Month: फरवरी 2018

हर जगह और कहीं नहीं

एक मित्र जिसने हमारी तरह, कार दुर्घटना में अपनी किशोर बेटी को खो दिया था, एक स्थानीय पेपर में लिंडसे, को एक श्रद्धांजलि लिखी जिसकी सबसे प्रभावी बात यह थी: "वह हर स्थान पर है, परन्तु कहीं नहीं है।"

यद्यपि हमारी बेटियां आज भी अपनी तस्वीरों से हम पर मुस्कुराती हैं, तो भी वो उत्साही व्यक्तित्व जो उन मुस्कुराहटों को चमक देते थे, अब कहीं नहीं हैं। वे हर स्थान पर हैं-हमारे दिल में, विचारों में, धर में रखी तस्वीरों में-परन्तु कहीं नहीं।

बाइबिल बताती है कि, मसीह में, लिंडसे और मेलिस्सा वास्तव में कहीं नहीं, नहीं हैं। वे यीशु की उपस्थिति में हैं, "प्रभु के साथ"(2 कुरिन्थियों 5:8)। वे उस के साथ हैं, जो, "कहीं नहीं पर सर्वव्यापी" है। हम परमेश्वर को भौतिक रूप में नहीं देखते हैं। वास्तव में, यदि आप चारों ओर नज़र डालेंगे, तो सोच सकते हैं कि वह कहीं नहीं है। परन्तु सत्य इसके विपरीत है। वह हर स्थान पर हैं!

हम जहां भी जाएं, परमेश्वर वहीं हैं। हमें मार्गदर्शन देने, मजबूत बनाने और सांत्वना देने को वह सदा हमारे साथ हैं। हम वहां जा ही नहीं सकते जहां वह उपस्थित न हों। भले ही न दिखें,  परन्तु वह हर स्थान पर हैं, हमारी हर परख में, यह एक अविश्वसनीय शुभ समाचार है।

अप्रत्याशित मित्रता

फेसबुक में जानवरों की अविश्वसनीय दोस्ती के प्यारे वीडियो पोस्ट किए जाते हैं जैसे  साथ रहने वाले पिल्ला और सुअर तथा  एक हिरण और बिल्ली, और बाघ के शावकों की माँ के समान देख रेख करने वाले वनमानुष का। ऐसी असामान्य मित्रता को देखकर मुझे अदन की वाटिका के विवरण की याद आती हैं। जहाँ आदम और हव्वा परमेश्वर की और एक दूसरे की संगति में रहते थे। क्योंकि खाने के लिये सभी प्रकार के पेड़ थे इसलिए जानवर भी उनके साथ शांति से रहते होंगे (उत्पत्ति 1:30)। परन्तु आदम और हव्वा ने पाप किया और इस सुखद दृश्य में बाधा आ गई थी (3:21–23)। अब मानव सबंध और सृष्टि दोनों में, संघर्ष और टकराव है।

भविष्यवक्ता यशायाह कहते हैं कि “तब भेडिय़ा भेड़ के बच्चे के संग रहा करेगा...” (11:6)। भविष्य में यीशु लौटकर जब राज्य करेंगे उस दिन को कई यूँ ही दिखाते हैं। तब विभाजन नहीं होगा और “मृत्यु न रहेगी...”। (प्रकाशितवाक्य 21:4) नवनिर्मित पृथ्वी पर, सृष्टि अपनी पूर्व स्वर संगति में लौट आएगी और हर जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से बड़ी भीड़, मिलकर एकत्रित होगी और परमेश्वर की जय-जय-कार करेगी (7:9–10; 22:1–5)।

तब तक, हमारे सम्बंध सँभालने और अप्रत्याशित मित्रता विकसित करने में परमेश्वर हमारी सहायता कर सकते हैं।

