यह मेरे कंठ में एक सुरसुराहट की तरह शुरू हुआ l उह ओह, मैंने सोचा l वह सुरसुराहट इन्फ्लुएंजा निकला l और वह केवल श्वसनी पीड़ा (bronchial affliction) का आरम्भ था l इन्फ़्लुएन्ज़ा ने काली खांसी का रूप ले लिया──जी हाँ, वह काली खांसी──और वह निमोनिया में बदल गया l 

आठ सप्ताह तक शरीर को नाश करनेवाली खांसी ने──इसे यूँ ही काली खांसी नहीं कहा जाता है──मुझे विनीत कर दिया l मैं खुद को वृद्ध नहीं मानता l लेकिन मैं उस दिशा में आगे बढ़ने के विषय सोचना आरम्भ करने के लिए पर्याप्त उम्र का हूँ l चर्च में मेरे छोटे समूह के एक सदस्य के पास उन स्वास्थ्य मामलों के लिए जो हमारे उम्र में बढ़ने के साथ आक्रमण करते हैं एक मजेदार नाम है : “दुर्बलता(The Dwindles) l” लेकिन इन दुर्बलताओं के “कार्य करने” के विषय कुछ भी हास्यमय नहीं है l 

2 कुरिन्थियों 4 में, पौलुस ने भी──अपने तरीके से──“दुर्बलता” के बारे में लिखा l वह अध्याय उसके और उसके टीम के द्वारा सहे गए सताव का वर्णन करता है l अपने मिशन को पूरा करने में एक भारी कीमत चुकाना पड़ा था l हमारा “बाहरी मनुष्यत्व नष्ट होता” गया, उसने स्वीकार किया l लेकिन यद्यपि उसका शरीर विफल होता गया──उम्र, सताव, और कठोर स्थितियों के कारण──पौलुस थामने वाली अपनी आशा को मजबूती से पकड़ा रहा : “हमारा भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है” (पद.16) l उसने बल दिया, “हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश,” जो हमारे आगे है उसका मुकाबला नहीं कर सकता जो “हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और अनंत महिमा उत्पन्न करता जाता है” (पद.17) l 

यहाँ तक कि जब मैं आज रात को लिख रहा हूँ, दुर्बलता मेरे सीने पर पंजा मारती है l लेकिन मैं जानता हूँ कि मेरे जीवन में और या किस और के जो मसीह से लिपटा रहता है, अंतिम निर्णय उनका नहीं है l