भेष बदले हुए यीशु
मेरी एक सहेली अपने लाचार सास की देखभाल करते समय, उससे पूछी कि उसकी सबसे बड़ी इच्छा क्या है l उसकी सास बोली, “मेरे पैर धो दो l” मेरी सहेली ने स्वीकारा कि इस काम से वह बहुत घृणा करती थी! उनका मुझे यह काम बताने पर मैं नाराज़ होकर परमेश्वर से बोली कि मेरी भावनाएं उनसे छिपा दें l
किन्तु एक दिन अचानक उसका कुड़कुड़ानेवाला आचरण बदल गया l जैसे ही उसने चिलमची, और तौलिया लेकर अपनी सास के पाँव धोने के लिए झुकी, उसने कहा, “मैंने ऊपर देखा, और एक क्षण मैंने महसूस किया कि मैं स्वयं यीशु के पाँव धो रही हूँ l वह यीशु के वेश में थी!” उसके बाद, उसने अपनी सास के पाँव धोने में सम्मान अनुभव किया l
इस दिल को छूनेवाली घटना के विषय सुनकर, मैंने अंत समय के विषय यीशु की कहानी के विषय विचार की जो उसने जैतून के पहाड़ के ढलान पर बतायी थी l राजा यह कहकर अपने राज्य में अपने पुत्र और पुत्रियों का स्वागत करता है, कि जब उन्होंने बीमारों से मुलाकात की और भूखों को भोजन खिलाया, “तुमने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया” (मत्ती 25:40) l हम भी यीशु ही की सेवा करते हैं जब हम बंदियों से बंदीगृह में मुलाकात करते हैं और ज़रुरतमंदों को वस्त्र पहनाते हैं l
आज, आप भी मेरी सहेली के साथ कहेंगे, जो किसी भी नए व्यक्ति से मिलकर विचार करती है, “क्या आप भेष बदले हुए यीशु तो नहीं?”
अच्छा चरवाहा
मैं चिंतित होकर अपने पति के साथ हॉस्पिटल के कमरे में बैठी थी l मेरे छोटे बेटे की आंख की दोषनिवारक शल्यचिकित्सा हो रही थी और मैंने घबराहट और चिंता में अपने पेट में झटके महसूस किये l मैंने परमेश्वर की शांति के लिए प्रार्थना करने की कोशिश की l बाइबिल खोलकर मैंने परिचित परिच्छेद यशायाह 40 खोलकर अपने लिए कुछ नया खोजना चाही l
पढ़ते समय, मैं ठहर गयी, क्योंकि उन प्राचीन शब्दों ने मुझे याद दिलाया कि प्रभु “चरवाहे के समान अपने झुण्ड को [चरते हुए] “भेड़ों के बच्चों को अँकवार में लिए रहेगा” (पद.11) l उस क्षण मेरी चिंता चली गयी और मैंने प्रभु को हमें संभालते हुए, अगुवाई करते हुए, और देखभाल करते हुए महसूस किया l प्रभु, मुझे इसकी ही ज़रूरत थी, मैंने धीमे से प्रार्थना की l मैंने खुद को शल्यचिकित्सा के दौरान और उसके बाद(जो सफल रही) परमेश्वर की शांति से घिरी हुई पायी l
परमेश्वर ने नबी यशायाह के द्वारा अपने लोगों का उनके दैनिक जीवन में सुख देनेवाला चरवाहा बनने की प्रतिज्ञा की l हम भी उसको अपनी चिंता बताकर और उसके प्रेम और शांति को खोजकर उसके कोमल देखभाल का अनुभव कर सकते हैं l हम जानते हैं कि वह हमें अपने हृदय के निकट रखकर हमें अपने अँकवार में उठानेवाला हमारा अच्छा चरवाहा है l
हमारे ऊपर मंडराना
बेट्टी की बेटी विदेश दौरे से अस्वस्थ्य होकर घर लौटी l दर्द असहनीय होने पर बेट्टी और उसके पति उसे हॉस्पिटल के एमरजेंसी कमरे में ले गए l डॉक्टर्स और नर्सेज उसका इलाज करने लगे, फिर कुछ घंटे बाद एक नर्स ने बेट्टी से बोली, “वह ठीक हो जाएगी! हम उसकी अच्छी देखभाल करेंगे और वह स्वस्थ्य हो जाएगी l” उस क्षण बेट्टी ने शांति और प्रेम महसूस किया l उसने जाना कि जब वह अपनी बेटी के विषय चिंतित थी, प्रभु अपने बच्चों की देखरेख करनेवाला, कठिन समय में शांति देनेवाला सिद्ध पालक है l
