Month: दिसम्बर 2023

कलीसिया हो

कोविड-19 महामारी के दौरान, डेव और कार्ला ने एक घरेलू कलीसिया की तलाश में महीनों बिताए। स्वास्थ्य दिशा निर्देशों का पालन करना, जो विभिन्न व्यक्तिगत मिलन को सीमित कर, इसे और भी कठिन बना दिया। वे यीशु में विश्वासियों के एक समूह से जुड़ने की लालसा रखते थे। कार्ला ने मुझे ई-मेल किया, "कलीसिया ढूंढने का कठिन समय है।" मेरे अंदर अपनी कलीसिया परिवार के साथ फिर से जुड़ने की मेरी अपनी लालसा ने एक अहसास जाग दिया। मैंने उत्तर दिया, "कलीसिया होना कठिन है।" उस समय, हमारी कलीसिया ने आसपास के इलाकों में भोजन की पेशकश करने, ऑनलाइन सेवाएं सृजन करना और प्रत्येक सदस्य को समर्थन और प्रार्थना के साथ फोन करने पर जोर दिया गया । मेरा पति और मैं इसमें भाग लेने के बाद भी सोच रहे थे कि हमारे बदली हुई दुनिया में "कलीसिया बनने" के लिए और क्या कर सकते हैं।

 

इब्रानियों 10:25 में, लेखक पाठकों से “एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें जैसे कि कितनों की रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहें” और ज्यों-ज्यों उस दिन को निकट आते देखो, त्यों-त्यों और भी अधिक यह किया करो” की उपेक्षा न करने का आग्रह करता है । संभवतः उत्पीड़न के कारण (पद. 32-34) या शायद केवल थके होने का परिणाम (12:3), संघर्षरत प्रारंभिक विश्वासियों को कलीसिया बने रहने के लिए एक प्रोत्साहन की आवश्यकता थी।

और आज, मुझे भी एक प्रोत्साहन की आवश्यकता है। क्या आपको चाहिए? जब परिस्थितियाँ बदल जाती हैं तो हम कलीसिया का अनुभव कैसे करते हैं, क्या हम कलीसिया बने रहेंगे? जैसे परमेश्वर हमारा मार्गदर्शन करता है आइए रचनात्मक रूप से एक दूसरे को प्रोत्साहित करें और एक-दूसरे का निर्माण करें। अपने संसाधनों को साझा करें। समर्थन का संदेश भेजें। इकट्ठा हों जिस तरह हम सक्षम हैं। एक दूसरे के लिए प्रार्थना करें। आइए कलीसिया बने रहें ।

पूर्वधारणा और परमेश्वर का प्रेम

“तुम वह नहीं हो जिसकी मैंने उम्मीद की थी । मैंने सोचा था कि मैं तुमसे नफरत करूंगा, लेकिन मैं नहीं करता।" युवक के शब्द कठोर लग रहे थे, लेकिन वे वास्तव में दयालु होने का एक प्रयास था। मैं विदेश में उनके देश में पढ़ रहा था, एक ऐसा देश जिसका दशकों पहले मेरे देश के साथ युद्ध हुआ था। हम कक्षा में एक सामूहिक चर्चा में एक साथ भाग ले रहे थे, और मैंने देखा कि वह बहुत पृथक लग रहा था। जब मैंने पूछा कि क्या मैंने उसे किसी तरह नाराज किया है, तो उसने जवाब दिया, "बिल्कुल नहीं। और यही बात है। उस युद्ध में मेरे दादाजी मारे गये थे इसलिए मुझे आपके लोगों और आपके देश से नफरत करता था। लेकिन अब मैं देखता हूं कि हमारे बीच कितनी समानताएं हैं, और यह मुझे आश्चर्यचकित करता है। मैं यह नहीं देख सकता कि हम दोस्त क्यों नहीं बन सकते।"

 

