Month: दिसम्बर 2022

पापियों के लिए एक अस्पताल

काठमांडू में एक मित्र के चर्च की यात्रा के दौरान, मैंने एक चिन्ह देखा जो उसने द्वार पर लगाया था। यह कहा, “चर्च पापियों के लिए एक अस्पताल है न कि संतों के लिए एक संग्रहालय”। हालांकि मैं संग्रहालय शब्द के बारे में निश्चित नहीं हूं, लेकिन मुझे अस्पताल की उपमा पसंद है। मेरे विचार से यह एकदम सही है।

डॉक्टर, नर्स, प्रशासनिक कर्मचारी, मरीज और कई अन्य लोग अस्पताल बनाते हैं। अस्पताल में हम लगभग सभी ज्ञात भावनाएँ पा सकता है। हम, यहां तक कि डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ को भी अस्पताल में मरीज बनने की प्रवृत्ति होती है और उनमें से कई लोग होते भी हैं।

सी. एस. लुईस ने कहा था, “मुझे उसी अस्पताल में साथी मरीज समझो। लेकिन कुछ समय पहले भर्ती हुआ इसलिये कुछ सलाह दे सकता था।” किसी प्रकार की पूर्णता से नहीं, बल्कि एक साथी रोगी के रूप में, फरीसियों के विपरीत, जो स्वयं धर्मी अहंकार के ऊंचे आसन से बोलते हैं जो कहते हैं, “मैं न कभी बीमार हुआ हूं और न कभी होऊंगा”

यीशु ‘यद्यपि उन्होंने पाप नहीं किया’ जो ‘पाप बन गया’ के रूप में बोला और ऐसा ही ‘कर लेने वालों और पापियों’ का मित्र था। प्रश्न यह है कि क्या हम उन पापियों के मित्र हैं जिन्हें उनके अनुग्रह और दया की आवश्यकता है?

जिन्दगी का मतलब

अर्जेण्टीनी लेखक जॉर्ज लुइस बोर्गेस की एक छोट्टी कहानी एक रोमी सैनिक, मार्कस रूफस के बारे में बताती है, जो “मनुष्यों को मृत्यु से शुद्ध करने वाली गुप्त नदी” से पीता है। हालांकि, समय के साथ, मार्कस ने यहसास किया कि अमरता वह सब नहीं थी जो सब बनाई गयी थी: बिना सीमा के जीवन बिना महत्व का जीवन है, यह मृत्यु ही है जो जीवन को अर्थ देती है। मार्कस एक प्रतिषेधक पाता है- साफ पानी का एक झरना। उसमें से पीने के बाद, वह अपना हाथ एक कांटे से छिल लेता है, खून की एक बूंद बन जाती है, उसकी पुनर्स्थापित मृत्यु दर को दर्शाते हुए।

माक्र्स की तरह, हम भी कभी-कभी जीवन के पतन और मृत्यु की संभावना से निराश हो जाते हैं (भजन 88:3)। हम इस बात से सहमत हैं कि मृत्यु जीवन को महत्व देती है। लेकिन यहीं से कहानियां अलग हो जाती हैं। मार्कस के विपरीत, हम जानते हैं कि मसीह की मृत्यु में ही हम अपने जीवन का सही अर्थ पाते हैं। क्रूस पर उसके लहू बहाने के द्वारा, मसीह ने मृत्यु को जय से निगलते हुए जीत लिया,(1 कुरिंथियों 15:54)। हमारे लिए, वह प्रतिशोधक  यीशु मसीह के “जीवित जल” में है (यूहन्ना 4:10)। क्योंकि हम उसे पीते हैं, जीवन, मृत्यु और अनंत जीवन सब के नियम बदल गए हैं (1 कुरिंथियों 15:52)।

यह सच है कि, हम शारीरिक मौत से नहीं बचेंगे, लेकिन वह मुख्य नहीं है। यीशु जीवन और मृत्यु के प्रति हमारी सारी निराशा को दूर कर देता है (इब्रानियों 2:11-15)।

मसीह में, हम स्वर्ग की आशा और उसके साथ अनन्त जीवन में सार्थक आनंद के साथ आश्वस्त हैं।

