सर्वश्रेष्ठ चंगाई देनेवाला
जब एक परिवार के सदस्य की गंभीर खाद्य एलर्जी(food allergies) के लिए एक चिकित्सा उपचार ने राहत देना शुरू किया, तो मैं इतना उत्साहित हो गया कि मैंने हर समय इसके बारे में बात की l मैंने गहन प्रक्रिया का वर्णन किया और उस डॉक्टर की प्रशंसा की जिसने योजना बनायीं थी l अंत में, कुछ दोस्तों ने टिप्पणी की, “हमें लगता है कि परमेश्वर को हमेशा चंगे का श्रेय मिलना चाहिए l” उनके इस कथन ने मुझे रोक दिया l क्या मैंने अपनी आँख सर्वश्रेष्ठ चंगाई देनेवाले से हटा दी थी और चंगे को एक मूर्ति बना दिया था?
इस्राएल राष्ट्र एक ऐसे ही जाल में घिर गया जब वे एक पीतल के साँप के सामने धूप जलाने लगे जिसे परमेश्वर ने उन्हें चंगा करने के लिए उपयोग किया था l वे आराधना के इस कार्य को तब तक करते रहे जब तक हिजिकिय्याह ने इसे मूर्तिपूजा के रूप में नहीं पहचाना और “पीतल का जो साँप मूसा ने बनाया था, उसको . . . चूर-चूर कर दिया” (2 राजा 18:4) l
कई शताब्दी पहले, विषैले साँपों के एक समूह ने इस्राएल के शिविर पर आक्रमण किया था l साँपों ने लोगों को काटा और कई लोग मर गए (गिनती 21:6) l हालाँकि आध्यात्मिक विद्रोह ने इस समस्या को पैदा किया था, फिर भी लोग ने मदद के लिए परमेश्वर को पुकारा l दया दिखाते हुए, उसने मूसा को एक पीतल का साँप बनाने, और उसे एक खम्बे पर बाँधने और सभी को देखने के लिए उसे पकड़ने के लिए निर्देशित दिया l जब लोगों ने इसे देखा, तो वे चंगे हो गए (पद.4-9) l
आपके लिए परमेश्वर के उपहार के बारे में विचार करें l क्या इनमें से कोई भी उसकी दया और कृपा के साक्ष्य के बजाय तारीफ़ की वस्तु तो नहीं बन गई है? केवल हमारा पवित्र परमेश्वर──हर एक अच्छे उपहार का श्रोत (याकूब 1:17) ──आराधना के योग्य है l
चेतावनियों पर ध्यान देना
मेरे किसी दूसरे देश में छुट्टी पर होने के समय, जब एक जेबकतरे ने मेरा बटुआ चुराने की कोशिश की, तो यह आश्चर्य नहीं था l मैंने भूमिगत मार्ग चोरों के खतरे के विषय चेतावनी पढीं थी, इसलिए मुझे पता था कि अपने बटुए की सुरक्षा के लिए मुझे क्या करना चाहिए l लेकिन कभी ऐसा होगा इसकी मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी l
सौभाग्य से, मेरे बटुए को हथियाने वाले युवक के पास फिसलन भरी ऊँगलियाँ थीं, इसलिए बटुआ धरती पर गिरा जहाँ से मैं उसे उठा सकता था l लेकिन इस घटना ने मुझे याद दिलाई कि मुझे उन चेतावनियों पर ध्यान देना चाहिए था l
हम चेतावनियों पर ध्यान देना पसन्द नहीं करते क्योंकि हमें लगता है कि वे जीवन का आनंद लेने के तरीके में खलल डालेंगे, लेकिन उन पर ध्यान देना अनिवार्य है l उदाहरण के तौर पर, यीशु ने अपने शिष्यों को परमेश्वर के आनेवाले राज्य की घोषणा करने के लिए भेजते समय उनको स्पष्ट चेतावनी दी (मत्ती 10:7) l उसने कहा, “जो कोई मनुष्यों के सामने मुझे मान लेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामना मान लूँगा l पर जो कोई मनुष्यों के सामने मेरा इन्कार करेंगे, उस से मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने इनकार करूँगा” (पद.32-33) l
