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Articles by आर्थर जैक्सन

आंधी में उपस्थित

हमारे चर्च के छः लोगों के एक परिवार के घर में भयानक आग लग गयी l यद्यपि पिता और पुत्र बच गए, पिता अभी भी अस्पताल में भर्ती थे जबकि उसकी पत्नी, माँ, और दो छोटे बच्चों की मृत्यु हो गयी l दुर्भाग्यवश, इस प्रकार की दिल दहला देनेवाली घटनाएं बार-बार होती रहती हैं l जब उनकी पुनरावृति होती है, उसी तरह वह पुराना प्रश्न भी है : अच्छे लोगों के साथ बुरी बातें क्यों होती हैं? और यह हमें चकित नहीं करता कि इस पुराने प्रश्न के नए उत्तर नहीं हैं l

फिर भी भजन 46 में भजनकार द्वारा बताया गया सच दोहराया गया है और उसका अभ्यास किया गया  है और बार-बार अपनाया गया है l “परमेश्वर हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलनेवाला सहायक” (पद.1) l पद. 2-3 में वर्णित स्थिति विनाशकारी है – पृथ्वी और पहाड़ का समुद्र में डाल दिया जाना और समुद्र का गर्जना l जब हम आंधी में घिरे होने की कल्पना करते हैं हम भयभीत होते हैं जिसका वर्णन यहाँ पर काव्यात्मक रूप से किया गया है l किन्तु कभी-कभी हम ज़रूर अपने को वहाँ पाते हैं – लाइलाज बीमारी की बढ़ती पीड़ा में, विनाशकारी आर्थिक संकट के द्वारा उछाले जाने में,  प्रिय लोगों की मृत्यु द्वारा आहत और निस्तब्ध l

परेशानियों की उपस्थिति का अर्थ परमेश्वर की अनुपस्थितीत है पर तर्क संगत व्याख्या करना प्रलोभक है l परन्तु वचन का सच ऐसे विचारों का विरोध करता है l “सेनाओं का यहोवा हमारे संग है; याकूब का परमेश्वर हमारा ऊंचा गढ़ है” (पद.7,11) l जब हमारी स्थितियां बर्दाश्त करने से बाहर होती है वह उपस्थित होता है, और हम उसके चरित्र में आराम पाते हैं : वह अच्छा, प्रेमी और विश्वासयोग्य है l

बेड़ियों में कैद किन्तु ख़ामोश नहीं

1963 की गर्मियों में, पूरी रात चलनेवाली बस यात्रा के बाद, नागरिक अधिकार सक्रिय प्रतिभागी(civil rights activist) फैनी लू हैमर और छह काले रंग वाले यात्रियों ने विनोना, मिसीसिपी में एक ढाबे पर भोजन करने के लिए रुके l कानून प्रवर्तन अधिकारियों(law enforcement officers) द्वारा उनको वहां से चले जाने हेतु विवश करने के बाद, उनको गिरफ्तार करके जेल भेज…

परमेश्वर के अद्भुत हाथ

न्यू यॉर्क से सैन अंटोनियो के विमान पर सवार हुए केवल बीस मिनट हुए थे, विमान का रूप बदल गया जब शांति के स्थान पर कोलाहल मच गया l जब विमान का एक इंजन ख़राब हो गया, इंजन का मलबा विमान की एक खिड़की को तोड़कर भीतर आ गया जिससे केबिन का दबाव घट गया l दुर्भाग्यवश, कई यात्री घायल…

पुनःस्थापित उर्जा की ताक़त

मैं चौवन वर्ष की आयु में दो लक्ष्यों – दौड़ पूरी करने और पाँच घंटो के भीतर पूरी करने - के साथ मिलवॉकी मेराथन(लम्बी दौड़) में भाग लिया l मेरा समय आश्चर्यचकित करनेवाला होता यदि 13.1 मील वाला दूसरा भाग पहले वाले की तरह अच्छा गया होता l परन्तु दौड़ थकाऊ थी, और पुनःस्थापित उर्जा जिसकी मैं आशा करता था कभी नहीं लौटी l जब तक मैं समापन रेखा तक पहुँचता, मेरे लम्बे कदम पीड़ाकर चाल में बदल गए थे l

