Month: जून 2020

“अच्छी वस्तु”

माइक के अधिकांश सहकर्मी मसीहियत के बारे में कम ही जानते थे, न ही उन्हें इसकी कोई परवाह थी l लेकिन वे जानते थे कि माइक परवाह करता था l ईस्टर के मौसम के पास एक दिन, किसी ने यूँ ही उल्लेख किया कि उन्होंने सुना है कि ईस्टर का फसह से कुछ लेना-देना था और सोच रहे थे कि उसका ईस्टर से क्या सम्बन्ध था l “अरे, माइक!” उसने कहा l “क्या तुम परमेश्वर की इस अच्छी वस्तु के बारे में जानते हो l फसह क्या है?”

इसलिए माइक ने समझाया कि परमेश्वर ने कैसे इस्राएलियों को मिस्र की गुलामी से बाहर निकाला था l उसने उन्हें उन दस विपत्तियों के बारे में बताया, जिनमें हर घर में पहिलौठे की  मृत्यु शामिल थी l उसने बताया कि किस तरह मौत का स्वर्गदूत उन घरों के ऊपर से “गुज़र गया” जिनके चौखटों पर बलिदान किये हुए मेमने का लहू लगा हुआ था l उसके बाद उसने साझा किया कि कैसे यीशु बाद में फसह के मौसम में हमेशा के लिए बलिदान के मेमने के रूप में क्रूस पर चढ़ाया गया था l अचानक माइक ने महसूस किया, अरे, मैं तो साक्षी दे रहा हूँ !

शिष्य पतरस ने परमेश्वर को नहीं जानने वाली एक संस्कृति में एक कलीसिया को सलाह दी l उसने कहा, “जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे, उसे उत्तर देने के लिए सर्वदा तैयार रहो” (1 पतरस 3:15) l

इसलिए कि माइक अपने विश्वास के विषय स्पष्ट था, उसे उस विश्वास को स्वाभाविक रूप से साझा करने का अवसर मिला, और वह ऐसा “नम्रता और भय के साथ” कर सका (पद.15) l

हम भी कर सकते हैं l परमेश्वर के पवित्र आत्मा की सहायता से, हम सरल भाषा में समझा सकते हैं कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण क्या है – परमेश्वर के विषय वह “वस्तु l”

आनंद के लिए हमारा कारण

जब स्कूल का साल शुरू हुआ, चौदह वर्षीय संदीप हर दोपहर बस से कूदकर उतर जाता और अपने घर की सड़क पर नाचता हुआ जाता l उसकी माँ ने संदीप के स्कूल के बाद के रॉक संगीत के समय का विडियो बनाया और साझा किया l वह नाचता था क्योंकि वह जीवन का आनंद लेता था और हर कदम के साथ “लोगों को खुश करता था l” एक दिन, दो कचरा बीनने वालों ने अपने व्यस्त दिनचर्या में से समय निकालकर उस जवान बच्चे के साथ जो दूसरों को अपने साथ नाचने के लिए प्रेरित करता था, पैर घसीट कर चले, पैरों पर तेजी से घूमें और झूमे l यह तिकड़ी ईमानदार और फैलने वाले आनंद की शक्ति को दर्शाती है l

भजन 149 का लिखने वाला स्थायी और शर्तहीन आनंद का श्रोत – परमेश्वर  - का वर्णन करता हैं l भजनकार परमेश्वर के लोगों से एक साथ मिलकर “यहोवा के लिए एक नया गीत गाने” को कहता है (पद.1) l वह इस्राएल से “अपने कर्ता के कारण आनंदित” होने और “अपने राजा के कारण मगन” होने के लिए आमंत्रित करता है (पद.2) l वह हमें उसके साथ नाचते हुए उसके नाम की स्तुति करने को कहता है (पद.1-3) l क्यों? क्योंकि “यहोवा अपनी प्रजा से प्रसन्न रहता है; वह नम्र लोगों का उद्धार करके उन्हें शोभायमान करेगा” (पद.4) l

