स्वीकार्य और अनुमोदित
एक बच्चे के रूप में, टेनी ने असुरक्षित महसूस किया । उसने अपने पिता से अनुमोदन माँगा, लेकिन उसे कभी नहीं मिला । ऐसा प्रतीत हुआ कि उसने जो भी किया, चाहे स्कूल या घर में, वह कभी भी अच्छा नहीं था । जब वह व्यस्क हो गया, वह असुरक्षा कायम रहा । वह निरंतर सोचता रहा, क्या मैं लायक हूँ?
केवल जब टेनी ने यीशु को अपना उद्धारकर्ता स्वीकार कर लिया उसने सुरक्षा और अनुमोदन प्राप्त किया जिसकी वह लम्बे समय से अभिलाषा करता था । उसने सीखा कि परमेश्वर──उसको रचने के बाद──उससे प्रेम करता था और उसे अपने पुत्र की तरह दुलारता था । टेनी आख़िरकार उस भरोसे के साथ जी सकता था कि वास्तव में उसका महत्त्व था और वह अधिमुल्यित था ।
यशायाह 43:1-4 में, परमेश्वर ने अपने चुने हुए लोगों से बोला कि, उनको बनाने के बाद, वह उन्हें छुड़ाने के लिए अपनी सामर्थ्य और प्रेम का उपयोग करेगा । “मेरी दृष्टि में तू अनमोल और प्रतिष्ठित ठहरा है,” उसने घोषणा की । इसलिए कि वह उनसे प्यार करता था वह उनके पक्ष में कार्य करेगा (पद.4) ।
परमेश्वर जिनसे प्रेम करता है उन पर जो मूल्य रखता है वह हमारे द्वारा किये गए कार्यों के कारण नहीं है, लेकिन सरल और शक्तिशाली सच्चाई से कि उसने हमें अपना बनाने के लिए चुना है ।
यशायाह 43 में ये शब्द टेनी को केवल महान सुरक्षा ही नहीं दिया, बल्कि जो भी कार्य करने के लिए उसे बुलाया गया था, उसमें परमेश्वर के लिए अपने सर्वश्रेष्ठ करने के भरोसे के साथ उसे सामर्थी बनाया । आज वह एक पास्टर है जो इस जीवन-सत्य के साथ दूसरों को प्रोत्साहित करने के लिए वह सब करता है : हम यीशु में स्वीकृत और अनुमोदित हैं । आज हम इस सच्चाई को भरोसा के साथ जीएँ ।
दूसरों के लिए
कोविड-19 महामारी के दौरान, कई सिंगापुरी संक्रमित होने से बचने के लिए घर में ही रहे l लेकिन भरोसा करते हुए कि सब सुरक्षित है, मैं आनंदपूर्वक तैरता रहा l
मेरी पत्नी, हालाँकि, भयभीत थी कि मैं एक सार्वजनिक तरणताल में संक्रमित हो सकता हूँ और अपनी वृद्ध माँ को संक्रमित कर सकता हूँ──जो, दूसरे वरिष्ठों की तरह, इस वायरस के चपेट में आ सकती थी l “क्या आप मेरे लिए, कुछ समय के लिए तैरना छोड़ सकते हैं?” उसने कहा l
पहले, मैं बहस करना चाहता था कि जोखिम बहुत कम था l फिर मुझे एहसास हुआ कि यह उसकी भावनाओं से कम मायने रखता है l मैं तैरने पर जोर क्यों दूँ──शायद ही एक ज़रूरी चीज़──जब इसने व्यर्थ उसको चिंतित किया?
