निश्चिन्त रहें
हाल ही में मेरे ससुर अठत्तर वर्ष के हो गए, और उनको सम्मानित करने के लिए हमारे पारिवारिक सहभागिता में, किसी ने उनसे पुछा, “आपने अपने अब तक जीवन में कौन सी सबसे महत्वपूर्ण बात सीखी है?" उन्होंने उत्तर दिया, “निश्चिन्त रहें l”
निश्चिन्त रहें l उन शब्दों को एकपक्षीय कहकर अस्वीकार करना प्रलोभक हो सकता है l परन्तु मेरे ससुर अँधा आशावाद या सकरात्मक सोच को बढ़ावा नहीं दे रहे थे l वह अपने लगभग आठ दशकों में कठिन समयों को सहन किये थे l आगे बढ़ने का उनका दृढ़ निश्चय किसी धुंधली आशा में जड़वत नहीं था कि बातें बेहतर अच्छी हो सकती हैं, परन्तु उनके जीवन में मसीह के कार्य पर आधारित था l
“निश्चिन्त रहें” – बाइबल जिसे अटलता/दृढ़ता कहती है – केवल इच्छाशक्ति से संभव नहीं है l हम दृढ़ रहते हैं क्योंकि परमेश्वर ने बार-बार इसकी प्रतिज्ञा दी है, कि वह हमारे साथ है, कि वह हमें सामर्थ्य देगा, और कि वह हमारे जीवनों में अपने उद्देश्यों को पूरा करेगा l यही वह सन्देश था जो उसने यशायाह के द्वारा इस्राएलियों से दिया था : “मत डर, क्योंकि मैं तेरे संग हूँ, इधर उधर मत ताक, क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर हूँ; मैं तुझे दृढ़ करूँगा और तेरी सहायता करूंगा, अपने धर्ममय दाहिने हाथ से मैं तुझे संभाले रहूँगा” (यशायाह 41:10) l
कैसे “निश्चिन्त रहें”? यशायाह के अनुसार, परमेश्वर का चरित्र आशा के लिए बुनियाद है l यह जानना कि परमेश्वर की भलाई भय पर हमारी पकड़ को हमें ढीला करने की अनुमति देता है, हम पिता और उसकी प्रतिज्ञा से लिपटे रह सकते हैं कि वह हमारे लिए दैनिक प्रबंध करेगा : सामर्थ्य, सहायता, और परमेश्वर की आराम देनेवाली, समर्थ करनेवाला, और थामनेवाली उपस्थिति l
तूफ़ान से आश्रय
जैसा कि कहानी में है, 1763 में, एक युवा सेवक, इंग्लैंड, सॉमरसेट में चट्टान के किनारे सड़क पर जाते समय, बिजली की कड़क, चमक और अत्यधिक बारिश से बचने के लिए एक गुफा में छिप गया l जब उसने उस शेडर घाटी के बाहर देखा, उसने परमेश्वर में आश्रय और शान्ति प्राप्त करने के उपहार पर विचार किया l वहां प्रतीक्षा करते हुए, उसने गीत लिखना शुरू किया, “अब्दी चट्टान मुझे(Rock of Ages),” जिसका आरंभिक स्मरणीय पंक्ति है : “अबदी चट्टान मुझे, उस दरार में छिपने दे l”
हम यह नहीं जानते हैं कि अगस्टस टॉपलेडी इस गीत को लिखते समय चट्टान की दरार में मूसा के अनुभव को प्राप्त किया या नहीं (निर्गमन 33:22), परन्तु शायद उसने किया l निर्गमन का वर्णन मूसा द्वारा परमेश्वर का आश्वासन खोजना और परमेश्वर का उत्तर बताता है l जब मूसा ने परमेश्वर से अपना प्रताप प्रगट करने को कहा, परमेश्वर ने यह जानते हुए दयालुता से उत्तर दिया, कि “मनुष्य मेरे मुख का दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता” (पद.20) l उसने मूसा को चट्टान की दरार में छिपा दिया जब वह उसके सामने से निकला, और मूसा केवल उसकी पीठ देख सका l और मूसा जान गया कि परमेश्वर उसके साथ था l