हमारे प्रेममय पिता ने हमें बनाया और इस सृष्टि को संभालता है l वह हममें सिर्फ इसलिए प्रसन्न रहता है क्योंकि हम उसके प्यारे बच्चे हैं l उसने हमें बनाया, हमें जानता है, और हमें अपने साथ व्यक्तिगत सम्बन्ध बनाने के लिए आमंत्रित करता है l कितना बड़ा सम्मान है! हमारा प्रेमी और जीवित परमेश्वर ही हमारे सदा के आनंद का कारण है l हम उसकी निरंतर उपस्थिति के उपहार में आनंदित हो सकते हैं और हमारे सृष्टिकर्ता द्वारा हमें दिए गए हर दिन के लिए आभारी हो सकते हैं l  

वास्तव में दीन, वास्तव में महान

जैसे ही अमेरिकी क्रांति ने इंग्लैंड के असंभव समर्पण के साथ समाप्त हुआ, कई नेताओं और सेना के नेताओं ने जनरल जॉर्ज वाशिंगटन को एक नया शासक बनाने का प्रयास किया l दुनिया देखती रही, और सोचती रही कि क्या वाशिंगटन स्वतंत्रता और छुटकारे के अपने आदर्श से चिपका रहेगा जब सम्पूर्ण शक्ति उसकी मुट्ठी में थी l इंग्लैंड के किंग जॉर्ज ने हालाँकि एक और वास्तविकता देखी l वह आश्वस्त था कि यदि वाशिंगटन ने शक्ति खींचाव का विरोध करेगा  और अपने वर्जिनिया फार्म(राष्ट्रपतियों का निवास) में लौट जाएगा, तो वह “संसार का सबसे बड़ा आदमी” होगा l राजा यह जानता था कि सत्ता के प्रति आकर्षण के विरोध की महानता का सबूत सच्ची श्रेष्ठता और गौरव का प्रतिक है l

पौलुस इस सच्चाई को जानता था और हमें मसीह के विनम्रता के तरीके का दीनता से अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित किया l यीशु “परमेश्वर के स्वरुप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा” (फिलिप्पियों 2:6) l इसके बदले, उसने अपनी सामर्थ्य को समर्पित किया, एक “दास” बन गया और “यहाँ तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु . . . भी सह ली” (पद.7-8) l जिसके पास समस्त सामर्थ्य थी उसने प्रेम की खातिर उसके हर एक अंश को समर्पित कर दिया l

और फिर भी, अंतिम परिवर्तन में, परमेश्वर ने मसीह को एक अपराधी के क्रूस से आगे “अति महान भी किया” (पद.9) l यीशु, जो हमारी प्रशंसा की मांग कर सकता था या हमें आज्ञाकारी होने को विवश कर सकता था, ने एक विस्मयकारी कार्य में होकर हमारी आराधना और भक्ति को लिया l परम विनम्रता के द्वारा, यीशु ने सच्ची महानता का प्रदर्शन करके, संसार को उलट दिया l  

बचाव की आवश्यकता में

इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप से करीब 125 किलोमीटर (लगभग 78 मील) की दूरी पर मछली पकड़ने वाली एक झोपड़ी(fishing hut) में एलडी नाम का एक किशोर अकेले काम कर रहा था  जब तेज़ हवाओं ने उसकी झोपड़ी को नाव बाँधने की जगह से उठाकर उसे समुद्र में फेंक दिया l उनतालीस दिनों तक, एलडी समुद्र में बहता रहा l हर बार जब उसने एक जहाज़ देखा, तो उसने नाविकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए कोशिश करने के लिए अपने दीपक को चालू कर दिया, पर केवल निराशा मिली l इससे पहले कि वह कुपोषित किशोर बचाया गया लगभग दस जहाज़ उस के पास से निकल गए l

