एक जीवित दस्तावेज़
अपने दादा के कार्य को यादगार बनाते हुए, पीटर क्रोफ्ट ने लिखा, “उस व्यक्ति के लिए जो अपनी बाइबल उठाते हैं, मेरी गहरी इच्छा है कि, कोई भी संस्करण जो वे उपयोग करते हैं, केवल समझें नहीं लेकिन पवित्रशास्त्र को एक जीवित दस्तावेज़ के रूप में अनुभव करें, वर्तमान में प्रासंगिक, खतरनाक, और उत्तेजक जैसे वह हज़ारों वर्ष पहले था l” पीटर के दादा जे.बी. फिलिप्स थे, एक युवा सेवक जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अपने चर्च में विद्यार्थियों के लिए बाइबल को जीवित बनाने के लिए अंग्रेजी में उसकी एक नई व्याख्या(paraphrase) की l
फिलिप्स के विद्यार्थियों के समान, हम भी पवित्रशास्त्र को पढ़ने एवं अनुभव करने में बाधाओं का सामना करते हैं, और ज़रूरी नहीं कि अपने बाइबल अनुवाद के कारण l हम समय, अनुशासन, या समझने के लिए सही साधन की कमी महसूस कर सकते हैं l लेकिन भजन 1 हमसे कहता है कि क्या ही धन्य है वह . . . जो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता [है]” (पद.1-2) l पवित्रशास्त्र पर दैनिक चिंतन हमें सभी समय “यशस्वी” करता है, चाहे हम जिस भी कठिनाई का सामना कर रहें हों l
आप अपनी बाइबल को किस तरह देखते हैं? यह आज भी अंतर्दृष्टि के साथ जीने के लिए प्रासंगिक है, यीशु पर विश्वास करने और उसका अनुसरण करने की अपनी बुलाहट में अभी भी खतरनाक है, परमेश्वर और मानवता के अन्तरंग ज्ञान में जो वह प्रदान करता है अभी भी उत्तेजक है l यह बहती हुई नालियों की तरह है (पद.3) जो हमें आवश्यक दैनिक पोषण देता है l आज, हम उसकी ओर झुकें──समय निकालें, सही साधन ढूंढें, और परमेश्वर से पवित्रशास्त्र को एक जीवित दस्तावेज की तरह अनुभव करने में परमेश्वर से मदद मांगें l
प्रेम का एक महान कार्य
एक राष्ट्रीय जंगल में, एक फफूंद जो सामान्यतः हनी मशरूम(honey mushroom) नाम से जाना जाता है 2,200 एकड़ में फैले पेड़ों के जड़ों द्वारा फैलता है, जिससे यह अब तक का सबसे बड़ा जीवित जीव बन गया है l यह वन में दो सहस्त्राब्दी तक “जूते के फीते के समान अपने काले-काले तंतु बुनकर” बढ़ते पेड़ों को मारता रहा है l उसके जूते के फीतों के समान तंतु, जो “तंतुजटा (rhizomorphs),” कहलाते हैं मिटटी में दस फीट की गहराई तक जाते हैं l और यद्यपि यह जीव आश्चर्यजनक रूप से बड़ा है, यह एक अति सूक्ष्म बीजाणु(microscopic spore) से आरम्भ हुआ था!
बाइबल हमें अनाज्ञाकारिता के एकलौते कार्य के बारे में बताती है जो व्यापक दंडाज्ञा का कारण बना और आज्ञाकारिता का एकलौता कार्य जिसने उसे पलट दिया l प्रेरित पौलुस ने दो व्यक्तियों──आदम और यीशु──की परस्पर तुलना की (रोमियों 5:14-15) l आदम के पाप ने “सब मनुष्यों में” (पद.12) दंडाज्ञा और मृत्यु लाया l अनाज्ञाकारिता के एक कार्य के द्वारा, सब लोग पापी हो गए और परमेश्वर के सामने दोषी हुए (पद.17) l लेकिन उसके पास मानवता के पाप की समस्या से पेश आने के लिए उपाय था l क्रूस पर यीशु के धार्मिकता के कार्य के द्वारा, परमेश्वर अनंत जीवन और अपने सामने सही आधार प्रदान करता है l मसीह के प्रेम और आज्ञाकारिता का एक कार्य आदम की अनाज्ञाकारिता के एक कार्य पर विजय प्राप्त करने के लिए पर्याप्त था──जिसने “सब मनुष्यों [को] जीवन [दिया] (पद.18) l
क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा, यीशु हर किसी को अनंत जीवन देता है जो उसमें विश्वास करता है l यदि आपने उसकी क्षमा और उद्धार को स्वीकार नहीं किया है, आज आप ऐसा कर सकते हैं l यदि आप पहले से विश्वासी है, जो उसने अपने प्रेम के महान कार्य के द्वारा आपके लिए किया है उसकी प्रशंसा करें!