हमारे पास एक चुनाव है l, परमेश्वर ने प्रेम में होकर, हमारे लिए अनंत तक उसकी उपस्थिति में रहने के लिए एक उद्धारकर्ता और एक योजना का प्रबंध किया l लेकिन अगर हम परमेश्वर से दूर हो जाते हैं और उद्धार का उसका सन्देश और वास्तविक जीवन जो वह वर्तमान और अनंत के लिए देना चाहता है, उसको अस्वीकार करने का विकल्प चुनते हैं, तो हम उसके साथ रहने का अवसर खो देते हैं l
हम यीशु पर भरोसा करें, जिसने हमें उससे अनंत काल तक अलग होने से बचाया जो हमसे प्यार करता है और हमें बनाया है l
एक अच्छा कारण
दोनों महिलाओं ने एक दूसरे के आरपार गलियारों के सीट हासिल कर लिए l उड़ान दो घंटे की थी, इसलिए मैं उनकी कुछ परस्पर क्रियाओं को देखने से खुद को रोक न सका l यह स्पष्ट था कि वह एक दूसरे से परिचित थीं, शायद सम्बंधित भी होंगी l दोनों में से कम उम्र की महिला (शायद साठ के दशक में) निरंतर अपने बैग से ताज़े सेब के फांक, उसके बाद घर के बनी सैंडविच, फिर सफाई के लिए टिश्यू पेपर, और अंत में अखबार की ताजी प्रति उम्र में बड़ी महिला (मेरे अनुमान में जो नब्बे की दशक में थी) को देती रही l प्रत्येक वस्तु बड़ी कोमलता, बड़े आदर से दी गयी l जब हम विमान से बाहर निकल रहे थे, मैंने उम्र में कम महिला से कहा, ‘मैंने आपके देखभाल के तरीके पर ध्यान दिया l वह बहुत सुन्दर था l” उसने उत्तर दिया, “वह मेरी सबसे प्रिय मित्र है l वह मेरी माँ है l”
यह कितनी महान बात होती यदि हम सब कुछ उस प्रकार बोल पाते? कुछ माता-पिता सबसे अच्छे मित्र की तरह होते हैं l कुछ माता-पिता उस तरह के बिलकुल नहीं होते l सच्चाई यह है कि उस प्रकार के सम्बन्ध अपने सर्वोत्तम में हमेशा जटिल होते हैं l जबकि तीमुथियुस को लिखी गई पौलुस की पत्री इस जटिलता की उपेक्षा नहीं करती है, इसके बावजूद यह हमें अपने माता-पिता और दादा-दादी──हमारे “अपने,” अपने “घराने” की देखभाल करने के द्वारा “पहले अपने ही घराने के साथ भक्ति का बर्ताव” करने का आह्वान करता है (1 तीमुथियुस 5:4,8) l
हम सभी भी अक्सर इस तरह की देखभाल का अभ्यास करते हैं, यदि परिवार के सदस्य हमारे लिए अच्छे थे या हैं l दूसरे शब्दों में, अगर वे इसके लायक हैं l लेकिन पौलुस उन्हें चुकाने के लिए एक और सुन्दर कारण प्रस्तुत करता है l उनकी देखभाल करें क्योंकि “यह परमेश्वर को भाता है” (पद.4) l
परमेश्वर का प्रावधान
हम जंगल में अन्दर चलते गए, और गाँव से बहुत दूर निकल गए l लगभग एक घंटे बाद, हमने जल की गर्जनापूर्ण आवाज़ सुनी l अपने क़दमों को तेज करते हुए, हम एक वृक्षहीन स्थान पर पहुंचे और हमारा स्वागत धूसर चट्टानों पर प्रपात के रूप में गिरता हुआ सफ़ेद जल ने किया l भव्य!
