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Articles by जेम्स बैंक्स

कौन चला रहा है?

मेरा पड़ोसी टिम ने अपने डैशबोर्ड पर मौरिस सेनडैक की बच्चों की प्रिय पुस्तक वेयर द वाइल्ड थिंग्स आर (Where the Wild Things Are) पर आधारित एक "जंगली चीज़" की मुर्तिका लगा रखी है l
कुछ समय पूर्व, टिम यातायात से होकर मेरा पीछा कर रहा था और कुछ असंगत कदम उठाकर मुझ तक पहुँचने का प्रयास कर रहा था l जब हम पहुँच गए, मैंने पूछा, "क्या वह 'जंगली चीज़' गाड़ी चला रही थी l"
अगले रविवार मैं घर पर अपने उपदेश नोट्स भूल आया l मैं उसे लाने के लिए "शीग्रता से" चर्च से बाहर निकला, और उसी रास्ते से टिम गुज़रा l जब हम बाद में मिले, तो उसने मजाक किया, "क्या वह जंगली चीज गाड़ी चला रही थी?" हम हँसे, लेकिन उसका मुद्दा समझ में आ गया - मुझे गति सीमा पर ध्यान देना चाहिए था l
जब बाइबल बताती है कि परमेश्वर के साथ सम्बन्ध में रहने का क्या मतलब है, तो यह हमें "[अपने] हर हिस्से को अर्पित" करने के लिए प्रोत्साहित करता है (रोमियों 6:13) l मैंने अपना "सब कुछ," अर्पित करने के लिए उस दिन टिम की प्रतिक्रिया को परमेश्वर से एक सौम्य ताकीद के रूप में लिया, जिससे मुझे उसके प्रेम के कारण अपना सर्वस्व देना था l
"कौन चला रहा है?" का सवाल पूरे जीवन पर लागू होता है l क्या हम अपने पुराने पाप प्रकृति की "जंगली चीजें" को हमें चलाने देते हैं - जैसे चिंता, भय, या आत्म-इच्छा - या क्या हम खुद को परमेश्वर की प्रेमपूर्ण आत्मा और अनुग्रह के लिए अर्पित करते हैं जो हमें बढ़ने में मदद करते हैं?
परमेश्वर को अर्पित करना हमारे लिए अच्छा है l पवित्रशास्त्र कहता है कि परमेश्वर की बुद्धि हमें "आनंददायक [मार्ग पर ले चलती है] और उसके सब मार्ग कुशल के हैं" (नीतिवचन 3:17) l उसके मार्गदर्शन में चलना बेहतर है l

आपका तरीका, मेरा नहीं

जब केमिल और जोएले को पता चला कि उनकी आठ वर्षीय बेटी, रीमा को असाधारण कैंसर (leukemia) हो गया है, वे पूरी तौर से टूट गए l इस बिमारी के कारण उसे मस्तिष्क ज्वर(meningitis) हो गया और एक दौरा पड़ा, और रीमा अचेतन अवस्था(coma) में चली गयी l हॉस्पिटल की मेडिकल टीम ने उसके माता-पिता से रीमा के जीवित रहने की हर आशा छोड़कर उसका अंतिम संस्कार करने की तैयारी करने को कहा l
केमिल और जोएले ने आश्चर्यकर्म के लिए उपवास और प्रार्थना की l केमिल ने कहा, “प्रार्थना करते समय, हमें हर स्थिति में परमेश्वर पर भरोसा रखना होगा l और अपना तरीका नहीं बल्कि यीशु की तरह प्रार्थना करें, पिता, किन्तु तेरी इच्छा l” “किन्तु मैं पूरी तौर से चाहता हूँ कि परमेश्वर उसको चंगा कर दे!” जोएले ने इमानदारी से उत्तर दिया l “हाँ! और हमें माँगना चाहिए!” केमिल ने प्रतिउत्तर दिया l “कठिन समय में खुद को परमेश्वर को सौंपने से उसे आदर मिलता है, क्योंकि यीशु ने भी ऐसा ही किया l”
क्रूस पर जाने से पहले, यीशु ने प्रार्थना की : “हे पिता, यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, तौभी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो” (लूका 22:42) l “इस कटोरे को हटा दे,” इस प्रकार प्रार्थना करने से यीशु ने क्रूस पर नहीं जाने की विनती की, किन्तु उसने प्रेम में खुद को पिता के सामने समर्पित कर दिया l
अपनी इच्छाओं को परमेश्वर को समर्पित करना सरल नहीं है, और चुनौतीपूर्ण पलों में उसकी बुद्धिमत्ता को समझना कठिन हो सकता है l केमिल और जोएले की प्रार्थना अद्भुत रीति से सुनी गयी – रीमा आज पंद्रह वर्ष की स्वस्थ बेटी है l
यीशु प्रत्येक संघर्ष को समझता है l उस समय भी, जब हमारे लिए, उसकी विनती सुनी नहीं गयी, उसने हर एक ज़रूरत के लिए अपने परमेश्वर पर भरोसा रखना दिखा दिया l

