अजनबियों का अभिनन्दन
जब मेरे मित्र मोल्डोवा, यूरोप के सबसे गरीब देश में रहते थे, तो वे उस अभिनन्दन से आश्चर्यचकित हो गए जो उन्हें वहाँ, विशेष रूप से मसीहियों से प्राप्त हुआ। एक बार वे अपनी कलीसिया के दम्पत्ति, जो बहुत ही गरीब थे, के लिए कुछ कपड़े और सामग्री ले गए, जो गरीब होने पर भी अनेक बच्चों की देखभाल कर रहे थे। उस दम्पत्ति ने मेरे मित्रों के साथ सम्माननीय मेहमानों जैसा व्यवहार किया, अपनी बदहाल परिस्थिति के बावजूद उन्हें मिठाइयाँ और चाय दी। जब मेरे मित्र तरबूज़ और अन्य फलों और सब्जियों के साथ वहाँ से निकले, तो वे उस मेहमान नवाज़ी (से) आश्चर्यचकित थे, जो उन्होंने वहाँ अनुभव की थी।
इन विश्वासियों ने वह अभिनन्दन पहना हुआ था, जिसकी आज्ञा परमेश्वर ने अपने लोगों, इस्राएलियों, को प्रदर्शित करने की आज्ञा दी थी। उन्होंने उन्हें “अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानने, और उसके सारे मार्गों पर चलने, उससे प्रेम रखने, और अपने पूरे मन और अपने सारे प्राण से उसकी सेवा करने” के निर्देश दिए थे (व्यवस्थाविवरण 10:12) । इस्राएलियों को इनके अनुसार कैसे जीना था? इसका उत्तर कुछ पदों के बाद मिलता है: “इसलिये तुम भी परदेशियों से प्रेम भाव रखना; क्योंकि तुम भी मिस्र देश में परदेशी थे” (पद 19)। अजनबियों का अभिनन्दन करने के द्वारा, वे परमेश्वर की सेवा और उसका सम्मान करेंगे; और उन्हें प्रेम और देखभाल दिखाने के द्वारा, वे परमेश्वर पर अपने भरोसे का प्रदर्शन करेंगे।
हमारी परिस्थितियाँ मोल्डोव के लोगों या इस्राएलियों से भिन्न हो सकती हैं, परन्तु हम भी दूसरों का अभिनन्दन करने के द्वारा परमेश्वर के लिए अपने प्रेम का जीवन जी सकते हैं। जिनसे हम मिलते हैं, उनके लिए चाहे अपने घर का दरवाजा खोलना या उनके लिए मुस्कुराना हो, इस प्रकार हम इस अकेले और आहत संसार को परमेश्वर की देखभाल और उपलब्धता प्रदान कर सकते हैं।

नम्र और सामर्थी
जैसे ही नीदरलैंड में शत्रु का कब्ज़ा बढ़ा, एन्नी फ्रैंक और उनके परिवार ने साहसिक रूप से तैयारी की और खतरे से बचने के लिए छिपने के एक गुप्त स्थान पर चले गए। विश्व युद्ध II के दौरान पकड़े जाने और बन्दी-शिविर में भेज दिए जाने से पहले वे दो वर्ष तक वहाँ रहे। फिर भी एन्नी का लिखा हुआ डायरी ऑफ ए यंग गर्ल जो बहुत ही प्रसिद्ध हो गया, उसमें उन्होंने कहा: “लम्बे समय टिके रहने के लिए सबसे धारदार हथियार नम्र और शान्त आत्मा है।”
जब हम वास्तविक जीवन की बात करते हैं तो नम्रता एक जटिल मुद्दा हो सकता है।
यशायाह 40 में हम परमेश्वर की एक तस्वीर को देखते हैं जो उन्हें नम्र और सामर्थी दिखाती है। पद 11 में हम पढ़ते हैं : “वह चरवाहे के समान अपने झुण्ड को चराएगा, वह भेड़ों के बच्चों को अँकवार में लिए रहेगा।” परन्तु यह इस पद के बाद आता है: “देखो, प्रभु यहोवा सामर्थ्य दिखाता हुआ आ रहा है, वह अपने भुजबल से प्रभुता करेगा” (पद 10)। सामर्थ से भरा हुआ, परन्तु जब दुर्बलों की सुरक्षा की बात आती है तो नम्र।