व्यवस्थाविवरण की पुस्तक में, प्रभु ने अपने लोगों को याद दिलाया कि मरुभूमि में फिरते समय उसने पालक की तरह अपने बच्चों को संभालता रहा l उसने उनको नहीं छोड़ा, किन्तु उकाब की तरह, जो “अपने बच्चों के ऊपर ऊपर मंडलाता है, वैसे ही अपने पंख फैलाकर उनको अपने परों पर उठा लिया” (32:11) l वह चाहता था कि वे याद रखें कि उनके मरुभूमि में कठिनाई और संघर्ष के बावजूद, उसने उनको नहीं छोड़ा l
हम भी अनेक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद इस बात से ढाढ़स प्राप्त कर सकते हैं कि हमारा परमेश्वर हमें नहीं छोड़ेगा l जब हम पराजय महसूस करें, प्रभु एक उकाब की तरह अपने पंख फैलाकर हमें उठा लेगा (पद.11) जब वह शांति लेकर आएगा l
तम्बुओं में निवास
अनेक सुन्दर झीलों के लिए प्रसिद्ध, मिनेसोटा में जहां मेरा पालन पोषण हुआ, मैं परमेश्वर की रचना की अद्भुत बातों का आनंद लेने हेतु कैम्पिंग करती थी l किन्तु पतले तम्बू में सोना मुझे नहीं पसंद है-जब रात्रि वर्षा और टपक्नेवाले तम्बू से स्लीपिंग बैग गीला हो जाए l
मैं सोचकर ताज्जुब करती हूँ कि हमारे विश्वास का एक शूरवीर तम्बूओं में सौ वर्ष बिताया l पचहत्तर वर्ष की उम्र में, परमेश्वर ने अब्राहम के द्वारा एक नए राष्ट्र का निर्माण करने के लिए उसे अपना देश छोड़ने को कहा (उत्पत्ति 12:1-2) l उसने प्रतिज्ञा पूरी करनेवाले परमेश्वर पर भरोसा करके उसकी आज्ञा मान ली l और अपने बाकी जीवन में, 175 वर्षों तक अर्थात् अपनी मृत्यु तक (25:7), अपने देश से दूर तम्बुओं में निवास किया l
हम अब्राहम की तरह शायद खानाबदोश का जीवन जीने के लिए नहीं बुलाये गए हों, किन्तु जब हम इस संसार से और उसमें के लोगों से प्रेम करते हैं और उनकी सेवा करते हैं, हमें घर की गहरी चाहत अर्थात् संसार में रहने की चाहत हो सकती है l अब्राहम की तरह, जब आंधी हमारे अस्थायी घर को हानि पहुंचाए, अथवा बारिश का पानी टपके, हम विश्वास से भावी नगर की आशा कर सकते हैं जिसका “बनानेवाला परमेश्वर है” (इब्रा. 11:10) l और अब्राहम की तरह, हम आशा कर सकते हैं कि परमेश्वर अपनी सृष्टि को नया कर रहा है, “एक उत्तम अर्थात [भावी]स्वर्गीय देश” तैयार कर रहा है (पद.16) l
पत्र लेखन
मेरी माँ और उनकी बहने शीघ्र लुप्त हो रही कला रूप - पत्र लेखन करती हैं l दोनों ही लगातार एक दूसरे को व्यक्तिगत पत्र लिखतीं हैं इस कारण पत्र नहीं होने पर डाकिया चिंतित होता है! उनके पत्र में जीवन, आनंद और दुःख के साथ-साथ मित्रों और परिवार में होनेवाली दैनिक घटनाएँ होती हैं l
मुझे अपने परिवार की इन महिलाओं के साप्ताहिक अभ्यास पर विचार करना पसंद है l इससे मैं प्रेरित पौलुस के शब्दों को कि यीशु के विश्वासी “मसीह की पत्री” हैं जो “स्याही से नहीं परन्तु जीवते परमेश्वर के आत्मा से ... लिखी है” की प्रशंसा कर पाता हूँ (2 कुरिं. 3:3) l उसके सन्देश को नहीं माननेवाले झूठे शिक्षकों के प्रतिउत्तर में (देखें 2 कुरिं. 11), पौलुस ने कुरिन्थुस की कलीसिया को उसके उपदेश के अनुसार सच्चे और जीवते परमेश्वर का अनुसरण करने हेतु उत्साहित किया l ऐसा करके, उसने यादगार ढंग से विश्वासियों को मसीह का पत्र कहा, जो किसी और लिखित पत्र की तुलना में पौलुस की सेवा द्वारा अपने बदले हुए जीवनों से पवित्र आत्मा के अधिक सामर्थी गवाह थे l
कितना अद्भुत है कि परमेश्वर का आत्मा हममें अनुग्रह और छुटकारे की कहानी लिखता है! हमारे जीवन लिखित अर्थपूर्ण शब्दों से अधिक सुसमाचार की सच्चाई का सबसे उत्तम साक्षी है, क्योंकि वे हमारी दयालुता, सेवा, धन्यवाद, और आनंद द्वारा अत्यधिक बोलते हैं l हमारे शब्द और कार्य द्वारा, प्रभु जीवनदायक प्रेम फैलता है l आज आप क्या सन्देश फैला रहे हैं?
