जनवरी, 2017 | हमारी प्रतिदिन की रोटी Hindi Our Daily Bread - Part 2

Month: जनवरी 2017

परमेश्वर का चेहरा

लेखक के रूप में मेरी अधिकतर जीविका दुःख की समस्या के चारों-ओर घूमती रही l मैं ऊँगली द्वारा एक नासूर को छेड़ने जैसे प्रश्नों की ओर बार-बार उन्हीं लौटता l मैं अपने पाठकों से सुनता हूँ, और उनकी दुखद कहानियाँ मेरे संशय को वास्तविक बनाती हैं l मुझे एक युवा पासवान का प्रश्न याद है जिसकी पत्नी और छोटी बेटी दूषित रक्त चढ़ाने से एड्स से मर रहे हैं l “मैं अपने युवा समूह से एक प्रेमी परमेश्वर के विषय कैसे बातचीत कर सकता हूँ l” l

मैं इस तरह के “क्यों” प्रश्नों का उत्तर नहीं देने का प्रयास करना सीख लिया है : क्यों युवा पासबान की पत्नी को एक बोतल दूषित रक्त चढ़ाया गया? क्यों तूफ़ान एक शहर को तबाह करता है, दूसरे को नहीं? क्यों शारीरिक चंगाई की प्रार्थना अनसुनी होती है?“

क्या परमेश्वर चिंतित है?” केवल एक ही उत्तर है, यीशु l यीशु में परमेश्वर ने एक चेहरा दिया l परमेश्वर अपने इस कराहते संसार में दुःख के विषय क्या सोचता है? यीशु को देखें l

“क्या परमेश्वर चिंतित है?” परमेश्वर पुत्र की मृत्यु, जो आखिरकार दर्द, दुःख, पीड़ा, और मृत्यु को हमेशा के लिए समाप्त कर देगी, ही उस प्रश्न का उत्तर है l “इसलिए कि परमेश्वर ही है, जिसने कहा, “अंधकार में से ज्योति चमके,” और वही हमारे हृदयों में चमका कि परमेश्वर की महिमा की पहिचान की ज्योति यीशु मसीह के चेहरे से प्रकाशमान हो” (2 कुरिन्थियों 4:6) l

सब त्याग दें

कॉलेज बास्केटबॉल खेलते समय, मैंने हरेक खेल के मौसम में अभिज्ञ निर्णय किया कि मैं जिम में जाकर अपने को पूरी तरह कोच के अधीन करूँगा-कोच की आज्ञानुसार सब करूँगा l

मेरे टीम के लिए यह बोलना लाभकारी नहीं होता, “हे कोच! मैं यहाँ हूँ l मैं बास्केट में  बाल डालना चाहता हूँ और बाल को आगे ले जाना चाहता हूँ, किन्तु मुझसे बाल लेकर दौड़ने, बचाव करने और पसीना बहाने को न कहें !”

टीम की भलाई के लिए प्रत्येक सफल खिलाड़ी को कोच की बातों पर पर्याप्त् भरोसा करना होगा l

मसीह में, हमें परमेश्वर का “जीवित बलिदान” बनना होगा (रोमियों 12:1) l हम अपने उद्धारकर्ता और प्रभु से बोलते हैं : “मैं आप पर भरोसा करता हूँ l जो भी आप मुझे आज्ञा देंगे, मैं करूँगा l” तब वह हमें हमारे मस्तिष्क को उसकी इच्छित वस्तुओं पर केन्द्रित होने के लिए “रूपांतरित” करता है l

यह जानना सहायक होगा कि परमेश्वर वही हमसे करवाता है जिसके लिए सज्जित किया है l जैसे पौलुस याद दिलाता है, “उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न-भिन्न वरदान मिले हैं” (पद.6) l

जानते हुए कि हम अपने जीवनों में परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं, हम अपना जीवन उस पर निछावर कर सकते हैं, यह जानकार कि उसने हमें बनाया और उसके लिए समस्त प्रयास में हमारी मदद करता हैं l

जीवन की श्वास

एक ठंडी और तुषाराच्छादित सुबह में, मेरी बेटी और मैं स्कूल जाते समय, अपने श्वास को भाप में बदलते देखा l हमारे मुहं से निकलनेवाली वाष्पमय बादलों पर हम खिलखिला रहे थे l मैंने उस क्षण को उपहार स्वरूप लिया, उसके साथ आनंद करना और जीवित l