रोमियों 14 में, पौलुस कुछ ऐसे मामलों को संबोधित किया जैसे कि मसीह में विश्वासियों को कुछ ख़ास भोजन खाना चाहिए या ख़ास त्योहारों को मानना चाहिए l वह चिंतित था कि कुछ लोग अपने विचार दूसरों पर थोप रहे थे l
पौलुस ने रोम में चर्च को, और हमें, याद दिलाया, कि मसीह में विश्वासी स्थितियों को दूसरे तरीके से देख सकते हैं l हमारी पृष्ठ्भूमि भी विविध हैं जो हमारे दृष्टिकोण और प्रथाओं को रंग देती हैं l उसने लिखा, “हम एक दूसरे पर दोष न लगाएँ, पर तुम ठान लो कि कोई अपने भाई [या बहिन] के सामने ठोकर खाने का कारण न रखे” (पद.13) l
परमेश्वर के अनुग्रह से हमें बहुत स्वतंत्रता मिलती है, जब यह सह विश्वासियों के प्रति उसके प्रेम को वक्त करने में मदद करता है l हम इस स्वतंत्रता का उपयोग नियमों और प्रथाओं को अपने स्वयं के विश्वासों से ऊपर दूसरों की आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कर सकते हैं जो कि सुसमाचार में पाए गए आवश्यक सत्य के विपरीत नहीं है (पद.20) l
पवित्र आत्मा से मदद
जबकि मेरे सहपाठी और मैं विश्वविद्यालय में कभी-कभी होने वाले व्याख्यान को छोड़ देते थे, साल के अंत की परीक्षा से पूर्व सप्ताह में प्रोफ़ेसर क्रिस के व्याख्यान में अवश्य ही सभी उपस्थित होते थे l यह वह समय होता था जब वह परीक्षा प्रश्नों के विषय जो उन्होंने बनाया था हमेशा बड़े संकेत देते थे l
मैंने हमेशा आश्चर्य किया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, जब तक मुझे एहसास नहीं हुआ कि प्रोफेसर क्रिस चाहते थे कि हम अच्छा करें l उनके पास उच्च मानक थे, लेकिन उनको पूरा करने में वे हमारी मदद करते थे l हमें केवल आकर सुनना था ताकि हम उचित तरीके से तैयारी कर सकते थे l
मेरे मन में भी अचानक आया कि परमेश्वर भी वैसा ही है l परमेश्वर अपने मानक से समझौता नहीं कर सकता है, लेकिन इसलिए कि उसकी इच्छा है कि हम उसके समान बने, उसने हमें उन मानकों को पूरा करने के लिए पवित्र आत्मा दिया है l
यिर्मयाह 3:11-14 में, परमेश्वर ने अविश्वासयोग्य इस्राएल से अपना दोष स्वीकार कर उसके पास लौटने का आग्रह किया l लेकिन यह जानकार कि वे कितने अड़ियल और कमजोर है, वह उनकी मदद करने वाला था l वह उनके भटकने को सुधारने की प्रतिज्ञा करता है (पद.22), और उसने उनको सिखाने और मार्गदर्शित करने के लिए चरवाहे भेजे (पद.15) l
यह जानना कितना आरामदायक है कि चाहे हम कितने बड़े पाप में फंसे हों या हम परमेश्वर से कितनी ही दूर चले गए हों, वह हमारी अविश्वसनीयता को चंगा करने के लिए तैयार है l हमें सिर्फ अपने गलत मार्ग को स्वीकार करना है और पवित्र आत्मा को हमारे हृदयों को बदलने के लिए पवित्र आत्मा को अनुमति देना है l
हर एक सांस
जब टी अन्न एक दुर्लभ स्व-संक्राम्य(autoimmune) बीमारी के साथ आया, जिसने उसकी सभी मांसपेशियों को कमजोर कर दिया था और लगभग उसे मरणासन्न कर दिया था तो उसने महसूस किया कि सांस लेने में सक्षम होना एक उपहार था l एक हफ्ते से अधिक समय तक, एक मशीन को हर कुछ सेकंड में उसके फेफड़ों में हवा पंप करना पड़ता था, जो उसके उपचार का एक पीड़ादायक हिस्सा था l
