शान्त भय
मेरा जीवन प्राय: उन्माद और जल्दबाज़ी से भरा रहता है। मैं एक जिम्मेदारी से दूसरी जिम्मेदारी की ओर भागती रहती, अपने मार्ग में ही फोन करने और अपने कभी न समाप्त होने वाले कामों की सूची में चीज़ें देखती रहती हूँ। एक रविवार को बहुत जल्दबाज़ी में मैं अपने घर के पीछे के आंगन में गिर गई। मेरा फोन अन्दर था और मेरे बच्चे और पति भी अन्दर ही थे। पहले तो मैंने एक या दो मिनट के लिए बैठे रहने का सोचा, परन्तु उस अबाधित स्थिरता में मैंने कई बातों पर ध्यान दिया, जिन्होंने मुझे वहीं लम्बे समय तक रुकने के लिए आमन्त्रित किया। मैं हेमरॉक के धीरे धीरे हिलने, लैवेंडर के फूल पर मधुमक्खी के भिनभिनाने और मेरे सिर के ऊपर पक्षी के पंख फड़फड़ाने को सुन सकती थी। आकाश गहरा नीला था और पवन से बादल उड़ रहे थे।
जो कुछ परमेश्वर ने बनाया है उसको देखकर मेरी आँखों में आँसू आ गए। जब मैं अपनी आँखों और कानों में अनेक अद्भुत चीज़ें देखने के लिए पर्याप्त समय के लिए ठहरी, तो मैं परमेश्वर की रचनात्मक सामर्थ के लिए धन्यवाद के साथ उसकी आराधना करने के लिए उत्साहित हो गई। भजन संहिता 104 का लेखक भी इसी समान परमेश्वर की हस्तकला के द्वारा नम्र हो गया था, “तेरे कामों के फल से पृथ्वी तृप्त रहती है” (पद 13) ।
भागदौड़ के जीवन में एक शान्त क्षण हमें परमेश्वर की रचनात्मक सामर्थ को याद दिला सकता है। वह अपनी सामर्थ और नम्रता के प्रमाणों से हमें घेरे रहता है; उसी ने ऊँचे पर्वत और पक्षियों के लिए डालियाँ बनाई हैं। “इन सब वस्तुओं को तू ने बुद्धि से बनाया है (पद 24)।
परमेश्वर की कहानी में जीना
अर्नेस्ट हेमिंग्वे से पूछा गया कि क्या वे छह शब्दों में एक कायल कर देने वाली कहानी लिख सकते हैं। उनका उत्तर था: “बिक्री के लिए बच्चों के जूते, जिन्हें कभी पहना नहीं गया।” हेमिंग्वे की कहानी जबरदस्त है क्योंकि यह हमें बीच के खाली स्थानों को अपने आप भरने के लिए प्रेरित करती है। क्या उन जूतों की एक स्वस्थ बच्चे को आवश्यकता नहीं थी? या क्या कोई दुखद घटना हो गई थी-कुछ ऐसा जिसमें परमेश्वर के गहन प्रेम और आराम की जरूरत थी?