और यीशु का विचार करें, जिसने एक कोड़ा बनाया और मंदिर में जब उन्होंने सराफों की चौकियाँ उलट दीं तो इसे चारों और घुमाया, परन्तु उन्हीं ने नम्रता के साथ बच्चों की देखभाल की। उन्होंने फरीसियों को धमकाने के लिए कड़े शब्दों का प्रयोग किया (मत्ती 23) परन्तु उस महिला को क्षमा कर दिया जिसे उनकी दया की आवश्यकता थी (यूहन्ना 8:1-11) ।
ऐसे कुछ समय भी हो सकते हैं जब आपको दुर्बलों को न्याय दिलवाने के लिए अन्य लोगों को चुनौती देनी पड़े- “परन्तु हमें सभी को अपनी नम्रता का प्रमाण भी अवश्य देना है” (फिलिप्पियों 4:5) । जब हम परमेश्वर की सेवा करते हैं, तो कई बार हमारी सबसे बड़ी ताकत जरूरतमन्दों के लिए हमारे नम्र हृदय को प्रदर्शित करती है।

आवाज़ों से बचना
अनेक वर्ष पूर्व एक महाविद्यालय के सभापति ने एक सलाह दी कि सभी विद्यार्थी उनके साथ एक शाम के लिए बिजली बचाने में शामिल हों। यद्यपि विद्यार्थी सहमत हो गए, बहुत हिचकिचाहट के साथ उन्होंने अपने सेलफोन एक ओर रख दिए और चैपल(प्रार्थनाघर) में चले गए। अगले एक घण्टे तक वे संगीत और प्रार्थना की सभा में ख़ामोशी के साथ बैठे रहे। उसके बाद एक सहभागी ने “शान्त हो जाने के एक अद्भुत सुअवसर. . .एक ऐसा मौका जहाँ आप समस्त अनचाही आवाज़ों से अलग हो सकते हैं” के अनुभव के बारे में बताया।
कई बार अनचाही आवाज़ों से बचना बहुत ही कठिन होता है। हमारे बाह्य और आन्तरिक संसारों, दोनों का कोलाहल बहरा कर देने वाला हो सकता है। परन्तु जब हम शान्त रहना सीख जाते हैं, तो हम भजनकार के शान्त रहने के याद दिलाने की आवश्यकता को समझना आरम्भ कर देते हैं, ताकि हम परमेश्वर को जान सकें (भजन संहिता 46:10) । 1 राजा 19 में, हम यह भी पाते हैं कि नबी एल्लियाह ने प्रभु की खोज की तो उसने उन्हें प्रचण्ड आँधी में, भूकम्प में, या अग्नि में नहीं पाया (पद 9-13) । परन्तु एल्लियाह ने परमेश्वर के दबे हुए धीमे स्वर को सुना (पद 12) ।
त्योहारों के दौरान अतिरिक्त आवाजों का होना निश्चित है। जब परिवार और मित्र एकत्र होते हैं, तो बातचीत, अतिरिक्त भोजन, हंसी के ठाहकों और प्रेम की मधुर अभिव्यक्ति का एक समय अवश्य होता है। परन्तु जब हम ख़ामोशी के साथ अपने हृदयों को खोलते हैं, तो परमेश्वर के साथ वाले उस समय को हम और भी मधुर पाते हैं। एल्लियाह के समान उस शान्ति में हमारी परमेश्वर के साथ भेंट होना अधिक सम्भव होता है। और अनेक बार, यदि हम सुनें, तो हम भी उस धीमे स्वर को सुन पाएँगे।

निवेश पर प्रतिलाभ
1995 में यूएस के स्टॉक मार्किट के निवेशकों ने सबसे अधिक प्रतिलाभ प्राप्त किया-अपने डॉलरों पर औसतन 37.6 प्रतिशत का जबरदस्त प्रतिलाभ। फिर 2008 में उसी प्रकार उन्होंने लगभग सबकुछ खो दिया : नकारात्मक रूप से 37.0 प्रतिशत। बीच के वर्षों में भिन्न प्रतिलाभ प्राप्त हुआ था, जो उन लोगों को आश्चर्य में डाल रहा था-कई बार तो भयभीत-कि उनके निवेश का क्या होगा।