टी अन्न ने एक चमत्कारी पुनर्प्राप्ति की, और आज वह खुद को जीवन की चुनौतियों के बारे में शिकायत नहीं करने की याद दिलाता है l वह कहता है, “मैं बस एक गहरी साँस लूँगा और परमेश्वर को धन्यवाद दूँगा कि मैं ले सकता हूँ l”
अपनी आवश्यकताओं या इच्छाओं पर ध्यान देना कितना आसान है, और हम भूल जाते हैं कि कि कभी-कभी जीवन की सबसे छोटी चीज़ें सबसे बड़े चमत्कार हो सकते हैं l यहेजकेल के दर्शन में (यहेजकेल 37:1-14), परमेश्वर ने भविष्यवक्ता को दिखाया कि केवल वह सूखी हड्डियों को जीवन दे सकता है l यहां तक कि नस, मांस और त्वचा के आने के बाद भी, “उनमें साँस कुछ न थी” (पद.8) l केवल जब परमेश्वर ने उन्हें सांस देता तब वे फिर से जीवित हो सकते थे (पद.10) l
यह दर्शन इस्राएल को तबाही से बचाने के लिए परमेश्वर के वादे को दर्शा दिया l यह मुझे यह भी याद दिलाता है कि मेरे पास जो कुछ भी है, बड़ा या छोटा है, वह बेकार है जब तक कि परमेश्वर मुझे सांस न दे l
आज जीवन में सबसे साधारण आशीषों के लिए परमेश्वर को धन्यवाद देना कैसा रहेगा? दैनिक संघर्ष के मध्य, कभी-कभी गहरी साँस लेने के लिए ठहरें, और “सब के सब याह की स्तुति करें!” (भजन 150:6) l
टिक-टिक करती घड़ी
श्रमिकों का एक समूह एक आइसहाउस(icehouse) में बर्फ जमा कर रहा था, जब उनमें से एक को एहसास हुआ कि उसने खिड़की रहित भवन में अपनी घड़ी खो दी है l उसने और उसके मित्रों ने इसे व्यर्थ में खोजा l
जब उन्होंने हार मान ली, तो एक युवा लड़का, जिसने उन्हें बाहर निकलते देखा था, भवन में अन्दर गया l जल्द ही, वह घड़ी के साथ बाहर आया l यह पूछे जाने पर कि उसे यह कैसे मिला, उसने जवाब दिया : ‘मैं बस बैठ गया और चुप हो गया, और जल्द ही मैं इसकी टिक-टिक सुन सकता था l”
बाइबल चुप रहने के महत्व के बारे में बहुत बात कहती है l और कोई आश्चर्य नहीं, क्योंकि परमेश्वर कभी-कभी धीमी आवाज़ में बोलता है (1 राजा 19:12) l जीवन की व्यस्तता में, उसे सुनना कठिन हो सकता है l लेकिन यदि हम इधर-उधर भागना बंद करदे और उसके साथ और पवित्रशास्त्र में कुछ समय व्यतीत करें, हम अपने विचारों में उसकी धीमी आवाज़ को सुन सकेंगे l
भजन 37: 1-7 हमें विश्वास दिलाता है कि बुरे लोगों की “दुष्ट योजनाओं” से हमें बचाने के लिए, हमें शरण देने के लिए, और हमें वफादार बने रहने में मदद के लिए, हम परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं l लेकिन जब हमारे चारों तरफ अशांति है तो हम यह कैसे कर सकते हैं?
पद 7 सलाह देता है : “यहोवा के सामने चुप रह, और धीरज से उसकी प्रतीक्षा कर l” हम प्रार्थना के बाद कुछ मिनटों तक चुप रहना सीख सकते हैं l या फिर चुपचाप बाइबल पढने और शब्दों को हमारे दिलों में भीगने दें l और फिर, शायद, हम उसकी बुद्धि को शांत और स्थिर तरीके से हमसे टिक-टिक करती हुई घड़ी के समान बात करते हुए सुनेंगे l
लम्बी दूरी
चूंकि उनके साथियों को एक-एक करके पदोन्नत किया गया था, बेंजामिन नहीं चाहते हुए भी थोड़ी ईर्ष्या महसूस की l “आप अभी तक प्रबंधक कैसे नहीं हैं? आप इसके लायक हैं, ”दोस्तों ने उससे कहा । लेकिन बेन ने अपना कैरियर/जीविका परमेश्वर पर छोड़ने का फैसला किया । "अगर यह मेरे लिए परमेश्वर की योजना है, तो मैं अपना काम अच्छी तरह से करूंगा," उसने जवाब दिया ।
