ऐसे जीएँ जैसे सुबह है
जब मुझे हवाई मार्ग से समय क्षेत्रों(time zones) में यात्रा करनी होती है, तो मैं थकान(jet lag) से बचने के लिए विभिन्न उपायों की कोशिश करता हूँ l मेरी समझ से मैं सभी उपाए कर चुका हूँ l एक अवसर पर, मैंने अपनी उड़ान के अन्दर(in-flight) खाने को उस समय क्षेत्र में समायोजित करने का निर्णय लिया, जहां मैं जा रहा था l बाकी यात्रियों के साथ रात का खाना खाने के बजाय, मैं एक फिल्म देखता रहा और सो गया l चयनात्मक उपवास के घंटे कठिन थे, और नाश्ता जो विमान के उतरने के ठीक पहले आया, बहुत कुछ छोड़ गया जिनकी इच्छा होती है l लेकिन अपने आस पास के लोगों के साथ “चिड़ाचिड़ा” होना काम कर गया l इसने मेरे शरीर की घड़ी को एक नए समय क्षेत्र में धक्का दे दिया l
पौलुस जानता था कि यदि यीशु में विश्वासियों को वास्तव में अपने जीवन में उसे प्रतिबिंबित करना है, तो उन्हें अपने आस पास की दुनिया के साथ कदम न मिलाकर चलना होगा l वे “पहले अंधकार थे” लेकिन अब उम्हें “ज्योति की संतान के समान” जीने की ज़रूरत है (इफिसियों 5:8) l और वह कैसा दिखाई दे सकता है? पौलुस चित्र को पूरा करने के लिए आगे बढ़ता है : “ज्योति का फल सब प्रकार की भलाई, और धार्मिकता, और सत्य है” (पद.9) l
मेरी उड़ान पर रात के खाने के समय सो जाना लोगों को मूर्खतापूर्ण लगा होगा, लेकिन जब संसार में आधी रात हैं, विश्वासियों के रूप में, हम इस प्रकार जीने के लिए बुलाए गए हैं मानो सुबह है l यह तिरस्कार और विरोध को उकसाने वाला हो सकता है, लेकिन यीशु में हम “प्रेम में [चल सकते हैं],” उस व्यक्ति के उदाहरण का अनुसरण करते हुए जो हमसे “प्रेम [करता है], और हमारे लिए अपने आप को सुखदायक सुगंध के लिए परमेश्वर के आगे भेंट करके बलिदान कर दिया (पद.2) l
मसीह में मित्र
द हार्वर्ड स्टडी ऑफ़ एडल्ट डेवलपमेंट(The Harvard Study of Adult Development) दशकों से चली आ रही एक परियोजना है जिससे स्वस्थ्य संबंधों के महत्व की अधिक समझ का परिणाम निकला है l शोध 1930 के दशक में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में 268 द्वितीय वर्ष के छात्रों के एक समूह के साथ शुरू हुआ और बाद में इसका विस्तार, 456 अन्य लोगों के बीच हुआ l शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों के साथ साक्षात्कार आयोजित किया और हर कुछ वर्षों में उनके मेडिकल रिकॉर्ड बताए l उन्होंने पाया कि खुशी और स्वास्थ्य के भविष्य में करीबी रिश्ते सबसे बड़े कारण हैं l यह पाया गया कि यदि हम अपने आप को सही लोगों के बीच रखते हैं, तो हम संभवत: आनंद की गहरी अनुभूति करेंगे l
यह प्रगट करता है कि प्रेरित पौलुस फिलिप्पियों 1 में क्या वर्णन कर रहा है l जेल से लिखते हुए, पौलुस अपने मित्रों को यह बताने से खुद को रोक न सका कि वह हर बार परमेश्वर को धन्यवाद देता है, जब वह उनके लिए “आनंद के साथ” विनती करता है (पद.4) l लेकिन ये सिर्फ कोई मित्र नहीं हैं; ये यीशु में भाई और बहन हैं जो सुसमाचार में परमेश्वर के “अनुग्रह में” पौलुस के “सहभागी” हैं (पद.7) l उनका रिश्ता साझेदारी और पारस्परिकता का था─परमेश्वर के प्रेम और स्वयं सुसमाचार द्वारा आकार दी गयी सच्ची संगति l
