दुर्बलताएँ(The Dwindles)
यह मेरे कंठ में एक सुरसुराहट की तरह शुरू हुआ l उह ओह, मैंने सोचा l वह सुरसुराहट इन्फ्लुएंजा निकला l और वह केवल श्वसनी पीड़ा (bronchial affliction) का आरम्भ था l इन्फ़्लुएन्ज़ा ने काली खांसी का रूप ले लिया──जी हाँ, वह काली खांसी──और वह निमोनिया में बदल गया l
आठ सप्ताह तक शरीर को नाश करनेवाली खांसी ने──इसे यूँ ही काली खांसी नहीं कहा जाता है──मुझे विनीत कर दिया l मैं खुद को वृद्ध नहीं मानता l लेकिन मैं उस दिशा में आगे बढ़ने के विषय सोचना आरम्भ करने के लिए पर्याप्त उम्र का हूँ l चर्च में मेरे छोटे समूह के एक सदस्य के पास उन स्वास्थ्य मामलों के लिए जो हमारे उम्र में बढ़ने के साथ आक्रमण करते हैं एक मजेदार नाम है : “दुर्बलता(The Dwindles) l” लेकिन इन दुर्बलताओं के “कार्य करने” के विषय कुछ भी हास्यमय नहीं है l
2 कुरिन्थियों 4 में, पौलुस ने भी──अपने तरीके से──“दुर्बलता” के बारे में लिखा l वह अध्याय उसके और उसके टीम के द्वारा सहे गए सताव का वर्णन करता है l अपने मिशन को पूरा करने में एक भारी कीमत चुकाना पड़ा था l हमारा “बाहरी मनुष्यत्व नष्ट होता” गया, उसने स्वीकार किया l लेकिन यद्यपि उसका शरीर विफल होता गया──उम्र, सताव, और कठोर स्थितियों के कारण──पौलुस थामने वाली अपनी आशा को मजबूती से पकड़ा रहा : “हमारा भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है” (पद.16) l उसने बल दिया, “हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश,” जो हमारे आगे है उसका मुकाबला नहीं कर सकता जो “हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और अनंत महिमा उत्पन्न करता जाता है” (पद.17) l
यहाँ तक कि जब मैं आज रात को लिख रहा हूँ, दुर्बलता मेरे सीने पर पंजा मारती है l लेकिन मैं जानता हूँ कि मेरे जीवन में और या किस और के जो मसीह से लिपटा रहता है, अंतिम निर्णय उनका नहीं है l
लिपट जाना
“डैडी, क्या आप मेरे लिए पढेंगे?” मेरी बेटी ने पूछा l किसी बच्चे के लिए माता-पिता से इस प्रकार का प्रश्न करना असामान्य नहीं है l लेकिन मेरी बेटी अब ग्यारह वर्ष की है l इन दिनों, इस तरह के अनुरोध उस समय से कम होते हैं जब वह छोटी थी l “हाँ,” मैंने खुशी से कहा, और वह सोफे पर मेरे बगल में सिमट कर बैठ गयी l
जब मैं उसके लिए पढ़ रहा था, वह मानो मुझ से लिपट गयी l माता-पिता के रूप में वह उन शानदार क्षणों में से एक था, जब हम शायद हमारे लिए हमारे पिता के सिद्ध प्यार को महसूस करते है और हमारे लिए उसकी गहरी इच्छा कि हम उसकी उपस्थिति और हमारे लिए उसके प्रेम में “समा जाएँ l”
मुझे उस पल एहसास हुआ कि मैं बहुत हद तक अपने ग्यारह साल के बच्चे की तरह हूँ l अधिकांश समय, मैं स्वतंत्र होने पर ध्यान केंद्रित करता हूँ l हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम के स्पर्श से दूर होना कितना सरल है, एक कोमल और सुरक्षात्मक प्रेम जिसका वर्णन भजन 116 “अनुग्रहकारी और धर्मी . . . दया करनेवाला” के रूप में करता है (पद.5) l यह एक प्यार है जहां, मेरी बेटी की तरह, मैं परमेश्वर की गोद में सिमट सकता हूँ, घर पर मेरे लिए उसकी खुशी में l
भजन 116:7 बताता है कि हमें नियमित रूप से अपने आप को परमेश्वर के अच्छे प्रेम की याद दिलाना पड़ सकता है, और फिर प्रतीक्षा कर रही उसकी बाहों में सिमट जाना : “हे मेरे प्राण, तू अपने विश्रामस्थान में लौट आ; क्योंकि यहोवा ने तेरा उपकार किया है l” और वास्तव में, उसने किया है l
भय का तूफ़ान
हाल ही में मैंने एक टीवी विज्ञापन में देखा, एक महिला यूँ ही टीवी देखने वाले समूह में किसी से पूछती है, “मार्क, आप क्या खोज रहे हैं?” “खुद का एक संस्करण जो भय के आधार पर निर्णय नहीं लेता है,” वह सादगी से उत्तर देता है - यह एहसास नहीं करते हुए कि वह सिर्फ यह पूछ रही थी कि उसे टीवी पर क्या देखना पसंद है!