घमण्ड के साथ समस्या

अपने जीवनकाल में एक असाधारण स्तर की प्रसिद्धि या प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेने वाले लोगों को  "अपने समय में एक लेजेंड" कहा जाता है। प्रोफेशनल बेसबॉल खेल चुके एक मित्र कहते हैं कि वह खेल की दुनिया में ऐसे बहुत से लोगों से मिले हैं, जो केवल "अपनी सोच में एक लेजेंड थे।" घमण्ड का तरीका है कि हम जैसे अपने आप को देखते हैं उसे तोड़-मरोड़ कर रख दे, जबकि विनम्रता एक यथार्थवादी दृष्टिकोण प्रदान करती है।

 " विनाश से पहिले गर्व,…।" (नीतिवचन 16:18)। आत्म-महत्व के दर्पण में खुद को देखने से एक विकृत छवि ही प्रतिबिम्बित होती है। आत्म-उन्नयन हमें गिरावट की स्थिति में खड़ा कर देता है।

सच्ची विनम्रता जो परमेश्वर से आती है घमण्ड का विष हरण करती है। “… दीन लोगों के संग नम्र भाव से रहना उत्तम है” (पद 19)।

यीशु ने चेलों से कहा, “जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने...” (मत्ती 20:26–28)।

उपलब्धि और सफलता के लिए सम्मान प्राप्त करने में कुछ गलत नहीं है। चुनौती उस पर ध्यान बनाए रखने की है जो हमें उनके पीछे होने के लिए बुलाते हैं और यह कहते हैं, “क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे” (11:29)।

घमण्ड के साथ समस्या

अपने जीवनकाल में एक असाधारण स्तर की प्रसिद्धि या प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेने वाले लोगों को  "अपने समय में एक लेजेंड" कहा जाता है। प्रोफेशनल बेसबॉल खेल चुके एक मित्र कहते हैं कि वह खेल की दुनिया में ऐसे बहुत से लोगों से मिले हैं, जो केवल "अपनी सोच में एक लेजेंड थे।" घमण्ड का तरीका है कि हम जैसे अपने आप को देखते हैं उसे तोड़-मरोड़ कर रख दे, जबकि विनम्रता एक यथार्थवादी दृष्टिकोण प्रदान करती है।

 " विनाश से पहिले गर्व,…।" (नीतिवचन 16:18)। आत्म-महत्व के दर्पण में खुद को देखने से एक विकृत छवि ही प्रतिबिम्बित होती है। आत्म-उन्नयन हमें गिरावट की स्थिति में खड़ा कर देता है।

सच्ची विनम्रता जो परमेश्वर से आती है घमण्ड का विष हरण करती है। “… दीन लोगों के संग नम्र भाव से रहना उत्तम है” (पद 19)।

यीशु ने चेलों से कहा, “जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने...” (मत्ती 20:26–28)।

उपलब्धि और सफलता के लिए सम्मान प्राप्त करने में कुछ गलत नहीं है। चुनौती उस पर ध्यान बनाए रखने की है जो हमें उनके पीछे होने के लिए बुलाते हैं और यह कहते हैं, “क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे” (11:29)।

प्रत्येक व्यक्ति के लिए कम्बल

लाइनस वैन पेल्ट,  पीनट्स कार्टून के मुख्य पात्र है। विनोदपूर्ण और बुद्धिमान परन्तु असुरक्षित,  लाइनस के पास सदा एक सुरक्षा कम्बल रहता था। हम इससे परिचित हैं। हमारे भी अपने डर और अपनी असुरक्षाएं होती हैं।

जब यीशु पकड़ लिए गए, तब पतरस ने महायाजक के आंगन तक प्रभु का पीछा करके साहस का प्रदर्शन तो किया। परन्तु भयभीत होकर अपनी पहचान छुपाने के लिए झूठ बोला (यूहन्ना 18:15–26) उसने वह लज्जात्मक शब्द कहे जो उसके प्रभु का इन्कार करते थे। परन्तु यीशु ने उसे प्रेम करना नहीं छोड़ा और अंततः उसे सम्भाल लिया (यूहन्ना 21:15–19 देखें)। इसी पतरस ने 1 पतरस 4:8 में हमारे संबंधों में प्रेम के महत्व पर इन शब्दों के साथ जोर दिया, "सब से ऊपर"। "एक-दूसरे को प्यार करें, क्योंकि प्रेम कई पापों को ढांप देता है"।

