दीवारों पर स्वर्गदूत
जब वॉलेस और मेरी ब्राउन एक मरते हुए चर्च में पास्टर बनने के लिए इंग्लैंड के एक गरीब हिस्से में गए, तो उन्हें नहीं पता था कि एक गिरोग ने उनके चर्च और घर के परिसर को अपना मुख्यालय बना लिया है l दंपत्ति की खिड़कियों पर ईंटें फेंकी गयीं, उनके बाड़ों में आग लगा दी गयी और उनके बच्चों को धमकाया गया l दुर्व्यवहार महीनों तक जारी रहा; पुलिस इसे रोक न सकी l
नहेम्याह की किताब बताती है कि कैसे इस्राएलियों ने यरूशलेम की टूटी हुयी दीवारों का पुनःनिर्माण किया l जब स्थानीय लोग “गड़बड़ी [डालने]” के लिए निकले, हिंसा की धमकी दी (नहेम्याह 4:8), तो इस्राएलियों ने “परमेश्वर से प्रार्थना की, और . . . पहरुए ठहरा दिए” (पद.9) l यह महसूस करते हुए कि परमेश्वर ने इस परिच्छेद द्वारा उनको निर्देशित किया है, ब्राउन, उनके बच्चे और कुछ अन्य लोग अपने चर्च की दीवारों के चारों ओर घूमकर, प्रार्थना की कि वह उनकी रक्षा के लिए स्वर्गदूतों को रक्षक के रूप में स्थापित करेगा l गिरोह ने मज़ाक उड़ाया, लेकिन अगले दिन, उनमें से केवल आधे ही आये l उसके अगले दिन, वहाँ केवल पांच थे, और उसके अगले दिन, कोई नहीं आया l ब्राउन लोगों को बाद में पता चला कि गिरोह ने लोगों को आतंकित करना छोड़ दिया है l
प्रार्थना का यह चमत्कारी उत्तर हमारी अपनी सुरक्षा का कोई सूत्र नहीं है, बल्कि यह एक अनुस्मारक है कि ईश्वर के कार्य का विरोध होगा और प्रार्थना के हथियार से उससे लड़ा जाना चाहिए l नहेम्याह ने इस्राएलियों से कहा, “प्रभु जो महान् और भय्योग्य है, उसी को स्मरण” करना (पद.14) l वह हिंसक दिलों को भी आजाद कर सकता है l
परमेश्वर के प्रति समर्पण
एक कृषिक्षेत्र में जन्मे जडसन वैन डिवेंटर ने पेंटिंग सीखा, कला का अध्ययन किया और एक कला शिक्षक बन गए l हलाकि, परमेश्वर की योजना अलग थी l दोस्तों ने चर्च में उनके काम को महत्व देकर उनसे मसीही धर्म प्रचारक बनने का आग्रह किया l जडसन को भी ईश्वर की बुलाहट महसूस हुयी, लेकिन कला सिखाने का प्रेम उनके लिए छोड़ना कठिन था l ईश्वर के साथ कुश्ती के बाद, उन्होंने लिखा, “आख़िरकार, निर्णायक समय आ गया, और मैंने सब कुछ समर्पित कर दिया l”
हम अब्राहम के दुःख की कल्पना नहीं कर सकते जब परमेश्वर ने उसे अपने बेटे इसहाक को समर्पित करने के लिए बुलाया l परमेश्वर की आज्ञा के मद्देनजर कि “वहां उसको . . . होमबलि करके [चढ़ाना],” (उत्पत्ति 22:2) हम अपने आप से पूछते हैं कि परमेश्वर हमें किस बहुमूल्य वस्तु को बलिदान करने के लिए बुला रहा है l हम जानते हैं कि उसने अंततः इसहाक को बचा लिया (पद.12), और फिर भी बात स्पष्ट है : अब्राहम उस चीज़ के समर्पण हेतु तैयार था जो उसके लिए सबसे कीमती थी l उसने सबसे कठिन बुलाहट के बीच भी परमेश्वर पर भरोसा किया l
हम कहते हैं कि हम ईश्वर से प्रेम करते हैं, लेकिन क्या हम अपनी सबसे प्रिय चीज़ का त्याग करने को तैयार हैं? जडसन वैन डीवेंटर ने सुसमाचार प्रचार में परमेश्वर के आह्वान का पालन किया और प्रिय गीत “सब मैं देता हूँ(I Surrender All)” लिखा l समय के साथ, परमेश्वर ने जडसन को शिक्षण में वापस बुलाया l उनका एक छात्र बिली ग्राहम भी था l
हमारे जीवन के लिए परमेश्वर की योजना में ऐसे उद्देश्य हैं जो हमारे लिए अकल्पनीय हैं l वह चाहता है कि हम अपनी सबसे प्रिय चीज़ समर्पित करने को तैयार रहें l ऐसा लगता है कि हम कम से कम इतना ही कर ही सकते हैं l आखिरकार, उसने हमारे लिए अपने एकलौते पुत्र को बलिदान दे दिया l