सर्वोत्तम कहानियाँ हमारी कल्पना को उत्पन्न करती हैं, तो यह आश्चर्य की बात नहीं है कि अब तक की बताई गई सर्वोत्तम कहानी हमारी रचनात्मकता को उत्तेजित करती है। परमेश्वर की कहानी में एक केन्द्रीय कथावस्तु है; हम (मानवजाति) पाप में गिर गए; यीशु पृथ्वी पर आया और मारा गया और हमें हमारे पापों से बचाने के लिए पुनर्जीवित हो गया; और अब हम उसके लौटने और सभी वस्तुओं को पुनर्स्थापित कर देने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
यह जानते हुए कि पहले क्या हो चुका है और आगे क्या होने वाला है, हमें कैसे जीना चाहिए? यदि यीशु अपनी सम्पूर्ण सृष्टि को बुराई के पंजे से छुड़ा रहा है, तो अनिवार्य है कि “हम अन्धकार के कामों को त्याग कर ज्योति के हथियार बाँध लें।” (रोमियों 13:12)। इसमें परमेश्वर की सामर्थ से पाप से मुड़ना और उससे और दूसरों से भी प्रेम करना सम्मिलित है (पद 8-10) ।
एक विशेष रूप से यीशु के साथ बुराई के विरुद्ध लड़ना इस बात पर निर्भर करता है कि हमारे पास कौन से वरदान हैं और हम किन जरूरतों को देखते हैं। आइए हम अपनी कल्पना शक्ति का प्रयोग करें और अपने आस-पास देखें। आइए घायलों और विलापितों को खोजें और परमेश्वर के न्याय, प्रेम और आराम को फैलाएं, जिस भी तरह से वह हमारा मार्गदर्शन करता है।
वह हमारे हाथ को थामे रहता है
चर्च में रविवार को जिस छोटी लड़की ने सीढ़ियों के लिए मार्ग निर्देशन किया, वह बहुत सुन्दर, साहसी और आत्मनिर्भर थी। एक के बाद एक बच्चे-जो दो वर्षों से बड़ा दिखाई दे रहा था-ने नीचे जाने के लिए कदम बढ़ाए। सीढ़ियों से नीचे जाना उसका मिशन था और उसने इसे पूरा किया। मैं मन ही मन मुस्कुराया जब मैंने इस निडर बच्ची की साहसी आत्मनिर्भरता पर ध्यान किया। बच्ची डरी हुई नहीं थी क्योंकि वह जानती थी कि उसकी देखभाल करने वाली माँ की निगरानी करने वाली आँखें और उसका प्रेम भरा हाथ उसकी सहायता के लिए फैला हुआ था। यह उपयुक्त रूप से प्रभु की उसके बच्चों की मुस्तैदी से सहायता करने की तस्वीर प्रस्तुत करता है, जब वे जीवन की भिन्न-भिन्न प्रकार की अनिश्चितताओं के साथ अपने मार्ग पर चलते हैं।
पवित्रशास्त्र के आज के पद में “दो तरफ़ा” सन्दर्भ हैं। अपने पुरातन लोगों को भयभीत या हतोत्साहित न होने की चेतावनी देने के बाद प्रभु ने उन्हें बताया, “अपने धर्ममय दाहिने हाथ से मैं तुझे सम्भाले रहूँगा।” (यशायाह 41:10)। अनेक चिन्तित और भयभीत बच्चे माता-पिता की सामर्थ के द्वारा सम्भाले गए हैं यहाँ परमेश्वर की सामर्थ देखने को मिलती है। दूसरी तरफ के सन्दर्भ में भी यह प्रभु ही है जो अपने लोगों की सुरक्षा को कायम रखने के लिए कार्य करता है। “मैं तेरा परमेश्वर यहोवा, तेरा दाहिना हाथ पकड़कर कहूँगा” (पद 13)। जबकि जीवन की परिस्थितियाँ और समय बदलते हैं, परन्तु प्रभु नहीं बदलता है। हमें डरने की आवश्यकता नहीं है (पद 10) क्योंकि प्रभु हमें अपनी प्रतिज्ञा और उन शब्दों के साथ आश्वासन देता है, जो हम हताशा के साथ सुनना चाहते हैं: “मत डर मैं तेरी सहायता करूँगा (पद 10,13) ।
जीवित बलिदान