पहले उस पर भरोसा करें

पापा, मुझे मत छोड़िए!”
“मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा l मैं तुम्हें थामे हुए हूँ l मैं वादा करता हूँ l”
मैं छोटा था और मुझे जल से डर लगता था; किन्तु मेरे पिता चाहते थे कि मैं तैरना सीख जाऊं l वे जानबूझकर मुझे तरणताल के गहरे हिस्से में ले जाते थे, जहां पर वे ही मेरा एकमात्र सहारा होते l तब वे मुझे तनाव मुक्त होना और तैरना सिखाते थे l
यह केवल तैरना सीखना नहीं था; यह भरोसा रखने की सीख थी l मेरे पिता मुझसे प्रेम करते थे, यह मैं जानता था और वे जानबूझकर मुझे हानि कभी भी नहीं पहुँचाएंगे, किन्तु मैं फिर भी डरता था l मैं कस कर उनके गले से लिपट जाता था जब तक कि मुझे उनकी ओर से सुरक्षा का निश्चय नहीं मिलता था l अंततः उनके धीरज और कोमलता के कारण मैं तैरना सीख गया l किन्तु पहले मुझे उनपर भरोसा करना ज़रूरी था l
जब मैं कठिनाई में डूबा हुआ महसूस करता हूँ, मैं उन बीते हुए पलों को स्मरण करता हूँ l वे मुझे परमेश्वर का अपने लोगों के लिए आश्वासन याद दिलाते हैं : “तुम्हारे बुढ़ापे में भी मैं . . . तुम्हें उठाए रहूँगा l मैं ने तुम्हें बनाया और मैं तुम्हें उठाए रहूँगा” (यशायाह 46:4) l
शायद हम हमेशा परमेश्वर की भुजा को अपने नीचे महसूस नहीं करेंगे, किन्तु प्रभु की प्रतिज्ञा है कि वह हमें कभी नहीं छोड़ेगा (इब्रानियों 13:5) l जब हम उसकी देखभाल और प्रतिज्ञाओं में विश्राम करते हैं, वह हमें उसकी विश्वासयोग्यता में भरोसा करना सिखाता है l वह हमें हमारी चिंताओं से उबारता है कि हम उसमें नयी शांति पा सकें l   

प्रेम की विरासत

अपने पर-नाना की बाइबल के पन्ने उलटते समय एक खजाना मेरी गोद में गिरा l कागज़ का एक छोटा टुकड़ा, जिस पर, एक युवा की लिखावट में निम्नलिखित शब्द अंकित थे, “धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है l धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्योंकि वे शांति पाएंगे” (मत्ती 5:3-4) l उन पदों के निकट मेरी माँ ने टेढ़ी-मेढ़ी लिखावट में अपना हस्ताक्षर किया था l