ठहरो, मैंने सोचा l मैं यह आशा नहीं कर रहा था कि एक टीवी विज्ञापन मुझपर इतनी गहराई से प्रहार करेगा! लेकिन मैं बेचारे मार्क से संबंधित था : कभी-कभी मैं भी उस तरह से शर्मिंदा महसूस करता हूँ जिस तरह कभी-कभी प्रतीत होता है कि डर मेरे जीवन को चला रहा है l
यीशु के शिष्यों ने भी डर की अथाह शक्ति का अनुभव किया l एक बार, जब वे गलील की झील के पार जा रहे थे (मरकुस 4:35), “तब बड़ी आँधी” आयी (पद.37) l डर ने उन्हें जकड़ लिया, और उन्होंने सुझाव दिया कि यीशु (जो सो रहा था!) शायद उनकी परवाह नहीं करेगा : “हे गुरु, क्या तुझे चिंता नहीं कि हम नष्ट हुए जाते हैं?” (पद.38) l
डर ने शिष्यों की दृष्टि को विकृत कर दिया, जिसके कारण वे उनके लिए यीशु के अच्छे इरादों को देखने में असमर्थ हो गए l आंधी और लहरों को डांटने के बाद (पद.39), मसीह ने दो तीखे प्रश्नों के साथ चेलों का सामना किया : “तुम क्यों डरते हो? क्या तुम्हें अब तक विश्वास नहीं?” (पद.40) l
तूफान हमारे जीवनों में भी उठते हैं, क्या ऐसा नहीं है? लेकिन यीशु के सवाल हमें अपने डर को परिप्रेक्ष्य में रखने में मदद कर सकते हैं l उनका पहला सवाल हमें अपने डर को नाम देने के लिए आमंत्रित करता है l दूसरा हमें उन विकृत भावनाओं को उसे सौंपने के लिए आमंत्रित करता है – उससे देखने वाली आँखें मांगता है कि वह जीवन के सबसे उग्र तूफानों में भी हमारा मार्गदर्शन कैसे करता है l
फलने-फूलने के लिए छाँटा गया
जब मैंने एक भौंरा को फूलों की झाड़ी पर हल्के से बैठते देखा, मैंने झाड़ी की हरी-भरी शाखाओं को रंगों से विस्फोटित होते देख अचम्भा किया l इसके चमकदार नीले रंग के फूल मेरी आंखों को तथा मधुमक्खियों को समान रूप से आकर्षित कर रहा था l यद्यपि पिछले शरद ऋतू में, मैं सोच रहा था कि क्या वे फिर से कभी खिलेंगे l जब मेरी पत्नी के माता-पिता ने पेरिवंकल पौधे (periwinkle plant) को ठूंठ तक छाँट दिया, तो मैंने सोचा कि उन्होंने इससे छुटकारा पाने का फैसला किया है l लेकिन अब मैं छांटने जो मुझे क्रूर लगा था के उज्ज्वल परिणाम को देख रहा था l
कठोरता से काटने का एक परिणाम आश्चर्यजनक सुन्दरता का एक कारण हो सकता है कि यीशु ने विश्वासियों के मध्य परमेश्वर के कार्य को समझाने के लिए छांटने की छवि का उपयोग करने का चुनाव किया l यूहन्ना 15 में, वह कहता है, “सच्ची दाखलता मैं हूँ, और मेरा पिता किसान है l जो डाली मुझ में है और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है . . . ताकि और फले” (पद.1-2) l
यीशु के शब्द हमें याद दिलाते हैं कि अच्छे और बुरे समय में, परमेश्वर हमेशा आध्यात्मिक नवीकरण और फलप्रदता की ओर काम करता जाता है (पद.5) l दुख या भावनात्मक बंजरता की “छंटाई” के मौसम के दौरान, हम सोच सकते हैं कि क्या हम फिर कभी पनपेंगे l लेकिन मसीह हमें उसके निकट रहना जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करता है : “जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते” (पद.4) l