मेरी आंटी की विज्ञापन की एक रोमांचक नौकरी थी और वह शिकागो से न्यू यॉर्क सिटी के बीच यात्रा करती थी। परन्तु उन्होंने अपने माता-पिता के लिए अपने उस करियर को छोड़ देने को चुना। वे मिनेसोटा में रहते थे और उन्हें देखभाल की जरूरत थी। उनके दोनों भाइयों की युवावस्था में ही दुखद परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी और वह उनके माता-पिता की बची हुई एकलौती सन्तान रह गई थी। उनके लिए अपने माता-पिता की देखभाल करना उनके विश्वास का प्रकटन था।
रोम की कलीसिया को प्रेरित पौलुस के पत्र ने विश्वासियों को एक “जीवित और पवित्र और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान” होने का आग्रह किया (रोमियों 12:1) । उसने आशा की कि वे मसीह के त्यागमय प्रेम को एक-दूसरे को दिखाएँगे। और उसने उन्हें अपने आप को जैसा समझना चाहिए उससे बढ़कर अपने आप को न समझने के लिए कहा (पद 3) ।जब उनमें मतभेद और विभाजन आ गया, तो उसने उन्हें घमण्ड को त्याग देने को कहा क्योंकि “वैसा ही हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह होकर आपस में एक दूसरे के अंग हैं।” (पद 5) । उसने विनती की कि वे एक-दूसरे को त्यागमय प्रेम दिखाएँ।
हर दिन हमारे पास एक-दूसरे की सेवा करने का अवसर होता है। उदाहरण के लिए, हम कतार में किसी को हमारे से पहले जाने दे सकते हैं या हम, मेरी आंटी के समान किसी बिमार की देखभाल कर सकते हैं। या हम अपने अनुभव से किसी को सलाह या मार्गदर्शन दे सकते हैं। जब हम अपने आप को एक जीवित बलिदान के रूप में चढ़ाते हैं, तो हम परमेश्वर का आदर करते हैं।
इसे एक पत्र में भेज दें
अधिकतर चार साल के बच्चों के समान रूबी को दौड़ना, गाना, और खेलना पसन्द था। परन्तु उसने घुटने में दर्द की शिकायत करना शुरू कर दिया। रूबी के माता-पिता उसे जाँच के लिए ले गए। जाँच के परिणाम आश्चर्यचकित कर देने वाले थे, उसे 4 स्तर का न्युरोब्लास्टोमा का कैंसर बताया गया था। रूबी कठिनाई में थी। उसे शीघ्र ही अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया।
अस्पताल में रूबी का रुकना लम्बा होता गया, यह क्रिसमस के समय तक पहुँच गया, वह समय जब घर से दूर रहना बहुत ही कठिन होता है। रूबी की नर्सों में से एक को रूबी के कमरे के बाहर एक लेटर बॉक्स रखने का विचार आया ताकि उसका परिवार उसके लिए प्रार्थनाओं और प्रोत्साहन से भर पत्र उसके लिए भेज सके। उसके बाद एक विनती का संदेश फेसबुक पर भी चला गया, तो मित्रों और पूरी तरह से अजनबियों से आने वाले पत्रों की संख्या ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया, और सबसे अधिक रूबी को। उसे मिले हुए प्रत्येक पत्र (कुल मिलाकर 100,000 से भी अधिक) से रूबी प्रोत्साहित होती गई और अंततः वह घर जा पाई।
कुलुस्से के लिए पौलुस का पत्र-एक पत्र भी ऐसा ही था। पृष्ठ पर पेन से लिखे गए शब्द जो निरन्तर फलदायी होने और पहचान और सामर्थ और धीरज और सहनशीलता की आशाएँ ले कर आए (पद 10-11) । क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि ऐसे शब्द कुलुस्से के वफ़ादार लोगों के लिए एक कितनी अच्छी औषधि की खुराक जैसे रहे होंगे? बस इतना जानना, कि कोई उनके लिए बिना रुके प्रार्थना कर रहा था, यीशु में उनके विशवास में स्थिर रहने के लिए सशक्त बने रहने के लिए काफ़ी था।
प्रोत्साहन के हमारे शब्द जरुरतमंदों की नाटकीय रूप से सहायता कर सकते हैं।