आत्म-सम्मान बढ़ाना
मैगी की युवा सहेली चौंकानेवाले ढंग से तैयार होकर चर्च में आई l हालाँकि किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए था; वह एक वैश्या थी l मैगी की आगंतुक बेचैनी से अपनी सीट पर बैठकर, बार-बार अपनी बहुत छोटी स्कर्ट को खींचती हुयी अपनी बाहों को सचेतावस्था में अपने चारों ओर मोड़ रही थी l
“ओह, क्या तुम्हें ठण्ड लग रही है?” मैगी ने चतुराई से इस बात से ध्यान हटाते हुए पूछा कि उसने कैसे कपड़े पहने हैं l “यह! मेरा शॉल ले लो l”
मैगी ने दर्जनों लोगों को चर्च में आने के लिए आमंत्रित करके और उन्हें सहज महसूस कराने में मदद करके यीशु से परिचित कराया l सुसमाचार उसके लुभावने तरीकों के द्वारा चमकता था l वह सभी के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करती थी l
जब धार्मिक अगुवों ने एक स्त्री को व्यभिचार के कठोर (और सटीक) आरोप के साथ यीशु के सामने घसीट लाए, तो मसीह ने उस पर तब तक ध्यान नहीं दिया जब तक कि उसने आरोप लगाने वालों को दूर नहीं किया l उन लोगों के जाने के बाद वह उसे डांट सकता था l इसके बजाय, उसने दो सरल प्रश्न पूछे : “वे कहाँ गए?” और “क्या किसी ने तुझ पर दंड की आज्ञा न दी?” (यूहन्ना 8:10) l निसंदेह, बाद वाले प्रश्न का उत्तर नहीं था l इसलिए यीशु ने उसे एक संक्षिप्त कथन में सुसमाचार दिया : “मैं भी तुझ पर दंड की आज्ञा नहीं देता l” और फिर निमंत्रण : “जा, और फिर पाप न करना” (पद.11) l
लोगों के प्रति वास्तविक प्रेम की सामर्थ्य को कम मन आंकिये—प्रेम का वह प्रकार जो निंदा करने से इंकार करता है, यहाँ तक कि यह हर किसी को गरिमा और क्षमा प्रदान करता है l
कृतज्ञता द्वारा पुनः जुड़ना
ब्रेन ट्यूमर होने के बाद, क्रिस्टीना कोस्टा ने देखा कि कैंसर का सामना करने के बारे में अधिकतर चर्चाओं में लड़ने की भाषा हावी है l उसने पाया कि यह रूपक जल्दी ही थका देने वाला लगने लगा l वह “अपने शरीर के साथ युद्ध में एक वर्ष से अधिक समय नहीं बिताना चाहती थी l” इसके बजाय, जो उसे सबसे अधिक सहायक लगी वह कृतज्ञता के दैनिक अभ्यास थे—उसकी देखभाल करने वाले पेशेवरों की टीम के लिए और उसके मस्तिष्क और शरीर के उपचार के तरीकों के लिए l उसने प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया कि चाहे संघर्ष कितना भी कठिन क्यों न हो, कृतज्ञता के अभ्यास हमें निराशा से लड़ने में मदद कर सकते हैं और “हमारे दिमाग को लचीला बनाने में मदद कर सकते हैं l”
कोस्टा की सशक्त कहानी ने याद दिलाया कि कृतज्ञता का अभ्यास केवल कुछ ऐसा नहीं है जो विश्वासी कर्तव्य मानकर करते हैं l हालाँकि यह सच है कि ईश्वर हमारी कृतज्ञता का पात्र है, यह हमारे लिए बहुत अच्छा भी है l जब हम अपने हृदय को ऊपर उठाकर कहते हैं, “हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह, और उसके किसी उपकार को न भूलना’ (भजन 103:2), हमें परमेश्वर के अनगिनत तरीकों की याद आती है—हमें क्षमा का आश्वासन देना, हमारे शरीर और हृदय का उपचार, हमें उसकी रचना में “प्रेम और करुणा” और अनगिनत “उत्तम पदार्थों” का अनुभव करने देना (पद.3-5) l
हालाँकि सभी पीड़ाएँ इस जीवनकाल में पूरी तरह से ठीक नहीं होंगी, हमारे हृदय हमेशा कृतज्ञता से तरोताज़ा हो सकते हैं, क्योंकि ईश्वर का प्रेम “युग-युग” तक . . . [है] (पद.17) l