Month: मार्च 2017

सम्पूर्ण प्रेम दिखाना

अपनी बेटी की समस्या बताते समय उसकी आवाज़ में व्याकुलता थी l  अपनी बेटी के संदिग्ध मित्रों के विषय परेशान, इस चिंतित माँ ने उसका मोबाइल फ़ोन छीनकर हर जगह उसकी निगरानी करने लगी l दोनों के बीच का सम्बन्ध बद से बदतर हो गया l

उसकी बेटी से बातचीत से मैंने पाया कि वह अपनी माँ से अत्यधिक प्रेम करती है किन्तु दमघोंटू प्रेम में उसकी सांस रुकती है l वह स्वतंत्र होना चाहती है l

अपूर्ण व्यक्ति होने के कारण हम सब अपने संबंधों में संघर्ष करते हीन l हम माता-पिता हैं अथवा बच्चे, अविवाहित या विवाहित, हम प्रेम के सही प्रगटन का सामना करते हैं, अर्थात् सही समय पर सही बात कहना और करना l

1 कुरिन्थियों 13 में पौलुस सिद्ध प्रेम को परिभाषित करता है l उसके मानक अद्भुत है, किन्तु उस प्रेम का अभ्यास पुर्णतः चुनौतीपूर्ण है l धन्यवाद हो, हमारे पास आदर्श के तौर पर यीशु है l विभिन्न और समस्याओं के साथ लोगों से उसके मुलाकात में हम सिद्ध व्यवहारिक प्रेम देखते हैं l उसके साथ चलकर, उसके प्रेम में रहकर और उसके वचन से भरकर, हम उसकी समानता को और अधिक प्रतिबिंबित करेंगे l हम फिर भी गलतियां करेंगे, किन्तु परमेश्वर उनसे बचाएगा हर स्थिति से भलाई निकलेगी, क्योंकि उसका प्रेम “सब बातें सह लेता है” और “कभी टालता नहीं l”

स्वागत का उपहार

जो भोज हमनें पाँच देशों के परिवारों के लिए आयोजित किया था एक अद्भुत यादगार है l  पता नहीं क्यों बातचीत दो भागों में नहीं बँटा, किन्तु हम सब ने लन्दन के जीवन पर एक चर्चा में विश्व के विभिन्न भागों के दृष्टिकोण प्रस्तुत किये l शाम के अंत में, हम दोनों पति-पत्नी ने विचारा कि हमने देने से अधिक पाया, जिसमें नए मित्र बनाने और भिन्न संस्कृतियों से सीखने के वे स्नेही अहसास शामिल थे l

इब्रानियों के लेखक ने सामाजिक जीवन के लिए कुछ प्रोत्साहन में अपने पाठकों से आतिथ्य जारी रखने को कहा l ऐसा करने से, “कुछ लोगों ने अनजाने में स्वर्गदूतों का आदर-सत्कार किया है” (13:2) l संभवतः वह अब्राहम और सारा का सन्दर्भ दे रहा होगा, जिन्हें हम उत्पति 18:1-12 में अपरिचितों का स्वागत करते हुए, उनके लिए उदारता से भोज खिलाते देखते हैं, जैसे कि बाइबिल के दिनों में प्रथा थी l उन्हें पता नहीं था कि वे स्वर्गदूतों का खातिर कर रहे थे, जो उनके लिए आशीष का सन्देश लेकर आए थे l

हम लोगों से कुछ पाने के लिए उनको अपने घर आमंत्रित नहीं करते हैं, किन्तु देने से अधिक पाते हैं l उसके नाम से दूसरों का स्वागत करते समय परमेश्वर हमारे द्वारा अपना प्रेम फैलाए l

प्रेम और पुरानी जूती

कभी-कभी हम दोनों पति-पत्नी एक दूसरे के वाक्य पूरी करते हैं l हम तीस वर्षों के वैवाहिक जीवन में एक दूसरे की सोच और बात करने से बहुत अधिक परिचित हैं l हमें किसी वाक्य को पूरा करने की ज़रूरत नहीं; केवल एक शब्द अथवा एक झलक किसी विचार को ज़ाहिर करने के लिए पर्याप्त है l

इसमें सुख है-एक जोड़ी पुरानी जूती की तरह जिसे आप पहनते हैं क्योंकि वे अच्छे से पैरों में आ जाती है l कभी-कभी हम एक दूसरे को प्रेमपूर्वक “मेरी पुरानी जूती” भी पुकारते हैं-ऐसा अभिनन्दन जिसे आप समझ नहीं पाएंगे यदि आप हमें अच्छी तरह जानते नहीं हैं l हमारे वर्षों के सम्बन्ध ने अभिव्यक्तियों के साथ अपनी एक भाषा बना ली है, जो दशकों  के प्रेम और भरोसा का परिणाम है l

यह जानना सुखकर है कि परमेश्वर हमें गहरी अंतरंगता से प्रेम करता है l दाऊद ने लिखा, “हे यहोवा, मेरे मुँह में ऐसी कोई बात नहीं जिसे तू पूरी रीति से न जानता हो” (भजन 139:4) l यीशु के साथ एक शांत बातचीत की कल्पना करें जब आप उसे अपने हृदय की गहरी बातें बता रहें हों l बोलने में कठिनाई होने पर, वह परिचित होने की मुस्कराहट के साथ आपकी बाते पूरी करता है l कितना भला है कि परमेश्वर के साथ बातचीत में सही शब्दों की ज़रूरत नहीं होती! वह हमें समझने के लिए हमें पर्याप्त प्रेम करता और जानता है l

दो आकृतियाँ

चर्च के बरामदे पर एक स्वाभिमानी दादी दो तस्वीर मित्रों को दिखा रही थी l एक चित्र उसके घर, बुरून्डी में उसकी बेटी का था l और दूसरा उसके नवजात पौत्र का जिसे जन्म देते समय उसकी मृत्यु हो गई l  