आम तौर पर हमारा अदृश्य श्वास ठंडी हवा में दिखाई दिया, और श्वास और जीवन के श्रोत-हमारा सृष्टिकर्ता प्रभु-के विषय सोचने को कायल किया l आदम को धूल से रचकर उसमें श्वास फूंकनेवाला हमें और समस्त जीवों को जीवन देता है (उत्प. 2:7) l सब वस्तुएँ उसकी ओर से हैं-हमारा श्वास भी, जिसे हम बगैर सोचे लेते हैं l      

इस सुविधा युक्त और तकनीकी संसार में रहते हुए हम हमारे आरंभ को और कि परमेश्वर हमारा जीवनदाता है को भूलने की परीक्षा में पड़ सकते हैं l किन्तु जब हम ठहरकर विचारते हैं कि परमेश्वर हमारा बनानेवाला है, हम अपने दिनचर्या में धन्यवादी आचरण जोड़ सकते हैं l हम दीन, धन्यवादी हृदयों से जीवन के उपहार को स्वीकार करने हेतु उससे सहायता मांग सकते हैं l हमारा धन्यवाद छलक कर दूसरों को स्पर्श करें, ताकि वे भी प्रभु की भलाइयों और विश्वासयोग्यता के लिए उसे धन्यवाद दे सकें l

बांटने योग्य धन

1974 के मार्च में, एक कुआं खोदते समय चीनी किसानों ने चौकानेवाली खोज की l मध्य चीन के सूखी धरती के नीचे लाल भूरे रंग की पकी मिट्टी की सेना (Terracotta Army) मिली-ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी की आदम कद पकी मिट्टी की मूर्तियाँ l इस अद्भुत खोज में लगभग 8,000 सैनिक, 150 अश्वारोही सेना, और 520 घोड़ों द्वारा खींचे जानेवाले 130 रथ l  यह टेराकोटा सेना चीन के सैलानी स्थलों में सबसे अधिक प्रसिद्ध है, जिसे लाखों लोग देखने आते हैं l यह अदभुत धन शताब्दियों से छिपा था किन्तु अब संसार के साथ बांटा जा रहा है l

प्रेरित पौलुस ने मसीह के अनुगामियों को लिखा कि उनके अन्दर एक धन है जिसे संसार के साथ बांटना होगा : “वही [ज्योति] हमारे हृदयों में चमकी ... परन्तु हमारे पास वह धन मिट्टी की बरतनों में रखा है” (2 कुरिं. 4:7) l यह धन हमारे अन्दर मसीह और उसके प्रेम का है l

यह धन छिपाने के लिए नहीं बांटने के लिए है कि परमेश्वर के प्रेम और अनुग्रह द्वारा प्रत्येक राष्ट्र के लोग उसके परिवार में शामिल हो सकें l काश हम भी, पवित्र आत्मा की सामर्थ्य में आज किसी के साथ यह धन बाँट सकें l

लम्बी छाया

कई वर्ष पूर्व, हमदोनों पति-पत्नी और अन्य चार ब्रिटेन वासी जोड़े इंग्लैंड के एकांतयॉर्कशायर डेल्स के एक ग्रामीण होटल में ठहरे थे l हम एक दूसरे से अपरिचित थे l रात्री भोजन पश्चात् बैठक में कॉफ़ी पीते समय, हमारी बातचीत एक प्रश्न के साथ व्यवसाय में बदल गई “आप क्या करते हैं?” उस समय मैं शिकागो में मूडी बाइबिल इंस्टीट्यूट का अध्यक्ष था l मेरा अनुमान था कि वहाँ पर सभी मूडी बाइबिल इंस्टीट्यूट या उसके संस्थापक डी.एल. मूडी से अपरिचित थे l इंस्टीट्यूट का नाम बताने पर उनका प्रतिउत्तर त्वरित और चौकाने वाला था l “मूडी और शैंकी ... वह मूडी?” एक अन्य अतिथि बोला, “हमारे पास शैंकी गीतावली है और हम पियानो के चारों ओर खड़े होकर उसमें से गाते हैं l” मैं चकित हुआ! डिवाईट मूडी और उसका संगीतकार आयरा शैंकी ने ब्रिटिश आइल्स में 120 वर्ष पूर्व सभाएं आयोजित की थी, और उनका प्रभाव वर्तमान में भी था l