हम भरोसा कर सकते हैं कि परमेश्वर ने मूसा से जो कहा था, “मैं आप तेरे साथ चलूँगा और तुझे विश्राम दूंगा” (पद.14), उसी प्रकार हम भी उसमें आश्रय पा सकते हैं l हम अपने जीवन में अनेक तूफानों का सामना करेंगे, जिस प्रकार मूसा और विलायती सेवक ने उस कहानी में किया, परन्तु जब हम उसे पुकारते हैं, वह हमें अपनी उपस्थिति की शांति देगा l
पाखंडियों के लिए परमेश्वर का ह्रदय
“यदि मेरे समूह का कोई सदस्य ऐसा करता तो मैं अत्यधिक निराश हुआ होता,” एक क्रिकेट खिलाड़ी ने दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ी के विषय कहा जिसने 2016 में एक मैच में बेईमानी की थी l परन्तु केवल दो वर्षों के बाद, वही खिलाड़ी लगभग समान अपमान में पकड़ा गया l
कुछ बातें हमें पाखण्ड से अधिक क्रुद्ध करती हैं l परन्तु उत्पत्ति 38 में यहूदा की कहानी में, यहूदा के पाखंडी व्यवहार में घातक परिणाम थे l तामार से विवाह करने के शीघ्र बाद जब उसके दो पुत्रों की मृत्यु हो गयी, यहूदा ने चुपके से उसकी ज़रूरतों को पूरी करने की जिम्मेदारी छोड़ दी (पद.8-11) l निराशा में, तामार ने एक वेश्या का रूप धारण किया और यहूदा ने उसके साथ सम्बन्ध बनाए (पद.15-16) l
फिर भी जब यहूदा को पता चला कि उसकी बहू गर्भवती है, उसकी प्रतिक्रिया प्राणघाती थी l उसने मांग की, “उसको बाहर ले आओ कि वह जलाई जाए” (पद.24) l परन्तु तामार के पास प्रमाण था कि यहूदा ही पिता था (पद.25) l
यहूदा सच्चाई का इनकार कर सकता था l इसके बदले उसने अपना पाखण्ड स्वीकार किया, और यह कहते हुए, “वह तो मुझ से कम दोषी है,” उसकी देखभाल करने की अपनी जिम्मेदारी भी स्वीकार कर ली (पद.26) l
और परमेश्वर ने यहूदा और तामार की कहानी के इस काले अध्याय को हमारे उद्धार की अपनी कहानी में बुन दिया l तामार के बच्चे (पद.29-30) यीशु के पूर्वज बनने वाले थे (मत्ती 1:2-3) l
उत्पत्ति 38 बाइबल में क्यों है? एक कारण है क्योंकि यह हमारे पाखंडी मानवीय हृदयों की कहानी है – और परमेश्वर के प्रेमी, अनुग्रही, और करुणामयी हृदय की कहानी l
वचन पर चलनेवाले बनो
ब्रायन को अपने भाई की शादी में स्वागतकर्ता बनना था, परन्तु वह कर्तव्य से भागनेवाला व्यक्ति था l सुस्पष्ट ढंग से, परिजनों के साथ उसकी बहन जैसमीन भी निराश थी जिसे उस अवसर पर बाइबल पढ़ना था l समारोह में बिना कोई गलती किये हुए उसने 1 कुरिन्थियों 13 से प्रेम के बिषय बाइबल का परिच्छेद पढ़ा l परन्तु विवाह के बाद जब पिता ने उससे ब्रायन को जन्मदिन का उपहार देने के लिए कहा, वह हिचकिचा गयी l उसने प्रेम के विषय शब्दों को पढ़ने से अधिक उसे व्यवहार में लाने को कठिन महसूस किया l रात आने से पूर्व, हालाँकि, उसने मन को बदलकर स्वीकार किया, “मैं खड़ी होकर प्रेम के विषय वचन पढूँ और उसका अभ्यास न करूँ, यह हो नहीं सकता है l
