विश्वास की मांसपेशियों को फैलाना
चिड़ियाघर की यात्रा के दौरान, मैं स्लॉथ (Sloth) (दक्षिण व मध्य अमेरिका में पाया जाने वाला एक आलसी जानवर जो पेड़ों में रहता है), के पास आराम करने के लिए रुक गया। वह जीव उल्टा लटका हुआ था । ऐसा लग रहा था कि वह संन्तुष्ट है क्योंकि वह पूरी तरह से (शांत) स्थिर था । मैंने आह भरी। अपने स्वास्थ्य के मुद्दों के कारण, मैं स्थिरता से संघर्ष कर रहा था और कुछ भी करने के लिए मैं निराशा से भर कर आगे बढ़ना चाहता था। अपनी बाधाओं पर कुढ़ते हुये, मैं इतना कमजोर महसूस करना बंद करना चाहता था। लेकिन स्लॉथ को मैंने देखा कि कैसे उसने अपना एक हाथ बढ़ाया, पास की एक शाखा को पकड़ लिया, और फिर रुक गया। स्थिर होने में भी शक्ति की आवश्यकता है। अगर मैं धीमी गति से चलने या स्लॉथ की तरह स्थिर रहना चाहता था, तो मुझे अविश्वसनीय मांसपेशियों की शक्ति से अधिक की आवश्यकता थी। अपने जीवन के हर खींचे जाने वाले क्षण में ईश्वर पर भरोसा करने के लिए मुझे अलौकिक शक्ति की आवश्यकता थी।
भजन संहिता 46 में, लेखक घोषणा करता है कि परमेश्वर हमें केवल शक्ति ही नहीं देता, वह हमारी शक्ति है (पद 1)। हमारे आसपास कुछ भी हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि, सर्वशक्तिमान प्रभु हमारे साथ है (पद 7)। भजनकार इस सत्य को विश्वास के साथ दोहराता है (पद 11)।
स्लॉथ की तरह हमारे दिन–प्रतिदिन के कामों के लिए अक्सर धीमे कदमों और असंभव प्रतीत होने वाली स्थिरता की लंबी अवधि की आवश्यकता होती है। जब हम परमेश्वर के अपरिवर्तनीय चरित्र पर भरोसा करते हैं, तो हम उसकी शक्ति पर निर्भर हो सकते हैं, चाहे वह हमारे लिए कोई भी योजना और गति निर्धारित करे जो सही हो।
यद्यपि हम कष्टों से लड़ना जारी रख सकते हैं या प्रतीक्षा के साथ संघर्ष कर सकते हैं, परमेश्वर विश्वासपूर्वक उपस्थित रहता है। यहां तक कि जब हम बलशाली महसूस नहीं करते हैं, तब भी वह हमारे विश्वास की मांसपेशियों को फैलाने में हमारी मदद करेगा।
यीशु कौन है ?
लोग यीशु को क्या मानते हैं? कुछ लोग कहते हैं कि वह एक अच्छे शिक्षक थे, लेकिन वह सिर्फ एक मनुष्य थे। लेखक सी एस लुईस ने लिखा, या तो यह आदमी परमेश्वर का पुत्र था, और है, या फिर एक पागल, या कुछ इससे भी और बुरा। आप उसे एक मूर्ख बोल कर चुप करा सकते हैं, आप उस पर थूक सकते हैं और उसे एक दुष्ट आत्मा के रूप में मार सकते हैं, या आप उसके चरणों में गिर सकते हैं और उसे परमेश्वर और प्रभु कह सकते हैं, लेकिन हमें उसके महान मानव शिक्षक होने के बारे में कोई भी बेकार का समर्थन नहीं करना चाहिए।” मियर क्रिस्चीऐनिटी के ये अब प्रसिद्ध शब्द बताते हैं कि यदि यीशु ने ईश्वर होने का झूठा दावा किया होता तो वह एक महान भविष्यवक्ता नहीं होता। यह परम विधर्म होगा।
गाँवों के बीच चलते समय अपने शिष्यों से बात करते हुए, यीशु ने उनसे पूछा, “लोग क्या कहते हैं कि मैं कौन हूँ? मरकुस (8:27)। उनके उत्तरों में— यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला, एलिय्याह और भविष्यद्वक्ताओं में से एक शामिल थे (पद 28) । लेकिन यीशु जानना चाहते थे कि वे क्या मानते हैं? “तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूं?” पतरस ने इसे सही बताया, “तू मसीह है”, उद्धारकर्ता (पद 29) ।