यीशु ने “एक व्यस्थापक” (लूका 10:25) से किसी के विषय जिसे बचाया जाना ज़रूरी था एक दृष्टान्त कहा l दो व्यक्ति – एक पुरोहित(याजक) और एक लेवी(याजकीय गोत्र) ने – अपनी यात्रा के दौरान एक घायल आदमी को देखा l लेकिन उसकी मदद करने की बजाए, दोनों “कतरा कर [चले गए]” (पद.31-32) l हमें इसका कारण नहीं बताया गया है l दोनों ही धार्मिक व्यक्ति थे और अपने पड़ोसी से प्रेम करने के परमेश्वर के नियम से अवश्य ही परिचित थे (लैव्यव्यवस्था 19:17-18) l शायद उन्होंने सोचा होगा कि यह कुछ अधिक खतरनाक है या शायद वे मृत शरीरों को स्पर्श करने के विषय यहूदी व्यवस्था नहीं तोड़ना चाहते थे, जिससे वे अनुष्ठानिक तौर से अशुद्ध हो जाएँ और मंदिर में सेवा न कर सकें l तुलनात्मक तौर पर, एक सामरी व्यक्ति जो यहूदियों द्वारा तुच्छ समझा जाता था – ने भलमनसी की तरह कार्य किया l उसने उस व्यक्ति को ज़रूरत में देखा और निस्वार्थ भाव से उसकी देखभाल की l

यीशु ने इस आज्ञा के साथ अपने उपदेश को समाप्त किया कि उनके शिष्यों को “भी ऐसा ही” करना है (लूका 10:37) l परमेश्वर हमें दूसरों की मदद करने के लिए प्रेम में जोखिम लेने की इच्छा दे l

किनारों पर

एक मोटरसाइकिल प्रदर्शन में जहाँ मोटरसाइकिल चलानेवालों ने असाधारण करतब दिखाए, तो देखने के लिए मुझे अपने पंजों के बल खड़ा होना पड़ा l चचारों ओर घूमकर, मैंने देखा कि तीन बच्चे पास के पेड़ पर बैठे थे, जाहिर है क्योंकि वे भी करतब को देखने के लिए भीड़ के सामने नहीं आ सकते थे l

बच्चों को अपने ऊंचे स्थान से ताकते हुए देखकर, मैं जक्कई के विषय सोचने को मजबूर हुआ, जिसे लूका एक धनी चुंगी लेनेवाले के रूप में बताता है (लूका 19:2) l यहूदी अक्सर चुंगी लेनेवालों को देशद्रोही के रूप में देखते थे क्योंकि वे रोमी सरकार के लिए साथी इस्राएलियों से कर वसूलने, के साथ अपने व्यक्तिगत बैंक खातों को भरने के लिए अक्सर अतिरिक्त धन की मांग करते थे l इसलिए शायद जक्कई को उसके समुदाय से निकाल दिया गया था l

जब यीशु यरीहो से गुज़रा, जक्कई उसे देखना चाहता था परन्तु भीड़ के कारण उसे देखने में असफल था l इसलिए, शायद निराश और अकेला महसूस करते हुए, गूलर के पेड़ पर चढ़कर उसने उसकी एक झलक पाने की कोशिश की (पद.3-4) l और वहां पर, भीड़ के किनारे, यीशु ने उसे खोज निकाला और उसके घर पर एक अतिथि होने की घोषणा की (पद.5) l

जक्कई की कहानी हमें स्मरण दिलाती है कि यीशु अपनी मित्रता और उद्धार का उपहार पेश करते हुए “खोए हुओं को ढूँढने और उनका उद्धार करने आया” (पद.9-10) l यहाँ तक कि यदि हम अपने को अपने समुदायों के किनारों पर महसूस करते हैं, “भीड़ के पीछे धकेल दिए जाते हैं,” हम आश्वस्त रहें कि, वहां भी, यीशु हमें खोज लेता है l