नाती-पोते बाइबल के पद लिखकर याद करें, मेरी पर-नानी अपनी आदत के अनुसार उनको ऐसा ही करना सिखाती थी l किन्तु इस पद के पीछे की कहानी से मेरी आँखें नम हो गयीं l मेरे नाना की मृत्यु तब हुई जब मेरी माँ बहुत छोटी थी, और उनका छोटा भाई(मेरे मामा) कुछ सप्ताह बाद चल बसे l उस दु:खद समय में मेरी पर-नानी ने मेरी माँ से यीशु और उसके आश्वासन की ओर देखने को कहा l

पौलुस ने तीमुथियुस को लिखा, “ मुझे तेरे उस निष्कपट विश्वास की सुधि आती है, जो पहले तेरी नानी लोइस और तेरी माता यूनीके में था, और मुझे निश्चय है कि तुझ में भी है” (2 तीमुथियुस 1:5) l विश्वास विरासत में नहीं मिलता है, यह बाँटा  जाता है l तीमुथियुस की माँ और नानी ने उसके साथ अपना विश्वास बाँटा, और उसने विश्वास किया l

जब हम अपने निकट के लोगों को यीशु में आशा प्राप्त करने के लिए उत्साहित करते हैं, हम उनको प्रेम की विरासत देते हैं l उस छोटे से कागज़ के टुकड़े के द्वारा, मेरी माँ ने मेरी पर-नानी के प्रेम का प्रमाण छोड़ गयी जो वह अपने उद्धारकर्ता और अपने परिवार से करती थी l ओह, उसके विषय अपनी आने वाली पीढ़ी को बताना कितना भला है!

न बदलनेवाला प्रेम

मैं हाई स्कूल में पढ़ते समय विश्वविद्यालय के टेनिस टीम में खेलता था l मैं अपने किशोरावस्था में अपने घर से दो घर दूर एक टेनिस कोर्ट में घंटों खेलकर अपने कौशल का विकास करता था l

पिछली बार जब मैं उस शहर में गया, मैं आशा से उस टेनिस कोर्ट में दूसरों को खेलते हुए और कुछ पलों के लिए अपनी पुरानी यादें ताज़ी करने गया l किन्तु अब वे टेनिस कोर्ट जो मेरी यादों में बहुत परिचित थे, वहाँ नहीं थे l उनके स्थान पर एक खाली मैदान था, जिसमें उगे हुए घास कभी-कभी हवा से लहराते रहते थे l

उस दोपहर की बात मेरे मन में बैठ गयी जो जीवन की अल्पता/लघुता याद दिलाती है l एक स्थान जहाँ मैंने अपने युवावस्था की शक्ति जो अब मुझ में नहीं है खर्च की थी! उस अनुभव के विषय विचार करते हुए इस सच से मेरा सामना हुआ, जो वृद्ध राजा दाऊद कहता है : “मनुष्य की आयु घास के समान होती है, वह मैदान के फूल के समान फूलता है, जो पवन लगते ही ठहर नहीं सकता, और न वह अपने स्थान में फिर मिलता है l परन्तु यहोवा की करूणा उसके डरवैयों पर युग युग और उसका धर्म उनके नाती-पोतों पर भी प्रगट होता रहता है” (भजन 103:15-17)

हमारी उम्र बढती जाती है और हमारे चारोंओर का संसार बदल भी जाएगा, किन्तु परमेश्वर का प्रेम नहीं बदलता है l उसकी ओर मुड़नेवाले उसकी देखभाल के विषय निश्चित रहें l 

भरोसा करना सीखना

किशोरावस्था में जब मां मुझे परमेश्वर पर विश्वास करने के लिए प्रोत्साहित करती तो मैं विरोध करता था।  वो कहती थीं, "परमेश्वर पर भरोसा रखो, वह तुम्हे संभालेंगे”, "यह इतना सरल नहीं है, माँ!" मैं पलटकर कहताI "परमेश्वर उनकी सहायता करता है जो स्वयं अपनी सहायता करते हैं!"