लेकिन हम क्या कहते हैं कि यीशु कौन है? यीशु एक अच्छा शिक्षक या भविष्यद्वक्ता नहीं हो सकता था यदि उसने अपने बारे में जो उसने कहा था— कि वह और पिता परमेश्वर “एक हैं” (यूहन्ना 10:30)— सच नहीं था। उसके अनुयायियों और यहाँ तक कि दुष्टात्माओं ने भी उसकी ईश्वरत्व (दिव्यता) को परमेश्वर के पुत्र के रूप में घोषित किया (मत्ती 8:29;16:16. 1यूहन्ना 5:20)। आज, हम इस बात का प्रचार करें कि मसीह कौन है क्योंकि वह हमें वह प्रदान करता है जिसकी हमें आवश्यकता है।
सिखाने योग्य एक आत्मा
न केवल दूसरों की राय बल्कि राय देने वाले व्यक्ति पर भी हमला करना (दोष ढूंढना) दुखद रूप से “सामान्य” हो गया है। यह शिक्षा सम्बंधी क्षेत्रों में भी सच हो सकता है। इस कारण से, मैं दंग रह गया जब विद्वान और धर्मशास्त्री रिचर्ड बी हेज़ ने एक पेपर लिखा जिसमें उन्होंने वर्षों पहले अपने खुद के लिखे एक काम में संशोधन करने के लिये कमियां निकालीं । रीडिंग विद द ग्रेन ऑफ स्क्रिप्चर में हेज़ ने दिल की बड़ी विनम्रता का प्रदर्शन किया जब उन्होंने अपनी पिछली सोच को ठीक किया, जो अब सीखने के लिए अपनी आजीवन प्रतिबद्धता से ठीक हो गई है।
जब नीतिवचन की पुस्तक पेश की जा रही थी, राजा सुलैमान ने बुद्धिमान कथनों के इस संग्रह के विभिन्न उद्देश्यों को सूचीबद्ध किया। परन्तु उन उद्देश्यों के बीच में, उसने इस चुनौती को सम्मिलित किया, “बुद्धिमान उन्हें सुन कर निज ज्ञान बढ़ायें और समझदार व्यक्ति दिशा निर्देश पायें” (नीतिवचन 1: 5)। प्रेरित पौलुस की तरह, जिसने दावा किया कि दशकों तक मसीह का अनुसरण करने के बाद भी, उसने यीशु को जानना जारी रखा (फिलिप्पियों 3: 10) सुलैमान ने बुद्धिमानों को सुनने, सीखने और बढ़ते रहने का आग्रह किया।
एक सिखाने योग्य भावना को बनाए रखने से कभी किसी को नुकसान नहीं होता। जैसे–जैसे हम बढ़ते रहना चाहते हैं और विश्वास की बातों और जीवन की बातों के बारे में सीखते हैं, क्या हम पवित्र आत्मा को हमें सच्चाई में मार्गदर्शन करने की अनुमति दे सकते हैं, (यूहन्ना 16:13), ताकि हम अपने भले और महान परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों को और अच्छी तरह समझ सकें।
सच्ची आज़ादी
ट्रेन में पढ़ते समय, जाह्नवी अपनी किताब के वाक्यों को हाइलाइट करने और किताब के हाशिये (मार्जिन) में नोट्स लिखने में व्यस्त थी। लेकिन पास में बैठी एक मां और बच्चे के बीच हुई बातचीत ने उसे रोक दिया। माँ अपने बच्चे को अपनी लाइब्रेरी की किताब में बेकार के चित्र बनाने को मना कर रही थी। जाह्नवी ने जल्दी से अपनी कलम हटा दी, वह नहीं चाहती थी कि बच्चा जाह्नवी की मिसाल पर चलकर अपनी माँ की बातों को नज़रअंदाज़ करे। वह जानती थी कि बच्चा उधार ली गई किताब को नुकसान पहुंचाने और अपनी खुद की किताब में नोट्स बनाने के बीच के अंतर को नहीं समझेगा।
जाह्नवी के कार्यों ने मुझे 1 कुरिन्थियों 10:23–24 में प्रेरित पौलुस के प्रेरणादायक शब्दों की याद दिला दी: “सब वस्तुयें मेरे लिये उचित तो हैं, परन्तु सब लाभ की नहीं; सब वस्तुयें मेरे लिये उचित तो हैं, परन्तु सब वस्तुंओं से उन्नति नहीं। कोई अपनी ही भलाई को न ढूंढे, बरन औरों की भलाई को ढूंढे।” कुरिन्थ की युवा कलीसिया में यीशु के विश्वासियों ने मसीह में अपनी स्वतंत्रता को व्यक्तिगत हितों को आगे बढ़ाने के अवसर के रूप में देखा। परन्तु पौलुस ने लिखा कि उन्हें इसे दूसरों को लाभ पहुँचाने और उनको बनाने के अवसर के रूप में देखना चाहिए। उसने उन्हें सिखाया कि सच्ची स्वतंत्रता वह करने का अधिकार नहीं है जो वे चाहते हैं, परन्तु परमेश्वर के लिए जैसा उन्हें करना चाहिए वैसा करने की स्वतंत्रता है।
जब हम अपनी स्वतंत्रता का उपयोग खुद की सेवा करने के बजाय दूसरों को बनाने के लिए करते हैं तब हम यीशु का अनुकरण करते हैं ।