मैंने घंटियाँ सुनी

हेनरी वेड्सवर्थ लॉन्गफेलो की 1863 की कविता पर आधारित, “मैंने क्रिसमस के दिन घंटियाँ सुनी” वास्तव में असामान्य क्रिसमस गीत है। अपेक्षित क्रिसमस आनंद और उल्लास के बजाय, गीत विलाप करता, रोता है, “और मैंने निराशा में सिर झुका लिया/ पृथ्वी पर कोई शांति नहीं है मैंने कहा/ क्योंकि नफरत मजबूत है/ और पृथ्वी पर शांति के गाने मनुष्यों की अच्छी इच्छा का मजाक उड़ाता है/” हालाँकि, यह विलाप आगे आशा में बढ़ता है, हमें आश्वस्त करता है कि “परमेश्वर मरा नहीं है, ना ही वो सोता है/ पृथ्वी पर शांति और मनुष्यों की अच्छी इच्छा के साथ गलत विफल हो जाएगा, सही जीत जाएगा”

विलाप में उठने वाली आशा का प्रतिरूप बाइबल के विलाप गीतों में भी पाया जाता है। जैसे, भजन 43 भजनकार का अपने शत्रु जो उस पर हमला करते हैं और उसका परमेश्वर जो लगता है कि उसे भूल गया है (पद 2) से पुकारने के साथ शुरू होता है (1)। लेकिन भजनकार विलाप में नहीं रहता—वह उस परमेश्वर की ओर देखता है जिसे वह पूरी तरह से नहीं समझता है लेकिन फिर भी उस पर भरोसा करता है, यह गाते हुए, “हे मेरे प्राण, तू क्यों गिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है?  परमेश्‍वर पर भरोसा रख, क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्‍वर है; मैं फिर उसका धन्यवाद करूँगा।” (पद 5)।

जीवन विलाप के कारणों से भरा है, और हम सब नियमित रूप से उसका अनुभव करते हैं।

परन्तु, यदि उस विलाप को हम आशा के परमेश्वर की ओर संकेत करने दें, भले ही हम अपने आंसुओं से गाएं-हम खुशी से गा सकते हैं।

जो अच्छा है उससे चिपके रहना

जब हम अपनी कार एक खुले मैदान के पास पार्क करते हैं और अपने घर जाने के लिए उस पार चलकर जाते हैं, लगभग हमेशा हमारे कपड़ों पर कुछ चिपचिपे कँटीला बीजकोष चिपकते हैं- खासकर सर्दियों में। ये छोटे "सहयात्री" कपड़ों, जूतों, या जो कुछ भी गुज़रता है, उससे जुड़ जाते हैं और सवार होकर उनकी अगली मंज़िल तक पहुँच जाते है। यह प्रकृति का तरीका है मेरे स्थानीय क्षेत्र और दुनिया भर में कँटीला बीजकोष को फैलाने का ।

जब मैं चिपके हुए कँटीला बीजकोष को ध्यान से हटाने की कोशिश करता हूं, मैं अक्सर उस संदेश के बारे में सोचता हूँ जो यीशु में विश्वासियों को कहता है “भलाई में लगे रहो ”(रोमियों 12:9)। जब हम दूसरों से प्रेम करने की कोशिश कर रहे होते है, तो यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है। हालाँकि, जब पवित्र आत्मा जो कुछ भी हमारे पास अच्छा है, उसे पकड़े रहने में हमारी सहायता करता है, हम बुराई को दूर कर सकते हैं और अपने प्रेम में "निष्कपट" हो सकते हैं (12:9) क्योंकि वह हमारा मार्गदर्शन करता है।

कँटीला बीजकोष केवल हाथ से हटाने से नहीं गिरते, वे आप पर चिपके रहते हैं। और जब हम परमेश्वर की दया, करुणा और आज्ञाओं को मन में रखते हुए अपना ध्यान अच्छाई पर केंद्रित करते हैं, तब हम भी—उनके सामर्थ्य में—उन लोगों से लिपटे रह सकते हैं जिनसे हम प्रेम करते हैं। वह हमें “भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे से स्‍नेह..” रखने में मदद करता है, और दूसरों की ज़रूरतों को अपनी ज़रूरतों से पहले रखने को याद दिलाता है (पद। 10)।

हाँ, वो कँटीला बीजकोष चुनौतीपूर्ण हो सकती है, लेकिन वे मुझे दूसरों से प्यार में पकड़े रहने और परमेश्वर की सामर्थ्य के द्वारा “जो अच्छा है” उसे कसकर पकड़े रहने के लिए याद दिलाते हैं (पद 9; फिलिप्पियों 4:8-9 भी देखें)।