किसी ने कहा है हम अपने जीवन में तीन नाम से जाने जाते हैं : नाम जो हमारे माता-पिता हमें देते हैं, नाम जो दूसरे हमें देते हैं(हमारी ख्याति), और वह नाम जो हम खुद को देते हैं(हमारा चरित्र) l नाम जो दूसरे हमें देते हैं मायने रखता है, क्योंकि “बड़े धन से अच्छा नाम अधिक चाहते योग्य है, और सोने चांदी से दूसरों की प्रसन्नता उत्तम है” (नीतिवचन 22:1) l लेकिन जबकि ख्याति महत्वपूर्ण है, चरित्र अधिक मायने रखता है l 

एक और नाम है जो और भी अधिक महत्वपूर्ण है l यीशु ने पिरगमुन में मसीहियों से कहा कि यद्यपि उनकी ख्याति जिसके वे योग्य थे बुरी तरह से प्रभावित हुई थी, उसके पास उनके लिए जो लड़ाई लड़ेंगे और आजमाइश पर जय पाएँगे स्वर्ग में एक नया नाम आरक्षित है l “जो जय पाए . . . उसे एक श्वेत पत्थर . . . दूँगा; और उस पत्थर पर एक नाम लिखा हुआ होगा, जिसे उसके पानेवाले के सिवाय और कोई न जानेगा” (प्रकाशितवाक्य 2:17) l 

हम निश्चित नहीं हैं कि यीशु ने एक सफ़ेद पत्थर का वादा क्यों किया? क्या यह जीतने का पुरस्कार है? मसीह के सम्बन्ध में(messianic) जेवनार में शामिल होने का निमंत्रण? शायद यह उसके समान है जो किसी समय जूरी-सदस्य(पंच) रिहाई के लिए समर्थन करते थे l हम नहीं जानते हैं l जो भी है, परमेश्वर वादा करता है कि हमारा नया नाम हमारे शर्म को मिटा देगा (यशायाह 62:1-5) l 

हमारी ख्याति तार-तार हो सकती है, और हमारा चरित्र दुरुस्त नहीं होता प्रतीत हो सकता है l लेकिन आख़िरकार कोई भी नाम हमें परिभाषित नहीं करता है l यह नहीं है कि दूसरे आपको किस नाम से पुकारते हैं न ही यह मायने रखता है कि आप खुद को क्या पुकारते हैं l आप वह हैं जो यीशु आपको संबोधित करता है l अपने नए नाम में जीयें l