मैं उस रात उस कमरे से जाते समय सोचता रहा कि किस तरह हमारे जीवन परमेश्वर के लिए प्रभाव की लम्बी छाया छोड़ते हैं-बच्चों पर प्रार्थना करनेवाली माँ का प्रभाव, एक सहकर्मी का उत्साहित करनेवाले शब्द, एक शिक्षक का सहयोग और चुनौती, मित्र के प्रेमी किन्तु उपचारात्मक शब्द l अदभुत प्रतिज्ञा में भूमिका निभाना उच्च सौभाग्य है कि “उसकी करुणा ... पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है” (भजन 100:5) l

जीवन पाना

रवि के पिता के शब्दों ने गहरी चोट दी l “तुम पूर्ण विफल और परिवार के लिए शर्मिन्दी हो l” उनके प्रतिभावान बच्चों की तुलना में, रवि कलंक के रूप में देखा जाता था l वह खेल में माहिर बनना चाहा, और बना भी, किन्तु पराजित महसूस किया l वह सोचने लगा, उसका क्या होगा? क्या मैं पूरी तौर से नाकामयाब हूँ? क्या बिना कठिनाई के अपने जीवन से बच सकता हूँ,?  ऐसे विचार उसको कचोटते थे, किन्तु वह चुप रहा l उसकी संस्कृति ने उसे सिखाया था, “अपने व्यक्तिगत दर्द को व्यक्तिगत” रखना; “अपने टूटते संसार को संभालना l”

इसलिए रवि अकेले संघर्ष करता रहा l आत्म-हत्या के प्रयास के बाद हॉस्पिटल में स्वास्थ्य प्राप्त करते समय, एक मिलनेवाले ने उसे बाइबिल में यूहन्ना 14 खोलकर दी l उसकी माँ ने रवि को यीशु के शब्द पढ़कर सुनाए : “इसलिए कि मैं जीवित हूँ, तुम भी जीवित रहोगे” (पद.19) l उसने सोचा, “यह मेरी आख़िरी आशा होगी l जीवन का एक नया तरीका l जीवन के रचनाकार द्वारा परिभाषित जीवन l  इसलिए उसने प्रार्थना किया, “यीशु, यदि आप वास्तविक जीवन देनेवाले हैं, मैं ठहरूँगा l”

जीवन निराशाजनक क्षण लाता है l किन्तु रवि की तरह, हम यीशु में आशा प्राप्त कर सकते हैं जो “मार्ग सत्य और जीवन हैं” (पद.6) l परमेश्वर हमें समृद्ध और संतुष्ट जीवन देना चाहता है l

आशीष की घाटी

फ़्रांसीसी कलाकार हेनरी मातिस्से के अनुसार उसके जीवन के अंतिम वर्षों के उसके कार्य उसका सही निरूपण थे l उन दिनों में उसने एक नयी शैली में रंग के स्थान पर कागज़ की सहायता से रंगीन, लम्बे तस्वीर बनाए l उसने इन तस्वीरों से अपने कमरे के दीवार सजाए l  कैंसर से पीड़ित होने के कारण यह महत्वपूर्ण था क्योंकि वह ज्यादातर बिस्तर पर सीमित रहता था l

बीमारी, नौकरी खो देना, या कोई बड़ी मुसीबत कुछ उदहारण हैं जिसे कुछ लोग “घाटी में रहना,” कहते हैं, जहाँ खौफ की छाया रहती है l यहूदा के लोग आक्रामक सेना को आते देख ऐसा ही अनुभव किया (2 इतिहास 20:2-3) l उनके राजा ने प्रार्थना की, “यदि ... विपत्ति हम पर पड़े, तौभी हम ... तेरी दोहाई देंगे, और तू सुनकर बचाएगा” (पद.9) l परमेश्वर ने उत्तर दिया, “कल [अपने शत्रुओं का] सामना करने को चलना और यहोवा तुम्हारे साथ रहेगा” (पद.17) l

