जीवन के लिए सर्वोत्तम रणनीति
जब मैं दीर्घा में बैठकर अपनी बेटी का बास्केटबाल मैच देख रही थी, मैंने कोच को लड़कियों से एक शब्द बोलते सुना : “डबल्स”(समरूप खेल) l तुरंत, उनकी खेलने वाली टीम की बचाव रणनीति बॉल फेंकने वाले सबसे लम्बे प्रतिद्वंदी के विरुद्ध एक एक के साथ से दो दो एक साथ हो गयी l वे उनके बॉल फेंककर और स्कोर बनाने के प्रयास को विफल करने में सफल हो गए, और आख़िरकार बॉल को अपने क्षेत्र के बास्केट(basket) में ले गए l
जब सभोपदेशक का लेखक, सुलेमान, संसार के परिश्रम और निराशाओं का सामना कर रहा था, उसने भी पहचाना कि हमारे मेहनत में सहयोगी के होने से “अच्छा फल मिलता है” (सभोपदेशक 4:9) l जबकि सघर्ष करते हुए अकेले व्यक्ति पर “कोई प्रबल हो तो हो, परन्तु दो उसका सामना कर सकेंगे” (पद.12) l जब हम गिर जाते हैं निकट का एक मित्र हमारी सहायता कर सकता है (पद.10) l
सुलेमान के शब्द हमारी यात्रा को दूसरों के साथ साझा करने के लिए उत्साहित करते हैं ताकि हमें अकेले ही जीवन की आजमाइशों का सामना न करना पड़े l हममें से कुछ के लिए, यह अतिसंवेदनशीलता के एक मानक की मांग करता हैं जिससे हम अपरिचित हैं या जो हमारे लिए असुखद है l हममें से कुछ लोग उस प्रकार की निकटता की तीव्र इच्छा करते हैं और मित्रों को ढूंढने में संघर्ष करते हैं जिनके साथ हम उन बातों को साझा करना चाहते हैं l जो भी मामला हो, हमें प्रयास में हार नहीं मानना चाहिए l
सुलेमान और बास्केटबाल के कोच सहमत हैं : जीवन में और खेल के मैदान में टीम के साथियों का अपने आस-पास होना हमारे ऊपर मंडराने वाले संघर्षों का सामना करने के लिए सबसे सर्वोत्तम रणनीति है l हे प्रभु, उन लोगों के लिए धन्यवाद जिन्हें आपने हमारे उत्साह और सहयोग के लिए हमारे जीवनों में दिए हैं l

आँसुओं का कटोरा
बोस्टन के मेसाचुसेट्स में, “आँसुओं का कटोरा पार करना” शीर्षक की एक पट्टिका 1840 के अंत में भयंकर विपत्ति आयरिश पोटैटो फेमिन(अकाल) के समय मृत्यु से बचने के लिए अटलांटिक महासागर पार करनेवालों की याद दिलाता है l इस महाविपदा में लाखों लोग मर गए थे, जबकि लाखों या उससे भी अधिक संख्या में लोगों ने घर छोड़कर महासागर को पार किया, जिसे जॉन बॉईल ओरीली काव्यात्मक रूप से “आँसुओं का कटोरा” संबोधित करता है l भूख और पीड़ा के कारण, इन यात्रियों ने नैराश्य के समय कुछ आशा ढूंढने का प्रयास किया l
भजन 55 में, दाऊद ने साझा किया कि उसने किस प्रकार आशा को ढूंढा l जबकि हम उस आशंका की विशिष्टता से जिसका उसने सामना किया अवगत नहीं हैं, उसके अनुभव का बोझ उसे भावनात्मक रूप से तोड़ने में पर्याप्त था (पद.4-5) l उसका स्वाभाविक उत्तर प्रार्थना करना था, “भला होता कि मेरे कबूतर के से पंख होते तो मैं उड़ जाता और विश्राम पाता ! (पद.6) l
