माह: अगस्त 2020

समय-यात्रा पत्र (Time-Traveling Letters)

प्रत्येक वर्ष दस लाख से अधिक युवा अंतर्राष्ट्रीय पत्र-लेखन प्रतियोगिता में भाग लेते हैं l 2018 में, प्रतियोगिता का विषय था “कल्पना कीजिए कि आप समय के रास्ते यात्रा करने वाले एक पत्र हैं l आप अपने पाठकों को क्या सन्देश देना चाहेंगे?”

बाइबल में, हमारे पास पत्रों का एक संग्रह है जो समय के रास्ते हम तक पहुंचे हैं – पवित्र आत्मा की प्रेरणा और मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद l जैसे-जैसे मसीही कलीसिया बढ़ती गई, यीशु के शिष्यों ने यूरोप और एशिया माइनर के स्थानीय कलीसियाओं को लिखा कि लोगों को  मसीह में अपने जीवन को समझने में मदद करें; उनमें से बहुत से पत्र बाइबल में एकत्र किये गए जो आज हम पढ़ते हैं l

ये पत्र-लेखक पाठकों को क्या सन्देश देना चाहते थे? यूहन्ना अपने पहले पत्र में बताता है, कि वह “उस जीवन के वचन के विषय में जो आदि से था, जिसे हम ने सुना, और जिसे अपनी आँखों से देखा, वरन् जिसे हम ने ध्यान से देखा और हाथों से छुआ” के विषय लिख रहा था (1 यूहन्ना 1:1) l वह जीवित मसीह के साथ अपने सामना के विषय लिख रहा है (1 यूहन्ना 1:1) l वह लिखता है ताकि उसके पाठक एक दूसरे के साथ और “पिता के साथ और उसके पुत्र यीशु मसीह के साथ,” “सहभागी हों (पद.3) l जब हम परस्पर संगति करते हैं, वह लिखता है कि हमारा आनंद पूरा हो जाता है (पद.4) l बाइबल में पाए जाने वाले पत्र हमें ऐसी संगति में निकट लाते हैं जो समय के पार है – अनंत परमेश्वर के साथ संगति l

उसकी मृत्यु द्वारा जीवन

दक्षिण अमरीका में जोएना नाम की एक महिला मसीह के सुसमाचार द्वारा जेलों में कैदियों के लिए आशा लाने के लिए उत्सुक थी l जोएना प्रतिदिन कैदियों से मुलाकात करने लगी, और उनको क्षमा और मेल मिलाप का सरल सुसमाचार सुनाने लगी l उसने उनका विश्वास जीत लिया, और उन्हें अपने अपमानजनक बचपन के बारे में बात करने के लिए तैयार किया, और उन्हें संघर्षों को हल करने का एक बेहतर तरीका दिखाया l उसकी मुलाक़ात आरम्भ होने वाले वर्ष से पहले, जेल में बंदियों और सुरक्षाकर्मियों के विरुद्ध हिंसा की 279 घटनाएँ पंजीकृत की गई; जो अगले वर्ष केवल दो थीं l

प्रेरित पौलुस ने लिखा, “यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है : पुरानी बातें बीत गई है; देखो, सब बातें नई हो गई हैं” (2 कुरिन्थियों 5:17) l हालाँकि हम हमेशा उस नयेपन को  देख नहीं सकते हैं जिस तरह जोएना ने नाटकीय रूप से दर्शाया, पर रूपांतरित करने की सुसमाचार की सामर्थ्य सबसे बड़ी आशा है – विश्व में बल देनेवाली l नई सृष्टि l कितनी अद्भुत सोच है! यीशु की मृत्यु ने हमें उसके जैसा बनने के सफ़र पर उतारा है – एक ऐसा सफ़र, जिसका समापन तब होगा जब हम उसे आमने-सामना देखेंगे (देखें 1 युहन्ना 3:1-3) l