पूर्वधारणा मानव जाति जैसा ही पुराना है । दो हज़ार साल पहले, जब नतनएल ने पहली बार यीशु के नासरत में रहने के बारे में सुना, तो उसकी पूर्वधारणा स्पष्ट हो गयी : उसने पूछा, “क्या कोई अच्छी वस्तु भी नासरत से निकल सकती है?” (यूहन्ना 1:46) । नतनएल यीशु की तरह गलील के क्षेत्र में रहता था। संभवतः उसने सोचा था कि परमेश्वर का मसीहा किसी अन्य स्थान से आएगा; यहाँ तक कि अन्य गलीली लोगों ने भी नासरत को नीची दृष्टि से देखा क्योंकि यह एक साधारण छोटा सा गाँव लग रहा था।

 

इतना तो स्पष्ट है, नतनएल के प्रतिक्रिया ने यीशु को उससे प्रेम करने से नहीं रोका, और जब वह यीशु का शिष्य बना, वह बदल गया। नतनएल ने बाद में घोषणा किया “तू परमेश्‍वर का पुत्र हे;” (पद.49)। ऐसा कोई पूर्वधारणा नहीं है जो परमेश्वर के परिवर्तनकारी प्रेम के विरुद्ध खड़ा हो सके।

मसीह की तरह देना

जब अमेरिकी लेखक ओ हेनरी ने 1905 की अपनी प्रिय क्रिसमस कहानी "द गिफ्ट ऑफ द मजाई(The Gift of the Magi)" लिखी, वह व्यक्तिगत परेशानियों से उबरने के लिए संघर्ष कर रहा था। फिर भी, उन्होंने एक प्रेरक कहानी लिखी जो एक सुंदर, मसीह-समान चरित्र विशेषता—बलिदान को उजागर करता है। कहानी में, एक गरीब पत्नी क्रिसमस के पूर्व संध्या पर अपने पति के लिए सोने की पॉकेट घड़ी का चेन खरीदने के लिए अपना सुंदर लंबा बाल बेच देती है। जैसा उसे बाद में पता चलता है कि, उसके पति ने उसके खूबसूरत बालों के लिए कंघी का एक सेट खरीदने के लिए अपनी जेब घड़ी बेच दिया था।

 

एक दूसरे को उनका सबसे बड़ा उपहार? बलिदान। प्रत्येक की ओर से, भाव प्रदर्शन में बहुत प्रेम झलक रहा था।

 

उसी प्रकार, यह कहानी उन प्रेमपूर्ण उपहारों को प्रकट करता है जो ज्योतिषियों ने शिशु मसीह को उनके पवित्र जन्म के बाद दिया। (देखें मत्ती 2:1,11)। तथापि, उन उपहारों से भी अधिक बालक यीशु बड़े होते और एक दिन पूरे विश्व के लिए अपना जीवन बलिदान देते।

 

हमारे दैनिक जीवन में, मसीह में विश्वासी हमारे समय का बलिदान, ख़जाना और एक ऐसा स्वभाव जो सब बात प्रेम का करता है दूसरों को देकर उनके महान उपहार को उजागर कर सकते हैं। जैसा कि प्रेरित पौलुस ने लिखा, “इसलिए हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्‍वर की दया स्मरण दिलाकर विनती करता हूँ, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्‍वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ” (रोमियों 12:1) l यीशु के प्रेम के द्वारा दूसरों के लिए बलिदान देने से बेहतर कोई उपहार नहीं है।

संत निक/Saint Nick

जिस व्यक्ति को हम संत निकोलस (संत निक/Saint Nick) के नाम से जानते हैं उनका जन्म ई. सन् 270 के आसपास एक धनी यूनानी परिवार में हुआ था। दुर्भाग्य से, जब वह छोटा था तब ही उसके माता-पिता की मृत्यु हो गई, और वह अपने चाचा के साथ रहता था जो उससे प्यार करते थे और परमेश्वर का अनुसरण करना सिखाते थे। जब निकोलस एक युवा व्यक्ति थे, तो कहते है कि उन्होंने तीन बहनों के बारे में सुना, जिनके पास शादी के लिए दहेज नहीं था और जल्द ही वे निराश्रित हो जातीं। ज़रूरतमंदों को देने के बारे में यीशु की शिक्षा का पालन करने के इच्छा से, उसने अपनी विरासत से प्रत्येक बहन को सोने के सिक्कों से भरा थैला दिया। कुछ वर्षों में, निकोलस ने  अपना शेष धन गरीबों को खिलाने और दूसरों का देखभाल करने में दे दिया। अगले शताब्दियों में, निकोलस को उसके भव्य उदारता के लिए सम्मानित किया गया, और उन्होंने उस चरित्र को प्रेरित किया जिसे हम सांता क्लॉज़ के रूप में जानते हैं।