एक सहेली ने उन तस्वीरों को देखकर, उनके दुःख को अपना मानते हुए, उस प्रिय दादी के चेहरे को अपने हाथों से थाम लिया l उसने अपने आँसुओं द्वारा केवल यह बोली, “मैं समझती हूँ l मैं समझती हूँ l”

और वह समझती थी l दो महीने पहले उसने एक बेटा खोया था l  

दूसरों का दिलासा विशेष है जिन्होंने हमारे दर्द का अनुभव किया है l वे जानते हैं l  यीशु अपनी गिरफ़्तारी से ठीक पहले, अपने शिष्यों को चिताया, “तुम रोओगे और विलाप करोगे, परन्तु संसार आनंद करेगा  l” किन्तु अगले क्षण उसने उनको संभाला : “तुम्हें शोक होगा, परन्तु तुम्हारा शोक आनंद में बदल जाएगा” (यूहन्ना 16:20) l कुछ ही घंटों में, शिष्य यीशु की गिरफ़्तारी और क्रूसीकरण से उजड़ा हुआ महसूस करेंगे l किन्तु उसे जीवित देखकर उनका बिखरता आनंद तुरंत ही अकल्पनीय आनंद में बदल गया l

यशायाह ने उद्धारकर्ता के विषय नबूवत की, “निश्चय उसने हमारे रोगों को सह लिया और हमारे ही दुखों को उठा लिया” (यशा. 53:4) l हमारा प्रभु दुःख के विषय  जानता ही नहीं, बल्कि सहा है l वह चिंता करता है l एक दिन हमारा दुःख आनंद में बदल जाएगा l

हममें से एक

लोकप्रिय पीनट  कॉमिक  का बनानेवाला, चार्ल्स शुल्त्ज़ (1922-2000) की यादगार सभा में, मेरा दोस्त और सहयोगी और कार्टूनिस्ट कैथी गुज़वाईट ने उसकी मानवता और सहानुभूति बताया l “उसने वास्तविक भावनाओं से परिचित संसार के चरित्रों द्वारा और फिर उसने कार्टूनिस्ट को स्वयं को उपयोग करने देकर, हमें अनुभव कराया कि कभी भी हम अकेले नहीं हैं ... उसने हमें उत्साहित किया l उसने हमारे साथ सहानुभूति प्रगट की l उसने हमें महसूस करने दिया कि वह बिल्कुल हमारे समान था l”

जब हम अनुभव करते और समझते हैं कि कोई भी हमें न समझता है और न ही मदद करता है, हम याद करते हैं कि यीशु ने खुद को हमारे लिए दे दिया, और वह पूरी तौर से हमें और हमारी समस्याओं को जानता है l

इब्रानियों 2:9-18 अद्भुत सच्चाई प्रगट करता है कि यीशु पृथ्वी पर हमारी मानवता में भागीदार हुआ (पद.14) l  उसने “ हर एक मनुष्य के लिए मृत्यु का स्वाद [चखा] (पद.9), शैतान को निकम्मा [किया] (पद.14), और “जितने मृत्यु के भय के मारे जीवन भर दासत्व में फंसे थे, उन्हें छुड़ा [लिया] (पद.15) l यीशु हमारे समान बना, “जिससे वह उन बातों में जो परमेश्वर से सम्बन्ध रखती हैं, एक दयालु और विश्वासयोग्य महायाजक बने ताकि लोगों के पापों के लिए प्रायश्चित करे” (पास.17) l प्रभु, हमारी मानवता में भागीदार बनने के लिए धन्यवाद, कि हम आपकी सहायता को जानकर आपकी उपस्थिति में सर्वदा रह सकें l  

मेरा सर्वस्व

युवा आइज़क वाट ने  अपने चर्च में संगीत का अभाव महसूस कर पिता की चुनौती से गीत लिखा, “जिस क्रूस पर यीशु मरा था” अंग्रेजी भाषा का महानतम गीत अनेक भाषाओं में अनुदित हुआ l

आराधना से भरपूर तीसरा अंतरा हमें क्रूसित यीशु की उपस्थिति में पहुँचा देता है l

देख, उसके सिर, हाथ, पाँव के घाव, यह कैसा दुःख, यह कैसा प्यार!

अनूठा है यह प्रेम-स्वभाव, अनूप यह जग का तारणहार l

वाट अत्यधिक ख़ूबसूरती से क्रूसीकरण का वर्णन इतिहास के सबसे भयंकर क्षण के रूप में करता है l हम क्रूस के निकट खड़े लोगों का साथ देते हैं l देह में चुभी किलों से टंगा परमेश्वर पुत्र श्वास लेने की कोशिश करता है l घंटों के उत्पीड़न बाद, अलौकिक अंधकार छा जाता है l अनंतः, सौभाग्य से सृष्टि का प्रभु अपना मनोव्यथित आत्मा त्याग देता है l धरती डोलती है l मंदिर का मोटा परदा दो भाग हो जाता है l कब्रों से अनेक शव जी उठकर नगर में दिखाई देते हैं (मत्ती 27:51-53) l इस घटना से यीशु को क्रूसित करनेवाले सूबेदार बोल उठता है, “सचमुच यह परमेश्वर का पुत्र था!” (पद.54) l

वाट की कविता पर पोएट्री फाउंडेशन टिप्पणी करती है, “क्रूस समस्त मान्यताओं को पुनः व्यवस्थित करती है और समस्त दिखावे को रद्द करती है l” गीत का अंत इस तरह ही हो सकता था : “हे यीशु प्रिय आप को मैं, समर्पित करता हूँ देह, प्राण l”