जैसा कि हम लगातार यीशु से आध्यात्मिक पोषण प्राप्त करते हैं, परिणामस्वरूप हमारे जीवन में सुंदरता और परिपूर्णता (पद. 8) परमेश्वर की भलाई दिखेगा l
यीशु की गति से चलना
हाल ही में, मेरी कार में कुछ काम होना था l मेरे घर से करीब एक मील दूर मैकेनिक की दुकान थी । इसलिए मैंने पैदल ही घर जाने का फैसला किया । लेकिन जैसे ही मैं एक हलचल वाले सार्वजनिक मार्ग से होकर जाना चाहा, मैंने कुछ देखा : अन्य हर कोई इतनी तेजी से आगे बढ़ रहा था ।
यह रॉकेट विज्ञान नहीं है । पैदल चलने वालों की तुलना में कारें तेजी से आगे बढ़ती हैं । ज़िप, ज़िप, ज़िप! जब मैं धीमी गति से घर जा रहा था, मैंने कुछ अहसास किया : हम इतनी तेजी से आगे बढ़ने के आदी हैं l पूरे समय । फिर, एक और अहसास : मैं अक्सर ईश्वर से अपेक्षा करता हूं कि वह भी उतनी ही गति से काम करे l मैं चाहता हूं कि उसकी योजनाएं मेरे शीघ्र समय-सारिणी के अनुरूप हों ।
जब यीशु पृथ्वी पर था, तब उसकी कदाचित मंद गति कभी-कभी उसके मित्रों को निराश करती थी । यूहन्ना 11 में, मरियम और मार्था ने कहला भेजा कि उनका भाई, लाजर बीमार था । वे जानते थे कि यीशु मदद कर सकता था (पद.1-3) । लेकिन लाजर की मृत्यु के बाद, वह चार दिन बाद पहुँचा (पद.17) l मार्था ने यीशु से कहा, “हे प्रभु, यदि तू यहाँ होता, तो मेरा भाई कदापि न मरता (पद.21) l अनुवाद : यीशु तेजी से आगे नहीं बढ़ा l लेकिन उसकी योजना और बड़ी थी : लाजर को मृत्यु से जिलाना (पद.38-44) l
क्या आप मार्था की हताशा से जुड़ सकते हैं? मैं जुड़ सकता हूँ l कभी-कभी, मैं चाहता हूँ कि यीशु प्रार्थना का जवाब देने के लिए अधिक तेज़ी से आगे बढ़े l कभी-कभी, ऐसा लगता है कि वह विलंबित है l लेकिन यीशु का संप्रभु कार्यक्रम हमारे से अलग है । वह बचाने का अपना कार्य अपनी समय सारिणी पर करता है, हमारी नहीं । और अंतिम परिणाम उसकी महिमा और अच्छाई को उन तरीकों से प्रदर्शित करता है जो हमारी योजनाओं से बहुत महान हैं l
टर्की पक्षी द्वारा सिखाया गया
क्या आप जानते हैं कि टर्की पक्षी के समूह को क्या कहा जाता है? इसे शहतीर(rafter) कहा जाता है । मैं टर्की पक्षी के बारे में क्यों लिख रहा हूं? क्योंकि मैं अभी एक पहाड़ी कुटिया/केबिन में सप्ताहांत बिताकर लौटा हूँ । हर दिन, मैं अपने पोर्च/बरामदा के पीछे टर्की पक्षी की पंक्ति को परिक्रमा करते हुए देखकर अचंभित हुआ l
मैंने पहले कभी टर्की पक्षी को ध्यान से नहीं देखा था l उन्होंने असाधारण चंगुल से धरती को उग्रतापूर्वक खुरचा l फिर उन्होंने भोजन की खोज कर धरती पर चुगना शुरू किया l मुझे लगा जैसे वे कुछ चुग रहे थे l (चूँकि यह मेरा पहला टर्की पक्षी-अवलोकन का समय था, इसलिए मैं 100 प्रतिशत सकारात्मक नहीं था ।) इस क्षेत्र में रगड़/खुरचने के सूखे निशान इस तरह से नहीं दिखते थे कि वहां कुछ हो l फिर भी यहाँ ये एक दर्जन टर्की पक्षी थे, जो बहुत आकर्षक और मोटे दिखाई दे रहे थे l