साफ़ किया गया
जब मैंने बर्तन धोने की अपनी मशीन खोली, मैं उसकी खराबी के विषय सोचने लगी l साफ़ चमकदार बरतनों की जगह, मैंने उसमें से गन्दी थालियाँ और गिलास निकाले l मैं सोचने लगी कि कहीं मेरे इलाके का पानी या बर्तन धोने की मशीन तो खराब नहीं हो गयी है l
परमेश्वर का साफ़ करना, बर्तन धोने की उस ख़राब मशीन से भिन्न है l वह हमारे समस्त अशुद्धताओं को धो देता है l हम यहेजकेल की पुस्तक में पढ़ते हैं कि परमेश्वर अपने लोगों को वापस अपने पास बुलाता है जब यहेजकेल परमेश्वर के प्रेम और क्षमा का सन्देश सुनता है l इस्राएली दूसरे देवताओं और राष्ट्रों के प्रति निष्ठा जताकर परमेश्वर के विरुद्ध पापी ठहरे थे l हालाँकि, परमेश्वर ने करुणा दिखाकर उनको अपने पास बुलाया l उसने उनको उनकी “सारी अशुद्धता और मूरतों” (36:25) से शुद्ध करने की प्रतिज्ञा की l अपनी आत्मा उनमें डाल कर (पद.27), वह उनको अकाल में नहीं बल्कि फलदायक स्थान में ले जाने वाला था l (पद.30) l
यहेजकेल के दिनों की तरह, वर्तमान में भी जब हम भटक जाते हैं, प्रभु हमें अपने निकट बुलाता है l जब हम अपने को उसकी इच्छा और मार्ग के अधीन कर देते हैं, वह हमारे पापों को धोकर हमें बदल देता है l हमारे अन्दर अपने पवित्र आत्मा द्वारा निवास करते हुए प्रति दिन उसके पीछे चलने में मदद करता है l
कटनी के लिए तैयार
गर्मी बाद, हम इंगलैंड के न्यू फारेस्ट में घूमने गए और वहां पर जंगली बेर चुनने का आनंद लिया और पास ही घोड़ों को उछलते कूदते देखा l दूसरों के द्वारा वर्षों पहले लगाए गए पेड़ों के मीठे फलों का आनंद लेते हुए, मैंने यीशु द्वारा शिष्यों को कहे गए शब्दों को याद किये, “मैंने तुम्हें वह खेत काटने के लिए भेजा जिसमें तुमने परिश्रम नहीं किया” (यूहन्ना 4:38) l
मैं इन शब्दों में परमेश्वर के राज्य की उदारता पसंद करता हूँ l वह हमें दूसरों की मेहनत के फल का आनंद लेने देता है, जैसे जब हम किसी सहेली के साथ, जिसके परिवार को हम नहीं जानते हैं, और जो वर्षों से उसके लिए प्रार्थना कर रहा है, के साथ मसीह का प्रेम बांटते हैं l मुझे यीशु के शब्दों की सीमा भी पसंद है, कि हम बीज बोएँगे किन्तु हम नहीं कोई और कटनी काट सकेगा l इसलिए हम उस कार्य में भरोसा कर सकते हैं जो हमारे सामने है l हम इस सोच से धोखा नहीं खाएंगे कि हम परिणाम के लिए जिम्मेदार हैं l आखिरकार, परमेश्वर का कार्य हम पर निर्भर नहीं है l भरपूर कटनी के लिए उसके पास समस्त साधन है, और हम सौभाग्यशाली हैं कि हम भी उसमें भूमिका निभा सकते हैं l
मैं सोचता हूँ कि किस तरह के खेत आपके सामने और मेरे सामने कटनी के लिए तैयार हैं? हम यीशु के प्रेमी निर्देश का पालन करें : “अपनी आँखें उठाकर खेतों पर दृष्टि डालो कि वे कटनी के लिए पाक चुके हैं” (पद. 4:35) l