ये शब्द, कि "परमेश्वर उनकी सहायता करता है जो स्वयं अपनी सहायता करते हैं" बाइबिल में नहीं हैं इसके बजाए, परमेश्वर का वचन हमें अपनी दैनिक जरूरतों के साथ उन पर निर्भर करना सिखाता है।I यीशु ने कहा, "आकाश के पक्षियों को देखो!...?" (मत्ती 6:26-27)।

हर ऐसी चीज़ जिसका हम आनंद लेते हैं, यहां तक ​​कि जीविका कमाने का सामर्थ जिससे हम“अपनी सहायता" करते हैं – एक ऐसे स्वर्गीय पिता का उपहार हैं जो हमारी समझ से बढ़कर हमसे प्रेम करते हैं और हमें कीमती जानते हैं।

जीवन के अंत के निकट आने पर मानसिक रोग के कारण माँ की सोच-समझने की शक्ति और यादाश्त जाती रही, परन्तु परमेश्वर पर उनका विश्वास बना रहा। कुछ समय हमारे वह घर में रही, तब मैंने करीब से देखा कि परमेश्वर कैसे अप्रत्याशित तरीकों से उनकी ज़रूरतों को पूरा करते थे। चिंता करने की बजाय, उन्होंने स्वयं को उसे सौंप दिया था जिसने उनकी देखभाल करने का वादा किया था। और उन्होंने दिखाया कि वह विश्वासयोग्य हैं।

घर की ओर इशारा करने की प्रार्थना

बचपन में मैंने अपने माता-पिता से पहली प्रार्थना सीखी कि "हे प्रभु, मैं सोने जाता हूँ, मैं अपनी आत्मा को तेरे ही हाथ में सौंप देता हूं।" जिसे मैंने अपने बच्चों को सिखाया। सोते समय इस प्रार्थना द्वारा अपने आप को परमेश्वर के हाथों में सौंपना मुझे तस्सली देता था।

बाइबिल की "प्रार्थना पुस्तक", भजन संहिता में ऐसी प्रार्थना है। "मैं अपनी आत्मा...;" (भजन संहिता 31:5) विद्वानों का मानना है कि यह "सोने के समय" की प्रार्थना थी जिसे यीशु के दिन में बच्चों को सिखाया जाता था ।

क्रूस पर यीशु की अंतिम पुकार से हम इसे पहचान सकते हैं। यीशु ने इसमें "पिता " शब्द जोड़ा: (लूका 23:46)। मृत्यु से पूर्व इन शब्दों के साथ प्रार्थना करते हुए, यीशु ने पिता के साथ अपने घनिष्ठ संबंध और ऐसे स्थान की ओर इशारा किया जहाँ विश्वासी उनके साथ रहेंगे (यूहन्ना 14:3)।

यीशु के क्रूस पर जान देने से परमेश्वर के साथ हमारा संबंध स्वर्गीय पिता के रूप में हो गया। यह जानकर कितनी तस्सली मिलती है कि यीशु के बलिदान से, हम परमेश्वर की सन्तान बनकर उनकी परवाह में विश्राम पा सकते हैं! हम निडर सो सकते हैं क्योंकि हमारा पिता इस वादे के साथ हम पर दृष्टि लगाए है कि वह मसीह के साथ हमें जी उठाएगें (1 थिस्सलुनीकियों 4:14)।

समय का उपहार

पोस्ट ऑफिस जाते हुए मैं जल्दी में था। मेरी लिस्ट में लिखे कई काम करने बाकि थे, परन्तु घुसते ही वहां दरवाजे तक लंबी लाइन देखकर मैं हताश हो गया। घड़ी देखकर मैं बड़बड़ाया  "जितनी जल्दी हो रही थी थी उतनी देर लगेगी"।