यहूदा की सेना के युद्धभूमि में आने से पूर्व, उनके शत्रु अपना नाश कर डाले l परमेश्वर के लोगों ने तीन दिनों तक परित्यक्त सामग्री, कपड़े और महत्वपूर्ण वस्तुएँ इकट्ठे किये l उस स्थान को छोड़ने से पूर्व वे मिलकर परमेश्वर की प्रशंसा की और उस स्थान का नाम “बराका की तराई,” अर्थात् “आशीष” रखा l

परमेश्वर हमारे जीवनों के निम्नतम बिंदु में भी साथ रहता है l वह इन घाटियों में आशीष देता है l

पाने के लिए खोना

जब मैं अपने अंग्रेज मंगेतर से विवाह करके ग्रेट ब्रिटन में रहने लगी, मैंने सोचा यह विदेश में पंच-वर्षीय रोमांच होगा l मैंने कभी नहीं सोचा कि मैं लगभग बीस वर्षों से यहाँ लगातार रहूँगी, या कभी-कभी इस अहसास के साथ कि मैंने अपने परिवार और मित्र, कार्य, और समस्त परिचित बातों को अलविदा कही थी l किन्तु जीवन के पुराने तरीके छोड़कर, मैंने एक बेहतर जीवन पाया है l

यीशु ने अपने शिष्यों से प्रतिज्ञा की कि जीवन पाने का उल्टा उपहार है, जब हम खोकर पाते हैं l जब उसने बारह शिष्यों को सुसमाचार सुनाने हेतु भेजा, उसने उनसे उसे अपने माता या पिता, बेटा या बेटी से अधिक प्रेम करने को कहा (मत्ती 10:37) l उसके शब्द एक ऐसी संस्कृति में कही गई जहाँ परिवार समाज की आधारशिला थी और अत्यधिक महत्वपूर्ण l किन्तु उसकी प्रतिज्ञा थी कि वे उसके लिए अपना जीवन खोकर, उसे प्राप्त करेंगे (पद.39) l

मसीह में खुद को पाने के लिए हमें विदेश नहीं जाना पड़ेगा l सेवा और समर्पण द्वारा-जैसे शिष्य परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाने हेतु तैयार थे-हम प्रभु को देने से अधिक प्रभु के उदार प्रेम के कारण अधिक प्राप्त करते हैं l अवश्य ही वह हमसे प्रेम करता है चाहे हम जितनी भी उसकी सेवा करें, किन्तु दूसरों के लिए अपने को समर्पित करके हम संतोष, अर्थ, और तृप्ति पातें हैं l

आंधी में बढ़ना

हवा के बगैर संसार में, झील शांत रहते l पेड़ों के गिरते पत्ते सड़कों पर नहीं फैलते l किन्तु शांत हवा में, क्या कोई पेड़ गिरता? एरिज़ोना के मरुस्थल में बायोस्फीयर 2 नामक एक हवा रहित कांच के तीन एकड़ बड़े बुलबुले में ऐसा ही हुआ l उसमें लगे पेड़ स्वाभाविक से अधिक तेज बढ़कर अचानक अपने ही बोझ से गिर गए l प्रोजेक्ट शोधकर्ताओं के अनुसार इन पेड़ों को मजबूती हेतु हवा का दबाव चाहिए था l

यीशु ने अपने शिष्यों का विश्वास मजबूत करने हेतु उनको तूफ़ान का अनुभव करने दिया (मरकुस 4:36-41) l एक रात परिचित झील में, अचानक आया तूफ़ान अनुभवी मछुआरों पर भारी पड़ा l आंधी और पानी से नाव भारी संकट में थी, जबकि थकित यीशु पिछले भाग में सो रहा था l उन्होंने घबराकर उसे जगाया l क्या उनके गुरु को उनकी चिंता नहीं थी? वह क्या सोच रहा था?  तब उन्होंने जानना चाहा l यीशु ने आंधी और पानी को शांत करके  मित्रों से पुछा कि उनको अब तक विश्वास क्यों नहीं था l

यदि आंधी चली नहीं होती, शिष्य कभी नहीं पूछे होते, “यह कौन है कि आंधी और पानी भी उसकी आज्ञा मानते हैं?” (मरकुस 4:41) l

आज, जीवन का एक सुरक्षित बुलबुले में होना अच्छा लग सकता है l किन्तु परिस्थिति की आंधी की चीख में उसके “शांत रह” का खुद अनुभव किये बगैर हमारा विश्वास कितना मजबूत होगा?