जी हाँ, मित्र महत्वपूर्ण हैं, लेकिन मसीह में साथी एक सच्चे और गहन आनंद के उत्प्रेरक हैं l ईश्वर की कृपा हमें एक साथ बांध सकती है जैसे और कुछ नहीं बाँध सकती है l और यहां तक कि जीवन के सबसे अँधेरे काल के दौरान भी, उस बंधन से आने वाला आनंद बना रहेगा l
इन बातों का अभ्यास करें
जैसा कि मैंने अपने बेटे को उसके गणित के होमवर्क के साथ मदद की, यह स्पष्ट हो गया कि वह उसी अवधारणा से संबंधित कई सवालों को करने के लिए उत्साही से भी कम था l “डैड, मैं समझ गया!” उसने जोर देकर कहा, उम्मीद करते हुए कि मैं उसे उसके सभी काम से स्वतंत्र कर दूँगा l मैंने तब उसे धीरे से समझाया कि एक अवधारणा सिर्फ एक अवधारणा है जब तक हम यह नहीं सीखते कि इसे व्यवहार में कैसे लाया जाए l
पौलुस ने फिलिप्पी में अपने मित्रों को अभ्यास के बारे में लिखा l “जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण कीं, और सुनीं, और मुझे में देखीं, उन्हें का पालन किया करो” (फिलिप्पियों 4:9) l उसने पाँच बातों का उल्लेख किया है : मेल – जैसे उसने यूओदिया और सुन्तुखे से करने का आग्रह किया (पद.2-3); आनंद - जैसा कि उसने अपने पाठकों को उसे विकसित करने की याद दिलायी (पद.4); कोमलता - जैसा कि उसने इसे संसार से सम्बंधित अपने कामों में उपयोग करने का आग्रह किया (पद.5); प्रार्थना - जैसा कि उसने उनके लिए व्यक्तिगत रूप से कैद में और लेखन में आदर्श प्रस्तुत किया (पद.6-7); और केन्द्रित रहना - जैसा कि उसने कैद में भी दर्शाया था (पद.8) l मेल, आनंद, कोमलता, प्रार्थना, और केन्द्रित रहना – यीशु में विश्वासी होकर जिन बातों को हमें जीने के लिए बुलाया गया है l किसी भी आदत की तरह, इन गुणों को विकसित करने के लिए इनका अभ्यास किया जाना चाहिए l
लेकिन सुसमाचार की खुशखबरी, जैसा कि पौलुस ने पहले ही फिलिप्पियों से कहा था, “यह परमेश्वर ही है जिसने अपनी सुइच्छा निमित्त तुम्हारे मन में इच्छा और काम, दोनों बातों के करने का प्रभाव डाला है” (2:13) l हम कभी भी अपनी शक्ति में अभ्यास नहीं कर रहे हैं l परमेश्वर हमें वही प्रदान करेगा जिसकी हमें आवश्यकता है (4:19) l
आप अब खुद नहीं
1859 की गर्मियों में, मस्यु चार्ल्स ब्लोंडिन पहले व्यक्ति बन गए जिन्होंने नियाग्रा फॉल्स(Niagara Falls) को तनी रस्सी पर पार किया - कुछ ऐसा जो वह सैकड़ों बार करने वाले थे l एक बार उन्होंने ऐसा अपने मैनेजर हैरी कॉलकॉर्ड को अपने पीठ पर बैठा कर किया l ब्लोंडिन ने कॉलकॉर्ड को ये निर्देश दिए : “देखो, हैरी . . . यदि मैं हिलता-डुलता हूँ तो तुम भी मेरे साथ वैसा ही करो l खुद को संतुलित करने का प्रयास मत करना l यदि तुम करते हो, तो हम दोनों अपनी मृत्यु की ओर जाएंगे l”