उन तंदुरुस्त टर्की पक्षियों को देखकर मैंने मत्ती 6:26 में यीशु के शब्दों को याद किया : “आकाश के पक्षियों को देखो! वे न बोते हैं, न काटते हैं, और खत्तों में बटोरते हैं; फिर भी तुम्हारा स्वर्गीय पिता उनको खिलाता है l क्या तुम उनसे अधिक मूल्य नहीं रखते?” यीशु प्रगट रूप से मूल्यहीन पक्षियों के लिए परमेश्वर के प्रबंध का उपयोग याद करते हुए हमारे लिए उसकी देखभाल की ताकीद देता है l अगर एक पक्षी का जीवन मायने रखता है, तो हमारा कितना अधिक है? इसके बाद यीशु हमारी दैनिक जरूरतों (पद.27-31) के विषय चिंता नहीं करने के जीवन के विषय तुलना करता है, जिसमें हम "पहले . . . परमेश्वर के राज्य और उसके धर्म की खोज [करते हैं]” (पद.33), जिसमें हम अपनी जरूरतों के लिए उसके समृद्ध प्रावधान के प्रति आश्वस्त हैं l क्योंकि अगर परमेश्वर जंगली टर्की पक्षियों के बेड़े की चिंता करता है, तो निश्चय ही वह आपकी और मेरी देखभाल करेगा l
गानेवाले का हृदय
शनिवार सुबह 6:33 बजे स्तुति गीत निचली मंजिल की ओर प्रवाहित हुआ । मैं नहीं सोचता हूँ कि कोई और जाग रहा था, लेकिन मेरी सबसे छोटी बेटी की कर्कश आवाज ने मुझे गलत साबित कर दिया । वह मुश्किल से होश में थी, लेकिन उसके होठों पर पहले से ही एक गीत था ।
मेरी सबसे छोटी बेटी एक गायक है । वास्तव में, वह गा नहीं सकती है । जब वह जागती है तो वह गाती है । जब वह स्कूल जाती है । जब वह बिस्तर पर जाती है । वह अपने दिल में एक गीत के साथ पैदा हुई थी - और ज्यादातर समय, उसके गाने यीशु पर केंद्रित होते हैं । वह कहीं भी, कभी भी परमेश्वर की स्तुति करती है l
मुझे अपनी बेटी की आवाज की सादगी, भक्ति और ईमानदारी पसंद है । उसका सहज और हर्षित गीत पूरी बाइबल में पायी जाने वाली परमेश्वर की स्तुति के लिए गूंजता है । भजन 95 में, हम पढ़ते हैं, “आओ हम यहोवा के लिये ऊंचे स्वर से गाएँ, अपने उद्धार की चट्टान का जयजयकार करें” (पद.1) l आगे पढ़ते हुए, हम सीखते हैं कि यह प्रशंसा इस बात की समझ से प्रवाहित होती है कि वह कौन है (क्योंकि यहोवा महान् ईश्वर है, और सब देवताओं के ऊपर महान् राजा है,” पद.3) – और हम जिसके हैं (क्योंकि वही हमारा परमेश्वर है, और हम उसकी चराई की प्रजा . . . हैं,” पद.7) l
मेरी बेटी के लिए, वे सच्चाइयाँ सुबह में उसका पहला विचार है l परमेश्वर की कृपा से, यह छोटी सी उपासक हमें उसके लिए गाने के आनंद का गहरा स्मरण कराती है l
मुसीबत के साथ शांति स्थापित करना
जब मैंने इस पर ध्यान दिया तो हम लगभग घर पहुँच चुके थे : हमारी कार के तापमान गेज की सुई तेजी से ऊपर की ओर भाग रही थी । जैसे ही हम अंदर आए, मैंने इंजन बंद करके कार से बाहर निकल गया । गाड़ी से धूएँ का गुब्बार निकल रहा था l इंजन एक तले हुए अंडे की तरह कड़कड़ाने लगा l मैंने कार को कुछ फीट पीछे किया और नीचे मुझे एक पोखर मिला : तेल । तुरंत, मुझे पता चल गया कि क्या हुआ था : अग्रभाग का गैसकेट(gasket) टूट गया था ।
मैं कराह उठा । हमनें हाल ही में दूसरे महँगे मरम्मतों में पैसे लगाए थे l चीजें काम क्यों नहीं करती? मैं ज़ोर से बड़बड़ाने लगा l चीजें टूटना बंद क्यों नहीं होती?