दौड़ के मुकाबले ही केवल ऐसी चीज़ नहीं, जीवन की दौड़ को भी पुनःस्थापित उर्जा की ज़रूरत होती है l सहन करने के लिए, थके लोगों को परमेश्वर की सहायता की ज़रूरत होती है l यशायाह 40:27-31 खूबसूरती से काव्य और नबूवत को जोड़कर आवश्यकतामंदों को लगातार चलते रहने के लिए आराम पहुँचाते हैं और प्रेरित करते हैं l शाश्वत शब्द थके और निराश लोगों को स्मरण कराते हैं कि प्रभु पृथक या परवाह नहीं करनेवाला नहीं है (पद.27), कि हमारी दशा उसके ध्यान से बचती नहीं है l ये शब्द आराम और आश्वासन लेकर आते हैं, और हमें परमेश्वर की असीम सामर्थ्य और अथाह ज्ञान याद दिलाते हैं (पद.28) l

पद 29-31 में वर्णित पुनःस्थापित ऊर्जा बिलकुल हमारे लिए है – चाहे हम अपने परिवार की देखभाल और उनके लिए प्रबंध करने की टीस में हैं, भौतिक अथवा आर्थिक बोझ के तले जीवन में संघर्ष कर रहे हैं, अथवा सम्बन्धात्मक तनावों  या आत्मिक चुनौतियों द्वारा निराश हैं l उनके लिए ऐसी ही यह सामर्थ्य है – पवित्र वचन पर चिंतन और प्रार्थना के द्वारा – प्रभु की बात जोहते रहें l

चमकदार ज्योतियाँ

2015 के ग्रीष्मकाल में हमारी कलीसिया से एक समूह उस बात से बहुत ही गम्भीर हो गया, जो उन्होंने मैथरी, नैरोबी, केन्या, की एक गन्दी बस्ती में देखा। हम कच्ची भूमी के फ़र्श, जंग लगी इस्पात की दीवारों और लकड़ी के बैंच वाले स्कूल में गए। परन्तु बहुत ही गरीब परिदृश्य की पृष्ठभूमी में एक व्यक्ति असाधारण था।  

उसका नाम ब्रिलियंट था, जो उसके लिए बिलकुल उपयुक्त था। वह एक प्राथमिक स्कूल की शिक्षिका थी, जो आनन्द और दृढ निश्चय से भरी हुई थी, जो उसके कार्य के लिए सटीक थे। रंग-बिरंगी पौशाक पहने हुए, उसकी दिखावट और आनन्द, जिसके साथ वह वच्चों को पढ़ाती थी, हक्का-बक्का कर देने वाला था। 

ब्रिलियंट अपने आस-पास के क्षेत्र में जो चमकदार ज्योति ले कर आई थी, वह उस रीति से मेल खाता है, जिस रीति से फिलिप्पी के मसीहियों को उनके जगत में रहने के लिए रखा गया था, जब प्रथम शताब्दी में पौलुस ने उनके लिए एक पत्री को लिखा था। आत्मिक जरूरत वाले जगत की पृष्ठभूमी के विपरीत, प्रभु यीशु में विश्वासियों को “जलते हुए दीपकों” के समान चमकना था (फिलिप्पियों 2:15)। हमारा कार्य बदला नहीं है। चमकदार ज्योतियों की हर जगह ज़रूरत है! यह जानना कितना उत्साहवर्धक है कि “अपनी सुइच्छा निमित्त तुम्हारे मन में इच्छा और काम, दोनों बातों के करने का प्रभाव डाला है” (पद 13), ताकि यीशु में विश्वासी उस रीति से चमक सकें, जिनके लिए यीशु का वह कथन मेल खाता है, जो उनके पीछे चलते हैं। वह हमें अभी भी यह कहता है तुम जगत की ज्योति हो. . . उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के सामने ऐसा चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में है, बड़ाई करें”   (मत्ती 5:14–16)।

मोम्मा द्वारा प्रभावित

उनका नाम लम्बा था परन्तु उनकी आयु और भी लम्बी थी। मेडलिन हैरियट ओर्र जैक्सन विलियम्स अपने दो पतियों से अधिक 101 वर्ष तक की आयु तक जीवित रही। उनके दोनों पति प्रचारक थे। मेडलिन मेरी दादी थीं और हम उन्हें मोम्मा के रूप में जानते थे। मेरे भाई-बहन और मैं उन्हें बहुत अच्छे से जानते थे; हम तब तक उनके घर पर ही रहे जब तक उनका दूसरा पति उन्हें हम से चुपके से दूर नहीं ले गया। फिर भी वह हम से पचास मील से कम की दूरी पर ही थीं। हमारी दादी भजन-गायक, धार्मिक मौलिक शिक्षा सुनाने वाली, पियानोवादक और परमेश्वर का भय मानने वाली महिला थीं और मेरे भाई-बहनों और मुझ पर उनके विश्वास का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। 

