बुलबुले में रहना
मुझे यकीन है कि हम में से कई बच्चे खेलते समय साबुन के "बुलबुले" उड़ा चुके हैं l इन बड़े और छोटे अर्धपारदर्शी पोलकों को चमकते हुए हवा में तैरते देखना एक परम आनंद है l ये मंत्रमुग्ध करने वाले "बुलबुले" केवल सुंदर नहीं हैं, लेकिन वे हमें जीवन के बारे में याद दिलाते हैं जो एक छोटी सी अनिश्चितता है l
हम कई बार महसूस कर सकते हैं कि हम "बुलबुले" में रह रहे हैं, अनिश्चित है कि हमारे पास जीवन की दौड़ में प्रतिस्पर्धा करने या खत्म करने के लिए क्या है l जब हम ऐसा महसूस कर रहे होते हैं, तो यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि यीशु में हम अपनी नियति के विषय अनिश्चित नहीं हैं l परमेश्वर के बच्चों के रूप में, उसके राज्य में हमारा स्थान सुरक्षित है (यूहन्ना 14: 3) l हमारा विश्वास उसी से निकलता है जिसने यीशु को "आधारशिला" चुना है, जिस पर हमारा जीवन निर्मित है, और उसने हमें "जीवित पत्थर" होने के लिए चुना जो परमेश्वर की आत्मा से भरा हुआ है, ऐसे लोग बनने में सक्षम जैसे परमेश्वर की इच्छा थी (1 पतरस 2:5-6) l
मसीह में, हमारा भविष्य सुरक्षित है जब हम उसमें आशा रखते हैं और उसका अनुसरण करते हैं (पद.6) l क्योंकि “[हम] एक चुना हुआ वंश, और राज-पदधारी याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और (परमेश्वर की) निज प्रजा [हैं], इसलिए कि जिसने [हमें] अन्धकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट [करें[“ (पद.9) l
यीशु के निगाहों में हम “बुलबुले पर” नहीं हैं l हम “चुना हुआ और बहुमूल्य” हैं (पद.4) l
अगला काम करें
आखिरी बार कब आप किसी की मदद करने के लिए विवश हुए थे, केवल किसी प्रतिक्रिया के बिना उस क्षण के गुज़रने के लिए? द 10-सेकंड रूल (The 10-Second Rule) में, क्लेयर डी ग्रेफ का सुझाव है कि दैनिक प्रभाव उन तरीकों में से एक हो सकता है जिसमें परमेश्वर हमें एक गहरी आध्यात्मिक सैर के लिए बुलाता है, आज्ञाकारिता का जीवन जो उसके लिए प्रेम से प्रेरित है l 10-दूसरा नियम आपको प्रोत्साहित करता है कि “आप विवेकी तौर पर अगली बात करें जो यीशु आपसे चाहते हैं,” और उसे तुरंत करें “इससे पहले कि आप अपना मन बदल लें l”
यीशु कहते हैं, “यदि तुम मुझ से प्रेम रखते है, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे” (युहन्ना 14:15) l हम सोच सकते हैं, मैं उससे प्रेम करता हूँ, लेकिन मैं उसकी इच्छा और उसके अनुसरण के विषय कैसे निश्चित हो सकता हूँ? अपनी बुद्धिमत्ता में, यीशु ने बाइबल में पायी जानेवाली बुद्धिमत्ता को बेहतर समझने और उसका अनुसरण करने का प्रबंध किया है l उसने एक बार कहा था, “मैं पिता से विनती करूँगा और वह तुम्हें एक और सहायक देगा कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे l अर्थात् सत्य का आत्मा” (पद.16-17) l यह आत्मा के काम के द्वारा से है, जो हमारे साथ है और हममें है, कि हम यीशु की “आज्ञाओं को [मानना और पालन करना सीख सकते हैं]” (पद.15) – हमारे सम्पूर्ण दिन में उसके विवेकी बातों का अनुभव करते हुए प्रत्युत्तर देकर (पद.17) l