भय नहीं किन्तु विश्वास
मेरी एक सहेली ने मुझे बताया कि उसके पति को दूसरे देश में जाकर कार्य करने की तरक्की मिली, किन्तु इससे उसके मन में घर छोड़ने का भय उत्पन्न हो गया जिससे उसके पति ने नहीं चाहकर भी उस पेशकश को ठुकरा दिया l उसने समझाया कि इस बड़े बदलाव के समय उसके भय ने उसे इस नए अभियान को अपनाने से रोका, और वह कभी-कभी सोचती रही कि उसने उस अवसर को उन्होंने खो दिया था जिससे उन्नत्ति रुक गयी थी l
इस्राएलियों की चिंता ने उन्हें भरपूर और उपजाऊ देश में जाने से रोका जिसमें “दूध और शहद” (निर्ग. 33:3) की धाराएं बहती थीं l वे बड़े नगरों में शक्तिशाली लोगों के विषय सुनकर (पद.27), डरने लगे l अधिकतर लोगों ने प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने से इनकार किया l
किन्तु यहोशू और कालेब ने यह कहकर लोगों को परमेश्वर पर भरोसा करने को कहा, “न उस देश के लोगों से डरो, क्योंकि ... यहोवा हमारे संग है” (पद.9) l यद्यपि दुश्मन बहुत थे, वे भरोसा कर सकते थे कि परमेश्वर उनके साथ है l
मेरे सहेली को इस्राएलियों की तरह दूसरे देश में जाने की आज्ञा नहीं मिली थी, फिर भी उसके भय ने उसको उस सुअवसर को प्राप्त करने से रोक दिया l आपके साथ कैसा है, क्या आप भयभीत करनेवाली स्थिति का सामना कर रहे हैं? यदि हाँ, तो जानिये कि परमेश्वर आपके साथ है और आपका मार्गदर्शन करेगा l उसके अचूक प्रेम पर भरोसा करके, हम विश्वास से आगे बढ़ सकते हैं l
हर काम का निश्चित समय
हाल ही के विमान यात्रा में मैंने एक माँ और उसके बच्चों पर ध्यान दिया l नन्हे बच्चे के शांति से खेलते समय, माँ अपने नवजात शिशु की आँखों में निहारती और मुस्कराती हुई उसके गाल सहलाए l बच्चा भी अचरज से आँखें फाड़कर देखा l मैंने थोड़ी उत्कंठा से उस क्षण का आनंद लेकर अपने बच्चों के बीते हुए बचपन को याद किया l
हालाँकि, मैंने सभोपदेशक में “प्रत्येक काम का, जो आकाश के नीचे होता है” के विषय राजा सुलेमान के शब्द स्मरण किये (पद.1) l वह विपरीत शब्दों की श्रृंखला द्वारा संबोधित किया कि किस तरह “हर एक बात का एक अवसर” होता है (पद.1) : “जन्म का समय, और मरन का भी समय, बोने का समय; और बोए हुए को उखाड़ने का भी समय” (पद.2) l शायद इन पदों में राजा सुलेमान जीवन के व्यर्थ चक्र से निराश हुआ l किन्तु वह प्रत्येक ऋतू में परमेश्वर की भूमिका को भी देखा, कि हमारा कार्य “परमेश्वर का दान” है (पद.13) और “जो कुछ परमेश्वर करता है वह सदा स्थिर रहेगा” (पद.14) l
हम अपने जीवनों में समयों को लालसा से याद कर सकते हैं, जैसे मैंने अपने बच्चों को शिशुओं के रूप में याद किया l यद्यपि, हम जानते हैं, कि प्रभु हमारे साथ जीवन के हर ऋतू में रहेगा (यशा.41:10) l हम उसकी उपस्थिति पर भरोसा करके उसमें चलने का अपना उद्देश्य खोज सकते हैं l