आपको कभी वैसे "कम्बल" की आवश्यकता हुई है? मुझे हुई! अपराध और शर्म के कारण "ढांपे" जाने की मुझे आवश्यकता थी जैसे यीशु ने लज्जा-भरे लोगों को ढांप दिया था।

यीशु के अनुयायियों के लिए, प्रेम वह कम्बल है जिसे दूसरों को आराम और उद्धार पाने के लिए अनुग्रहपूर्वक और साहसपूर्वक दिया जाना चाहिए। ऐसे महान प्रेम को प्राप्त करने वालों के रूप में, हम उसी प्रेम को देने वाले बनें।

समस्याओं के समय में स्तुति करना

यह "कैंसर" है। जब माँ ने कहा तो मन पक्का करने की कोशिश पर भी मेरे आंसू छलक आए। उन शब्दों को कोई नहीं सुनना चाहेगा। कैंसर के साथ माँ का तीसरी बार सामना था। उनकी बाँह के नीचे एक घातक ट्यूमर हुआ था।

 

अय्यूब के समान। जिसने अपनी संतान, संपत्ति और स्वास्थ्य खो दिए थे। परन्तु यह सुनने के बाद,  वह “भूमि पर गिरा और दण्डवत् किया"। परमेश्वर को शाप देने की सलाह पर उसने कहा, “क्या हम जो परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें” (2:10)?  यद्यपि अय्यूब ने बाद में शिकायत की, पर अंततः स्वीकार किया कि परमेश्वर कभी बदले नहीं थे। अय्यूब जानता था कि परमेश्वर अब भी उसके साथ थे और वह अब भी उसकी परवाह करते थे।

 “समस्याओं में प्रशंसा करने की हममें से अधिकांश की प्रारंभिक प्रतिक्रिया नहीं होती। कभी तो भय या क्रोध से हम बौखला उठते हैं। परन्तु माँ की प्रतिक्रिया देखकर मुझे याद आया कि परमेश्वर अब भी उपस्थित हैं, अभी भी अच्छे हैं। वह कठिन समय से हमारी मदद करेंगे।

उनकी आवाज को सुनना

मैं ऊंचा सुनता हूं-"एक कान से बहरा और दूसरे से नहीं सुन सकता" जैसा मेरे पिता कहा करते थे। इसलिए मैं कान में हिअरिंग एड पहनता हूं। लेकिन आस-पास बहुत शोर हो,  तो  यह हर ध्वनी पकड़ लेता है और मैं अपने सामने वाले व्यक्ति को नहीं सुन पाता।

हमारी संस्कृति के साथ भी ऐसा है: ध्वनियों की कर्कशता में परमेश्वर का धीमा शब्द डूब सकता है।

मेरे हियरिंग एड में एक ऐसी सेटिंग है जो आस पास की ध्वनियों को काटकर मुझे केवल वह आवाज सुनाती है जिसे मैं सुनना चाहता हूं। अपने चारों ओर शोर होते हुए भी यदि हम मन शांत करें और सुनें,  तो परमेश्वर का “दबा हुआ धीमा शब्द” सुन सकेंगे (1 राजा 19:11–12)।

वह प्रतिदिन हमें पास बुला कर हमसे बात करते हैं, हमारी व्याकुलताओं और लालसाओं में, हमारे गहन दुःख में और हमारे अधूरेपन में और हमारे सबसे बड़े आनंद व असंतोष में।

मुख्य रुप से परमेश्वर हमसे अपने वचन द्वारा बात करते हैं। बाइबिल पड़ कर आप उनके शब्द को सुन सकेंगे। वह आपसे प्रेम करते हैं, जितना आप समझ पाएं उससे भी अधिक, और उनकी इच्छा यही है कि आप वह सुने जो वे आपसे कहना चाहते हैं।

यह अद्भुत है!