दाऊद के समान, हम भी पीड़ादायक परिस्थितियों के मध्य सुरक्षा की ओर भागना चाहते हैं l अपनी दशा पर विचार करके, हालाँकि, दाऊद अपनी पीड़ा से दूर भागने के स्थान पर यह गाते हुए, अपने परमेश्वर की ओर भागने का निर्णय किया, “परन्तु मैं तो परमेश्वर को पुकारूँगा; और यहोवा मुझे बचा लेगा” (पद.16) l
जब परेशानी आती है, याद रखें कि समस्त सुख का परमेश्वर आपको सबसे अंधकारमय क्षणों और सबसे गहन भय में से निकालने में समर्थ है l उसकी प्रतिज्ञा है कि एक दिन वह स्वयं हमारी आँखों से हर एक आंसू पोंछ देगा (प्रकाशितवाक्य 21:4) l हम इस निश्चयता से बलवंत होकर आज अपने आँसुओं के साथ उस पर दृढ़ भरोसा रख सकते हैं l

कोई अगुवाई करनेवाला
जब आप शब्द परामर्शदाता सुनते हैं तो आप किसके विषय सोचते हैं? मेरे लिए, यह पास्टर रिच हैं l उन्होंने मेरी संभावनाओं को देखा और मुझे में उस समय भरोसा देखा जब मैं खुद में भरोसा नहीं करता था l उन्होंने नमूना बनकर दीनता और प्रेम में सेवा करके सिखाया कि नेतृत्व कैसे किया जाता है l
नबी एलिय्याह ने एलिशा को अगुवा बनाने में एक प्रमुख भूमिका निभायी l एलिय्याह ने उसे एक खेत जोतते हुए देखा और उसे अपना सेवक बनने के लिए आमंत्रित किया जब परमेश्वर ने उसे एलिशा को अपना उत्तराधिकारी बनाने के लिए कहा (1 रजा 19:16, 19) l उस युवा प्रशिक्षार्थी ने अपने परामर्शदाता/अगुवा को अविश्वसनीय आश्चर्यक्रम करते हुए और हर परिस्थिति में परमेश्वर की आज्ञा मानते हुए देखा l परमेश्वर ने एलिय्याह को एलिशा को जीवन भर की सेवकाई हेतु तैयार करने में उपयोग किया l एलिय्याह के जीवन के अंत की ओर, एलिशा के पास एलिय्याह को छोड़ने का अवसर था l इसके बदले, उसने अपने परामर्शदाता के प्रति अपने समर्पण को दोहराया l तीन बार एलिय्याह ने एलिशा को अपने उत्तरदायित्व से मुक्त करने की पेशकश की, फिर भी हर बार उसने यह कहकर इनकार किया, “यहोवा के और तेरे जीवन की शपथ मैं तुझे नहीं छोड़ने का” (2 राजा 2:2, 4, 6) l एलिशा की विश्वासयोग्यता के परिणामस्वरूप, वह भी परमेश्वर द्वारा असाधारण रूप से उपयोग किया गया l
हम सब को किसी परामर्शदाता की ज़रूरत है जो यीशु का अनुकरण करने का नमूना दिखा सके l काश परमेश्वर हमें आत्मिक रूप से उन्नति करने में सहायता प्रदान करने के लिए धर्मी पुरुष और स्त्री दे l और काश पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से हम भी, अपने जीवनों को दूसरों में निवेश कर सकें l

आएँ और उसे ले लें!