 

जबकि (क्रिसमस के) मौसम की चकाचौंध और विज्ञापन हमारे उत्सवों को खतरे में डाल सकता हैं, उपहार देने की परंपरा निकोलस से जुड़ा है। और उसकी उदारता यीशु के प्रति उसके भक्ति पर आधारित थी। निकोलस को पता था कि मसीह ने अकल्पनीय उदारता प्रदर्शित करके, सबसे गहरा उपहार लाया : परमेश्वर। यीशु “परमेश्‍वर हमारे साथ” है। और वह हमारे लिए जीवन का उपहार लाया। मृत्यु की दुनिया में, वह "अपने लोगों को उनके पापों से बचाता है" (v. 21)

 

जब हम यीशु पर विश्वास करते हैं, तो बलिदान स्वरूप उदारता सामने आती है। हम दूसरों के जरूरतों को पूरा करते हैं, और हम उनके लिए खुशी से प्रदान करते हैं जिस तरह परमेश्वर हमारे लिए प्रदान करता है। यह संत निक की कहानी है; लेकिन इससे कहीं अधिक, यह परमेश्वर की कहानी है।

परमेश्वर का सबसे सांत्वनादायक प्रतिज्ञा

वर्षों पहले, हमारे परिवार ने फोर कॉर्नर(Four Corners) का दौरा किया, अमेरिका में एकमात्र जगह जहां चार राज्य एक स्थान पर मिलते हैं। मेरे पति चिह्नित खंड एरिजोना में खड़े थे। हमारा सबसे बड़ा बेटा, ए.जे., यूटा में कूदा। जब हम कोलोराडो में कदम रखे तो हमारा सबसे छोटा बेटा, ज़ेवियर, ने मेरे हाथों को पकड़ लिया। जब मैं न्यू मैक्सिको में दौड़ कर गयी, ज़ेवियर ने कहा, "माँ, मैं विश्वास नहीं कर सकता कि आपने मुझे कोलोराडो में छोड़ दिया!" हम एक साथ थे और अलग थे क्योंकि हमारी हँसी चार अलग-अलग राज्यों में सुनाई दे रही थी। अब जबकि हमारे बड़े बेटे घर छोड़ चुके हैं, मैं ईश्वर के इस वादे की गहरी सराहना करती हूं कि उसके सभी लोग जहां भी जाएं, वह उनके करीब रहेगा।

 

मूसा की मृत्यु के बाद, परमेश्वर ने जब इस्राएलियों के क्षेत्र का विस्तार किया तब यहोशू को नेतृत्व के लिए बुलाया और अपनी उपस्थिति का आश्वासन दिया (यहोशू 1:1-4)। परमेश्वर ने कहा, “जैसे मैं मूसा के संग रहा वैसे ही तेरे संग भी रहूंगा; और न तो मैं तुझे धोखा दूँगा, और न तुझको छोड़ूँगा। (पद. 5)। यह जानते हुए कि यहोशू अपने लोगों के नए अगुवे के रूप में सन्देह और भय से संघर्ष करेगा, परमेश्वर ने इन वचनों पर आशा की एक नींव डाली : “क्या मैंने तुझे आज्ञा नहीं दी? हियाव बाँधकर दृढ़ हो जा; भय न खा, और तेरा मन कच्चा न हो; क्योंकि जहाँ जहाँ तू जाएगा वहाँ वहाँ तेरा परमेश्‍वर यहोवा तेरे संग रहेगा "(पद.9) ।

परमेश्वर भले ही हमें या हमारे प्रियजनों को कहीं भी ले जाए, कठिन समय में भी, उसका सबसे सांत्वनादायक वायदा हमें आश्वस्त करता है कि वह हमेशा मौजूद हैं।