क्या कभी आपने वचन को पढ़ा हो या सुना हो और वचन द्वारा दोष भावना को महसूस किया हो या उसका अभ्यास करने में कठिनाई महसूस की हो? आप अकेले नहीं हैं l परमेश्वर के वचन को पढ़ना और सुनना उसका पालन करने की अपेक्षा सरल है l इसीलिए याकूब की चुनौती इतनी सटीक है : “वचन पर चलनेवाले बनो, और केवल सुननेवाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं” (याकूब 1:22) l दर्पण वाला उसका उदाहरण हमें मुस्कुराने को विवश करता है क्योंकि हम जानते हैं कि अपने विषय कुछ बातों पर ध्यान देना जिस पर ध्यान देना अनिवार्य है का क्या अर्थ होता है l परन्तु हम धोखा खाते हैं यदि हम सोचते हैं कि ध्यान देना ही पर्याप्त है l जब याकूब हमसे “जी लगाकर [ध्यान] देने” और परमेश्वर की सच्चाई को “[निरंतर] पालन करने के लिए प्रेरित करता है (पद.25), वह हमें वही करने को उत्साहित करता है जो जैसमीन करने को विवश थी – जीने को विवश थी l परमेश्वर का वचन यह करने को बुलाता है, और वह इससे कम के योग्य नहीं है l
अपने हथियारबंदी पर भरोसा करें
एक युवा लेखक के रूप में जब मैं लेखन कार्यशाला में होता था अक्सर अपने विषय अनिश्चित होता था l मैं अपने चारोंओर देखता था और कमरों को असाधारण व्यक्तियों से भरा हुआ पाता था, यदि आप वास्तव में देखेंगे – औपचारिक प्रशिक्षण या वर्षों के अनुभव के साथ l मेरे पास इनमें से कोई भी नहीं था l परन्तु मेरे पास सुनने के कान थे जो बाइबल के किंग जेम्स अनुवाद(King James Version) की भाषा और उच्चारण और आवाज़ के उतार-चढ़ाव द्वारा साकार स्वरुप में आकार प्राप्त थे l एक प्रकार से, जो मैं करता था, यह ही मेरी अधिक हथियारबंदी थी, और उसके द्वारा मेरी लेखन शैली और आवाज़ मेरे लिए और मेरी आशा है कि दूसरों का आनंद बन गया है l
हमें यह चिन्ह दिखायी नहीं देता है कि जब गोलियात से लड़ने के लिए शाऊल का हथियार धारण करने की बात आयी तो वह युवा चरवाहा दाऊद अपने विषय अनिश्चित था (1 शमूएल 17:38-39) l वह उसे पहनकर बिलकुल चल नहीं पा रहा था l दाऊद ने समझ लिया कि एक व्यक्ति का कवच दूसरे के लिए कैदखाना बन सकता है – “इन्हें पहिने हुए मुझ से चला नहीं जाता” (पद.39) l इसलिए उसे उसपर भरोसा था जो वह जानता था l परमेश्वर ने उसे उस क्षण के लिए तैयार किया था जिसकी ज़रूरत थी (पद.34-35) l दाऊद अपनी हथियारबंदी के रूप में, गोफन और पत्थर से परिचित था, और परमेश्वर ने उस दिन इस्राएल के योद्धाओं को हर्ष दिलाने के लिए उन्हीं का उपयोग किया l
क्या आपने कभी अपने विषय अनिश्चित महसूस किया है, सोचते हुए कि यदि मेरे पास वह होता जो किसी और के पास है, तब मेरा जीवन भिन्न होता? उन वरदानों और अनुभवों पर विचार करें जो परमेश्वर ने ख़ास तौर पर आपको दिया है l परमेश्वर द्वारा आपको दी गयी हथियारबंदी पर भरोसा करें l