2 तीमुथियुस 1:3–7 के अनुसार तीमुथियुस की नानी लोइस और उसकी माता युनीके का उसके जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव था। उनके जीवन और शिक्षा की जड़ें पवित्रशास्त्र की मिट्टी की गहराई तक गईं हुई थी (पद  5; 2 तीमुथियुस 3:14–16)  और उनका विश्वास तीमुथियुस के हृदय में फल-फूल रहा था। पवित्रशास्त्र पर आधारित उसका पालन-पोषण न केवल परमेश्वर के साथ उसके सम्बन्ध के लिए बुनियादी था, परन्तु यह प्रभु की सेवा में भी उसकी उपयोगिता के लिए सुस्पष्ट था। (1:6–7)।

आज और इसके साथ-साथ तीमुथियुस के समय में (भी) परमेश्वर विश्वासयोग्य महिलाओं और पुरुषों को आने वाली पीढ़ियों को प्रभावित करने के लिए प्रयोग करता है। हमारी प्रार्थनाएँ, शब्द, कार्य और सेवा प्रभु के द्वारा सामर्थी रूप से प्रयोग किए जा सकते हैं, जब तक कि हम जीवित हैं या हमारे चले जाने के पश्चात। इसीलिए मेरे भाई-बहन और मैं उन बातों का पुनराभ्यास करते हैं जो हमें मोम्मा के द्वारा दी गई थीं। मेरी प्रार्थना यही है कि मोम्मा की मीरास हमारे साथ ही समाप्त न हो।

वह हमारे हाथ को थामे रहता है

चर्च में रविवार को जिस छोटी लड़की ने सीढ़ियों के लिए मार्ग निर्देशन किया, वह बहुत सुन्दर, साहसी और आत्मनिर्भर थी। एक के बाद एक बच्चे-जो दो वर्षों से बड़ा दिखाई दे रहा था-ने नीचे जाने के लिए कदम बढ़ाए। सीढ़ियों से नीचे जाना उसका मिशन था और उसने इसे पूरा किया। मैं मन ही मन मुस्कुराया जब मैंने इस निडर बच्ची की साहसी आत्मनिर्भरता पर ध्यान किया। बच्ची डरी हुई नहीं थी क्योंकि वह जानती थी कि उसकी देखभाल करने वाली माँ की निगरानी करने वाली आँखें और उसका प्रेम भरा हाथ उसकी सहायता के लिए फैला हुआ था। यह उपयुक्त रूप से प्रभु की उसके बच्चों की मुस्तैदी से सहायता करने की तस्वीर प्रस्तुत करता है, जब वे जीवन की भिन्न-भिन्न प्रकार की अनिश्चितताओं के साथ अपने मार्ग पर चलते हैं।

पवित्रशास्त्र के आज के पद में “दो तरफ़ा” सन्दर्भ हैं। अपने पुरातन लोगों को भयभीत या हतोत्साहित न होने की चेतावनी देने के बाद प्रभु ने उन्हें बताया, “अपने धर्ममय दाहिने हाथ से मैं तुझे सम्भाले रहूँगा।” (यशायाह 41:10)। अनेक चिन्तित और भयभीत बच्चे माता-पिता की सामर्थ के द्वारा सम्भाले गए हैं यहाँ परमेश्वर की सामर्थ देखने को मिलती है। दूसरी तरफ के सन्दर्भ में भी यह प्रभु ही है जो अपने लोगों की सुरक्षा को कायम रखने के लिए कार्य करता है। “मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा, तेरा दाहिना हाथ पकड़कर कहूँगा” (पद 13)। जबकि जीवन की परिस्थितियाँ और समय बदलते हैं, परन्तु प्रभु नहीं बदलता है। हमें डरने की आवश्यकता नहीं है (पद 10) क्योंकि प्रभु हमें अपनी प्रतिज्ञा और उन शब्दों के साथ आश्वासन देता है, जो हम हताशा के साथ सुनना चाहते हैं: “मत डर मैं तेरी सहायता करूँगा (पद 10,13) ।