हमारे साथ चलने वाले मित्र, जो उस गाँव के निवासी थे जिसे हम एक घंटे पहले पीछे छोड़ आये थे, ने निर्णय किया कि हम एक पिकनिक करेंगे l महान विचार, लेकिन भोजन कहाँ से आएगा? हमने कुछ भी नहीं ख़रीदा था l हमारे मित्र आसपास के जंगल में चले गए और विभिन्न प्रकार के फल और सब्जी और कुछ मछली के साथ लौटे l भोजन विचित्र था, लेकिन उसका स्वाद स्वर्गिक था!
मैंने याद किया कि सृष्टि परमेश्वर के असाधारण प्रबंध का वर्णन करती है l हम उसकी उदारता का साक्ष्य “छोटे छोटे पेड़ जिनमें अपनी अपनी जाति के अनुसार बीज होता है, और फलदाई वृक्ष जिनके बीजे एक एक की जाति के अनुसार उन्हीं में होते हैं” में पाते हैं (उत्पत्ति 1:12) l परमेश्वर ने “बीजवाले छोटे छोटे पेड़ . . . और जितने वृक्षों में बीजवाले फल होते हैं” (पद. 29) उन्हें बनाया है और हमें भोजन के लिए दिया है l
क्या आपको कभी-कभी परमेश्वर पर आपके लिए प्रबंध करने में भरोसा करने में कठिनाई होती है? क्यों न प्रकृति में घूमने चलें? जो आप देखते हैं वह आपको यीशु के आश्वस्त करने वाले शब्द स्मरण दिला सकें : “इसलिए तुम चिंता करके यह न कहना कि हम क्या खाएंगे, या क्या पीएँगे . . . क्योंकि . . . तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है कि तुम्हें इन सब वस्तुओं की आवश्यकता है” (मत्ती 6:31-32) l
अपने शत्रु से प्रेम
इससे पहले कि वह मुझे देखे, मैं कमरे में निकल गया l मैं छिपने के लिए शर्मिंदा था, लेकिन मैं उसके साथ उस समय पेश नहीं आना चाहता था──या किसी भी समय l मैं उसे डांटना चाहता था, और उसे उसकी औकात बताना चाहता था l यद्यपि मैं उसके अतीत से चिढ़ गया था, यह भी संभव है कि मैंने उसे और अधिक परेशान किया हो!
यहूदी और सामरी भी आपसी रिश्ते को खराब किया था l मिश्रित मूल के लोग और अपने अपने ईश्वरों की उपासना करने वाले होने के कारण, सामरियों ने──यहूदियों की दृष्टि में──गरिज्जीम पर्वत पर एक प्रतिद्वंदी धर्म आरम्भ करके यहूदी वंशावली और विश्वास को बिगाड़ दिया था (यूहन्ना 4:20) l वास्तव में, यहूदी इतना अधिक सामरियों को तुच्छ जानते थे कि वे अपने देश के अन्दर से सीधे मार्ग लेने के बजाय घूमकर लम्बा रास्ता तय करते थे l
यीशु ने एक बेहतर मार्ग बताया l वह सभी लोगों के लिए उद्धार लेकर आया, जिसमें सामरी लोग भी शामिल थे l इसलिए वह पापी स्त्री और उसके नगर को जीवन जल देने के लिए सामरिया के बीच में से होकर गया (पद.4-42) l उसके शिष्यों के लिए उसके अंतिम शब्द उसके नमूना का अनुसरण करना था l उन्हें उसका सुसमाचार यरूशलेम से आरंभ करके और सामरिया में फैलते हुए जब तक वे “पृथ्वी के छोर तक” न पहुँच जाएँ तब तक सभी के साथ साझा करना था (प्रेरितों 1:8) l सामरिया अगले भुगौलिक दृश्य से कहीं अधिक था l वह मिशन/उद्देश्य का सबसे पीड़ादायक भाग था l शिष्यों को उन लोगों से प्रेम करने के लिए पूर्वाग्रह के जीवनकालों को दूर करना था, जिन्हें वे पसन्द नहीं करते थे l
क्या यीशु हमारी शिकायतों से अधिक हमारे लिए मायने रखता है? सुनिश्चित करने का केवल एक ही तरीका है l अपने “सामरी” से प्यार करें l