Month: जून 2020

भरपूर जीवन

सत्रहवीं सदी के दार्शनिक थॉमस होब्स ने सुविदित से लिखा है कि अपनी स्वाभाविक अवस्था में मानव जीवन “अकेला, गरीब, अप्रिय, पशुवत्, और छोटा है l” उन्होंने तर्क दिया कि हमारी प्रवृत्ति दूसरों पर प्रभुत्व प्राप्त करने की होती है; अतः कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए सरकार की स्थापना आवश्यक होगी l

मानवता की धूमिल दृष्टि उस हालात की तरह लगती है जिसका वर्णन यीशु ने किया जब उसने कहा, “जितने मुझे से पहले आए वे सब चोर और डाकू हैं” (यूहन्ना 10:8) l लेकिन यीशु निराशा के मध्य आशा प्रदान करता है l “चोर . . . केवल चोरी करने और घात करने और नष्ट करने को आता है,” लेकिन फिर अच्छी खबर : “मैं इसलिए आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं” (पद.10) l

भजन 23 उस जीवन का एक तरोताज़ा तस्वीर प्रस्तुत करता है जो हमारा चरवाहा हमें देता है l उसमें, हमें “कुछ घटी” नहीं होती (पद.1) और वह हमारे “जी में जी ले आता है” (पद.3) l वह अपनी सिद्ध इच्छा के सही मार्ग में अगुवाई करता है, ताकि जब हम अंधकार भरे समय का भी सामना करते हैं, हमें डरने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि वह हमें शांति देने के लिए उपस्थित रहता है (पद.3-4) l वह विपत्ति के समय आशीषों से अभिभूत करता है (पद.5) l उसकी भलाई और करुणा हर दिन हमारे साथ रहती है, और हमें सदा के लिए उसकी उपस्थिति का अवसर मिलता है पद.6) l

काश हम चरवाहे की बुलाहट का उत्तर दें और उस पूरा, भरपूर जीवन का अनुभव करें जो वह हमें देने आया l

ठीक सीधे

एक ट्रेक्टर को सीधी कतार में चलाने के लिए एक किसान को एक स्थिर दृष्टि और एक दृढ़ भुजा की ज़रूरत होती थी l लेकिन दिन के अंत में बेहतरीन दृष्टि भी पिछली करारों पर नयी कतार बना देती थीं और सबसे मजबूत भुजाएं भी थक जाते थे l लेकिन अब एक स्वपरिचालन  (autosteer) मौजूद है – एक जी.पी.एस. आधारित तकनीक जो रोपण, खेती और छिड़काव करते समय एक इंच के भीतर सटीकता की अनुमति देता है l यह अविश्वसनीय रूप से कुशल है और इसे हाथों से चलाने की आवश्यकता नहीं होती l बस एक विशाल ट्रेक्टर में बैठने की कल्पना करें और स्टीयरिंग पकड़ने के बजाय, मानों आप चिकन 65(चिकन व्यंजन) के एक टांग को पकड़े हुए होते हैं l एक अद्भुत उपकरण जो आपको सीधे आगे की ओर बढ़ाता जाता है l

आप योशिय्याह का नाम याद करते होंगे l जब वह केवल “आठ वर्ष का था” (2 राजा 22:1) तो उसे राजा बनाया गया था l सालों बाद, अपने चौबीस से छब्बीस साल की उम्र में, मंदिर का महायाजक हिलकिय्याह को “व्यवस्था की पुस्तक” मिली (पद.8) l उसके बाद यह युवा राजा के समक्ष पढ़ा गया, जिसने परमेश्वर के प्रति अपने पूर्वजों की अवज्ञा से दुखित होकर अपने वस्त्र फाड़े l योशिय्याह ने वह करने की ठान ली जो “यहोवा की दृष्टि में थी है” (पद.2) l यह पुस्तक लोगों का मार्गदर्शन करने का उपकरण बन गयी, ताकि दायें या बाएं मुड़ना न हो l परमेश्वर के निर्देश चीजों को सही करने के लिए थे l

दिन-ब-दिन हमें मार्गदर्शन करने के लिए पवित्रशास्त्र को अनुमति देना हमारे जीवन को परमेश्वर और उसकी इच्छा को जानने के अनुरूप रखता है l बाइबल एक अद्भुत हथियार है, जिसका अगर पालन किया जाए, तो हम सीधे आगे बढ़ते रहते हैं l

प्रभु के सामने नाचना

कई साल पहले, मेरी पत्नी और मैं एक छोटे से चर्च में गए जहां आराधना के दौरान एक स्त्री गलियारे में नाचने लगी l जल्द ही दूसरे उसके साथ जुड़ गए l कैरोलिन और मैंने एक-दूसरे को देखा और हमारे बीच एक अनकहा समझौता हुआ : “मैं नहीं!” हम ऐसे चर्च परम्पराओं से आते हैं जो एक गंभीर रीतिरिवाज़ का पक्षधर है, और यह दूसरी प्रकार की आराधना हमारी आरामदेह स्थिति(comfort zone) के कहीं परे थी l