लाइट्स ऑन करके जीवन जीना

एक कार्य के लिए मुझे और मेरे सहकर्मी को 250 किलोमीटर की यात्रा पर जाना पड़ा, और रात हो चुकी थी जब हम ने घर लौटने के लिए यात्रा आरम्भ की। बूढ़ा होता हुआ शरीर और बूढ़ी आँखें मुझे रात को गाड़ी चलाने में परेशान करती हैं; परन्तु फिर भी मैंने पहले गाड़ी चलाने को चुना। मेरे हाथों ने स्टियरिंग पकड़ लिया और मेरी आँखों ने धुंधली सड़कों को गौर से देखा। गाड़ी चलाते हुए मैंने पाया कि जब मेरे पीछे से आने वाले वाहन मेरे आगे सड़क पर रोशनी डालते थे, तब मैं और अच्छे से देख पाता था। मुझे आखिरकार बहुत आराम मिला, जब मेरे दोस्त ने चलाने के लिए गाड़ी मुझ से ले ली। तब उसे पता चला कि मैं तो बड़ी लाइट्स के साथ नहीं बल्कि छोटी लाइट्स जला कर गाड़ी चला रहा था!

भजन संहिता 119 ऐसे व्यक्ति की कुशल रचना है जो यह समझ गया कि परमेश्वर का वचन हमें प्रतिदिन जीने के लिए रोशनी प्रदान करता है (पद 105) । फिर भी, प्राय: कितनी बार हम अपने आप को मेरी तरह उस दिन हाईवे की रात जैसी असुखद स्थितियों में पाते हैं? हम देखने के लिए इतना जोर देते हैं जिसकी जरूरत नहीं है और कई बार हम सुखद मार्गों से भटक जाते हैं, क्योंकि हम परमेश्वर के वचन की रोशनी का प्रयोग करना भूल जाते हैं। भजन संहिता 119 हमें “बटन को ऑन” करने के बारे में इच्छित रहने के लिए प्रोत्साहित करता है। क्या होता है जब हम ऐसा करते हैं? हम पवित्रता के लिए बुद्धि प्राप्त करते हैं (पद 9-11); हम भटकने से बचने के लिए ताज़ा प्रेरणा और प्रोत्साहन प्राप्त करते हैं (101-102) । और जब हम लाइट्स ऑन करके जीवन जीते हैं, तो भजनकार की स्तुति हमारी स्तुति बन जाती है: “आहा! मैं तेरी व्यवस्था से कैसी प्रीति रखता हूँ! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है” (पद 97)।

प्रश्नों के साथ आराधना करना

यात्रियों के समूह में एक लम्बी (या छोटी) यात्रा पर जाते हुए किसी के द्वारा यह पूछना असामान्य नहीं है, “क्या हम पहुँच गए हैं?” किस ने बच्चों का बड़ों के ओंठो से आते हुए इन सार्वभौमिक प्रश्नों को नहीं सुना होगा, जो अपनी मंजिल पर पहुँचने के लिए उत्सुक हैं? परन्तु सभी आयु वर्ग के लोग यही प्रश्न पूछने की ओर प्रवृत होते हैं, जब वे जीवन की चुनौतियों से थक जाते हैं, जो कभी भी समाप्त होती प्रतीत नहीं होती। 

भजन संहिता 13 में ऐसी ही परिस्थिति दाऊद के साथ भी है। दो पदों में चार बार (पद 1-2) दाऊद-जिसे भुला दिए जाने, छोड दिए जाने और परास्त हो जाने का अहसास हुआ-दुखित होता है “कब तक?” पद दो में वह पूछता है, “मैं कब तक अपने मन ही मन में युक्तियाँ करता रहूँ?” भजन संहिता, जैसे यह भजन, जिनमें विलाप सम्मिलित है, हमें प्रत्यक्ष रूप से आराधना के रूप में अपने प्रश्नों के साथ प्रभु के पास आने की अनुमति देता है। आखिरकार, तनाव और दुःख के लम्बे समय में बात करने के लिए परमेश्वर से अच्छा और कौन हो सकता है? हम बीमारी, दुःख और परिजनों से दूर होने और सम्बन्धों में आई कठिनाइयों और अपने संघर्षों को उसके समक्ष ला सकते हैं। 

जब हमारे पास प्रश्न हों, तब भी आराधना रुकनी नहीं चाहिए। स्वर्ग का परमप्रधान परमेश्वर हमारा स्वागत करता है कि हम अपने चिंता-युक्त प्रश्नों को उसके पास लेकर आएँl और सम्भवतः, समय के दौरान हमारे प्रश्न विनतियों और प्रभु के लिए हमारे भरोसे और स्तवन के भावों में बदल जाएँ (पद 3-6)।