क्रूस की भाषा
पास्टर टिम केलर ने कहा, “किसी के बताए जाने पर कि वह कौन है कोई भी कभी नहीं सीखता है । उन्हें दिखाया जाना चाहिए l ” एक अर्थ में, यह कहावत का एक अनुप्रयोग है, "कार्य शब्दों से अधिक जोर से बोलते हैं ।" पति या पत्नी अपने जोड़े में से एक को दिखाते हैं कि जब वे उनकी सुनते हैं और उन्हें प्यार करते हैं तब उनकी सराहना होती है l माता-पिता अपने बच्चों की प्रेमी देखभाल करके दिखाते हैं कि वे मूल्यवान हैं l कोच एथलीटों के विकास में निवेश करके उन्हें दिखाते हैं कि उनके अन्दर संभावनाएं हैं l और इस तरह के अनेक उदाहरण हैं l इसी प्रतीक के द्वारा, एक अलग तरह की कार्रवाई लोगों को दर्दनाक चीजें दिखा सकती है जो बहुत बुरे संदेश का संचार करती है ।
सृष्टि में सभी कार्य-आधारित संदेशों में से, एक सबसे अधिक मायने रखता है । जब हम चाहते हैं कि हमें दिखया जाए कि हम परमेश्वर की नजर में कौन हैं, तो हमें उसके क्रूस पर उसके कार्य से आगे नहीं देखना चाहिए । रोमियों 5:8 में, पौलुस ने लिखा, “परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिए मरा l” क्रूस हमें दिखाता है कि हम कौन हैं : जिन्हें परमेश्वर इतना प्यार करता था कि उसने हमारे लिए अपने एकलौता पुत्र दे दिया (यूहन्ना 3:16) ।
एक भंग संस्कृति में टूटे हुए लोगों के मिश्रित संदेशों और भ्रामक कार्यों के खिलाफ, परमेश्वर के हृदय का संदेश स्पष्ट होता है । तुम कौन हो? आप वह हैं जिसे परमेश्वर इतना प्यार करता है कि उसने आपको बचाने के लिए अपने पुत्र को दे दिया l उस कीमत पर विचार करें और उस अद्भुत वास्तविकता पर कि, आप उसके लिए, हमेशा महत्वपूर्ण थे l
कुछ पीछे छोड़ दें
पचास पैसे, एक या दो रुपये और कभी-कभी पाँच या दस रुपये । आप इतने ही उसके बिस्तर के बगल में पाएंगे l वह हर शाम अपनी जेब खाली कर देता है और उसकी सामग्री वहीं छोड़ देता है, क्योंकि वह जानता था कि आखिरकार वे उससे मिलने आएँगे - वे अर्थात् उसके नाती- पोते । इन वर्षों में बच्चे वहां आने के तुरंत बाद उसके बिस्तर के निकट आना सीख लिए l वह उन सारे छोटे सिक्को को बैंक में जमा कर सकता था या बचत खाते में जमा कर सकता था । लेकिन उसने ऐसा नहीं किया । वह अपने घर में मौजूद छोटे, अनमोल मेहमानों के लिए इसे छोड़कर खुश हो जाता था l
इसी तरह की मानसिकता लैव्यव्यवस्था 23 में व्यक्त की गई है जब धरती से फसल लाने की बात आती है । परमेश्वर ने मूसा के माध्यम से, लोगों को बिलकुल उदार बनने की शिक्षा दी : “जब तुम अपने देश में के खेत काटो, तब अपने खेत के कोनों को पूरी रीति से न काटना” (पद.22) l अनिवार्य रूप से, उसने कहा, “थोड़ा पीछे छोड़ दो l” इस निर्देश ने लोगों को याद दिलाया कि परमेश्वर ही सबसे पहले फसल के पीछे था, और वह कम महत्व के लोगों (देश में रहने वाले परदेशी) की आवश्यकताओं को अपने लोगों द्वारा पूरी करता है l
इस तरह की सोच निश्चित रूप से हमारे संसार का नमूना नहीं है । लेकिन यह ठीक उसी तरह की मानसिकता है जो परमेश्वर के कृतज्ञ पुत्रों और पुत्रियों की विशेषता होगी । वह एक उदार हृदय में प्रसन्न होता है । और वह मानसिकता अक्सर आपके और मेरे द्वारा आता है ।
क्रिसमस विस्मय
