संग है” (पद.12) l जैसा कि हम विनम्रतापूर्वक अपने उद्धारकर्ता के साथ चलते हैं और उसकी ताकत पर भरोसा करते हैं, वह हमें यह सुनिश्चित करने के लिए सशक्त करेगा जो केवल उसके माध्यम से संभव है l
उसके दाग़
गौरव के साथ मेरी बातचीत के बाद, मैं सोचने लगा कि क्यों उसका पसंदीदा अभिवादन “मुट्ठी टकराना” था और हाथ मिलाना नहीं l हाथ मिलाने से उसकी कलाई पर लगे दाग़ दिखाई देने लगेंगे – जो उसके खुद को नुक्सान पहुंचाने की कोशिशों का नतीजा है l हमारे लिए अपने घावों को छिपाना असामान्य नहीं है – बाहरी या भीतरी – दूसरों के कारण या आत्म-प्रेरित l
गौरव के साथ मेरी बातचीत के मद्देनज़र, मैंने यीशु के शारीरिक दागों के बारे में सोचा, उसके हाथों और पैरों में ठोंकी गयी किलों के घाव और उसके पंजर में भला बेधा गया l अपने दाग़ छुपाने के बजाय, मसीह ने उनकी ओर ध्यान आकर्षित किया l
थोमा के पहले शक करने पर कि यीशु मृतकों में से जी उठा है, उसने उससे कहा, “अपनी ऊंगली यहाँ लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल, और अविश्वासी नहीं परन्तु विश्वासी हो” (यूहन्ना 20:27) l जब थोमा ने अपने लिए उन निशानों को देखा और मसीह के अद्भुत शब्दों को सुना, तो उसे यकीन हो गया कि यह यीशु है l उसने विश्वास में कहा, “हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!” (पद.28) l यीशु ने तब उन लोगों के लिए एक विशेष आशीष उच्चारित किया, जिन्होंने उसे या उसके शारीरिक घावों को नहीं देखा था, लेकिन अभी भी उस पर विशवस करते है : “धन्य हैं वे जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया” (पद.29) l
समुद्र में एक झलक
“मैं बेस्वाद शराब और निराशा से भरा हुआ अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था,” सरकार के लिए एक गुप्चर एजेंट के रूप में अपने काम के दौरान एक ख़ास निराशाजनक शाम के विषय एक प्रसिद्ध व्यक्ति ने लिखा l “इस संसार में अकेला, अनंत में, रौशनी की एक झलक के बिना l”
ऐसी हालत में, उसने वही किया जो उसने विवेकपूर्ण समझा; उसने खुद को डूबाने की कोशिश की l पास के समुद्र तट पर ड्राइविंग करते हुए, उसने समुद्र में लम्बी दूरी तक तैरना आरम्भ किया जब तक वह थक न जाए l पीछे मुड़कर, उसने दूर की तटीय रौशनी की झलक देखी l उस समय कोई कारण स्पष्ट नहीं होने के कारण, वह वापस रौशनी की ओर तैरने लगा l अपनी थकान के बावजूद, वह “एक अपरिहार्य आनंद” को याद करता है l
मुगरिज को ठीक-ठीक पता नहीं था, लेकिन वह जानता था कि परमेश्वर उस अँधेरे क्षण में उसके पास पहुँच गया था, उसे इस आशा से भर दिया था जो केवल अलौकिक हो सकता था l प्रेरित पौलुस ने ऐसी आशा के बारे में अक्सर लिखा था l इफिसियों की पत्री में उसने उल्लेख किया है कि, मसीह को जानने से पहले, हम में से प्रत्येक “[अपने] पापों के कारण मरे हुए थे . . . आशाहीन और जगत में ईश्वररहित थे l लेकिन “परमेश्वर ने जो दया का धनी है . . . जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे तो हमें मसीह के साथ जिलाया” (पद.4-5) l
यह संसार हमें गहराई में खींचना चाहती है, लेकिन निराशा के आगे झुकने का कोई कारण नहीं है l जैसा कि मुगेरिज ने समुद्र में अपने तैरने के बारे में कहा, “यह मेरे लिए स्पष्ट हो गया कि कोई अँधेरा नहीं था, केवल एक प्रकाश की दृष्टि खोने की सम्भावना थी जो सदा चमकती थी l”