काम में परमेश्वर की करुणा
मेरा क्रोध तब तेज़ हो गया जब एक महिला ने मेरे साथ बदसलूकी की, मुझे दोषी ठहराया और मेरे बारे में बकवास की l मैं चाहती थी कि हर कोई यह जान जाए कि उसने क्या किया है – मैं चाहती थी कि उसको भी तकलीफ हो जैसे उसके व्यवहार के कारण मुझे तकलीफ हुई थी l मैं तब तक आक्रोष में डूबी रही, जब तक कि मेरी कनपटी में दर्द नहीं हुआ l लेकिन जैसा कि मैंने अपने दर्द के दूर होने के लिए प्रार्थना करना शुरू किया, पवित्र आत्मा ने मुझे दोषी ठहराया l राहत के लिए परमेश्वर से भीख मांगते हुए मैं कैसे बदला लेने की योजना बना सकती? अगर मुझे भरोसा है कि वह मेरी देखभाल करेगा, तो मैं इस स्थिति को संभालने के लिए उस पर भरोसा क्यों नहीं कर सकती थी? यह जानते हुए कि जो लोग आहत हैं, वे अक्सर दूसरे लोगों को आहत करते हैं, मैंने परमेश्वर से कहा कि वह मुझे उस स्त्री को माफ़ करने और सुलह की दिशा में काम करने में मदद करे l
भजनकार दाऊद ने अनुचित व्यवहार को सहन करते हुए परमेश्वर पर भरोसा करने की कठिनाई को समझा l हालाँकि दाऊद ने एक प्यार करने वाले सेवक होने की पूरी कोशिश की, राजा शाऊल ने ईर्ष्या के आगे घुटने टेक दिए और उसकी हत्या करना चाहा (1 शमूएल 24:1-2) l दाऊद को तब तक तकलीफ झेलनी पड़ी जब परमेश्वर ने बातों को हल किया और उसे सिंहासन लेने के लिए तैयार किया, लेकिन फिर भी उसने बदला लेने की बजाय परमेश्वर का आदर करने का चुनाव किया (पद.3-7) l उसने शाऊल के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए अपनी जिम्मेदारी पूरी की और परिणाम परमेश्वर के हाथों में छोड़ दिया (पद.8-22) l
जब ऐसा लगता है कि दूसरे लोग गलत कामों के परिणाम से बच रहे हैं, हम अन्याय के साथ संघर्ष करते हैं l लेकिन हमारे दिलों और दूसरों के दिलों में परमेश्वर की करुणा के काम के साथ, हम क्षमा कर सकते हैं जैसे उसने हमें माफ़ कर दिया है और वह आशीष प्राप्त कर सकते हैं जो उसने हमारे लिए तैयार किया है l
युद्ध समाप्त हो चूका है l वास्तव में l
द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद उनतीस वर्षों तक, एक जापानी सैनिक, हीरू ओनोडा जंगल में छिपा रहा, और यह विशवास करने से इनकार कर दिया कि उसके देश ने आत्मसमर्पण कर दिया था l जापानी सैन्य अगुओं ने उसे अमेरिकी और ब्रिटिश सेना की जासूसी करने के आदेश के साथ फिलिपीन्स के एक दूरदराज़ के द्वीप पर भेज दिया था l शांति संधि पर हस्ताक्षर किये जाने के लम्बे समय बाद और शत्रुता समाप्त होने के बाद भी, बह जंगल में रहा l 1974 में, उसके कमांडिंग ऑफिसर को उसे खोजने और उसे भरोसा दिलाने के लिए कि युद्ध समाप्त हो चूका है उस द्वीप तक यात्रा करनी पड़ी l
तीन दशकों तक, यह व्यक्ति दरिद्र, अलग-थलग जीवन जीया, क्योंकि उसने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया था – विश्वास करने से इनकार कर दिया था कि संघर्ष ख़त्म हो चुका था l हम भी उसी प्रकार की गलती कर सकते हैं l पौलुस इस आश्चर्यजनक सत्य की घोषणा करता है कि “हम सब जिन्होंने मसीह यीशु का बप्तिस्मा लिया, उसकी मृत्यु का बप्तिस्मा लिया” (रोमियों 6:3) l क्रूस पर, एक शक्तिशाली, रहस्मय तरीके से, यीशु ने शैतान के झूठ को, मौत के आतंक को और पाप की कठोर पकड़ को मौत के घाट उतार दिया l हालाँकि, हम “पाप के लिए तो [मरे हुए], और “परमेश्वर के लिए जीवित” थे (पद.11), हम अक्सर ऐसे जीवित रहते हैं जैसे कि बुराई अभी भी शक्ति रखती है l हम परीक्षा के सामने हार मान जाते हैं, पाप के बहकावे में आकर परास्त हो जाते हैं l हम झूठ सुनते हैं, यीशु पर भरोसा करने में असफल होते हैं l लेकिन हमें हार नहीं माननी है l हमें झूठे कथा में नहीं जीना है l परमेश्वर के अनुग्रह से हम मसीह की जीत की सच्ची कहानी को अपना सकते हैं l