मैं मीटिंग के लिए एक रात लंदन में था । बहुत तेज बारिश हो रही थी, और मुझे देर हो रही थी । मैं गलियों से तेजी से दौड़ता हुआ, एक कोने से मुड़ा और फिर रुक गया । दर्जनों स्वर्दूत रीजेंट स्ट्रीट के ऊपर मंडरा रहे थे, उनके विशाल झिलमिलाते पंख यातायात में पसरे हुए थे l स्पंदन करती हजारों बत्तियों से बनी हुई, यह सबसे अद्भुत क्रिसमस प्रदर्शन था जिसे मैंने देखा था । केवल मैं ही अकेला मोहित नहीं था l सैकड़ों लोग विस्मय में डूबे हुए सड़क पर पंक्तिबद्ध थे l
क्रिसमस की कहानी में विस्मय सबसे महत्वपूर्ण है l जब स्वर्गदूत ने मरियम के समक्ष प्रगट होकर समझाते हुए कहा कि वह चमत्कारिक रूप से गर्भ धारण करेगी (लूका 1:26-38), और चरवाहों को यीशु के जन्म की घोषणा की (2:8–20). प्रत्येक ने भय, आश्चर्य – और विषमय से प्रत्युत्तर दिया l उस रीजेंट स्ट्रीट की भीड़ को देखते हुए, मुझे आश्चर्य हुआ कि क्या हम भी कुछ हद तक वही प्रथम दिव्य दृश्य का अनुभव कर रहे थे l
एक क्षण बाद, मैंने कुछ और देखा । कुछ स्वर्गदूतों ने अपनी भुजाएँ उठाई थीं, मानो वे भी किसी चीज़ को टकटकी लगाकर देख रहे हों । जैसे कि स्वर्गदूतों का समूह यीशु का जिक्र होने पर स्तुति करने लगे (पद.13-14), ऐसा लगता है कि स्वर्गदूत भी विस्मित होते देखे जा सकते है – जब वे उसे टकटकी लगाकर देखते हैं l
"वह उसकी महिमा का प्रकाश और उसके तत्व की छाप है” (इब्रानियों 1:3) l उज्ज्वल और प्रकाशमान, यीशु हर स्वर्गदूत की निगाह का केंद्र बिंदु है (पद.6) । यदि स्वर्गदूत के प्रसंग वाला क्रिसमस का प्रदर्शन व्यस्त लंदन वासियों को उनके रास्ते में रोक सकता है, तो उस पल की कल्पना करें जब हम उसे आमने-सामने देखेंगे l
कोमल वाणी
मैं फेसबुक पर थी, बहस कर रही थी l गलत कदम । मुझे सोचने के लिए किसने विवश किया कि मैं एक उग्र विषय पर एक अजनबी को "सही" करने के लिए बाध्य थी - विशेष रूप से एक विभाजनकारी विषय? परिणाम उत्तेजित शब्द, आहत भावनाएँ थीं (चाहे जैसे भी मेरी ओर से), और यीशु के लिए अच्छी तरह से गवाही देने का एक खंडित अवसर । यह "इंटरनेट क्रोध" का निष्कर्ष है । यह ब्लॉग जगत में प्रतिदिन गुस्से में फेंके गए कठोर शब्दों के लिए परिभाषा है । जैसा कि एक नैतिक विशेषज्ञ ने समझाया, लोग गलत तरीके से निष्कर्ष निकालते हैं कि "जैसे सार्वजनिक विचारों के बारे में बात की जाती है" ही क्रोध है l
तीमुथियुस को पौलुस की बुद्धिमान सलाह ने वही सावधानी दी । "मुर्खता और अविद्या के विवादों से अलग रह, क्योंकि तू जानता है कि इनसे झगड़े उत्पन्न होते हैं l प्रभु के दास को झगड़ालू नहीं होना चाहिये, पर वह सब के साथ कोमल और शिक्षा में निपुण और सहनशील हो” (2 तीमुथियुस 2:23–24) ।
एक रोमी जेल से तीमुथियुस को लिखी गयी पौलुस की अच्छी सलाह युवा पास्टर को तैयार करने के लिए भेजा गया था ताकि वह परमेश्वर की सच्चाई सिखा सके l पौलुस की सलाह आज के समयानुकूल है, खासकर जब बातचीत हमारे विश्वास की ओर मुड़ जाती है l "विरोधियों को नम्रता से [समझाया जाना चाहिये], क्या जाने परमेश्वर उन्हें मन फिराव का मन दे कि वे भी सत्य को पहिचानें” (पद.25) l
दूसरों से विनम्रता से बात करना इस चुनौती का हिस्सा है, लेकिन सिर्फ पास्टरों के लिए नहीं । उन सभी के लिए जो ईश्वर से प्रेम करते हैं और दूसरों को उसके बारे में बताना चाहते हैं, काश हम प्यार में उसकी सच्चाई बोलें l हर शब्द के साथ, पवित्र आत्मा हमारी मदद करेगा ।