यीशु में विश्वासियों के रूप में हम अपने जीवन को नई  सृष्टि के रूप में मनाते हैं l फिर भी हमें कभी भी इस बात से ध्यान नहीं हटाना चाहिये कि मसीह की क़ीमत क्या है l उसकी मृत्यु से हमें जीवन मिलता है l “जो पाप से अज्ञात था, उसी को उसने हमारे लिए पाप ठहराया कि हम उसमें होकर परमेश्वर की धार्मिकता बन जाएँ” (2 कुरिन्थियों 5:21) l

जाने देना

“आपके पिता की मृत्यु सक्रिय रूप से हो रही है,” मरणासन्न रोगियों के आश्रय स्थल(hospice) की नर्स बोली l “सक्रिय रूप से मृत्यु होना” मरने की प्रक्रिया की अंतिम चरण को संदर्भित करता है और मेरे लिए एक नया शब्द था, अजीब तरह से एक एकल सड़क पर यात्रा करने जैसा महसूस होना l मेरे पिता के अंतिम दिन, नहीं जानते हुए कि वे हमारी सुन पा रहे हैं कि नहीं, मेरी बहन और मैं उनके बिस्तर के निकट बैठ गए l हमने उनके सुन्दर गंजे सिर को चूमा l हमने उनको परमेश्वर की प्रतिज्ञाएं फुसफुसायी l हमने एक गाना गया और 23वाँ भजन उद्धृत किया l हमने उन्हें बताया कि हम उनसे प्यार करते हैं और हमारे पिता होने के लिए उन्हें धन्यवाद दिया l हमें पता था कि उनका दिल यीशु के साथ रहने के लिए लालायित था, और हमने उनसे कहा कि वह जा सकते हैं l उन शब्दों को बोलना जाने देने के लिए पहला कठिन कदम था l कुछ मिनटों के बाद, हमारे पिताजी का उनके शास्वत घर में ख़ुशी से स्वागत किया गया l

किसी प्रियजन का अंतिम छुटकारा कष्टदायक होता है l यहाँ तक कि यीशु के आँसू बह गए जब उसके अच्छे मित्र लाजर की मृत्यु हो गई (यूहन्ना 11:35) l लेकिन परमेश्वर के वादों के कारण, हमें शारीरिक मृत्यु के आगे आशा है l भजन 116:15 कहता है कि ईश्वर के “भक्त” – जो उसके हैं – उसके लिए “अनमोल” है l हालाँकि वे मर जाते हैं, वे फिर से जीवित होंगे l

यीशु प्रतिज्ञा करता है, “पुनरुत्थान और जीवन मैं हूँ; जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए तौभी जीएगा, और जो कोई जीवित है और मुझ पर विश्वास करता है, वह अनंतकाल तक न मरेगा” (यूहन्ना 11:25-26) l यह जानने में हमें कितना सुकून मिलता है कि हम हमेशा के लिए परमेश्वर की उपस्थिति में होंगे l

पिता की राह पर

एक प्राचीन कहानी एक लालची, अमीर ज़मींदार के विषय बतायी गई है जिसने एक गरीब किसान को घर के साथ कुआँ बेचा l अगले दिन जब किसान ने अपने खेतों के लिए पानी खींचना चाहा, तो ज़मींदार ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि उसने केवल कुआँ बेचा है, उसमें का पानी नहीं l व्याकुल होकर, किसान ने राजा अकबर के दरबार में न्याय माँगा l इस अज़ीबोगरीब मामले को सुनने के बाद, राजा ने सलाह के लिए अपने बुद्धिमान मंत्री बीरबल की ओर रुख किया l बीरबल ने ज़मींदार से कहा, “सच है, कुएँ का पानी किसान का नहीं है और  कुआँ तुम्हारा नहीं है l इसलिए यदि तुम किसान के कुएँ में पानी जमा करना चाहते हो तो भला है कि तुम उस जगह के लिए किराए का भुगतान करो l”  तुरंत जमींदार समझ गया कि वह मात खा गया है, और उसने घर और कुएँ पर अपने दावों को छोड़ दिया l