संक्षेप में, पौलुस ने गलातिया के विश्वासियों से कहा : मसीह में विश्वास के अतिरिक्त आप परमेश्वर को प्रसन्न करने वाली जीवन की रेखा पर चल नहीं सकते हैं – लेकिन यहाँ अच्छी खबर है – आपको चलने की ज़रूरत भी नहीं है! परमेश्वर तक पहुँचने के लिए हमारे कितने भी प्रयास इसे कभी काट नहीं सकते l तो क्या हम अपने उद्धार में निष्क्रिय हैं? नहीं! हमारा निमंत्रण मसीह को दृढ़ता से पकड़े रहना है l यीशु को दृढ़ता से पकड़े रहने का अर्थ है, जीने का पुराना, स्वतंत्र तरीके को मार देना; यह ऐसा है मानों हम खुद मर गए हैं l फिर भी, हम जीते चले जाते हैं l लेकिन “[हम] शरीर में अब जो जीवित [हैं] तो केवल उस विश्वास से जीवित हैं जो परमेश्वर के पुत्र पर है, जिस ने [हम] से प्रेम किया और [हमारे] लिए अपने आप को दे दिया” (गलातियों 2:20) l
आज हम तनी हुयी रस्सी पर कहाँ पर चलने की कोशिश कर रहे हैं? परमेश्वर ने हमें रस्सी त्यागकर अपनी ओर नहीं बुलाया है; वह हमें उसे दृढ़ता से थाम कर उसके साथ जीवन में चलने के लिए बुलाया है l
अन्दर की समस्या
कुछ साल पहले, एक कठफोड़वा(woodpecker) हमारे घर के उपरी बाहरी हिस्से में खटखटाने लगा l हमने सोचा कि समस्या केवल बाहरी थी l फिर एक दिन, मेरा बेटा और मैं सीढ़ी द्वारा अटारी में घुसे, जहाँ हमारे हैरत में पड़े चेहरों के सामना एक चिड़िया उड़ी l समस्या हमारे शक करने से कहीं अधिक बदतर थी : वह हमारे घर के अंदर थी l
जब यीशु यरूशलेम पहुँचा, तो भीड़ उम्मीद कर रही थी कि वह उनकी बाहरी समस्या को ठीक करने वाला कोई होगा – रोमी लोगों द्वारा उनका उत्पीड़न l वे उत्तेजित होकर चिल्लाते हुए बोले, “दाऊद के संतान को होशाना, धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है, आकाश में होशाना” (मत्ती 21:9) l यही वह क्षण था जिसकी वे प्रतीक्षा कर रहे थे; परमेश्वर द्वारा नियुक्त राजा आ चुका था l यदि परमेश्वर का चुना हुआ उद्धारकर्ता चीजों को सुधारना शुरू करने जा रहा था, तो क्या वह वहाँ के सभी गलत कामों से शुरू नहीं करेगा? लेकिन अधिकांश सुसमाचारों के वर्णन में, “विजय प्रवेश” के बाद यीशु द्वारा मंदिर के अन्दर से शोषक सर्राफों को बाहर निकलने का वर्णन है (पद.12-13) l वह घर की सफाई कर रहा था, और भीतर से बाहर l
जब हम राजा के रूप में यीशु का स्वागत करते हैं तो ऐसा ही होता है l वह चीजों को सही करने के लिए आता है - और वह हमारे साथ शुरू करता है l वह हमें अंदर की बुराई का सामना कराता है l यीशु हमारा राजा हमारा शर्तहीन समर्पण चाहता है ताकि हम उसकी शांति का अनुभव कर सकें l
अपनी आँखें उठाओ
बादल नीचे होने के कारण, क्षितिज को अवरुद्ध कर दिया और दृश्यता को केवल कुछ सौ गज तक सीमित कर दिया l मिनट लम्बे होते चले गए l मेरे मिजाज़ पर प्रभाव ध्यान देने योग्य था l लेकिन फिर, जैसे-जैसे दोपहर करीब आता गया, बादल फटने लगे, और मैंने इसे देखा : खूबसूरत पहाड़; मेरे शहर का सबसे अधिक पहचानने योग्य सीमा चिन्ह, हर तरफ पर्वत श्रृंखला l मेरे चेहरे पर एक मुस्कान फूट पड़ी l मैंने विचार किया कि हमारे भौतिक दृष्टिकोण भी – हमारे देखने की वास्तविक रेखा - हमारी आध्यात्मिक दृष्टि को प्रभावित कर सकती है l और मुझे भजनकार की बात याद आयी, “मैं अपनी आँखें पर्वतों की ओर लगाऊंगा” (भजन 121:1) l कभी-कभी बस हमें अपनी आंखें थोड़ी ऊंची करने की जरूरत होती है!