मेरा हाथ अभी दरवाजे पर ही था कि एक बुजुर्ग अजनबी पीछे एक मशीन की ओर इशारा करते हुए बोला, "इस कापियर में मेरे पैसे तो जा चुके हैं पर मेरी फोटो कॉपी निकली नहीं है।" मैं तुरंत समझ गया कि परमेश्वर क्या चाहते थे। लाइन से निकल कर दस मिनट में मैंने मशीन ठीक कर दी।

मुझे धन्यवाद देकर वह चला गया। जब मैं वापस आया तो पाया कि लाइन अब खत्म हो चुकी थी। मैं सीधे काउंटर पर चला गया।

उस दिन का मेरा अनुभव मुझे यीशु के शब्दों की याद दिलाता है: "दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा: लोग पूरा नाप दबा दबाकर और हिला हिलाकर और उभरता..." (लूका 6:38)।

मेरी प्रतीक्षा की घड़ियाँ खत्म हो गईं क्योंकि किसी अन्य की जरूरत की ओर मेरा ध्यान खींच कर उसे अपना समय देने के लिए मेरी मदद करके परमेश्वर ने मेरी जल्दी में बाधा डाल दी। उन्होंने मुझे एक उपहार दिया। एक ऐसा सबक जिसे मैं जब घड़ी देखूं याद करने की अपेक्षा करता हूँ।

शरणस्थान

परन्तु परमेश्वर के समीप रहना, यही मेरे लिए भला है; मैंने प्रभु यहोवा को अपना शरणस्थान माना है l भजन 73:28

जब हम ओकलाहामा में रहते थे मेरा एक मित्र टोर्नेडो तूफ़ान का “पीछा करता था l” जॉन ध्यानपूर्वक अन्य अंकित करनेवालों(chaser) एवं स्थानीय रडार की मदद से रेडियो संपर्क द्वारा तूफान का पीछा करता था l वह तूफान और अपने बीच दूरी बनाकर रखते हुए तूफान की दिशा और उसके विनाशक मार्ग पर ध्यान रखता था ताकि वह लोगों के मार्ग में हानि की सम्भावना होने पर अचानक आनेवाले बदलाव की रिपोर्ट दे सके l

एक दिन कीप के आकार के तूफ़ान(funnel cloud) के अचानक अपना मार्ग बदलने पर  जॉन खुद ही गंभीर खतरे में पड़ गया l संयोग से, उसे आश्रय मिल गया जिससे उसकी जान बच गयी l

उस दोपहर को जॉन का अनुभव मुझे एक और विनाशकारी मार्ग के विषय सोचने को विवश करता है : हमारे जीवनों में पाप l बाइबल कहती है, “प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा से खीँचकर और फंसकर परीक्षा में पड़ता है l फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है और पाप जब बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्पन्न करता है” (याकूब 1:14-15) l

यहाँ एक प्रगति है l जो आरम्भ में हानि रहित दिखाई देता हो, वह शीघ्र ही नियंत्रण से बाहर होकर बर्बादी ला सकता है l किन्तु जब परीक्षा डराने लगे, तब परमेश्वर विनाशक तूफान में शरणस्थान है l

परमेश्वर का वचन हमसे कहता है कि वह कभी भी हमारी परीक्षा नहीं लेता है, और हम केवल अपने चुनावों को ही दोषी करार दे सकते हैं l किन्तु जब हमारी परीक्षा होती है, “वह परीक्षा के साथ [हमारा] निकास भी करेगा कि [हम] सह [सकें]” (1 कुरिन्थियों 10:13) l जब हम परीक्षा की घड़ी में उसकी ओर मुड़कर यीशु से मदद मांगते हैं, वह हमें जयवंत होने के लिए सामर्थ्य देता है l

यीशु सदैव हमारा शरणस्थान है l