वह जो बचाता है
डेस्मंड को “सबसे बहादुर व्यक्तिजो जीवित है” संबोधित किया गया, लेकिन वह वो नहीं था जो दूसरे अपेक्षा करते थे l वह एक सैनिक था जिसने बन्दुक चलाने से माना कर दिया l एक डॉक्टर के रूप में, उसने एक ही लड़ाई में पचहत्तर घायल सैनिकों को हानि से बचाया, जिनमें से कुछ ने एक बार उन्हें कायर कहा और उनके विश्वास के लिए उनका उपहास किया l भरी गोलाबारी में भागते हुए, इस सैनिक ने लगातार प्रार्थना की, “परमेश्वर, कृपया मुझे एक और मदद करें l” उनकी वीरता के लिए उन्हें मैडल ऑफ़ ऑनर से सम्मानित किया गया l
शास्त्र हमें बताता है कि यीशु को बहुत गलत समझा गया था l जकर्याह नबी द्वारा नबूवत किया गया था (9:9), कि एक दिन, यीशु एक गधे पर सवार होकर यरूशलेम में प्रवेश किया और भीड़ ने “होशाना!” चिलाते हुए डालियों को लहराया (प्रशंसा का एक विस्म्योदगार जिसका अर्थ है “बचाओ!”) l भजन 118:26 का सन्दर्भ देते हुए, वे चिल्लाए : “धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है!” (यूहन्ना 12:13) l लेकिन उस भजन में दूसरा पद “यज्ञपशु को वेदी के सींगों से रस्सियों से बांधो” अर्थात् एक बलिदान लाने की बात करता है (भजन 118:27) l जबकि यूहन्ना 12 में भीड़ एक ऐसे सांसारिक राजा की उम्मीद लगायी थी जो उनको रोमी शासन से स्वतंत्र करेगा, लेकिन यीशु उससे कहीं अधिक था l वह राजाओं का राजा था और हमारा बलिदान – देह में परमेश्वर, स्वेच्छा से हमें हमारे पापों से बचाने के लिए क्रूस को गले लगाने वाला – एक उद्देश्य जिसकी नबूवत सदियों पूर्व की गयी थी l
यूहन्ना लिखता है, “उसके चेले ये बातें पहले न समझे थे l” केवल बाद में “उनको स्मरण आया कि ये बातें उसके विषय में लिखी हुयी थीं” (यूहन्ना 12:16) l उसके वचन से आलोकित, परमेश्वर के शाश्वत उद्देश्य स्पष्ट हो गए l वह हमें एक शक्तिशाली उद्धारकर्ता भेजने के लिए पर्याप्त प्यार करता है!

हमारी गहरी लालसा
एक युवा व्यक्ति के रूप में, डैनियल के पास पर्याप्त पैसा नहीं होने का डर था, इसलिए बीस साल के उम्र के आरंभिक काल में, वह महत्वकांक्षी रूप से अपना भविष्य बनाने लगा l एक प्रतिष्ठित कंप्यूटर कम्पनी में सफलता प्राप्त करते हुए, डैनियल ने बड़ी सम्पति हासिल की l उनके पास एक बहुत बड़ा बैंक खाता, एक आलिशान कार और करोड़ों रूपये का एक घर था जिसमें उनके पास वह सब कुछ था जो वह चाहता था; इसके बावजूद भी वह अत्यधिक दुखी था l “मैं चिंतित और असंतुष्ट महसूस करता हूँ,” डैनियल ने कहा l “असलियत में, धन जीवन को सचमुच बदतर बना सकता है l” नगदी के ढेर मित्रता, समुदाय, या आनंद प्रदान नहीं कर सकती है – और अक्सर यह उसके लिए केवल अधिक सिरदर्दी लेकर आयी l
