तीस वर्षों तक, उसने एक बड़ी वैश्विक सेवा में ईमानदारी से काम किया l फिर भी जब उसने साम्प्रदायिक अन्याय के बारे में सहकर्मियों से बात करने की कोशिश की, तो चुप्पी से उसका सामना हुआ l हालाँकि, आखिरकार, 2020 के बसंत में──दुनिया भर में नस्लवाद के बारे में खुली चर्चा के रूप में──उसकी सेवा के मित्रों ने “कुछ खुली बातचीत करना शुरू कर दिया l” मिश्रित भावनाओं और दुःख के, वह आभारी थी कि विचार-विमर्श शुरू हुआ, लेकिन आश्चर्य है कि उसके सहयोगियों को बोलने के लिए इतना समय क्यों लगा l 

कुछ स्थितियों में खामोशी एक गुण हो सकता है l जैसा कि रजा सुलैमान ने सभोपदेशक की पुस्तक में लिखा है, “हर एक बात का एक अवसर और प्रत्येक काम का, जो आकाश के नीचे होता है, एक समय है . . . चुप रहने का समय, और बोलने का भी समय है” (सभोपदेशक 3:1, 7) l 

कट्टरता और अन्याय के सामने, हालाँकि, खामोशी, केवल नुकसान और चोट को सक्षम करता है l लूथरन पास्टर मार्टिन निमलर(नाज़ी जर्मनी में मुखरता से बोलने के लिए जेल में बंद) ने युद्ध के बाद खुद की लिखी एक कविता में इसे कबूल किया l “पहले वे कम्युनिस्टों के लिए आए,” उन्होंने लिखा, “लेकिन मैं इसलिए नहीं बोला क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था l” उसने आगे कहा, “उसके बाद वे” यहूदी, कैथोलिक, और दूसरों के लिए “आए, लेकिन मैं नहीं बोला l” आखिरकार, “वे मेरे लिए आए──और उस समय तक बोलने वाला कोई भी नहीं बचा था l” 

अन्याय के खिलाफ बोलने के लिए──साहस──और प्यार चाहिए l परमेश्वर की मदद लेकर, हालाँकि, हम पहचानते हैं कि बोलने का समय अब है l