भजनहार ने सोचा कि उसकी मदद कहाँ से आती है, शायद इसलिए कि इस्राएल के आसपास के पहाड़ मूर्तियों को समर्पित वेदियों से भरे पड़े थे और अक्सर लुटेरे वहां मौजूद रहते थे l या हो सकता था क्योंकि भजनकार ने पहाड़ियों के पार सिय्योन पर्वत की ओर देखा जहाँ मंदिर खड़ा था, और याद किया कि पृथ्वी और स्वर्ग का सृष्टिकर्ता वाचा का उसका परमेश्वर था (पद.2) l किसी भी तरह, आराधना करने के लिए हमें ऊपर देखना होता है l हमें अपनी परिस्थितियों के ऊपर, अपनी परेशानियों और आजमाइशों के ऊपर, हमारे समय के झूठे ईश्वरों की खोखली प्रतिज्ञाओं के ऊपर अपनी आँखें उठानी होती है l तब हम सृष्टिकर्ता और उद्धारक को देख सकते हैं, जो हमें नाम से पुकारता है l यह वही है जो आज और हमेशा के लिए “तेरे आने जाने में तेरी रक्षा अब से लेकर सदा तक करता रहेगा” (पद.8) l
रात में एक गीत
सूर्य काफी देर पहले अस्त हो चूका था जब अचानक हमारी बिजली चली गयी थी l मैं अपने दो छोटे बच्चों के साथ घर पर थी, और यह पहली बार था जब वे बिजली कटौती का अनुभव कर रहे थे l यह पुष्टि करने के बाद कि उपयोगिता(utility) कंपनी को कटौती के बारे में पता था, मैंने कुछ मोमबत्तियाँ जलायीं, और बच्चे और मैंने रसोई में टिमटिमाती ज्योत के चारों ओर एक साथ बैठ गए l वे घबराए हुए और अशांत लग रहे थे, इसलिए हम गाना आरम्भ किये l जल्द ही उनके चेहरे से घबराहट के भाव मुस्कान में बदल गए l कभी-कभी हमारे अंधेरे क्षणों में हमें एक गीत की आवश्यकता होती है ।
भजन 103 प्रार्थना के तौर पर किया जाता था या उसे गाया गया था जब परमेश्वर के लोग निर्वासन से स्वदेश लौट आए थे जो बर्बादी की अवस्था में था l संकट के क्षण में, उन्हें गाने की जरूरत थी । लेकिन सिर्फ कोई गीत नहीं, उन्हें इस बारे में गाने की ज़रूरत थी कि परमेश्वर कौन है और वह क्या करता है । भजन 103 हमें यह याद रखने में भी मदद करता है कि वह दयालु, करुणामय, धैर्यवान और भरोसेमंद प्रेम से भरा है (पद.8) । और अगर हम विचार करते हैं कि क्या हमारे पाप का न्याय हमारे सिर पर है, तो भजन यह घोषणा करता है कि परमेश्वर क्रोधित नहीं है, उसने क्षमा कर दिया है, और उसे दया आती है । ये हमारे जीवन की अंधेरी रातों के दौरान गाने के लिए अच्छी चीजें हैं ।
हो सकता है कि आप अपने आप को ऐसी जगह ही देख रहे हों – अँधेरे और कठिन स्थान में, यह विचार करते हुए कि क्या वास्तव में परमेश्वर भला है, अपने विषय उसके प्रेम पर सवाल करते हुए l अगर ऐसा है, तो प्रार्थना करें और उसके लिए गाएं जो प्रेम से भरपूर है!