कुछ लोग अपने जीवन को सुरक्षित करने के प्रयास में धन को इकठ्ठा करने के लिए अत्यधिक ऊर्जा खर्च करते हैं l यह एक मुर्ख का खेल है l पवित्रशास्त्र बल देता है, “जो रूपये से प्रीति रखता है वह रुपये से तृप्त न होगा” (सभोपदेशक 5:10) l कुछ लोग अत्यधिक श्रम करते हैं l वे प्रयास करेंगे और धक्का देंगे, अपनी संपत्ति की तुलना दूसरों से करेंगे और कुछ आर्थिक दर्जा प्राप्त करने की कोशिश करेंगे l और इसके बावजूद भी यदि वे वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त करते हैं, तो भी वे असंतुष्ट रहेंगे l यह पर्याप्त नहीं है l जैसे कि सभोपदेशक का लेखक कहता है, “यह भी व्यर्थ है” (पद.10) l
सच्चाई यह है, परमेश्वर की इच्छा से अलग होकर परिपूर्णता प्राप्त करने का प्रयास करना निरर्थक साबित होगा l जबकि पवित्रशास्त्र हमें कड़ी महनत करने और दुनिया की भलाई के लिए अपने उपहारों का उपयोग करने के लिए कहता है, हम अपनी गहरी लालसाओं को पूरा करने के लिए कभी भी पर्याप्त रूप से जमा नहीं कर सकते l अकेले यीशु एक वास्तविक और संतोषजनक जीवन प्रदान करता है (यूहन्ना 10:10) – ऐसा जीवन जो प्यार भरे रिश्ते पर आधारित है जो वास्तव में पर्याप्त है!

अगला क्या है?
3 अप्रैल, 1968 की रात को, डॉ. मार्टिन लूथर किंग ने अपना अंतिम भाषण दिया, “मैं माउंटेनटॉप(पर्वत की चोटी) पर जा चुका हूँ l” उसमें, वे संकेत देते हैं कि उन्हें विश्वास है कि वह शायद लम्बे समय तक जीवित नहीं रहने वाले थे l उन्होंने कहा, “हमारे आगे कुछ मुश्किल दिन हो सकते हैं l लेकिन अभी मेरे साथ इसका कोई मतलब नहीं है l क्योंकि मैं माउंटेनटॉप(पर्वत की चोटी) पर जा चुका हूँ l और मैं उस पार देख चुका हूँ l और मैं प्रतिज्ञात देश देख चुका हूँ l मैं शायद आपके . . . साथ वहां न पहुँचूँ [लेकिन] आज रात मैं खुश हूँ l मुझे किसी बात की चिंता नहीं है l मैं किसी भी आदमी से नहीं डरता l मेरी आँखों ने प्रभु के आने की महिमा को देखी है l” अगले दिन, उनकी हत्या कर दी गयी l
प्रेरित पौलुस, अपनी मृत्यु से कुछ समय पूर्व, अपने उत्तरजीवी तीमुथियुस को लिखा : “मैं अर्घ के समान उंडेला जाता हूँ, और मेरे कूच का समय आ पहुँचा है l . . . भविष्य में मेरे लिए धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा” (2 तीमुथियुस 4:6,8) l पौलुस जानता था कि पृथ्वी पर उसका समय समाप्ति की ओर था, जैसा कि डॉ. किंग का भी था l दोनों पुरुषों को अविश्वसनीय महत्त्व के जीवन का अहसास हुआ, फिर भी आगे के सच्चे जीवन से दृष्टि नहीं हटाई l दोनों पुरुषों ने आगे आने वाली बात का स्वागत किया l
उनके समान, हम भी “देखी हुयी वस्तुओं को नहीं परन्तु अनदेखी वस्तुओं को देखते [रहें]; क्योंकि देखी हुयी वस्तुएं थोड़े ही दिन की हैं, परन्तु अनदेखी वस्तुएं सदा बनी रहती हैं” (2 कुरिन्थियों 4:18) l

हर्ष से देनेवाले