क्या आप सम्बद्ध(relate) कर सकते हैं? कभी-कभी हम एक संकट को टालते हैं, एक समस्या को हल करते हैं, एक बड़े बिल का भुगतान करते हैं, केवल दूसरे का सामना करने के लिए । कभी-कभी वे परेशानियाँ एक आत्म-विनाशकारी इंजन से बहुत बड़ी होती हैं : एक अप्रत्याशित निदान, एक असामयिक मृत्यु, एक भयानक नुकसान ।
उन क्षणों में, हम एक ऐसी दुनिया के लिए तरसते हैं जो कम टूटी, कम परेशानी से भरी है । यीशु ने जिस संसार का वादा किया था वह आनेवाला है । लेकिन अभी नहीं : "संसार में तुम्हें क्लेश होता है,” उसने यूहन्ना 16 में शिष्यों को याद दिलाया l “परन्तु ढाढ़स बाँधो, मैं ने संसार को जीत लिया है” (पद.33) । यीशु ने उस अध्याय में गंभीर मुसीबतों के बारे में बात की, जैसे कि आपके विश्वास के लिए सताव । लेकिन इस तरह की परेशानी, उन्होंने सिखाया, उनके लिए अंतिम शब्द कभी नहीं होगा जो उसमें आशा करते हैं ।
छोटी और बड़ी परेशानियाँ हमें दबा सकती हैं l लेकिन उसके साथ बेहतर कल का यीशु का वादा हमें प्रोत्साहित करता है कि हम अपनी परेशानियों को आज अपने जीवन को परिभाषित न करने दें l
आत्मिक ड्राइविंग(चालन)
जब हम अपने ड्राइविंग स्कूल के प्रशिक्षक से ड्राइव करना सीख रहे थे, तो प्रशिक्षक हमेशा कहा करते थे कि हम सड़क को बारीकी से देखें, खतरों की पहचान करें, यह अनुमान लगाने के लिए कि खतरे क्या हो सकते हैं, तय करें कि हम कैसे प्रतिक्रिया करेंगे, और फिर, यदि आवश्यक हो, तो उस योजना को निष्पादित करें l यह दुर्घटनाओं से बचने के लिए जानबूझकर की जाने वाली रणनीति थी l
मैं सोचता हूँ कि यह विचार हमारे आध्यात्मिक जीवन में कैसे स्थानांतरित हो सकता है l इफिसियों 5 में, पौलुस ने इफिसियों के विश्वासियों से कहा, ध्यान से देखो, कि कैसी चाल चलते हो : निर्बुद्धियों के समान नहीं पर बुद्धिमान के समान चलो” (पद.15) l पौलुस जानता था कि कुछ ख़तरनाक बाधाएँ इफिसियों को पटरी से उतार दे सकते थे - यीशु में उनके नए जीवन के साथ जीवन के पुराने तरीकों का संघर्ष (पद.8, 10-11) l इसलिए उसने उन्नति कर रही कलीसिया को ध्यान देने का निर्देश दिया l
अनुवादित शब्द “ध्यान से देखो, कि कैसी चलते हो” का शाब्दिक अर्थ है “देखें कि आप कैसे चलते हैं l” दूसरे शब्दों में, चारों ओर देखो l खतरों पर ध्यान दें, और मतवालापन और निरंकुश जीवन (पद.18) जैसे व्यक्तिगत खतरों से बचें l इसके बजाय, प्रेरित ने कहा, हम अपने जीवन के लिए परमेश्वर की इच्छा को खोज सकते हैं (पद.17), जबकि, साथी विश्वासियों के साथ, हम गाते हैं और उसे(परमेश्वर को) धन्यवाद देते हैं पद.19-20) l
कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम किस खतरे का सामना करते हैं - और यहां तक कि जब हम ठोकर खाते हैं - हम मसीह में अपने नए जीवन का अनुभव कर सकते हैं जब हम उसकी असीम सामर्थ्य और अनुग्रह पर निर्भरता में उन्नति करते हैं l