मैंने अंगूर के बाड़े के ऊपर से झांका जो हमारे पिछवाड़े के आँगन को चारों-ओर से घेरता है l वहाँ मैंने उस पार्क के ट्रैक पर जो हमारे घर के पीछे वाले आँगन को चारों-ओर से घेरता है, लोगों को दौड़ते, जॉगिंग करते, टहलते, और ट्रैक पर टेढ़ी-मेढ़ी चाल से चलते हुए देखा l मैंने सोचा, जब मैं शरीर से मजबूत था तब ऐसा करता था l और असंतुष्टता की एक लहर मेरे ऊपर से गुज़र गयी l
बाद में, बाइबल पढ़ते समय, मैंने यशायाह 55:1 पढ़ा, “अहो सब प्यासे लोगों, पानी के पास आओ,” और मैंने पुनः जाना कि असंतुष्टता (प्यास) एक नियम है, इस जीवन में एक अपवाद नहीं है l कुछ भी नहीं, जीवन की अच्छी बातें भी, पूरी तौर से संतुष्ट नहीं कर सकती हैं l यदि मेरी टांगें शेरपा(पर्वत-आरोहण गाइड) की तरह होतीं, तब भी मेरे जीवन में कुछ ऐसा होता जिसके विषय मैं नाखुश रहता l
हमारी संस्कृति निरंतर हमसे किसी न किसी तरह से बोलती रहती है कि हमें कुछ करना है, कुछ खरीदना है, कुछ पहनता है, कुछ परफ्यूम(स्प्रे) लगाना है, या सैर करना है जो हमें अंतहीन सुख देंगे l परन्तु यह एक झूठ है l चाहे हम कुछ भी करें, हमें यहाँ पर और वर्तमान में किसी भी वस्तु से सम्पूर्ण संतुष्टता नहीं मिलेगी l
इसके बदले, यशायाह हमें बार-बार परमेश्वर और वचन की ओर लौटकर उसकी सुनने के लिए आमंत्रित करता है l और वह क्या कहता है? प्राचीन काल के दाऊद के लिए उसका प्रेम “अटल” और “सदा” का है (पद.3) l और वह आपके और मेरे लिये भी ऐसा है है! हम उसके पास “आ” सकते हैं l

छोटा परन्तु महत्वपूर्ण
वह दिन किसी अन्य दिन के समान ही शुरू हुआ था, परन्तु दुःस्वप्न की तरह समाप्त हुआ l एक धार्मिक आतंकवादी समूह द्वारा एस्तर (उसका वास्तविक नाम नहीं) और कई सौ महिलाओं को उनके आवासीय स्कूल से अपहृत कर लिया गया l एक महीने बाद, एस्तर को छोड़कर जिसने मसीह का इनकार नहीं किया, बाकियों को मुक्त कर दिया गया l जब मेरी सहेली और मैं उसके और दूसरों के विषय पढ़ रहे थे जो अपने विश्वास के कारण सताए जा रहे थे, हमारे हृदय द्रवित हो गए l हम कुछ करना चाहते थे l लेकिन क्या?
जब प्रेरित पौलुस कुरिन्थियों की कलीसिया को लिख रहा था, उसने आसिया के प्रदेश की परेशानी को उनसे साझा किया जो वहाँ उसने अनुभव किया था l सताव इतना भयंकर था कि वह और उसके सहकर्मियों ने “जीवन से भी हाथ धो बैठे थे” (2 कुरिन्थियों 1:8) l हालाँकि, विश्वासियों की प्रार्थनाओं ने पौलुस की सहायता की थी (पद.11) l यद्यपि कुरिन्थुस की कलीसिया पौलुस से कई मील दूर थी, उनकी प्रार्थनाएँ सार्थक थीं और परमेश्वर ने उनकी सुन ली l यहाँ इसमें एक अद्भुत रहस्य है : सर्वशक्तिमान परमेश्वर अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए हमारी प्रार्थनाओं को उपयोग करने का निर्णय करता है l कितना बड़ा सौभाग्य!
आज हम विश्वास की खातिर सताव सह रहे भाई और बहनों को निरंतर प्रार्थना में याद रख सकते हैं l कुछ है जो हम कर सकते हैं l हम अधिकारविहीन, शोषित, पराजित, उत्पीड़ित, और कभी-कभी मसीह में अपने विश्वास के कारण मृत्यु का सामना कर रहे लोगों के लिए प्रार्थना कर सकते हैं l उनके लिए प्रार्थना करें कि वे परमेश्वर का विश्राम और प्रोत्साहन प्राप्त करें और यीशु के साथ दृढ़ता से खड़े होने के लिए आशा में सामर्थी बनते जाएँ l