यीशु ने अपने अनुयायियों को आश्वासन दिया कि उनमें अपने जीवनों का निवेश करने पर उन्हें अतुलनीय प्रतिलाभ प्राप्त होगा। उन्होंने “उसके पीछे चलने के लिए सबकुछ छोड़ दिया”-अपने घर, नौकरियाँ, औहदा और परिवारों को अपने जीवन का निवेश करने के लिए छोड़ दिया (पद 28)। परन्तु उनकी चिन्ता बढ़ गई कि उनका निवेश अच्छा प्रतिलाभ प्रदान नहीं करेगा, जब उन्होंने एक धनी मनुष्य पर सांसारिक बन्धनों की जकड़ से संघर्ष करते हुए देखा। (हालाँकि)यीशु ने उत्तर दिया, कि जो कोई उसके लिए त्यागने का इच्छुक है वह “वर्तमान समय में ही सौ गुणा प्राप्त करेगा. . . और आने वाले समय में अनन्त जीवन” (पद 30) । वह एक बहुत ही उत्तम प्रतिलाभ था जो कोई स्टॉक मार्किट कभी भी प्रदान नहीं सकती।
हमें अपने आत्मिक निवेश-परमेश्वर के साथ- की “ब्याज की दर” के बारे में कभी चिन्ता नहीं करनी चाहिए, यह एक अतुलनीय आश्वासन है। पैसे के साथ हमारा लक्ष्य हमारे निवेश से अपने आर्थिक लाभ को अधिकत्तम करना होता है। परमेश्वर से हमें जो प्राप्त होता है, उसे डॉलर और सेंट्स में नापा नहीं जा सकता, परन्तु उसे जानने से जो आनन्द आता है और उस आनन्द को दूसरों के साथ बाँटना अभी और सर्वदा का होता है!

जब आप चुने हुए नहीं हैं
मेरे एक मित्र की एक फेसबुक की पोस्ट ने बताया कि उसने एक प्रोजेक्ट पूरा कर लिया है। अन्य लोगों ने उसे बधाई दी, परन्तु उसकी पोस्ट ने मेरे दिल में छुरा भोंक दिया। वह प्रोजेक्ट मुझे मिलना था। मुझे एक ओर कर दिया गया, और मुझे नहीं पता कि क्यों।
बेचारा यूसुफ़। उसे परमेश्वर के द्वारा एक ओर कर दिया गया, और वह जानता था कि क्यों। यूसुफ उन दो व्यक्तियों में से एक था, जो यहूदा को बदलने की दौड़ में शामिल थे। शिष्यों नें प्रार्थना की, ““हे प्रभु, तू जो सब के मन जानता है, यह प्रगट कर कि इन दोनों में से तू ने किसको चुना है” (प्रेरितों के काम 1:24)। परमेश्वर ने दूसरे व्यक्ति को चुना। फिर उसने समूह को अपना निर्णय बताया जब “चिट्ठी मत्तियाह के नाम पर निकली” (पद 26)।
जब शिष्यों ने मत्तियाह को बधाई दी, मुझे यूसुफ की चिन्ता होती है। इन्कार किए जाने पर उसने अपने आप को कैसे सम्भाला होगा? क्या उसने ठुकराया हुआ महसूस किया, उसे अपने आप पर तरस आया होगा और उसने अपने आप को दूसरों से दूर कर लिया होगा? या क्या उसने परमेश्वर पर भरोसा किया और आनन्द के साथ सहयोग करता रहा?
मैं जानता हूँ कौन सा विकल्प उत्तम है। और मैं जानता हूँ कि मैं कौन सा विकल्प लूँगा। कितना शर्मनाक है! यदि तुम मुझे नहीं चाहते, तो कोई बात नहीं, ठीक है। देखता हूँ तुम मेरे बिना क्या कर लोगे। हो सकता है वह सही लगे, परन्तु वह स्वार्थ से भरा हुआ है।
पवित्रशास्त्र में दोबारा यूसुफ़ का उल्लेख नहीं किया गया, इसलिए हम नहीं जानते कि उसने कैसी प्रतिक्रिया की। अधिक महत्वपूर्ण यह है कि हम कैसी प्रतिक्रिया करते हैं, जब हम चुने नहीं जाते हैं। प्रभु कर कि हमें याद रहे कि हमारी सफलता से अधिक महत्वपूर्ण यीशु का राज्य है, और प्रभु कर कि हम उस भूमिका को आनन्द के साथ निभाएँ, जो वह हमारे लिए चुनता है।