अपनी प्राकृतिक अवस्था में हम सभी उससे से रहित हैं। (रोमियो 3:23)

यीशु उस का प्रकाश था (इब्रानियों 1:3), और जो उन्हें जानते थे, उन्होंने उस की महिमा देखी (यूहन्ना 1:14)।

उस तेज ने तम्बू को भर दिया (निर्गमन 40:34–35), और इस्राएली उसकी अगुवाई में आगे बढ़ते थे।

और प्रतिज्ञा की गई है कि अंत समय में स्वर्ग उससे उज्जवलित होगा, ऐसा उजाला कि चान्द और सूरज के उजाले का प्रयोजन ना होगा (प्रकाशित वाक्य 21:23)।

उपर दिए सभी वाक्यों में "उस" शब्द क्या दिखता है? "उस" परमेश्वर की महिमा दिखता है। और वे अद्भुत हैं!

बाइबिल बताती है कि हम इस पृथ्वी पर, जिसे उन्होंने बनाया है, हमारे निवास करने के कारण हम परमेश्वर की भव्य महिमा की झलक पा सकते हैं। परमेश्वर की महिमा का वर्णन उनके अस्तित्व के बाहरी प्रदर्शन के रूप में किया गया है। अपनी उपस्थिति और कार्यों को वे  ब्रह्मांड के वैभव, हमारे उद्धार की विशालता और हमारे जीवन में पवित्र आत्मा की उपस्थिति में प्रकट करते हैं।  परमेश्वर की महानता के प्रमाण के लिए-उनकी महिमा की खोज करें। आप इसे प्रकृति की सुंदरता, एक शिशु की हंसी, और दूसरों के प्यार में देख सकेंगे। परमेश्वर उनकी महिमा से पृथ्वी को भरते हैं।

जीवन कैसे परिवर्तित करें

रॉक एंड रोल के सुप्रसिद्ध कलाकार ब्रूस स्प्रिंगस्टीन के कठिन बचपन में और डिप्रेशन से लगतार संघर्ष करने में सगींत कलाकारों के काम ने ही मदद की थी। अपने कार्य का अभिप्राय उन्हें उसी सत्य से मिला, जिसका अनुभव उन्होंने स्वयं किया था, “एक उचित गीत से आप किसी के जीवन को तीन मिनट में परिवर्तित कर सकते हैं”।

ध्यान से चुने हुए शब्द हमें आशा देते हैं, यहां तक कि जीवन बदल सकते हैं। जैसे किसी शिक्षक के शब्द जो संसार को देखने का हमारा नजरिया बदलते हैं, आत्मविश्वास बढ़ाने वाले उत्साह वर्धक शब्द, कठिन समय में मित्र के नम्र शब्द जो हमें सम्भालते हैं।

वचन की पुस्तक शब्दों को खज़ाना समझने और बुद्धिमानी से उनका उपयोग करने के हमारे उत्तरदायित्व पर बल देती है। हमारे शब्दों में मृत्यु और जीवन के परिणाम हो सकते हैं, (18:21 नीति)। शब्दों से हम किसी की आत्मा को दु:खित कर सकते हैं, या दूसरों के मनोबल को बढ़ा कर उन्हें मजबूत कर सकते हैं (15:4)।

प्रभावशाली संगीत बनाने की क्षमता हम सब में नहीं है। परन्तु अपनी बातों के माध्यम से दूसरों की सेवा करने के लिए हम परमेश्वर की बुद्धि मांग सकते हैं (भजन 141:3)। किसी के जीवन को कुछ शब्दों से बदलने के लिए परमेश्वर हमारा उपयोग कर सकते हैं।