बड़ी और छोटी बातों में, आत्मा हमें भरोसे के साथ विश्वास करने के लिए प्रेरित करता है कि कौन सी बातों से परमेश्वर का सम्मान होगा और उसके और दूसरों के लिए उसका प्रेम प्रगट होगा (पद.21) l
श्रेष्ठ हस्तक्षेप
बारबरा की परवरिश 1960 के दशक में ब्रिटिश सरकार की देखरेख में हुयी, परन्तु जब वह सोलह साल की हुयी, वह और उसका नवजात पुत्र, साइमन, बेघर हो गए l राज्य उसके लिए उस उम्र में प्रबंध करने के लिए अब और बाध्य नहीं था l बारबरा ने इंग्लैंड की रानी से सहायता मांगी और उत्तर प्राप्त की! रानी ने सहानुभूतिपूर्वक बारबरा के लिए एक घर का प्रबंध कर दिया l
इंग्लैंड की रानी के पास बारबरा की सहायता करने के लिए सही संसाधन थे, और उसकी सहानुभूतिपूर्ण सहायता परमेश्वर की सहायता का एक छोटा प्रतिरूप हो सकता है l स्वर्ग का राजा हमारी सभी ज़रूरतें जानता है और प्रमुखता से हमारे जीवनों में अपनी योजनाएं पूरी करता है l करते समय, हालाँकि, वह चाहता है हम उसके पास जाएँ, उसके साथ प्रेमी सम्बन्ध के तौर पर – अपनी ज़रूरतें और दूसरी चिंताएं साझा करें l
इस्राएलियों ने छुटकारे की अपनी ज़रूरत को परमेश्वर के पास लेकर आए l वे मिस्री दासत्व के बोझ के नीचे दुःख उठा रहे थे और उन्होंने सहायता मांगा l वह उनकी सुनकर उसने अपनी प्रतिज्ञा को याद किया : “परमेश्वर ने इस्राएलियों पर दृष्टि करके उन पर चित्त लगाया” (निर्गमन 2:15) l उसने मूसा से उसके लोगों को छुटकारा देने को कहा और घोषणा की कि वह एक बार फिर उनको छुड़ाकर “एक अच्छे और बड़े देश में, जिसमें दूध और मधु की धाराएं बहती है” पहुँचाएगा (3:8) l
हमारा राजा पसंद करता है कि हम उसके पास जाएँ! वह बुद्धिमानी से हमारी ज़रूरतों का प्रबंध करता है, ज़रूरी नहीं कि जो हमारी इच्छा है l उसके श्रेष्ठ, प्रेमी प्रबंध में विश्राम करें l
हमारी दुर्बलता में
यद्यपि ऐनी शीफ मिलर की मृत्यु 90 वर्ष की आयु में 1999 में हुयी, वह अकाल प्रसव के बाद सेप्टिसीमिया(खून का जहरीला हो जाना/blood poisoning) हो जाने और सभी इलाज के असफल होने के बाद लगभग 1942 में मर चुकी थी l जबकि उसी अस्पताल के एक मरीज़ ने अपने संपर्क में एक विज्ञानी के विषय बताया कि वह एक नयी चमकारिक औषधि पर कार्य कर रहा है l ऐनी के डॉक्टर ने सरकार से ऐनी को उसी दवा की एक छोटी खुराक देने के लिए जोर डाला l एक ही दिन में, उसका तापमान नार्मल हो गया था! पेनिसिलिन(औषधि) ने ऐनी का जीवन बचा लिया था l