प्रार्थनापूर्ण कुश्ती
27 ई.पू. में, रोमन शासक ऑक्टेवियन अपनी शक्ति को त्यागने के लिए सीनेट/मंत्री सभा के सामने उपस्थित हुआ l उसने एक गृह युद्ध जीता था, और संसार के उस क्षेत्र का एकमात्र शासक बन गया था, और एक सम्राट की तरह काम कर रहा था । फिर भी वह जानता था कि ऐसी शक्ति को संदिग्ध रूप से देखा जाता था । इसलिए ऑक्टेवियन ने सीनेट के समक्ष अपनी शक्तियों को त्याग दिया, और केवल एक नियुक्त अधिकारी रहने की कसम खाई । उनकी प्रतिक्रिया? रोमी सीनेट ने शासक को एक नागरिक मुकुट पहनाकर और उसे रोमी लोगों का सेवक नाम देकर सम्मानित किया । उन्हें ऑगस्तुस नाम भी दिया गया था - "महान l"
पौलुस ने यीशु को खुद को खाली करने और सेवक रूप लेने के बारे में लिखा । ऑगस्तुस भी ऐसा ही करते दिखाई दिए । या क्या उसने वास्तव में ऐसा किया? ऑगस्तुस ने केवल दिखावा किया मानो वह अपनी शक्ति को त्याग रहा था लेकिन वह यह केवल अपने लाभ के लिए कर रहा था । यीशु "यहाँ तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु, हाँ, क्रूस की मृत्यु भी सह ली” (फिलिप्पियों 2:8) । रोमी क्रूस पर मौत अपमान और शर्म का सबसे बुरा रूप था ।
आज, यीशु ही प्राथमिक कारण है कि लोग "सेवक नेतृत्व" की प्रशंसा एक गुण के रूप में करते हैं l नम्रता ग्रीक(यूनानी) या रोमन गुण नहीं थी । क्योंकि यीशु हमारे लिए क्रूस पर मरा, वह सच्चा सेवक है । वह सच्चा उद्धारकर्ता है ।
मसीह हमें बचाने के लिए एक सेवक बन गया । उसने “अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया” (पद.7) ताकि हम वास्तव में कुछ महान प्राप्त कर सकें – उद्धार और अनन्त जीवन का उपहार ।
झूठा भरोसा
कुछ साल पहले, मेरे डॉक्टर ने मुझे मेरे स्वास्थ्य के बारे में एक कड़ी बात कही । मैं उनकी बातों से प्रभावित हुई और जिम जाना आरम्भ किया और अपने आहार को अनुकूलित करना शुरू कर दिया । समय के साथ, मेरा कोलेस्ट्रॉल और मेरा वजन दोनों कम हो गया, और मेरा आत्म-सम्मान बढ़ गया । लेकिन तब कुछ बहुत अच्छा नहीं हुआ : मैंने अन्य लोगों के आहार विकल्पों पर ध्यान देना और उनकी आलोचना करना, विभेद करना शुरू किया । क्या यह हास्यास्पद नहीं है कि अक्सर जब हमें एक समंकन प्रणाली(scoring method) मिलती है जो हमें अच्छी तरह से वर्गीकृत करती है, तो हम इसका उपयोग खुद को ऊपर उठाने और दूसरों को नीचे रखने के लिए करते हैं । ऐसा लगता है कि यह एक सहज मानवीय प्रवृत्ति है, जो खुद का पक्ष समर्थन(self-justification) के प्रयास में स्व-निर्मित मानकों से चिपका हुआ है - स्व-औचित्य और अपराध-प्रबंधन की प्रणाली ।
पौलुस ने फिलिप्पियों को इस तरह की बात करने के सम्बन्ध में चेतावनी दी । कुछ लोग धार्मिक कार्य निष्पादन या सांस्कृतिक अनुरूपता में अपना भरोसा रख रहे थे, और पौलुस ने उन्हें बताया कि उसके पास इस तरह की चीजों पर घमंड करने का अधिक कारण था : “यदि किसी और को शरीर पर भरोसा रखने का विचार हो, तो मैं उससे भी बढ़कर रख सकता हूँ” (3:4) । फिर भी पौलुस जानता था कि उसकी वंशावली और कार्य "मसीह को प्राप्त करने" (पद.8) की तुलना में "कूड़ा” था । केवल यीशु ही हमसे प्यार करता है जैसे हम हैं, हमें बचाता है, और हमें और अधिक अपने जैसे बनने की शक्ति देता है । कोई कमाई/उपार्जन की आवश्यकता नहीं है; कोई अंकों की गणना संभव नहीं है ।
शेखी बघारना अपने आप में बुरा है, लेकिन झूठे आत्मविश्वास पर आधारित घमंड दुखद है । सुसमाचार हमें गलत विश्वास/भरोसा से दूर करता है और एक उद्धारकर्ता के साथ सहभागिता में बुलाता है जो हमें प्यार करता है और हमारे लिए खुद को दिया है ।