कई साल बाद, बेन को आखिरकार पदोन्नत कर दिया गया । तब तक, उसके अतिरिक्त अनुभव ने उसे आत्मविश्वास से अपना काम करने में सक्षम बना दिया और उसे अधीनस्थों का सम्मान मिला । इस बीच, उसके कुछ साथी, अभी भी अपनी पर्यवेक्षी(supervisory) जिम्मेदारियों से जूझ रहे थे, क्योंकि वे तैयार होने से पहले ही पदोन्नत हो चुके थे । बेन ने महसूस किया कि परमेश्वर उसे “लम्बे मार्ग” से ले गया था ताकि वह अपनी भूमिका के लिए बेहतर तैयार हो सके ।
जब परमेश्वर ने इस्राएलियों को मिस्र से बाहर निकाला (निर्गमन 13: 17-18), तो उसने एक लंबा रास्ता चुना क्योंकि कनान के लिए "छोटा मार्ग/shortcut" जोखिम से भरा था । बाइबल के टिप्पणीकारों पर ध्यान दें, लम्बी यात्रा, उन्हें बाद की लड़ाइयों के लिए शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाने के लिए और अधिक समय दिया ।
सबसे छोटा रास्ता हमेशा सबसे अच्छा नहीं होता है । कभी-कभी परमेश्वर हमें जीवन में लंबा रास्ता तय करने देता है, चाहे वह हमारे कैरियर/जीविका में हो या अन्य प्रयासों में, ताकि हम आगे की यात्रा के लिए बेहतर तरीके से तैयार हों । जब चीजें बहुत जल्दी होती नहीं लगती हैं, तो हम परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं - जो हमारा नेतृत्व और मार्गदर्शन करता है ।
जोखिम भरा एक चक्करदार मार्ग
यह तो समय की बर्बादी है, हेमा ने सोचा । उसकी बीमा एजेंट फिर से मिलने के लिए जोर दे रही थी । हेमा को पता था कि यह बिक्री का एक और उबाऊ समय होगा, लेकिन उसने इसे अपने विश्वास के बारे में बात करने के लिए एक अवसर की तलाश में उपयोग करने का फैसला किया ।
यह देखते हुए कि एजेंट की भौहों पर टैटू था, उसने संकोच के साथ पूछा कि क्यों और पता चला कि महिला ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसे लगा कि यह उसकी किस्मत खोलेगा । हेमा का सवाल वित्त के बारे में एक नियमित बातचीत से एक जोखिम भरा चक्कर की ओर था, लेकिन इसने भाग्य और विश्वास के बारे में एक बातचीत का दरवाजा खोल दिया, जिससे उसे इस बारे में बात करने का मौका मिला कि वह क्यों यीशु पर निर्भर है । वह "व्यर्थ" घंटा एक दिव्य नियुक्ति बन गयी ।
यीशु ने भी एक जोखिम भरा चक्करदार मार्ग लिया l यहूदिया से गलील की यात्रा करते हुए, वह अपना मार्ग बदलकर एक सामरी से बातचीत करने गया, जो एक यहूदी के लिए अकल्पनीय है । इससे भी बदतर, वह एक व्यभिचारी महिला थी जिससे अन्य सामरी लोग भी बचते थे l फिर भी उसने अपना वार्तालाप समाप्त किया, जिसके कारण बहुतों का उद्धार हुआ (यूहन्ना 4:1-26, 39-42) l
क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति से मिल रहे हैं जिसे आप वास्तव में नहीं देखना चाहते हैं? क्या आपका सामना एक ऐसे पड़ोसी से होता है जिससे आप आमतौर पर बचते हैं? बाइबल हमें हमेशा तैयार रहने की याद दिलाती है – ”समय और असमय” – सुसमाचार साझा कर (2 तीमुथियुस 4: 2) । "जोखिम भरा चक्करदार मार्ग" लेने पर विचार करें । कौन जानता है, परमेश्वर आपको आज उसके बारे में किसी से बात करने का एक दिव्य अवसर दे रहा हो!