कई साल पहले, मेरी पत्नी को खरीदी गयी किसी चीज़ से थोड़ी छूट मिली थी l यह कुछ ऐसा नहीं था जिसकी उसने अपेक्षा की थी यह सिर्फ ई-मेल में दिखा था l लगभग उसी समय, एक अच्छे मित्र ने उसके साथ दूसरे देश में अपार आवश्यकताओं के साथमहिलाओं के विषय साझा किया, उद्यमी-दिमाग वाली महिलाएँ जो शिक्षा और व्यवसाय के माध्यम से बेहतर बनाने की कोशिश कर रहीं थीं l हालाँकि, जैसा कि अक्सर होता है, उनका पहला अवरोध वित्तीय था l
मेरी पत्नी ने उस छूट को लिया और इन महिलाओं की मदद के लिए समर्पित सेवा को एक लघु-ऋण दिया l ऋण के चुका देने के बाद, उसने फिर से बार-बार ऋण दिया, और अब तक इस तरह के सत्ताईस निवेश कर चुकी है l मेरी पत्नी कई चीजों का आनंद लेती है, परन्तुउन महिलाओं के जीवनों में जिनसे उसकी मुलाकात कभी नहीं हुयी है, खुशहाली के विषय अपडेट प्राप्त करने जैसी मुस्कराहट शायद ही उसके चेहरे पे दिखाई देती है l
हमें अक्सर इस वाक्याँश के अंतिम शब्दों पर जोर दिया जाना सुनाई देता है – “परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम करता है” (2 कुरिन्थियों 9:7) – और सही भी है l लेकिन हमारे देने के बारे में एक विशिष्ट गुण है – यह “अनिच्छा से या मज़बूरी के तहत” नहीं किया जाना चाहिए, और हमें “किफ़ायत” से बोने के लिए नहीं बुलाया गया है (पद.6-7) l एक शब्द में, हमारा देना “हर्ष से” होना चाहिए l और जबकि हम में से प्रत्येक थोड़ा अलग तरीके से देगा, हमारे चेहरे हमारे हर्ष के सबूत बताने के स्थान हैं l

यीशु की तरह प्रार्थना करना
हर सिक्के के दो पहलु होते हैं l सामने वाले को “हेड” कहा जाता है और, आरंभिक रोमी काल से, आमतौर पर एक देश के प्रमुख को दर्शाया जाता है l पीछे की ओर को “टेल्स” कहा जाता है, एक शब्द जो संभवतः एक ब्रिटिश सिक्के से आता है जो एक शेर की उठाई हुयी पूंछ को दर्शाता है l
एक सिक्के की तरह, गतसमनी के बगीचे में मसीह की प्रार्थना के दो पक्ष हैं l अपने जीवन के सबसे कठिन घंटे में, क्रूस पर उसकी मृत्यु की पूर्व रात को, यीशु ने प्रार्थना की, “हे पिता, यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, तौभी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो” (लूका 22:42) l जब मसीह कहता है, “इस करोरे को . . . हटा ले,” तो यही प्रार्थना की सरल सच्चाई है l वह अपनी व्यक्तिगत इच्छा को प्रगट करता है, “यह वही है जो मैं चाहता हूँ l”
उसके बाद यीशु यह प्रार्थना करते हुए कि “मेरी नहीं” सिक्के को पलट देता है l यह पहलु ही त्याग का है l जब हम सरलता से कहते हैं, “परन्तु परमेश्वर आप क्या चाहते हैं?” तब परमेश्वर के प्रति हमारा त्याग आरम्भ हो जाता है l
यह दो तरफ़ा प्रार्थना मत्ती 26 और मरकुस 14 में भी शामिल है और यूहन्ना 18 में उल्लेख किया गया है l यीशु ने प्रार्थना के दोनों पक्षों से प्रार्थना की : यह कटोरा . . . टल जाए (परमेश्वर, जो मैं चाहता हूँ), तौभी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं (परमेश्वर, आप क्या चाहते हैं?), के मध्य केन्द्रीय बिंदु पर रहा l
यीशु के दो पक्ष l प्रार्थना के दो पक्ष l