शमूएल ने भी अपने पुत्रों को इस्राएल के ऊपर न्यायी नियुक्त किया, और वे लालच से प्रेरित थे l उसके बेटे “उसकी राह पर न चले” (1 शमूएल 8:3) l शमूएल की ईमानदारी की तुलना में,  उसके बेटे “लालच में आकर घुस लेते और न्याय बिगाड़ते थे” और अपने लाभ के लिए अपने स्थिति का उपयोग करने लगे l इस अन्यायपूर्ण व्यवहार ने इस्राएल के वृद्धों और परमेश्वर को नाराज़ किया, और राजाओं का एक क्रम आरंभ हुआ जिससे पुराना नियम के पन्ने भरे पड़े हैं (पद.4-5) l

परमेश्वर के तरीकों पर चलने से इनकार करना उन मूल्यों के विकृत होने की अनुमति देता है, और परिणामस्वरूप अन्याय पनपता है l उसके तरीके से चलने का मतलब ईमानदारी और न्याय केवल हमारे शब्दों में ही नहीं बल्कि हमारे कर्मों में भी स्पष्ट रूप से देखा जाता है l वे अच्छे काम कभी अपने आप में अंत नहीं होते, लेकिन हमेशा ऐसे होते है कि दूसरे देखेंगे और हमारे स्वर्गिक पिता की महिमा करेंगे l  

प्रेम किया गया, खुबसूरत, वरदान प्राप्त

मोहन एक किशोर के रूप में आत्मविश्वास से भरा दिखाई दिया l लेकिन यह आत्मविश्वास एक मुखौटा था l सच में, एक अशांत घर ने उसे भयभीत, स्वीकृति के लिए बेताब, और अपने परिवार की समस्याओं के लिए गलत तरीके से जिम्मेदार महसूस कराया l “जहां तक मुझे याद है,” वह कहता है, “हर सुबह मैं बाथरूम में जाता था, आईने में देखता हूँ, और खुद से ज़ोर से कहता था, ‘तुम मुर्ख हो, तुम बदसूरत हो, और यह तुम्हारी गलती है l’”

मोहन का स्वयं से नफरत तब तक जारी रहा, जब तक वह इक्कीस वर्ष का नहीं हो गया, जब उसे यीशु में अपनी पहचान का एक दिव्य रहस्योद्घाटन मिला’ l “मुझे एहसास हुआ कि ईश्वर मुझे बिना शर्त प्यार करता है और कोई भी इसे कभी नहीं बदलेगा,” वह याद करता है l “मैं ईश्वर को कभी शर्मिन्दा नहीं कर सकता था, और वह मुझे कभी भी अस्वीकार नहीं करने वाला था l” आखिरकार, मोहन ने आईने में देखा और खुद से अलग बात की l “तुमको प्यार किया जाता है, तुम विशेष हो, तुम प्रतिभाशाली हो,” उसने कहा, “और यह तुम्हारी गलती नहीं है l”

मोहन का अनुभव बताता है कि यीशु में विशवास करने वाले के लिए परमेश्वर की आत्मा क्या करती है – वह यह प्रगट करके कि हमसे कितनी गहराई से प्रेम किया जाता है हमें भयमुक्त करता है (रोमियों 8:15, 38-39), और पुष्टि करता है कि हम उन सभी लाभों के साथ परमेश्वर के बच्चे हैं जो वह स्थिति लाती है (8:16-17; 12:6-8) l परिणामस्वरूप, हम अपनी सोच को नूतन करके (12:2-3) खुद को सही ढंग से देखना शुरू कर सकते हैं l

वर्षों बाद, मोहन अभी भी उन शब्दों को हर दिन फुसफुसाता है, परमेश्वर जो कहता है कि वह कौन है को दृढ़ करता है l पिता की नज़रों में उससे प्यार किया जाता है, सुन्दर है, और प्रतिभाशाली है l और इसलिए हम हैं l