अलगाव में एकता
अपने सहयोगी तरुण के साथ एक परियोजना में लगाएं गए, अशोक को एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा : उसके और तरुण के बहुत अलग विचार थे कि कैसे कार्य आरंभ करें l जबकि वे एक दूसरे के मत का सम्मान करते थे, उनके दृष्टिकोण इतने अलग थे कि संघर्ष आसन्न लग रहा था l इससे पहले कि संघर्ष शुरू हुआ, हालाँकि, दोनों लोग अपने मालिक के साथ अपने मतभेदों पर चर्चा करने के लिए सहमत हुए, जिन्होंने उन्हें अलग-अलग टीमों में डाल दिया l यह एक समझदारी भरा कदम था l उस दिन, अशोक ने यह सबक सीखा : एकजुट होना का मतलब हमेशा एक साथ काम करना नहीं है l
अब्राहम को इस सच्चाई का एहसास हुआ होगा जब उसने सुझाव दिया था कि वह और लूत बेतेल में अपने अलग मार्ग को चुन लें (उत्पत्ति 13:5-9) l यह देखते हुए कि उनके दोनों झुंडों के लिए पर्याप्त जगह नहीं थी, अब्राहम ने समझदारी से साहचर्य छोड़ दी l लेकिन पहले, उसने बल देकर कहा कि वे “बाई-बंधू” (पद.8) हैं, लूत को आपसी सम्बन्ध याद दिलाया l फिर, अत्यधिक विनम्रता के साथ, उन्होंने अपने भतिजे को पहली पसंद (पद.9) दी, भले ही वह अब्राहम, वरिष्ठ व्यक्ति था l यह वैसे था, जैसा कि एक पास्टर ने वर्णन किया है, “एक सामंजस्यपूर्ण अलगाव l”
परमेश्वर द्वारा अद्वितीय रूप से बनाए जाने के कारण, हम पाते हैं कि हम एक ही लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कभी-कभी अलग रहकर बेहतर काम करते हैं l विविधता में एक एकता है l हालाँकि, हम कभी नहीं भूलते, कि हम अभी भी परमेश्वर के परिवार में भाई-बहन हैं l हम चीजों को अलग तरीके से कर सकते हैं, लेकिन हम उद्देश्य में एकजुट रहते हैं l
क्या परमेश्वर है?
लीला कैंसर से मर रही थी, और उसका पति, तिमोथी, यह नहीं समझ पा रहा था कि एक प्रेमी परमेश्वर अपनी पत्नी को पीड़ित क्यों होने देगा l उसने ईमानदारी से एक बाइबल शिक्षक और सलाहकार के रूप में कई लोगों की सेवा उसकी की थी l “आपने ऐसा क्यों होने दिया?” उसने पुकारा l इसके बावजूद तिमोथी परमेश्वर के साथ चलने में विश्वासयोग्य रहा l
“तो अभी भी तुम परमेश्वर में विश्वास क्यों करते हो?” मैंने उससे खुलकर पूछा l “कौन सी बात तुम्हें उससे दूर नहीं जाने देता है?”
“पहले जो हुआ है, उसके कारण,” तिमोथी ने जवाब दिया l जबकि वह अब परमेश्वर को “देख” नहीं सकता था, उसने उन समयों को याद किया जब परमेश्वर ने उसकी मदद की थी और उसकी रक्षा की थी l ये संकेत थे कि परमेश्वर अभी भी उसके परिवार की देखभाल कर रहा था l “मैं उस परमेश्वर को जानता हूँ जिसमें मैं विश्वास करता हूँ जो अपने तरीके से मदद करेगा,” उसने कहा l
तिमोथी के शब्द यशायाह 8:17 में लिखी यशायाह की अभिव्यक्ति को प्रतिध्वनित करती है l यहाँ तक कि जब वह परमेश्वर की उपस्थिति महसूस नहीं कर सकता था क्योंकि उसके लोग अपने शत्रुओं की ओर से मुसीबत के लिए तैयारी कर रहे थे, वह “यहोवा की बाट [जोहेगा] l” उसने परमेश्वर में उन संकेतों के कारण भरोसा किया जो उसने अपनी निरंतर उपस्थिति के विषय दिया था (पद.18) l
ऐसे समय होते हैं जब हम महसूस कर सकते हैं कि हमारी परेशानियों में परमेश्वर हमारे साथ नहीं है l ऐसे समय में ही हम अपने जीवन में उसके कार्यों को अतीत और वर्तमान में देख सकते हैं l वे ही अदृश्य परमेश्वर के दृश्य अनुस्मारक हैं – एक परमेश्वर जो हमेशा हमारे साथ है और अपने समय और तरीके से उत्तर देगा l