जबकि हम अभी भी पाप के साथ कुश्ती कर रहे हैं, छुटकारा तब मिलता है जब हम समझते हैं कि यीशु ने पहले ही लड़ाई जीत ली है l हम उस सच्चाई को उसकी शक्ति में जी सकते हैं l
हितकर सुधार
गर्मी का शुरूआती मौसम तरोताजगी वाला था, और यात्रा में मेरी पत्नी से बेहतर सहयोगी और कोई नहीं हो सकता था l लेकिन उन क्षणों की मनोहरता जल्द ही त्रासदी में बदल सकती थी यदि वह लाल और सफ़ेद चेतवानी संकेत नहीं होता जिसने मुझे सूचित किया कि मैं गलत दिशा में आगे बढ़ रहा था l क्योंकि मैंने अपनी गाड़ी पूरी रीति से मोड़ी नही थी, मैंने तुरंत “प्रवेश निषेध” का संकेत देखा जो मानों मुझे घूर रहा था l मैंने जल्दी से सुनियोजित कर लिया, परन्तु हानि के विषय सोच कर डरता हूँ जो मेरे कारण मेरी पत्नी की, मुझे, और दूसरों को होती यदि मैं उस संकेत को नज़रंदाज़ कर देता जिसने मुझे याद दिलाया कि मैं गलत मार्ग पर जा रहा था l
याकूब के समापन शब्द सुधार के महत्व पर जोर देते हैं l हममें से किसको हमारी चिंता करने वाले उन लोगों के द्वारा हमें उन पथों या कार्यों से, उन निर्णयों या इच्छाओं से “फेर लाने” की ज़रूरत नहीं पड़ी होगी जो हमें हानि पहुंचा सकती थीं? कौन जानता है कि खुद को या मित्रों को क्या नुक्सान हो सकता था, यदि किसी ने सही समय पर हिम्मत नहीं की होती l
याकूब इन शब्दों के साथ हितकर सुधार के मूल्य पर जोर देता हैं “जो कोई किसी भटके हुए पापी को फेर लाएगा, वह एक प्राण को मृत्यु से बचाएगा” (5:20) l सुधार ईश्वर की दया की अभिव्यक्ति है l दूसरों के कल्याण के लिए हमारा प्यार और चिंता हमें उन तरीकों से बात करने और कार्य करने के लिए मजबूर करे जो वह “उस (व्यक्ति) को फेर [लाने]” (पद.19) में उपयोग कर सकता है l
एक दिव्य युगल गीत
बच्चों के एक संगीत प्रस्तुति पर, मैंने एक शिक्षक और एक छात्र को एक पियानों के सामने बैठते देखा l उनका युगल गीत शुरू होने से पहले, शिक्षक झुक कर कुछ अंतिम मिनटों के निर्देशों को फुसफुसाया l जैसे ही संगीत वाद्ययंत्र से प्रवाहित हुआ, मैंने देखा कि छात्र ने एक सरल धुन बजाया, जबकि शिक्षक की संगत ने गीत में गहराई और अतिशोभा जोड़ दी l रचना के अंत के निकट, शिक्षक ने अपनी सहमति का इशारा किया l
यीशु में हमारा जीवन एक एकल प्रदर्शन की तुलना में ज़्यादातर युगल गीत की तरह है l कभी-कभी, हालाँकि, मैं भूल जाता हूँ कि वह “मेरे बगल में बैठा है,” और यह केवल उसकी सामर्थ्य और मार्गदर्शन से है कि मैं “बजा सकता हूँ l मैं अपने दम पर सभी सही तानों’ को बजाने की कोशिश करता हूँ – अपनी ताकत में परमेश्वर की आज्ञापालन करना चाहता हूँ, लेकिन इसका अंत आमतौर पर नकली और खोखला लगता है l मैं अपनी सीमित क्षमता के साथ समस्याओं को सँभालने की कोशिश करता हूँ लेकिन इसका परिणाम अक्सर दूसरों के साथ मतभेद होता है l
मेरे शिक्षक की उपस्स्थिति सम्पूर्ण फर्क डालती है l जब मैं अपनी सहायता के लिए यीशु पर भरोसा करता हूँ, तो मैं अपने जीवन को ईश्वर के प्रति अधिक सम्मानजनक पाता हूँ l मैं ख़ुशी से सेवा करता हूँ, स्वतंत्र रूप से प्यार करता हूँ, और आश्चर्यचकित हूँ जब परमेश्वर मेरे रिश्तों को आशीष देता हैं l यह उसी प्रकार है जैसे यीशु ने अपने पहले शिष्यों से कहा था, “जो मुझ में बना रहता है और मैं उसमें, वह बहुत फल फलता है” (यूहन्ना 15:5) l
हर दिन हम अपने अच्छे शिक्षक के साथ एक युगल गीत गाते हैं – यह उसकी कृपा और सामर्थ्य है जो हमारे आध्यात्मिक जीवन का माधुर्य है l