पतन के समय से, समस्त मानव जाति पाप द्वारा लायी गयी विनाशक आत्मिक स्थिति का अनुभव कर रही है (रोमियों 5:12) l केवल यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान और पवित्र आत्मा की सामर्थ्य ही हमारी चंगाई को संभव बनाया है (8:1-2) l पवित्र आत्मा हमें इस पृथ्वी पर और परमेश्वर की उपस्थिति में अनंत के लिए बहुतायत के जीवन का आनंद लेने के योग्य बनाता है (पद.3-10) l “यदि उसी का आत्मा जिसने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया, तुम में बसा हुआ है; तो जिसने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया, वह तुम्हारी नश्वर देहों को भी अपने आत्मा के द्वारा जो तुम में बसा हुआ है, जिलाएगा” (पद.11) l
जब आपका पापी स्वभाव आपके अन्दर के जीवन को निचोड़ने की धमकी दे, अपने उद्धार के श्रोत, यीशु, की ओर देखें, और उसकी आत्मा की सामर्थ्य द्वारा सुदृढ़ बनें (पद.11-17) l “आत्मा . . . हमारी निर्बलता में सहायता करता है” और “ हमारे लिए विनती करता है” (पद.26-27) l
परमेश्वर की सेवानिवृत्ति योजना
पुरातत्वविद डॉ. वॉरविक रॉडवेल सेवानिवृत्त होने की तैयारी कर रहे थे जब उन्होंने इंग्लैंड में लिचफील्ड कैथेड्रल(प्रधान गिरजाघर) में एक असाधारण खोज की l जब निर्माता एक खींचने योग्य आधार बनाने का प्रयास करते समय सावधानीपूर्वक चर्च इमारत के फर्श के एक हिस्से की खुदाई कर रहे थे, उनको महादूत जिब्राएल की एक प्रतिमा मिली, जो 1,200 वर्ष पुरानी मानी जाती है l डॉ. रॉडवेल की सेवानिवृत्ति योजना रोक दी गयी क्योंकि उनकी खोज ने उनको एक रोमांचक और व्यस्त नए अवधि में पहुँचा दिया l
मूसा अस्सी वर्ष का था जब उसने एक अग्निमय खोज की जो उसके जीवन को हमेशा के लिए बदल देने वाला था l एक मिस्री राजकुमारी का दत्तक पुत्र होने के बावजूद, वह अपने इब्री वंशावली को कभी नहीं भूला और अपने नातेदार के विरुद्ध अन्याय को देखकर क्रोधित हुआ (निर्गमन 2:11-12) l जब फिरौन को पता चला कि मूसा ने एक मिस्री की हत्या कर दी है जो एक इब्री को मार रहा है, उसने उसे घात करने की योजना बनायी, जिसके कारण मूसा मिद्यान देश में भाग कर वहाँ रहने लगा (पद.13-15) l
चालीस साल बाद, जब मूसा अस्सी वर्ष का हो गया, वह अपने ससुर की भेड़-बकरियाँ चराने लगा तब “परमेश्वर के दूत ने एक कटीली झाड़ी के बीच आग की लौ में उसको दर्शन दिया; और उसने दृष्टि उठाकर देखा कि झाड़ी जल रही है, पर भस्म नहीं होती” (3:2) l उस क्षण, परमेश्वर ने मूसा को इस्राएलियों को मिस्री दासत्व से निकालने में अगुवाई करने के लिए बुलाया (पद.3-25) l
आपके जीवन के इस क्षण में, परमेश्वर आपको अपने बड़े उद्देश्य के लिए क्या करने के लिए बुला रहा है? उसने आपके मार्ग में कौन सी नयी योजनाएं रखीं है?