लेकिन यदि मरियम की “बर्बादी” के बारे में मरकुस की कहानी का कुछ भी मतलब है, तो यह सुझाव देता है कि यीशु के लिए हमारा प्यार खुद को उन तरीकों से व्यक्त कर सकता है जो दूसरों को असहज लगते हैं (मरकुस 14:1-9) l मरियम के अभिषेक में एक साल की मजदूरी शामिल थी l यह एक “नासमझ” कार्य था जिसने शिष्यों के तिरस्कार को आमंत्रित किया l मरकुस उनकी प्रतिक्रिया को समझाने के लिए जिस शब्द का उपयोग करता है उसका अर्थ  “सूंघना/सूंघ कर लेना” और तुच्छ समझना और मज़ाक है l यीशु की प्रतिक्रिया से डरकर मरियम घबरा गयी होगी l लेकिन उसने उसकी भक्ति के कार्य की प्रशंसा की और अपने खुद के शिष्यों के विरुद्ध उसका बचाव किया, क्योंकि यीशु ने उस प्रेम को देखा जिसने उसके कार्य को प्रेरित किया, बावजूद इसके कि उसके कार्य के अव्यवहारिक स्वभाव पर कुछ लोग क्या कहेंगे l उसने कहा, “उसे छोड़ दो; उसे क्यों सताते हो? उस ने तो मेरे साथ भलाई की है” (पद.6) l

अलग-अलग प्रकार की आराधना – अनौपचारिक, औपचारिक, शांत, विपुल – यीशु के लिए प्रेम के एक ईमानदार उद्गार का प्रतिनिधित्व करती है l वह सभी आराधना के योग्य है जो प्रेम के हृदय से निकलती है l

शायद मूर्तियाँ

सैम हर दिन दो बार अपना सेवानिवृत्ति खाता देखता है l उसने तीस साल तक बचत की, और एक बढ़ते शेयर बाजार के बढ़ने के साथ अंत में उसके पास रिटायर होने के लिए पर्याप्त है l जब तक स्टॉक डूबता नहीं है l इस डर से सैम को अपने बैलेंस(बाकी रकम) की चिंता रहती है l

यिर्मयाह ने इस बारे में चेतावनी दी : “हे यहूदा, जितने तेरे नगर हैं उतने ही तेरे देवता भी हैं; और यरूशलेम के निवासियों ने हर एक सड़क में उस लज्जापूर्ण बाल की वेदियाँ बनाकर उसके लिए धुप जलाया है” (11:13) l

यहूदा की मूर्तिपूजा उल्लेखनीय है l वे जानते थे कि प्रभु ही परमेश्वर था l वे किसी और की उपासना कैसे कर सकते थे? वे अपने होड़(bet) को सुरक्षित कर रहे थे l उन्हें भविष्य जीवन के लिए परमेश्वर की ज़रूरत थी, क्योंकि केवल सच्चा परमेश्वर ही उन्हें मृतकों में से जी उठा सकता था l लेकिन अब इसका क्या? गैर-यहूदी कथित ईश्वर स्वास्थ्य, धन और बहुतायत का वादा करते थे, इसलिए उनसे भी क्यों नहीं प्रार्थना की जाए, शायद?

क्या आप देख सकते हैं कि यहूदा की मूर्तिपूजा हमारी भी परीक्षा है? प्रतिभा, शिक्षा, और पैसा होना अच्छा है l लेकिन अगर हम सावधान नहीं होते हैं, तो हम अपना विश्वास उनके पास स्थानांतरित कर सकते हैं l हम जानते हैं कि हमारी मृत्यु के समय हमें परमेश्वर की आवश्यकता होगी, और हम उन्हें अभी हमें आशीष देने के लिए कहेंगे l लेकिन हम इन कमतर कथित ईश्वरों पर भी भरोसा करेंगे, शायद l

आपका भरोसा कहाँ है? बैक-अप(सहायक) भी तो मूर्तियाँ ही हैं l परमेश्वर के अनेक उपहारों के लिए धन्यवाद, और उसे बताएं कि आप उनमें से किसी पर भरोसा नहीं कर रहे हैं l आपका विश्वास सम्पूर्ण रूप से उस पर(परमेश्वर) है l

पुनर्निर्माण

यह रात का समय था जब अगुआ घोड़े पर सवार होकर काम का निरीक्षण करने निकल पड़ा जो उसके आगे धरा था l जब वह अपने चारों ओर विनाश का दौरा कर रहा था, तो उसने देखा कि शहर की दीवारें नष्ट हो गयीं थीं और फाटक जो जले हुए थे l कुछ क्षेत्रों में, बहुत अधिक मलबे के ढेर उसके घोड़े को आगे बढ़ने में मुश्किल कर दिए l दुखी होकर, घुड़सवार घर की ओर मुड़ गया l

जब शहर के अधिकारीयों से हानि बताने का समय आया, वह इस तरह बताना आरम्भ किया, “तुम आप देखते हो कि हम कैसी दुर्दशा में हैं” (नहेम्याह 2:17) l उसने बताया कि नगर खंडहर हो गया था, और नगर को सुरक्षित रखने वाले नगर की दीवारें बेकार हो गयीं थीं l

परन्तु उसने एक कथन कहा जिससे परेशान नागरिक उत्साहित हो गए : फिर मैंने उनको बतलाया, कि मेरे परमेश्वर की कृपादृष्टि मुझे पर कैसे हुई l” तुरन्त, लोगों ने उत्तर दिया, “आओ हम कमर बांधकर बनाने लगें” (पद.18) l