बुद्धिमत्ता से आनंद की ओर
फोन बजा और बगैर विलम्ब किये मैंने उसे उठा लिया l पुकारनेवाली हमारे चर्च परिवार की सबसे पुरानी सदस्या थी──ऊर्जावान, मेहनती महिला जिसकी उम्र लगभग सौ वर्ष थी l अपनी नवीनतम पुस्तक में अंतिम सुधार करते हुए, उन्होंने समापन रेखा पार करने के लिए मुझसे कुछ प्रश्न लिखने के लिए कहा l हमेशा की तरह, हालाँकि, मैं तुरंत उनसे प्रश्न पूछने लगा──जीवन, कार्य, प्रेम, परिवार के विषय l लम्बे जीवन से उनके अनेक सबक बुद्धिमत्ता से चमक रहे थे l उन्होंने मुझसे कहा, “अपनी रफ़्तार को नियमित करो l” और शीध्र ही हम उन समयों के विषय खिलखिला रहे थे जब वह ऐसा करना भूल गई थीं──उनकी अद्भुत कहानियाँ जो वास्तविक आनंद से समयोचित थीं l
बाइबल सिखाती है कि बुद्धिमत्ता आनंद का कारण बनती है l “क्या ही धन्य(आनंदित) है वह मनुष्य जो बुद्धि पाए, और वह मनुष्य जो समझ प्राप्त करे” (नीतिवचन 3:13) l हम पाते हैं कि यह मार्ग──बुद्धिमत्ता से आनंद की ओर──वास्तव में बाइबल का एक सद्गुण है l “बुद्धि . . . तेरे हृदय में प्रवेश करेगी, और ज्ञान(आनंद) तुझे सुख देनेवाला लगेगा” (नीतिवचन 2:10) l “जो मनुष्य परमेश्वर की दृष्टि में अच्छा है, उसको वह बुद्धि और ज्ञान और आनंद देता है” (सभोपदेशक 2:26) l नीतिवचन 3:17(BSI,Hindi-C.L.) आगे कहता है, बुद्धिमत्ता के “पथ सुख-समृद्धि से परिपूर्ण हैं l”
जीवन के विषयों पर विचार करते हुए, लेखक सी. एस. ल्युईस ने घोषणा किया कि “आनंद स्वर्ग का गंभीर मामला है l” वहाँ का पथ, हालाँकि, बुद्धिमत्ता से प्रशस्त है l मेरे चर्च की सखा, जो 107 वर्ष तक जीवित रही, सहमत होती l वह बुद्धि सम्मत, आनंदित गति से राजा की ओर चली l
स्वर समता(symphony) की तरह
मैंने अपनी पत्नी को संगीत समारोह(concert) के टिकट के साथ उस आदाकार को सुनने के लिए जिसे वह हमेशा देखना चाहती थी आश्चर्यचकित कर दिया l प्रतिभाशाली गायक के साथ सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा था, और विन्यास समुद्र तल से 6,000 फीट से अधिक ऊँचाई पर दो 300 फीट चट्टान की संरचनाओं के बीच निर्मित एक खुली रंगभूमि(open-air amphitheater) थी l ऑर्केस्ट्रा ने अनेक अति पसंदीदा उत्कृष्ट गाने और लोक धुन बजाए l उनका अंतिम प्रस्तुति उत्कृष्ट गीत “फज़ल अजीब(Amazing Grace)” का नूतन मिरुपण था l खूबसूरत, स्वर योजन विन्यास ने हमें अचंभित कर दिया!
समरसता(harmony) के बारे में कुछ खूबसूरत है──व्यक्तिगत साजों का इस प्रकार बजना जो एक बड़ा और अधिक परतदार ध्वनि परिदृश्य उत्पन्न करता है l प्रेरित पौलुस ने समरसता (harmony) की ओर इंगित किया जब उसने फिलिप्पियों को “एक, मन,” “एक ही प्रेम,” और “एक ही चित्त और एक मनसा” रखने के लिए कहा (फिलिप्पियों 2:2) l वह उन्हें एक जैसा बनने को नहीं कह रहा था लेकिन नम्र स्वभाव और यीशु के आत्म-बलिदानी प्रेम को गले लगाने के लिए कह रहा था l सुसमाचार, जिस तरह पौलुस जानता और सिखाता था, हमारे विभेद को मिटाता नहीं है, लेकिन वह हमारे मतभेदों/विभाजनों को समाप्त कर सकता है l
यह भी रुचिकर है कि अनेक विद्वान् यहाँ पर (पद.6-11) पौलुस के शब्दों को एक प्राचीन गीत के आरम्भ के रूप मानते हैं l मुद्दा यह है : जब हम पवित्र आत्मा को हमारे विशिष्ट जीवनों और सन्दर्भों में होकर काम करने देते हैं, जो हमें और अधिक यीशु के समान बनाता है, मिलकर हम एक समरसता(harmony) बन जाते हैं जो मसीह के नम्र प्रेम के साथ गुंजायमान होता है l