उन्हें भूल जाओ और आगे बढ़ो
मुझे एक बुद्धिमत्ता पूर्ण परामर्श स्मरण आया, जो मुझे एक रेडियो प्रस्तुतकर्ता मित्र ने दिया था। अपने पेशे के आरम्भ में जब मेरे मित्र ने इस बात में संघर्ष किया कि आलोचना और प्रशंसा का सामना कैसे करना है, उसे महसूस हुआ कि परमेश्वर चाहता है कि वह उन दोनों को भूल जाए। जो बात उसने दिल में रख ली उसका सार यह है। आलोचना से जो कुछ भी मिले सीख लो और प्रशंसा को स्वीकार करो। उसके पश्चात दोनों को भूल जाओ और परमेश्वर के अनुग्रह और सामर्थ में आगे बढ़ जाओ।
आलोचना और प्रशंसा हम में प्रबल भावनाएँ उत्पन्न करते हैं, यदि इन पर ध्यान न दिया जाए तो यह हमें या तो स्वयं से घृणा या अत्यधिक घमण्ड की ओर ले जा सकते हैं। नीतिवचन में हम प्रोत्साहन और बुद्धिमत्तापूर्ण परामर्श के लाभ पढ़ते हैं: “अच्छे समाचार से हड्डियाँ पुष्ट होती हैं। जो जीवनदायी डाँट कान लगाकर सुनता है, वह बुद्धिमानों के संग ठिकाना पाता है। जो शिक्षा को सुनी-अनसुनी करता, वह अपने प्राण को तुच्छ जानता है, परन्तु जो डाँट को सुनता, वह बुद्धि प्राप्त करता है” (15:30-32)
यदि हमारी अत्यधिक आलोचना हो रही है तो प्रभु करे कि हम उसके द्वारा प्रखर होने को चुनें। नीतिवचन की पुस्तक बताती है: “जो जीवनदायी डाँट कान लगाकर सुनता है,
वह बुद्धिमानों के संग ठिकाना पाता है (पद 31)।
और यदि हमें प्रशंसा के शब्दों की आशीष प्राप्त होती है, तो प्रभु कर कि हम तरोताजा हो जाएँ और धन्यवाद से भर जाएँ। जब हम दीनता से परमेश्वर के साथ चलते हैं, तो वह हमें आलोचना और प्रशंसा, दोनों, से सीख लेने, उन्हें भूल जाने और फिर उसमें आगे बढ़ जाने में सहायता करता है (पद 33) ।
बदल चुके और बदलते हुए
तानी और मोदुप नाइजीरिया में पले बढ़े और 1970 के दशक में पढ़ने के लिए यूके आ गयेl जब परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा उनके जीवन व्यक्तिगत रीती से बदले तो उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि परमेश्वर उन्हें इंग्लैण्ड के एक सबसे वंचित और जुदा समुदाय लिवरपूल के ऐनफील्ड में इस्तेमाल करेगाl जब डाक्टर तानी और मोदुप ओमिदेई ने विश्वासयोग्यता के साथ परमेश्वर को खोजा और अपने समुदाय के लिए सेवा-कार्य किया तो परमेश्वर ने फिर से बहुतों की आशा को बंधायाl वे एक जोशपूर्ण कलीसिया का नेतृत्व कर रहे हैं और निरंतर बहुत सी ऐसी परियोजनाएं चला रहे हैं जिनके कारण असंख्य जीवन बदले हैंl
मनश्शे अपने समुदाय में बदलाव लाया, अर्थात पहले उन्हें बुराई की ओर, और फिर अच्छाई की ओर ले गयाl 12 वर्ष की आयु में यहूदा का राजा नियुक्त होने के बाद उसने इस्राएलियों को पथभ्रष्ट कर दिया और वे बहुत वर्षों तक बुराई करने में लगे रहे (2 इतिहास 33:1-9)l उन्होंने परमेश्वर की चेतावनियों की ओर कोई मन नहीं लगाया और इसलिए उसने यह होने दिया कि मनश्शे को बंदी बनाकर बाबुल को ले जाया जाए (पद 10-11)l
अपने कष्ट में, राजा ने अपने आपको दीन करते हुए परमेश्वर को पुकारा, जिसने उसकी पुकार को सुना और उसका राज्य उसे वापिस लौटा दिया (पद 12-13)l अब बिलकुल बदल चुके राजा ने शहरपनाह को फिर से बनाया और सब पराए देवताओं को अपने राज्य में से निकाल फेंका (पद 14-15)l “तब उसने यहोवा की वेदी की मरम्मत की और...यहूदियों को इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की उपासना करने की आज्ञा दी” (पद 16)l जब लोगों ने मनश्शे के इस पूर्ण बदलाव को देखा तो वे भी बदल गये (पद 17)l
परमेश्वर करे कि जब हम उसे खोजते हैं तो वह हमारे जीवनों को बदले और ऐसा करके हमारे माध्यम से हमारे समुदायों पर प्रभाव डालेl